प्रथम विश्वयुद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा. प्रथम विश्वयुद्ध के विषय में यहाँ पढ़ें > प्रथम विश्वयुद्ध. प्रथम विश्वयुद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव युद्ध के दौरान कारखानों और मजदूरों की संख्या में तीव्रता से बढ़ोतरी हुई. 1914 ई. में जहाँ कारखानों में कार्यरत मजदूरों की संख्या 9,50,973 थी, वहीं 1918 ई. में उनकी संख्या 11,22,922 हो गई. … Read More
प्रार्थना समाज – 1867 ई.
आज हम जानेंगे प्रार्थना समाज के विषय में. इस पोस्ट को ध्यान से अंत तक पढ़ें. प्रार्थना समाज बंगाल की ही तरह महाराष्ट्र में भी सुधारवादी लहर उठी. 1837 ई० में ही प्रकाशित एक पत्रिका द्वारा मराठा ब्राह्मणों का ध्यान विधवा-विवाह की ओर आकृष्ट किया गया. रेवरेंड बाबा पद्मनजी ने भी इस विषय पर बल डाला. इसी प्रकार, 1849 ई० … Read More
गोपाल कृष्ण गोखले (1866-1915 ई.)
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1866 ई. को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. 1884 ई. में बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद वे 18 वर्ष की आयु में अध्यापक बने. आगे चलकर गोपाल कृष्ण गोखले फरग्यूसन कॉलेज पूना के अध्यापक एवं प्राचार्य भी नियुक्त हुए. गोपाल कृष्ण गोखले के गुरु महादेव … Read More
ए.ओ. ह्यूम – कांग्रेस के जनक
एलेन ओक्टेवियन ह्यूम कांग्रेस के प्रमुख संस्थापक थे. गांधीजी ने ए.ओ. ह्यूम को कांग्रेस के जनक की संज्ञा दी है. ए.ओ. ह्यूम ए.ओ. ह्यूम स्कॉटलैण्डवासी थे. वे भारतीय लोकसेवा के सदस्य थे. 1870 ई० से 1879 ई० तक भारत सरकार के सचिव के पद पर काम करने के बाद 1880 ई० में उन्होंने सेवा से अवकाश ग्रहण किया था. ह्यूम … Read More
दादाभाई नौरोजी – ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ़ इंडिया
दादाभाई नौरोजी एक महान देशभक्त थे. उन्हें भारत का वयोवृद्ध सेनानी (Grand old man of India) कहा जाता है. कांग्रेस की स्थापना के पूर्व भी दादाभाई नौरोजी ने राष्ट्रीय कल्याण की भावना से प्रेरित होकर सरकार के सामने अनेक प्रश्नों को उठाया था. पट्टाभि सीतारमैया ने लिखा है कि “कांग्रेस के आरम्भ से लेकर जीवनपर्यन्त उसकी सेवा करते रहे, उन्होंने … Read More
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी – आधुनिक बंगाल के निर्माता
आधुनिक बंगाल के निर्माता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी कांग्रेस के संस्थापकों में एक प्रमुख व्यक्ति थे. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने सर्वप्रथम 1869 ई० में भारतीय लोकसेवा (आई० सी० एस०) की परीक्षा पास की थी. ब्रिटिश सरकार परीक्षा में सफल होने के बावजूद उन्हें उच्च पद देना नहीं चाहती थी. प्रिवी काउन्सिल में अपील करने के बाद उन्हें मैजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया … Read More
लॉर्ड कर्जन (1899-1905) : आन्तरिक नीति (Domestic Policy)
लॉर्ड कर्जन भारत के योग्य एवं प्रभावशाली ब्रिटिश शासकों में अपना स्थान रखता है. कम्पनी के शासन की समाप्ति के उपरान्त जितने भी वायसराय भारत में आये उनमें लॉर्ड कर्जन सबसे अधिक योग्य था. वह यद्यपि 1899 ई० में वायसराय के पद पर प्रतिष्ठित हुआ तथापि उसके पहले भी वह कई बार भारत का भ्रमण कर चुका था. उसके बारे … Read More
लॉर्ड लिटन की अफगान-नीति और गंडमक की संधि
आशा है कि आपने लॉर्ड लिटन की आंतरिक नीति (Domestic Policy) वाला पोस्ट पढ़ लिया होगा. नहीं पढ़ा तो यहाँ पढ़ लें > लॉर्ड लिटन. इस पोस्ट में हम लॉर्ड लिटन की अफगान नीति और गंडमक की संधि क्या थी, उस विषय में पढ़ेंगे. लॉर्ड लिटन की अफगान-नीति (Lord Lytton’s Afghan Policy) प्रथम अफगान युद्ध के बाद 1844 ई० में … Read More
लॉर्ड लिटन (1876-80 ई०) की आंतरिक नीतियाँ
अप्रैल, 1876 ई० में लॉर्ड नॉर्थव्रुक के स्थान पर लॉर्ड लिटन को भारत के गवर्नर-जनरल के पद पर नियुक्त किया गया. उस समय लॉर्ड लिटन के समक्ष दो मुख्य कठिनाइयाँ थीं और उन्हीं के कारण भारत में उसका शासन सफल नहीं हो सका. सर्वप्रथम, गवर्नर-जनरल का पद ग्रहण करने के पहले लिटन को भारत की परिस्थितियों को समझने का अवसर … Read More
लॉर्ड रिपन (1880-1884 ई०) की नीतियाँ एवं सुधार
कम्पनी के शासन समाप्त होने के बाद भारत में जितने भी वायसराय आये, उनमें लॉर्ड रिपन का विशिष्ट स्थान है. वह उदार विचारों का था. वह शान्ति, अहस्तक्षेप तथा स्वायत्त शासन के गुणों में विश्वास रखता था और ग्लैडस्टनयुग का सच्चा उदारपंथी थी. लॉर्ड विलियम बेन्टिंक की भाँति उसने राजनीतिक और सामाजिक सुधार करने में अधिक अभिरुचि दिखलाई. यद्यपि अंगरेज … Read More