भारत में जल प्रदूषण से संबंधित मुद्दे, प्रभाव और प्रमुख स्रोत

Sansar LochanEnvironment and Biodiversity, Pollution

आज इस पोस्ट के जरिये हम भारत में जल प्रदूषण (water pollution) से संबंधितमुद्दों पर चर्चा करेंगे. साथ ही दूषित जल का हमारे दैनिक जीवन पर क्या प्रभाव (impact) पड़ता है, इसकी भी चर्चा करेंगे. भारत में जल प्रदूषण के कई स्रोत (sources) हैं. नदियों में विषाक्तता के चलते हमारे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. आइये इन्हीं सभी पहलुओं पर आज हम Hindi भाषा में चर्चा करते हैं. विदित हो कि जल प्रदूषण से कई सवाल आपको UPSC essay paper या GS Paper 3 में पूछे जा सकते हैं.

जल प्रदूषण (Water Pollution)

विश्व की कुल जनसंख्या का 16% भाग भारत में निवास करता है. हालाँकि भारत के पास वैश्विक जल संसाधनों का केवल लगभग 4% भाग उपलब्ध है. भारत में जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या है. भारत के 70% सतही जल संसाधन और भूजल भंडार का एक बड़ा भाग जैविक, विषाक्त, कार्बनिक और अकार्बनिक प्रदूषकों से दूषित है. निष्काषित भू-जल के 89% भाग का उपयोग सिंचाई क्षेत्र में किया जाता है, इसके बाद घरेलू उपयोग 9% और औद्योगिक उपयोग 2% है. शहरी जल आवश्यकताओं के 50% और ग्रामीण घरेलू जल आवश्यकताओं के 85% की पूर्ति भू-जल द्वारा की जाती है.

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 100 मिलियन से अधिक भारतीय लोग निम्न जल गुणवत्ता वाले क्षेत्रों में निवास करते हैं. 4,000 भू-जल कुएँ में से आधे से अधिक में जल-स्तर में कमी दर्ज की जा रही है.

यह दर्शाता है कि जल की निम्न गुणवत्ता जल अभाव की स्थिति में योगदान कर सकती है क्योंकि यह मानव उपयोग और पारिस्थितिकी तन्त्र दोनों के लिए जल की उपलब्धता को सीमित करती है. 2014 में इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने सचेत किया था कि विश्व की लगभग 80% जनसंख्या की जल सुरक्षा के समक्ष गंभीर खतरा विद्यमान है.

भारत में जल प्रदूषण से सम्बन्धित प्रमुख मुद्दे

१. राज्यों के मध्य समन्वय का अभाव

अंतरराज्यीय जल सम्बन्धी विवादों में वृद्धि हो रही है जो अकुशल राष्ट्रीय जल प्रशासन को दर्शाता है.

२. जल सम्बन्धी आँकड़ों का अभाव

देश में जल संबंधितडाटा सिस्टम बहुत ही सीमित है. घरेलू और औद्योगिक उपयोग जैसे विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए विस्तृत डाटा उपलब्ध है ही नहीं. डाटा संग्रह में आज भी पुरानी पद्धतियों का उपयोग किया जाता है जिससे वह असंगत और अविश्वसनीय प्रतीत होता है.

३. जलवायु परिवर्तन

उष्ण ग्रीष्मकाल और अल्प शीतकाल के परिणामस्वरूप हिमालयी हिमनदों का कम होना, अनियमित मानसून, निरंतर बाढ़ आदि घटनाएँ घटित हो रही हैं जो समस्त परिस्थिति को और भी बिगाड़ रही हैं.

४. भू-जल प्रदूषण

घरेलू और औद्योगिक स्रोतों से उचित अपशिष्ट जल उपचार के अभाव के कारण भू-जल प्रदूषण में वृद्धि हुई है, इससे स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरे उत्पन्न होते हैं.

इसके अतिरिक्त, अवैज्ञानिक कृषि पद्धति ने जल संसाधनों के अस्थिर और अत्यधिक दोहन की समस्या उत्पन्न की है. उदाहरण के लिए, भारत में भू-जल 2002 से 2016 के मध्य प्रति वर्ष 10-25 मिमी की दर से कम हुआ है.

५. भारतीय नदियों में विषाक्तता

हाल ही में, केन्द्रीय जल आयोग की रिपोर्ट ने यह इंगित किया है कि भारत में 42 नदियों में कम से कम दो विषाक्त भारी धातुएँ सामान्य से बहुत ही अधिक मात्रा में हैं. राष्ट्रीय नदी गंगा पाँच भारी धातुओं – क्रोमियम, तांबा, निकल, सीसा और लौह से प्रदूषित पाई गई.

  • अधिकांश भारतीय अभी भी अपने घरेलू उपयोग के लिए सीधे नदियों से जल का उपयोग करते हैं. जनसंख्या में वृद्धि के साथ इन नदियों पर दबाव और अधिक बढ़ेगा.
  • रिपोर्ट के अनुसार, खनन, मिलिंग, प्लेटिंग और सतह परिष्करण उद्योग भारी धातु प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं और विगत कुछ दशकों में इस प्रकार की विषाक्त धातुओं का संकेन्द्रण तेजी से बढ़ा है.

