वायु प्रदूषण – प्रदूषण के प्रकार, कारण, प्रभाव और सरकार द्वारा उठाये गए कदम

Sansar LochanEnvironment and Biodiversity, Pollution

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के वैश्विक वायु प्रदूषण डेटाबेस के अनुसार PM 2.5 सांद्रता के सन्दर्भ में विश्व के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में है. आइये जानते हैं वायु प्रदूषण के प्रकार, कारण और प्रभाव और साथ ही साथ यह भी जानेंगे कि भारत सरकार ने वायु प्रदूषण को रोकने के लिए क्या-क्या कदम उठाये हैं.

प्रदूषक के प्रकार

  1. प्राथमिक प्रदूषक
  2. द्वितीयक प्रदूषक
  3. कण प्रदूषक

प्राथमिक प्रदूषक

ये प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से उत्सर्जित होते हैं और प्राथमिक स्रोतों अथवा माध्यमिक स्रोतों के कारण उत्पन्न हो सकते हैं. उदाहरण – कारखानों से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड.

द्वितीयक प्रदूषक

ये प्राथमिक प्रदूषक के अंतर संयोजन या प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप उत्सर्जित होते हैं. उदाहरण के लिए विभिन्न प्राथमिक प्रदूषणों की अन्तः क्रियाओं द्वारा निर्मित धुंध.

कण प्रदूषक

ये वायु प्रदूषण में काली धूल (sooty) के जमाव होता हैं जो इमारतों को काला करते हैं तथा श्वसन सम्बन्धी समस्याओं को काला करते हैं तथा श्वसन सम्बन्धी समस्याओं का कारण बनते हैं. 10 micrometer व्यास से भी सूक्ष्म कण वृहद् समस्याएँ उत्पन्न करते हैं, क्योंकि ये कण मनुष्य के फेफड़ों में अन्दर जा सकते हैं और कुछ रक्त प्रवाह में भी पहुँच सकते हैं.

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, 31 और 195 शहरों ने क्रमशः निर्धारित PM 2.5 और PM 10 सीमा को पार कर लिया है.

भारत में वायु प्रदूषण के कारण

जीवाश्म ईंधनों का दहन

कोयला, पेट्रोलियम और अन्य फैक्ट्री दहन जैसे जीवाश्म ईंधनों के दहन से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है. जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और फ्लोरिनेटेड गैसों सहित प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें पाई जाती हैं.

  • वाहनों से होने वाला उत्सर्जन :- यह भी जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन और वायु प्रदूषण का स्रोत है. वाहनों में हाइड्रोकार्बन के अपूर्ण दहन से कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, जो नाइट्रेट ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके एक विषाक्त मिश्रण बनाता है.
  • औद्योगिक उत्सर्जन :- विनिर्माण उद्योग बड़ी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, कार्बनिक यौगिकों और रसायनों को वायु में निर्मुक्त करते हैं.
  • पेट्रोलियम रीफाइरियाँ :- ये भी हाइड्रोकार्बन एवं विभिन्न अन्य रसायनों को निर्मुक्त करती हैं जो वायु को प्रदूषित करते हैं तथा भूमि प्रदूषण का कारण बनते हैं.
  • विद्युत् संयंत्र (पॉवर प्लांट्स) :- भारत, चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कोयला दहन करने वाला देश है, जो वार्षिक रूप से 210 GW बिजली का उत्पादन करता है, जिसमें अधिकांश मात्रा का उत्पादन कोयले से होता है.

कृषि गतिविधियाँ

कृषि गतिविधियों जैसे की पराली दहन से दिल्ली और NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है. अमोनिया कृषि से सम्बंधित गतिविधियों से उत्सर्जित होने वाला सामान्य उप-उत्पाद है और वायुमंडल में सबसे खतरनाक गैसों में से एक है. कृषि गतिविधियों में कीटनाशक और उर्वरकों का उपयोग वायु में हानिकारक रसायनों को भी उत्सर्जित करता है जो जल प्रदूषण का भी कारण बन सकता है.

खनन गतिविधियाँ

खनन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वृहद् उपकरणों का उपयोग करके पृथ्वी के नीचे से खनिजों का निष्कर्षण किया जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान वायु में धूल एवं रसायन निर्मुक्त होते हैं, जो व्यापक पैमाने पर वायु प्रदूषण का कारण बनता है.

इंडोर वायु प्रदूषण

यह हानिकारक रसायनों और अन्य सामग्रियों द्वारा इंडोर वायु गुणवत्ता का निम्नीकरण करता है. घरेलू सफाई उत्पाद, पेंट इत्यादि विषाक्त रसायनों को वायु में उत्सर्जित करते हैं.

