नाइट्रोजन प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला तत्त्व है. यह पौधों और जन्तुओं दोनों में वृद्धि एवं प्रजनन के लिए आवश्यक है. पृथ्वी के वायुमंडल का लगभग 78% भाग इसी से बना है. भारत में नाइट्रोजन प्रदूषण का मुख्य स्रोत कृषि है. इसके पश्चात् सीवेज एवं जैविक ठोस अपशिष्ट का स्थान आता है.
हाल ही में सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर (SCN) नामक एक NGO ने Indian Nitrogen Assessment Report जारी की है.
रिपोर्ट की मुख्य बातें
- खाद्य उत्पादकता कम होना :- उर्वरकों के अत्यधिक और विवेकहीन उपयोग से फसलों की पैदावार कम हो गई है, जो इसके उपयोग के मूल उद्देश्य के ठीक विपरीत है.
- खाद्य फसलों द्वारा उर्वरकों का अपर्याप्त ग्रहण :- उर्वरकों के जरिये चावल और गेहूँ के लिए प्रयुक्त नाइट्रोजन का केवल 33% ही नाइट्रेट के रूप में पौधों के द्वारा ग्रहण किया जाता है.
- भूजल प्रदूषित होना :- उर्वरकों के निक्षालन ने पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भूजल में नाइट्रेट की सांद्रता (nitrate concentration) में वृद्धि कर दी है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित सीमा से कहीं अधिक है.
- प्रबल ग्रीनहाउस गैस (GHG) :- नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) के रूप में नाइट्रोजन CO2 की तुलना में GHG के रूप में 300 गुना अधिक प्रबल है.
- आर्थिक प्रभाव :- भारत को हर साल 10 बिलियन डॉलर उर्वरक की सब्सिडी पर खर्च करना पड़ता है.
- स्वास्थ्य पर प्रभाव :- ब्लू बेबी सिंड्रोम, थायराॅयड ग्रन्थि से सम्बंधित बीमारी, विटामिन A की कमी आदि.
- अम्लीय वर्षा :- H2SO4 के साथ मिलकर नाइट्रिक अम्ल अम्लीय वर्षा का कारण बनता है, जो फसलों एवं मृदाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है.
- सुपोषण :- बड़ी मात्रा में उर्वरक अपवाह के कारण मृत क्षेत्र (dead zone) का निर्माण होता है.
- ओजोन क्षय :- नाइट्रस ऑक्साइड (N2O/laughing gas) मानव द्वारा उत्सर्जित प्रमुख ओजोन-क्षयकारी पदार्थ माना जाता है.
- स्मॉग निर्माण :- उद्योगों से उत्सर्जित नाइट्रोजन प्रदूषण स्मॉग निर्माण में सहायक होता है.
नाइट्रोजन प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए उठाये गए कदम
अनिवार्य नीम-लेपित यूरिया उत्पादन
नीम-लेपित यूरिया (neem coated urea) धीमी गति से नाइट्रोजन मुक्त करता है जिससे पौधों को इसे अवशोषित करने का समय मिल जाता है, इसलिए नाइट्रोजन का इष्टतम उपयोग होता है.
मृदा स्वास्थ्य कार्ड
यह मृदा के स्वास्थ्य और इसकी उर्वरता में सुधार लाने के लिए पोषक तत्त्वों की उचित मात्रा के सम्बन्ध में परामर्श के साथ-साथ किसानों को मृदा में पोषक तत्त्वों की स्थिति के विषय में जानकारी देता है. इससे कृषि में नाइट्रोजन के उपयोग में कमी है.
भारत स्टेज मानक
इसका उद्देश्य वाहनों से होने वाले हानिकारक उत्सर्जन जैसे – कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), अदग्ध हाइड्रोकार्बन (HC), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और कणिकीय पदार्थों (PM) को नियंत्रित करना है.
राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (NAQI) को लागू किया गया है जिसमें आठ प्रदूषकों में से एक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड है जिसे नियंत्रित किया जाना चाहिए और इसके उत्सर्जन की निगरानी की जानी चाहिए.
