मदन मोहन मालवीय (1861-1946 ई.) – Biography in Hindi

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विगत 25 दिसम्बर को प्रधानमंत्री ने मदन मोहन मालवीय को उनकी 158वीं जयंती पर श्रधांजलि अर्पित की.

मदन मोहन मालवीय कौन थे?

  1. वे एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे.
  2. वे चार बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
  3. उन्हें महामना की उपाधि दी गई थी.
  4. 2014 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.
  5. वे हिंदी पत्रिका “हिंदोस्थान” के सम्पादक थे.
  6. 1889 में वे “इंडियन ओपिनियन” पत्रिका के सम्पादक हुए.
  7. उन्होंने “अभ्युदय” नामक एक हिंदी साप्ताहिक चालू किया था. इसके अतिरिक्त उन्होंने “लीडर” नामक अंग्रेजी दैनिक एवं “मर्यादा” नामक हिंदी समाचारपत्र भी चलाया था.
  8. उन्होंने 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय स्थापित किया और 1939 तक इसके उपकुलाधिपति रहे.
  9. उन्होंने मुसलमानों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र और लखनऊ पैक्ट का विरोध किया था.
  10. वे खिलाफत आन्दोलन में कांग्रेस के शामिल होने के विरोधी थे.
  11. 1931 ई. के दूसरे गोलमेज सम्मेलन में वे प्रतिभागी रहे.
  12. गंगा पर बाँध बनाने के विरोध में उन्होंने गंगा महासभा की स्थापना की.
  13. वे एक समाज सुधारक भी थे. उन्होंने अस्पृश्यता का विरोध किया था और महाराष्ट्र के नासिक में स्थित कलाराम मंदिर में हरिजनों के प्रवेश के लिए काम किया था.
  14. उन्होंने वृन्दावन में श्री मथुरा वृन्दावन आशानन्द गोचर भूमि नामक एक संगठन भी स्थापित किया था.

मदन मोहन मालवीय Biography

पंडित मदन मोहन मालवीय जा जन्म एक ब्राह्मण परिवार में 1861 ई. में प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था. उनके सात भाई-बहन थे. 1884 ई. में स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद पंडित मदन मोहन मालवीय कानून के छात्र बने और 1886 ई. में कानून की परीक्षा पास करने के बाद कांग्रेस के संपर्क में आये. उन्हें महामना की उपाधि दी गई थी.

कांग्रेस से संपर्क

पंडित मदन मोहन मालवीय आजीवन कांग्रेस के सदस्य बने रहे. कांग्रेस की नीति के प्रति समय-समय पर मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) ने विरोध प्रकट किया पर कांग्रेस को कभी छोड़ने का प्रयास नहीं किया. मालवीयजी केन्द्रीय विधानसभा के सदस्य भी निर्वाचित हुए. 1929 ई. में कांग्रेस के सभी सदस्यों ने अपना त्यागपत्र दे दिया, परन्तु मालवीयजी ने सदस्यता का त्याग नहीं किया था. इसका कारण यह था कि वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव नहीं लादे थे. परन्तु 1930 ई. में जब देश की राजनीतिक परिस्थति बदल गई तो मालवीयजी ने विधान सभा की सदस्यता छोड़ दी. असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलन के पक्ष में नहीं रहते हुए भी मालवीयजी ने सरकारी आज्ञाओं और कानूनों को तोड़ने में साहस दिखाया था.

प्रखर नेता

मदन मोहन मालवीय 1902 ई. में ही उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के सदस्य निर्वाचित हुए थे. बजट, उत्पाद कर और अन्य सरकारी विधेयकों पर उन्होंने महत्त्वपूर्ण भाषण दिया था. 1910 ई. से 1920 ई. तक मालवीयजी केन्द्रीय विधानसभा के सदस्य रहे. मालवीयजी ने केन्द्रीय विधान सभा में गोखले द्वारा प्रस्तावित प्राथमिक शिक्षा विधेयक (Elementary Education Bill) का समर्थन किया था. उन्होंने 1919 ई. में रौलेट एक्ट का विरोध किया. 1924 ई. में स्वतंत्र कांग्रेसी के रूप में उनका निर्वाचन केन्द्रीय विधान सभा में हुआ और वे विधान सभा के प्रधान बने. 1931 ई. में द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने के लिए वे लन्दन गए थे. गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद 1932 ई. में इलाहबाद में राष्ट्रीय एकता सम्मलेन हुआ. इस सम्मलेन की अध्यक्षता पंडित मदनमोहन मालवीय ने की थी. 1934 ई. में एम.एस.अणे के साथ मिलकर मालवीयजी ने मैकडोनाल्ड के साम्प्रदायिक पंचाट (Macdonald Communal Award) का विरोध किया था.

