सुरेन्द्रनाथ बनर्जी – आधुनिक बंगाल के निर्माता

Dr. SajivaModern History

आधुनिक बंगाल के निर्माता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी कांग्रेस के संस्थापकों में एक प्रमुख व्यक्ति थे. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने सर्वप्रथम 1869 ई० में भारतीय लोकसेवा (आई० सी० एस०) की परीक्षा पास की थी. ब्रिटिश सरकार परीक्षा में सफल होने के बावजूद उन्हें उच्च पद देना नहीं चाहती थी. प्रिवी काउन्सिल में अपील करने के बाद उन्हें मैजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया, परन्तु सरकार ने जातीय विभेद की नीति के कारण दो वर्ष बाद उन्हें सेवा से मुक्त कर दिया. सरकारी सेवा से मुक्त हो जाने के बाद सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया. सी० वाई० चिन्तामणि ने लिखा है कि “शासन की हानि राष्ट्र का लाभ बन गयी.”

surendra nath banarjee

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी

सर्वप्रथम 1876 ई० में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने इंडियन एसोसिएशन नामक संस्था की स्थापना की. यह संस्था ब्रिटिश सरकार के अत्याचार एवं अन्याय के विरोध में कायम को गयी. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने स्वयं पूरे देश का भ्रमण कर इंडियन एसोसिएशन की शाखाएँ अनेक स्थानों में स्थापित की. इंडियन एसोसिएशन के द्वारा राजनीतिक अधिकार की मांग पेश की गयी थी. ब्रिटिश सरकार ने आई० सी० एस० की परीक्षा के लिए भारतीयों की आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 (लॉर्ड लिटन) वर्ष कर दी थी. इस निर्णय के विरुद्ध सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने एक राष्ट्रव्यापी आन्दोलन का सूत्रपात किया था. इंडियन एसोसिएशन के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने तथा लोकमत संग्रह का जो अभियान प्रारम्भ किया गया उससे भारत में राष्ट्रीय स्तर पर एक राजनीतिक संगठन कायम करने को अधिक बल मिला. इस अर्थ में इंडियन एसोसिएशन को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पूर्वगामी संस्था कहा जा सकता है.

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी शिक्षा-प्रेमी थे. सरकारी सेवा से हटने के बाद वे कलकत्ता में मेट्रोपोलिटन कॉलेज में अंगरेजी के अध्यापक बन गये. उन्होंने कलकत्ता में एक कॉलेज की स्थापना भी की थी जो आगे चलकर रिपन कॉलेज के नाम से विख्यात हुआ. एक कुशल अध्यापक के साथ-साथ सुरेन्द्रनाथ बनर्जी सफल पत्रकार भी थे. 1883 ई० में बंगाली” नामक पत्र का प्रकाशन किया गया. सुरेन्द्रनाथ बंगाली पत्र के सम्पादक थे और इनके लेखों को सरकार ने आपत्तिजनक मानकर इन्हें दो मास की सजा दी थी. सजा के विरोध में अभूतपूर्व जन-जागरण हुआ. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी छात्रों के बीच अधिक लोकप्रिय थे.

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी एक महान विचारक और कुशल वक्ता थे. ब्रिटिश संसद एवं जनता के सामने भारतीय दृष्टिकोण को उपस्थित करने के लिए इन्हें कई बार शिष्टमण्डल का सदस्य नियुक्त कर इंगलैण्ड भेजा गया था. अपने भाषण एवं तर्कपूर्ण विचार से वे अंगरेजों को बहुत प्रभावित कर देते थे. इंगलैण्ड के प्रधानमंत्री ग्लैडस्टोन की तरह सुरेन्द्रनाथ बनर्जी भी एक प्रभावशाली वक्ता थे. इन्हें इंडियन ग्लैडस्टोन की संज्ञा दी गयी थी. सर हेनरी कॉटन ने सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की वाकपटुता और योग्यता के सम्बन्ध में यह उद्गार प्रकट किया था कि “मुल्तान से लेकर चटगाँव तक वे अपनी वाणीकला के जादू से विद्रोह उत्पन्न कर सकते थे और विद्रोह को दबा भी सकते थे. भारत में उनकी स्थिति वही थी जो डैमोस्थानीज की यूनान में या सिसरो की इटली में थी.”

लॉर्ड कर्जन ने 1905 ई० में बंगाल विभाजन की घोषणा की. बंग-विभाजन के विरुद्ध सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने विद्रोह छेड़ दिया और सारे राष्ट्र में अपने भाषण और लेख के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना में एक नई लहर पैदा कर दी. विरोध का नेतृत्व करते हुए सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को पुलिस की लाठी खानी पड़ी थी.

सुरेन्द्रनाथ उदारवादी थे. वे ब्रिटिश सभ्यता की सर्वोच्चता में विश्वास रखते थे. वे इंगंलैण्ड को अपना पथ-प्रदर्शक मानते थे. ब्रिटिश शासन को सुदृढ़ रखना भी चाहते थे, परन्तु नौकरशाही के काले कारनामों के कटु आलोचक भी थे. वे सरकार की गलत नीति की तीव्र भर्त्सना करते थे. बंग-विभाजन के अवसर पर उन्होंने सरकार के विरोध में देशव्यापी आन्दोलन का सूत्रपात किया था. सरकार की खामियों को प्रकाश में लाना वे कभी नहीं भूलते ये. वे भारत की सभ्यता एवं संस्कृति को तुच्छ नहीं मानते थे. अंगरेजों को लताड़ने में वे बाज नहीं आते थे. वे कांग्रेस की स्थापना में सम्मिलित नहीं हुए थे. परन्तु 1886 ई० के बाद कांग्रेस से जुड़ गये और दो बार अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए थे.  वे 1895 में पूना में और 1902 में अहमदाबाद में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए.  

20 अगस्त 1917 को, मांटेग्यू ने ब्रिटिश संसद में ऐतिहासिक मांटेग्यू घोषणा (अगस्त घोषणा) प्रस्तुत किया. इस घोषणा ने प्रशासन में भारतीयों की बढ़ती भागीदारी और भारत में स्व-शासन संस्थानों के विकास का प्रस्ताव रखा. कांग्रेस मांटेग्यू-मॉन्टफोर्ड रिपोर्ट से सन्तुष्ट नहीं थी. कांग्रेस की नजर में यह सुधार अपर्याप्त, असन्तोषजनक एवं अपमानजनक था. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी सुधार को स्वीकार करने के पक्ष में थे. फलतः विरोध के कारण सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने कांग्रेस से सम्बन्ध-विच्छेद कर लिया. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने 1919 ई० में एक अलग दल की स्थापना की और उसका नाम “राष्ट्रीय उदार संघ(National Liberal Association) रखा. 1919 ई० के ऐक्ट के अन्तर्गत प्रान्तों में द्वैध शासन की स्थापना की गयी. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को बंगाल में मंत्री का पद दिया गया. ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें सर की उपाधि भी दी गयी. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने एक पुस्तक की रचना की थी. उसका नाम, ए नेशन इन दी मेकिंग’ (A Nation in the Making) था. इस पुस्तक में भारत के सांविधानिक इतिहास का विवरण प्रस्तुत किया गया था. 06 अगस्त, 1925 ई० को सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का देहान्त हुआ.

सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रदूत थे. वे सांविधानिक आन्दोलन के जन्मदाता थे. राष्ट्रसेवा में अपना सब कुछ अर्पित करने वालों में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का नाम स्वर्णक्षरों में अंकित किया जाता है.

Spread the love
Read them too :
[related_posts_by_tax]