Sansar डेली करंट अफेयर्स, 12 March 2021

Sansar LochanSansar DCA

Sansar Daily Current Affairs, 12 March 2021


GS Paper 1 Source : PIB

pib_logo

UPSC Syllabus : The Freedom Struggle – its various stages and important contributors /contributions from different parts of the country.

Topic : Dandi March

संदर्भ

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 12 मार्च को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से “पदयात्रा’ (फ्रीडम मार्च) को झंडी दिखाई तथा “आजादी का अमृत महोत्सव” India@75 के पूर्वावलोकन कार्यकलापों का उद्घाटन किया.

उल्लेखनीय है कि आज ही के दिन सन्‌ 1930 में गांधीजी ने साबरमती आश्रम से अपने 78 समर्थकों के साथ दांडी के लिए पदयात्रा आरंभ की तथा 24 दिनों में 240 किमी की पद यात्रा के पश्चात 5 अप्रैल को दांडी पहुंचे और 6 अप्रैल को गांधीजी ने समुद्र तट पर नमक बनाकर कानून तोड़ा.

दांडी यात्रा

गाँधीजी के नमक-सत्याग्रह से सारा भारत आंदोलित हो उठा. 12 मार्च, को सबेरे साढ़े छः बजे हजारों लोगों ने देखा कि गाँधीजी आश्रम के 78 स्वयंसेवकों सहित दांडी-यात्रा पर निकल पड़े हैं. दांडी उनके आश्रम से 241 मील दूर समुद्र किनारे बसा एक गाँव है. गाँधीजी ने सब देशवासियों को छूट दे दी कि वे अवैध रूप से नमक बनाएँ. वह चाहते थे कि जनता खुले आम नमक कानून तोड़े और पुलिस कार्यवाही के सामने अहिंसक विरोध प्रकट करे. पर अंग्रेजों ने लाठियाँ बरसायीं. स्वयंसेवकों में से दो मारे गए और 320 घायल हुए. गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया. जब वह यरवदा जेल में शांतिपूर्वक बैठे हुए थे, सारे देश में सविनय अवज्ञा के कारण ब्रिटिश सरकार की नाकों में दम था. जेलों में बाढ़-सी आ गई थी.

दांडी मार्च की तुलना पेरिस यात्रा से

सुभाष चन्द्र बोस ने दांडी मार्च तुलना नेपोलियन के एल्बा से लौटने पर पेरिस यात्रा से की. गाँधीजी ने 6 अप्रैल को नमक उठाकर कानून तोड़ा. सारे देश के समक्ष उन्होंने यह कार्यक्रम प्रस्तुत किया –

  1. गाँव-गाँव को नमक बनाने के लिए निकल पड़ना चाहिए.
  2. बहनों को शराब, अफीम और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देना चाहिए.
  3. विदेसही वस्त्रों को जला देना चाहिए.
  4. छात्रों को स्कूलों का त्याग करना चाहिए.
  5. सरकारी नौकरों को अपनी नौकरियों से त्यागपत्र दे देना चाहिए. 4 मई, 1930 ई. को गाँधीजी की गिरफ्तारी के बाद कर बंदी को भी इस कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया.

और भी अधिक डिटेल में पढ़ें > सविनय अवज्ञा आन्दोलन


GS Paper 2 Source : The Hindu

the_hindu_sansar

UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Topic : Anti-Defection Law

संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों में देश में दल-बदल की स्थिति पर रिपोर्ट हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा जारी रिपोर्ट में पिछले 5 सालों में अपने राजनीतिक दल को छोड़कर दूसरे दल से पुन: चुनाव लड़ने वाले 443 सांसद, विधायकों के बारे में जानकारी सामने आई है.

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • विभिन्न राज्यों से राजनीतिक दल को छोड़ने वाले 405 विधायकों में से 42% कांग्रेस के थे, जबकि केवल 4.4% भाजपा से थे, जो कि ऐसे विधायकों की संख्या में मामले मे दूसरे स्थान पर थी.
  • अपने राजनीतिक दल को छोड़कर पुन: चुनाव लड़ने वाले विधायकों में से 44% ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा.
  • अपना दल छोड़कर पुनः चुनाव लड़ने वाले विधायकों के एफिडेविट में सामने आया है कि उनकी सम्पत्ति में 39% की वृद्धि हुई.
  • पिछले कुछ समय में मध्यप्रदेश, मणिपुर, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और कर्नाटक की सरकारों के गिरने के पीछे कारण, विधायकों का अपने राजनीतिक दलों को छोड़ना रहा.

दल-परिवर्तन विरोधी कानून के बारे में

  1. दल-परिवर्तन विरोधी कानून को पद संबंधी लाभ या इसी प्रकार के अन्य प्रतिफल के लिए होने बाले राजनीतिक दल-परिवर्तन को रोकने हेतु लाया गया था.
  2. इसके लिए, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई थी.
  3. यह उस प्रक्रिया को निर्धारित करता है जिसके द्वारा विधायकों/सांसदों को सदन के किसी अन्य सदस्य द्वारा दायर याचिका के आधार पर विधायिका के पीठासीन अधिकारी द्वारा दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराया जा सकता है.
  4. इसके अंतर्गत किसी विधायक/सांसद को निर्योग्य माना जाता हैयदि उसने-
  • या तो स्वेच्छा से अपने दल की सदस्यता त्याग दी है; या
  • सदन में मतदान के समय अपने राजनीतिक नेतृत्व के निर्देशों की अनुज्ञा की है. इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई सदस्य किसी भी मुद्दे पर पार्टी के व्हिप के विरुद्ध (अर्थात्‌ निदेश के विरुद्ध मतदान करता है या मतदान से विरत रहता है) कार्य करता है तो वह सदन की अपनी सदस्यता खो सकता है.
  1. यह अधिनियम संसद और राज्य विधानमंडलों दोनों पर लागू होता है.