अंतराष्ट्रीय पहलें
गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल
इसका लक्ष्य अम्लीकरण, सुपोषण और भू-स्तरीय ओजोन को कम करना है और यह कन्वेंशन ऑन लॉन्ग-रेंज ट्रांस बाउंड्री एयर पॉल्यूशन का भाग है. इसका अन्य उद्देश्य मानव गतिविधियों के चलते होने वाले सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), अमोनिया (NH3), वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOC) और कणिकीय पदार्थों (PM) के उत्सर्जन को नियंत्रित और कम करना.
क्योटो प्रोटोकॉल
इसका उद्देश्य मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O), हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC), परफ्लोरोकार्बन (PFC), सल्फर हेक्साफ्लोराइड (SF6) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) जैसी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना है.
इंटरनेशनल नाइट्रोजन इनिशिएटिव (INI)
यह खाद्य उत्पादन में नाइट्रोजन की लाभकारी भूमिका को इष्टतम करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम है. इसकी स्थापना 2003 में साइंटिफिक कमिटी ऑफ़ द एनवायरनमेंट (SCOPE) तथा इंटरनेशनल जीओस्फीयर-बायोस्फीयर प्रोग्राम (IGBP) की स्पोंसरशिप के अंतर्गत की गई थी.
आगे की राह
औद्योगिक एवं सीवेज अपशिष्ट का पुनर्चक्रण करके देश में उर्वरकों के उपयोग में 40% कमी लाई जा सकती है. इससे अतिरिक्त संधाराणीय खाद्य उत्पादन हो सकता है और जैव उर्वरक क्षेत्र में नए आर्थिक अवसर पैदा हो सकते हैं.
नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (Nitrogen Use Efficiency – NUE) बढ़ाना :- वर्ष के सही समय पर एवं सही पद्धति अपनाकर उचित मात्रा में उर्वरक का उपयोग करने से NUE में पर्याप्त वृद्धि हो सकती है. वर्तमान में NUE में 20% सुधार होने से वैश्विक स्तर पर 170 बिलियन अमरीकी डॉलर का शुद्ध आर्थिक लाभ होगा.
उर्वरक सब्सिडी कम करना : कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP)की रिपोर्ट के अनुसार NPK (nitrogen-phosphorus-potassium) के अनुपात को कम करने के लिए Phosphatic & Potassic (P&K) पर सब्सिडी में वृद्धि की जानी चाहिए जबकि यूरिया पर सब्सिडी कम की जानी चाहिए.
उपयुक्त कृषि को बढ़ावा देना : सर्वाधिक कुशल और प्रभावी तरीके से उर्वरकों का इस्तेमाल करने के लिए उच्च तकनीकी दृष्टिकोण का उपयोग.
बफर : खेतों, विशेषकर सीमावर्ती जल निकायों वाले खेतों के चारों ओर पेड़, झाड़ियाँ और घास रोपने से जलनिकायों तक पहुँचने से पहले पोषक तत्त्वों को अवशोषित करने या छानने में सहायता मिल सकती है.
संरक्षण जुताई (मृदा अपरदन कम करने के लिए), पशुधन अपशिष्ट प्रबन्धन, जलनिकासी प्रबन्धन इत्यादि जैसे अन्य कदम भी उठाये जा सकते हैं.
Tags : नाइट्रोजन प्रदूषण क्या होता है? Nitrogen contamination / नाइट्रोजन संदूषण के बारे में जानें – Govt. Steps to Control Nitrogen Pollution, प्रदूषण से बचने के लिए उपाय.
4 Comments on “नाइट्रोजन प्रदूषण के बारे में जानें – Nitrogen Pollution Explained in Hindi”
Sir daily current affairs ka print out kaise nikalway plzz sir Bata dijiy
Nikal nahi pa RHA h
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Sir mara pas daily current affairs nahi aate h
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