६. सूखे की आवृत्ति में वृद्धि

भारत के 1.3 अरब लोगों में से 800 मिलियन लोग आजीविका हेतु कृषि पर निर्भर हैं, जिसमें से 53% कृषि वर्षा निर्भर होती है, जिससे किसानों के लिए सामाजिक-आर्थिक संकट उत्पन्न होता है.

नदी प्रदूषण के प्रमुख स्रोत

  • प्राकृतिक – चट्टानें , ज्वालामुखी विस्फोट, पवन वाहित धूल कण, समुद्री बौछार, एरोसोल.
  • कृषि – अकार्बनिक उर्वरक, कीटनाशक, सीवेज कीचड़ और फ्लाई ऐश, अपशिष्ट जल, कवकनाशी.
  • औद्योगिक – औद्योगिक अपशिष्ट, तापीय ऊर्जा, कोयला और कच्चे अयस्क खनन उद्योग, रासायनिक उद्योग, विभिन्न रीफाइनरियाँ.
  • घरेलू – ई-अपशिष्ट, प्रयुक्त बैटरियाँ, अकार्बनिक और कार्बनिक अपशिष्ट, पुराने फ़िल्टर, बायोमास का दहन.
  • विविध – राख, खुले में डंपिंग, यातायात और अन्य उत्सर्जन, लैंडफिल, चिकित्सा अपशिष्ट.

विषाक्त धातुओं का स्वास्थ्य पर प्रभाव

भारी धातुएँ विषाक्तता, अजैवनिम्नीकरण और जैव-संचय के कारण मनुष्यों और पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न करती हैं और इसके परिणामस्वरूप प्रजाति विविधता में कमी आ सकती है. यह शारीरिक, मांसपेशी और तंत्रिका सम्बन्धी अपकर्षक प्रक्रियाओं का कारण बनती हैं जो अल्जाइमर रोग, पार्किसन्स रोग, कैंसर आदि के समान हैं.

भारत में जलाभाव

विश्व बैंक ने यह इंगित किया है कि 2030 तक भारत की प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता कम हो कर आधी हो सकती है, जिससे देश मौजूदा “जल दबाव” श्रेणी से “जल दुर्लभ” श्रेणी में परिवर्तित हो जाएगा.

  • जल दबाव श्रेणी – जब वार्षिक प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1700 घन मीटर से कम होती है.
  • जल दुर्लभ स्थिति – जब वार्षिक प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1000 घन मीटर से कम होती है.

प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में कमी :- यह 2001 के 1,820 घन मीटर से कम होकर 2011 में 1,545 घन मीटर हो गई है. यदि ऐसा ही चलता रहा तो 2025 में यह 1,341 घन मीटर तक कम हो सकती है.

लगभग 70% दूषित जल के साथ, भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों से 120वें स्थान पर है. भारत अपने इतिहास में सबसे खराब जल संकट की स्थिति से गुजर रहा है.

  • भारत में 600 मिलियन लोग अत्यधिक जल दबाव की स्थिति का सामना करते हैं.
  • देश के 75% घरों में उनके परिसर में पेयजल उपलब्ध नहीं है.
  • 84% ग्रामीण परिवारों में पाइप के द्वारा जल की पहुँच नहीं है.
  • सुरक्षित जल तक अपर्याप्त पहुँच के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 2,00,000 लोगों की मृत्यु हो रही है.
  • 2030 तक भारत की 40% जनसंख्या की पेयजल तक पहुँच नहीं होगी.

बढ़ती जनसंख्या और बदलते जनसंख्या प्रतिरूप के कारण शहरों में जल की माँग में तेज वृद्धि से शहरी जलाभाव की स्थिति उत्पन्न हो रही है.

इसका प्रभाव

2016 में विश्व बैंक ने भारत सरकार को चेतावनी दी है कि जिन देशों में पर्याप्त मात्रा में जल की कमी है, उनकी GDP में 2050 तक 6% की गिरावट आएगी.

कृषि पर : जलाशयों के निम्न जल स्तर से पश्चिमी और केन्द्रीय राज्यों में दालें, कपास, धान और बाजरा की बुआई में विलम्ब हो सकता है जो कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा. यह बटाईदारों और खेत श्रमिकों की आजीविका पर भी गंभीर प्रभाव डालेगा.

औद्योगिक क्षेत्र पर : वस्त्रों, खाद्य उत्पादों एवं पेय पदार्थों, पेपर मिलों, शीत भंडारण सुविधाओं और बर्फ उत्पादन जैसे क्षेत्रों में जल की कमी के कारण उत्पादन में कमी आने की सम्भावना है.

पेयजल में कमी : संयुक्त राष्ट्र आधारित अनुमानों के अनुसार, भारत का बंगलुरु शहर “सार्वाधिक संभाव्यता” वाला पहला भारतीय शहरी क्षेत्र है जो पेयजल संकट की स्थिति में है.


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