द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – Second Round Table Conference

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सरकार ने कांग्रेस को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (Second Round Table Conference) में सम्मिलित होने के लिए मनाने के प्रयास प्रारम्भ कर दिए. इसके तहत वाइसरॉय से वार्ता का प्रस्ताव दिया गया. इसके तहत वाइसरॉय से चर्चा के लिए आधिकारिक रूप से नियुक्त किया. गाँधी जी और वाइसरॉय इरविन की बातचीत 19 फरवरी, 1931 से शुरू हुई. 15 दिन की बातचीत के बाद 5 मार्च, 1931 को एक समझौता हुआ जिसे “दिल्ली समझौता” या गाँधी-इरविन समझौताके नाम से जाना जाता है, जिसके विषय में हम पहले भी पढ़ चुके हैं. यदि आपने नहीं पढ़ा तो क्लिक करें – गाँधी इरिविन समझौता.

इस समझौते के बाद गाँधी जी को कांग्रेस में वामपंथी युवाओं की तीखी आलोचना सहनी पड़ी. बड़ी कठिनाई से इस समझौते को कांग्रेस ने स्वीकार किया. कांग्रेस के “कराची अधिवेशन” में युवाओं ने गाँधी जो को “काले झंडे” दिखाए.

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की शुरुआत

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 7 सितम्बर, 1931 से 1 दिसम्बर, 1931 तक चला. इस सम्मेलन में गाँधी जी आधिकारिक रूप से कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि थे.

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन शुरू होने के पूर्व इंग्लैण्ड की राजनीतिक स्थिति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए. मजदूर दल की सरकार के स्थान पर राष्ट्रीय सरकार का निर्माण हुआ जिसमें मजदूर, अनुदार तथा उदार तीनों दल सम्मिलित हुए. सर सेमुअल होर भारत सचिव नियुक्त हुआ, जो पक्का अनुदारवादी था. लार्ड इर्विन जैसे उदारवादी के स्थान पर लॉर्ड वेलिगंटन वायसराय नियुक्त हुआ. इसी बीच प्रथम गालमेज सम्मेलन के बाद ‘गांधी-इरविन पैक्ट’ हो चुका था और कांग्रेसी प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार थे. सम्मेलन में गांधीजी ने भारतीय हितों की रक्षा करने की भरपूर कोशिश की, परंतु अंत में वे असफल होकर ही लौटे. सम्मेलन में मुख्यतया भारतीय संघ के प्रस्तावित ढांचे और अल्पसंख्यकों के प्रश्नों पर बहस हुई.

गांधीजी ने यह प्रमाणित करने की कोशिश की कि कांग्रेस पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है. उन्होंने भारत में पूर्ण उत्तरदायी सरकार की स्थापना और वायसराय के अनावश्यक अधिकारों में कटौती की बात की, परंतु प्रारंभ से ही अंग्रेजों की मंशा ठीक नहीं थी . अतः उन लोगों ने साप्रंदायिक प्रश्नों को ही प्राथमिकता दी. भारतीय सांप्रदायिक वर्ग भी गांधी की बात सुनने को तैयार नहीं थे.

गाँधी जी की माँगें

उन्होंने निम्नलिखित माँगें रखीं –

  • केंद्र और प्रान्तों में तुरंत और पूर्ण रूप से एक उत्तरदायी सरकार स्थापित की जानी चाहिए.
  • केवल कांग्रेस ही राजनीतिक भारत का प्रतिनिधित्व करती है.
  • अस्पृश्य भी हिन्दू हैं अतः उन्हें “अल्पसंख्यक” नहीं माना जाना चाहिए.
  • मुसलामानों या अन्य अल्पसंख्यकों के लिए पृथक निर्वाचन या विशेष सुरक्षा उपायों को नहीं अपनाया जाना चाहिए.

गाँधी जी की मांगों को सम्मेलन में स्वीकार नहीं किया गया. मुसलामानों, ईसाईयों, आंग्ल-भारतीयों एवं दलितों ने पृथक प्रतिनिधित्व की माँग प्रारम्भ कर दी. ये सभी एक “अल्पसंख्यक गठजोड़” के रूप में संगठित हो गये. गाँधी जी साम्प्रदायिक आधार पर किसी भी संवैधानिक प्रस्ताव के विरोध में अंत तक डटे रहे.

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की विफलता

सम्मेलन की विफलता का लाभ उठाकर प्रधानमंत्री रैम्से मैकडोनाल्ड ने अपनी योजना रखी, जो स्वीकार्य नहीं हो सकती थी. सरकारी रुख से दु:खी और निराश होकर गांधीजी दिसम्बर 1931 में भारत लौटे. इस बीच लॉर्ड विलिगंटन कठारेतापवूर्क राष्ट्रीयता की भावना को दबाने में लगे हुए थे. जवाहर लाल नहेरू, पुरुषोत्तमदास टडंन, खान अब्दुल गफ्फार खां आदि प्रमुख नेताओं को गांधीजी के भारत लौटने के पूर्व ही गिरफ्तार कर लिया गया था. गांधीजी ने पुनः आन्दोलन करने की धमकी दी, अतः गाँधी सहित अनके अन्य नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया. कांग्रेस पुनः गैरकानूनी संस्था घोषित कर दी गयी. पुलिस अत्याचार बढ़ गये, प्रेस पर पाबंदियां बढ़ गयीं और कानून के बदले अध्यादेश द्वारा शासन चलाया जाने लगा. गांधीजी ने बदलती परिस्थितियों में ‘व्यक्तिगत अवज्ञा आन्दालेन’ की योजना बनायी. लेकिन सरकार के सांप्रदायिक निर्णय से वे हतोत्साहित हो उठे. फलतः मई 1933 में आन्दोलन को कांग्रेस ने स्थगित कर दिया तथा मई 1934 में इसे वापस ले लिया. सारे देश में उल्लास की जगह निराशा छा गयी. गांधीजी पुनः राजनीति से कटकर हरिजनों की तरफ ध्यान देने लगे.

प्रभाव

सरकार भारतीयों की प्रमुख माँग “स्वराज” देने में असफल रही. गाँधी जी लौट गये और 29 दिसम्बर, 1931 को कांग्रेस कार्यसमिति ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन फिर से शुरू करने का निर्णय लिया. भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिता के तत्त्व और मजबूत हो गये.

निष्कर्ष

सम्मेलन में साम्प्रदायिक मामले ही मुख्य विषय बन गये. मतभेद सम्पात होने के बजाय और बढ़ गये. सम्मेलन बिना किसी निष्कर्ष ने 1 दिसम्बर 1931 को समाप्त हो गया और भारत वापस आकार गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को पुनः प्रारम्भ करने की घोषणा की.

ये भी पढ़ें >

  1. प्रथम गोलमेज सम्मेलन
  2. तृतीय गोलमेज सम्मेलन

Tags : द्वितीय गोलमेज सम्मेलन कब हुआ? यह विफल क्यों रह गया? क्या गाँधी जी ने इसमें भाग लिया था? Who represented dusra golmej sammelan? Second round table conference date, impacts and results in Hindi.

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