धूलयुक्त तूफ़ान

ये वायु प्रदूषण में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक हैं और विश्व-भर में बीमारियों के प्रसार में वृद्धि करने वाले हानिकारक कणों से युक्त हो सकते हैं. उदाहरण के लिए – धरातल पर पाए वाले वायरस जीवाणु (virus spore) वायु में उड़ा दिए जाते हैं और ये अम्लीय वर्षा अथवा शहरी धुंध के माध्यम से फैलते हैं.

वनाग्नि

वनाग्नि से वायु में पार्टिकुलेट मैटर निर्मुक्त होते हैं जो वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं. ये मानव श्वसन तंत्र में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे उत्तकों में जलन होने लगती है.

वन उन्मूलन

वनों का उन्मूलन वायुमंडल को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है क्योंकि वन कार्बन प्रच्छादन प्रक्रिया के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड के लिए सिंक के रूप में कार्य करते हैं.

अपशिष्ट

कचरा भराव क्षेत्र (लैंडफिल) से मिथेन उत्पन्न होती है. यह न केवल एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है, बल्कि एक श्वसन रोधी और अत्याधिक ज्वलनशील गैस है. लैंडफिल अनियंत्रित होने की स्थिति में यह अत्यंत खतरनाक सिद्ध हो सकती है.

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट

भारत में अधिकांश लोगों द्वारा वायर/अपशिष्ट इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रॉनिक घटकों के दहन के माध्यम से अपशिष्ट जा अनुचित निपटान किया जाता है. इससे वायुमंडल में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है.

वायु प्रदूषण का प्रभाव

स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ

वायु प्रदूषण के प्रभाव अत्यंत हानिकारक होते हैं. ये शरीर में कैंसर तथा अनेक श्वसन एवं हृदय सम्बन्धी रोगों सहित अन्य रोगों हेतु उत्तरदायी होते हैं.

आर्थिक नुक्सान

प्रदूषण से सम्बंधित मृत्यु, बीमारी और कल्याण की वित्तीय लागत वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 6.2.% है. GDP के अनुपात में जलवायु सम्बंधित आपदाओं के कारण होने वाला आर्थिक नुक्सान उच्च आय वाले देशों की तुलना में निम्न आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में बहुत अधिक है.

  • बढ़ते तापमान के कारण 2000 के बाद से ग्रामीण श्रम की उत्पादकता में औसत 5.3% की गिरावट देखी गई है. इसने 2016 में वैश्विक स्तर पर प्रभावी रूप से 920,000 से अधिक लोगों को कार्यबल से बाहर कर दिया, जिनमें से 418,000 केवल भारत से थे.

ग्लोबल वार्मिंग

CO2 जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में धीरे-धीरे वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है. इसके परिणामस्वरूप जलवायु (मौसम का दीर्घकालिक पैटर्न) में परिवर्तन हो रहा है तथा समुद्र स्तर में वृद्धि के साथ-साथ प्राकृतिक विश्व पर विभिन्न प्रकार के अलग-अलग प्रभाव दर्ज किये जा रहे हैं.

अम्लीय वर्षा

जब वर्षा होती है, तब नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें जल के बूँदों के साथ मिश्रित हो जाती हैं, जिससे ये बूँदें अम्लीय हो जाती हैं और अम्लीय वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरती हैं. अम्लीय वर्षा मानव, जानवरों और फसलों को अत्यधिक क्षति पहुँचा सकती हैं. अधिक जानकारी के लिए पढ़ें > Acid Rain

सुपोषण

सुपोषण (eutrophication) एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें कुछ प्रदूषकों में उपस्थित नाइट्रोजन की उच्च मात्रा समुद्र की सतह पर विकसित होती है और स्वयं को शैवाल के रूप में परिवर्तित कर देती है और मछली, पौधों और पशु प्रजातियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है.

वन्यजीवन पर प्रभाव

वायु में मौजूद विषाक्त रसायन वन्यजीव प्रजातियों को नए स्थान पर जाने और अपने आवास को परिवर्तित करने के लिए विवश कर सकते हैं.

ओजोन परत का क्षरण

वायुमंडल में उपस्थित क्लोरोफ्लोरोकार्बन, हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन पृथ्वी की ओजोन परत का क्षरण कर रहे हैं. जिससे ओजोन परत क्षीण हो जायेगी और यह पृथ्वी पर हानिकारक UIV किरणों को उत्सर्जित करेगी. ये किरणें त्वचा एवं आँख से सम्बंधित समस्याओं का कारण बन सकती हैं. UV किरणें फसलों को प्रभावित करने में सक्षम होती हैं.