मदन मोहन मालवीय भारत के आर्थिक विकास में दिलचस्पी रखते थे. उनके प्रयास से 1905 ई. में भारतीय औद्योगिक सम्मलेन का आयोजन बनारस में किया गया था. 1907 ई. में उत्तर प्रदेश औद्योगिक सम्मलेन का आयोजन इलाहाबाद में मालवीयजी के प्रयत्न से ही हुआ था.

हिंदू धर्म से जुड़ाव

मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) की अटूट आस्था हिंदू धर्म में थी. गीता के कर्म सिद्धांत में उनकी आस्था थी. धर्म का ह्रास होने पर ईश्वर का अवतार होता है और वह विश्व के कष्ट को दूर कर देता है – गीता के इस सिद्धांत का वे प्रतिपादन करते थे. मालवीय हिंदू धर्म की श्रेष्ठता में विश्वास रखते थे. उन्होंने सनातन धर्म महासभा की स्थापना की थी. परन्तु मालवीय कट्टर साम्प्रदायिकता के विरोधी थे. मुसलामानों को अधिकार दिलाने की मांग का वह समर्थन करते थे. यही कारण था कि मुसलमान भी मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) की प्रशंसा करते थे. गांधी की तरह मालवीय भी हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे.

मदन मोहन मालवीय स्वतंत्रता और संवैधानिक शासन का समर्थन करते थे. वे भारतियों के अधिकाधिक सहयोग से सरकार का सञ्चालन करना चाहते थे. मालवीय जी स्वदेशी आन्दोलन और आत्म-निर्णय के अधिकार का समर्थन करते थे. 1918 ई. में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से मालवीय जी ने आत्म-निर्णय के अधिकार का जोरदार ढंग से समर्थन किया था. मालवीय जी आतंकवाद या क्रांतिकारी आन्दोलन के पक्ष में नहीं थे. भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के लिए राष्ट्रीय शिक्षा पर मालवीय जी अधिक बल देते थे.

राष्ट्रवादी रहते हुए भी मालवीय जी हिंदू धर्म का उत्थान चाहते थे. मदन मोहन मालवीय हिंदू महासभा के दो बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे. हिंदुओं के हित को किसी अन्य सम्प्रदाय के नाम पर कुर्बान करने के लिए मालवीयजी तैयार नहीं थे. साम्प्रदायिक पंचाट का उन्होंने विरोध इसी आधार पर किया था. अगस्त आन्दोलन में इ मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) तोड़-फोड़ के विरोधी इ. वे अगस्त आन्दोलन में जेल नहीं गए थे. मदन मोहन मालवीय चंदा वसूलने में बड़े प्रवीण माने जाते थे. कस्तूरबा ट्रस्ट के लिए उन्होंने एक करोड़ रूपया इकठ्ठा कर लिया था.

भारत रत्न

प्रारम्भ में मदन मोहन मालवीय ब्रिटिश सरकार के समर्थक थे. आगे चलकर वे सरकार की नीति के कटु आलोचक बन गए. मालवीय जी ने 4 फरवरी, 1918 ई. को बनारस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. हिंदू विश्वविद्यालय में सनातन धर्म को प्रधानता दी जाती थी. वे गो-रक्षा के काम में भी दिलचस्पी रखते थे. हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में मालवीयजी का योगदान विशेष महत्त्वपूर्ण माना जाता है. उत्तर प्रदेश में हिंदी का प्रचार करने में मालवीय जी की भूमिका बहुत प्रसंशनीय थी. पत्रकारिता (journalism) में भी मालवीय जी का झुकाव था. हिन्दुस्तान, इंडियन यूनियन, अभ्युदय जैसे पत्रों (newspapers) का उन्होंने संपादन किया था. मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) हरिजनों का कल्याण चाहते थे. संक्षेप में, राष्ट्रसेवा, समाज-सुधार, धर्म की रक्षा में उन्होंने अपना सारा जीवन न्योछावर कर दिया था. त्याग में वे महात्मा गांधी के सामान थे. उनकी मृत्यु 1946 ई. में हुई. भारत सरकार ने हाल ही में 25 दिसम्बर 2014 को उन्हें भारत रत्न से विभूषित किया.

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One Comment on “मदन मोहन मालवीय (1861-1946 ई.) – Biography in Hindi”

  1. पंडित मदन मोहन मालवीय जाति से कायस्थ थे .उनके पूर्वज मालवा से आये ,इसीलिए उन्होंने स्वयं को मालवीय कहा .इसकी पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि उस दौर में परंपरागत शादियां अंतर्जातीय नहीं होती थी .उनका व्याह भी इसीलिए एक श्रीवास्तव कायस्थ कन्या में हुआ .
    अतएव उनके परिचय में उनका कायस्थ कुल में जन्म लेना आधिकारिक किया जाना ही ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि करेगा .

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