भारत सरकार द्वारा वायु प्रदूषण को रोकने के लिए उठाये गए कदम

भारत में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार द्वारा उठाये गए कदम निम्नलिखित हैं –

ताप बिजली संयंत्र (TPP) द्वारा कार्बन उत्सर्जन

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिसम्बर 2015 में पर्यावरण मानदंडों को अधिसूचित किया गया था तथा इन संयंत्रों को PM 10, SO2 और नाइट्रोजन के ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए निर्देशित किया गया था. हालाँकि, कोयले का दहन करने वाले 90% TPP ने इन मानदंडों का अनुपालन नहीं किया है. अतः, कुछ संयंत्रों को फ़्लू गैस डी-सल्फराइजेशन प्रणाली की रेट्रो फिटिंग में लगने वाली उच्च लागत के कारण अनुपालन की निर्धारित समय सीमा में विस्तार दिया गया है. TPP से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करना आवश्यक है क्योंकि :-

SO2 का बढ़ता अनुपात :- विगत 10 वर्षों में, भारत के SO2 उत्सर्जन में 50% की वृद्धि हुई है और यह विषाक्त वायु प्रदूषकों का विश्व का सबसे बड़ा उत्सर्जक बन सकता है.

नागरिकों के लिए जोखिम :- लगभग 33 मिलियन भारतीय अत्यधिक सल्फर-डाइऑक्साइड प्रदूषण वाले क्षेत्रों में निवास करते हैं – इनकी संख्या 2013 के बाद से दोगुनी हो गई है. ऊर्जा की बढ़ती माँग के चलते यह संख्या और बढ़ सकती है.

प्रमुख कारण :- भारत, बिजली उत्पादन के लिए कोयले के दहन से हानिकारक प्रदूषकों को निर्मुक्त कर रहा है – जिसमें लगभग 3% सल्फर होता है. देश के कुल बिजली उत्पादन का 70% से अधिक भाग कोयले से उत्पादित किया जाता है.

स्वच्छ वायु-भारत पहल (Clean Air-India Initiative)

भारतीय स्टार्ट-अप और डच कंपनियों के बीच साझेदारी को बढ़ावा और स्वच्छ वायु के लिए व्यावसायिक समाधानों पर कार्य कर रहे उद्यमियों के नेटवर्क का निर्माण करके भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए इस पहल को प्रारम्भ किया गया है. इसके अंतर्गत, इंडस इम्पैक्ट (INDUS Impact) प्रोजेक्ट का लक्ष्य ऐसी व्यापार साझेदारियों को बढ़ावा देकर धान की पराली के हानिकारक दोहन को रोकना है जिससे पराली को “अप-साइकिल” (अर्थात् पुनर्प्रयोग करके उन्नत उत्पादों का निर्माण) किया जा सके. इसमें फीडस्टॉक के रूप में धान की पुआल का उपयोग करना शामिल है जिसका प्रयोग निर्माण और पैकेजिंग में किया जाएगा.

पेट कोक (कोयले से तैयार किया जाने वाला ठोस ईंधन) और फर्नेस आयल पर प्रतिबंध

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फर्नेस ऑयल और पेट-कोक के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया है. 2017 में पर्यावरण संरक्षण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) ने NCR क्षेत्र में फर्नेस ऑयल और पेट-कोक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने हेतु निर्देश दिए थे. हालाँकि, इसके प्रतिबंध से सम्बंधित विभिन्न चिंताएँ निम्नलिखित हैं –

  • भारत एशिया में कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा शोधनकर्ता और इसने 2016-17 में 13.94 मिलियन टन पेट कोक उत्पादित किया था. यह देखते हुए कि निकट भविष्य में भारत में पेट कोक का उत्पादन जारी रहेगा, इसके निपटान का एक पर्यावरण अनुकूल तरीका खोजने की एक स्पष्ट आवश्यकता है और इस संदर्भ सीमेंट भट्टियाँ सबसे बेहतर विकल्प प्रदान करती है.
  • कई सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने ईंधन की बढ़ती माँग को देखते हुए हाल ही में महत्त्वपूर्ण लागत पर पेटकोक क्षमता को सृजत किया है, इस पर प्रतिबंध इन कंपनियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा.
  • आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात और कर्नाटक जैसे विभिन्न राज्यों में यह एक अनुमोदित ईंधन है.

Tags : Air Pollution Essay in Hindi. वायु प्रदूषण के प्रकार, कारण, प्रभाव और सरकार द्वारा उठाये गए कदम. Govt programs and schemes to curb air pollution. वायु प्रदूषण पर निबंध (essay)

Environment Notes
हमारी टीम जल्द से जल्द पर्यावरण एवं जैव-विविधता से सम्बंधित सभी नोट्स इस पेज पर एकत्रित कर रही है > Environment Notes
Spread the love
Read them too :
[related_posts_by_tax]