Read more about it: 52 amendment in Hindi

इस अधिनियम के तहत अपवाद

सदस्य निम्नलिखित कुछ परिस्थितियों में निर्योग्यता के जोखिम के बिना दल परिवर्तन कर सकते हैं.

  • यह अधिनियम एक राजनीतिक दल को अन्य दल में विलय की अनुमति देता है, यदि मूल राजनीतिक दल के दो-तिहाई सदस्य इस विलय का समर्थन करते हैं.
  • यदि किसी व्यक्ति को लोक सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा राज्य सभा का उपसभापति या किसी राज्य की विधान सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा किसी राज्य की विधान परिषद्‌ का सभापति या उपसभाषपति चुना जाता है, तो वह अपने दल से त्यागपत्र दे सकता है या अपने कार्यकाल के पश्चात्‌ अपने दल की सदस्यता पुनः ग्रहण कर लेता है.

अध्यक्ष की भूमिका में परिवर्तन की आवश्यकता क्‍यों है?

अध्यक्ष के पद की प्रकृति: चूँकि अध्यक्ष के पद का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है, इसलिए अध्यक्ष पुन: निर्वाचित होने के लिए अपने राजनीतिक दल पर निर्भर रहता है. अतः यह स्थिति अध्यक्ष को स्वविवेक के बजाए सदन की कार्यवाही को राजनीतिक दल की इच्छा से संचालित करने का मार्ग प्रशस्त करती है.

पद से संबंधित अंतर्निहित विरोधाभास: उल्लेखनीय है कि जब अध्यक्ष किसी विशेष राजनीतिक दल से या तो नाममात्र (डी ज्यूर) या वास्तविक (डी फैक्टो) रूप से संबंधित होता है तो उस स्थिति में एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण के तौर पर उसे (अध्यक्ष) निर्योग्यता संबंधी याचिकाएं सौपना युक्तिसंगत और तार्किक प्रतीत नहीं होता है.

दल-परिवर्तन विरोधी कानून के तहत निर्योग्यता के संबंध में अध्यक्ष द्वारा किए जाने वाले निर्णय से संबंधित विलंब पर अंकुश लगाने हेतु: अध्यक्ष के समक्ष लंबित निर्योग्यता संबंधी मामलों के निर्णय में विलंब के कारण, प्राय: ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां सदस्यों को अपने दलों से निर्योग्य घोषित किए जाने पर भी वे सदन के सदस्य बने रहते हैं.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की “शासन में नैतिकता” नामक शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में और विभिन्न अन्य विशेषज्ञ समितियों द्वारा सिफारिश की गई है कि सदस्यों को दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराने के मुद्दों के संबंध में निर्णय राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा निर्वाचन आयोग की सलाह पर किया जाना चाहिए.
  • जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा है, जब तक कि “असाधारण परिस्थितियां” उत्पन्न नहीं हो जाती हैं, दसवीं अनुसूची के तहत निर्योग्यता संबंधी याचिकाओं पर अध्यक्ष द्वारा तीन माह के भीतर निर्णय किया जाना चाहिए.
  • संसदीय लोकतंत्र के अन्य मॉडलों/उदाहरणों का अनुसरण करते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अध्यक्ष तटस्थ रूप से निर्णय कर सके. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में यह परिपाटी रही है कि आम चुनावों के समय राजनीतिक दल अध्यक्ष के विरुद्ध निर्वाचन हेतु किसी भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं करते हैं और जब तक अन्यथा निर्धारित नहीं हो जाता, अध्यक्ष अपने पद पर बना रहता है. वहां यह भी परिपाटी है कि अध्यक्ष अपने राजनीतिक दल की सदस्यता से त्याग-पत्र दे देता है.
  • वर्ष 1951 और वर्ष 1953 में, भारत में विधान मंडलों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में इस ब्रिटिश मॉडल को अपनाने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया गया था.
  • हालाँकि, पहले से ही विधायिका के पीठासीन अधिकारियों के मध्य इस बात पर चर्चा चल रही है कि विशेष रूप से सदस्यों के दल परिवर्तन से संबंधित मामलों में, अध्यक्ष के पद की “गरिमा” को कैसे सुरक्षित किया जाए. इस संदर्भ में, लोकतांत्रिक परंपरा और विधि के शासन को बनाए रखने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा सुझाए गए उपायों को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है. उल्लेखनीय है कि एक सतर्क संसद, दक्षतापूर्ण कार्य करने वाले लोकतंत्र की नींव का निर्माण करती है और पीठासीन अधिकारी इस संस्था की प्रभावकारिता को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं.

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

  • दिनेश गोस्वामी समिति: वर्ष 1990 में चुनावी सुधारों को लेकर गठित दिनेश गोस्वामी समिति ने कहा था कि दल-बदल कानून के तहत प्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने का निर्णय चुनाव आयोग की सलाह पर राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा लिया जाना चाहिये.संबंधित सदन के मनोनीत सदस्यों को उस स्थिति में अयोग्य ठहराया जाना चाहिये यदि वे किसी भी समय किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होते हैं.
  • विधि आयोग की170वीं रिपोर्ट: वर्ष 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में कहा था कि चुनाव से पूर्व दो या दो से अधिक पार्टियाँ यदि गठबंधन कर चुनाव लड़ती हैं तो दल-बदल विरोधी प्रावधानों में उस गठबंधन को ही एक पार्टी के तौर पर माना जाए. राजनीतिक दलों को व्हिप (Whip) केवल तभी जारी करनी चाहिये, जब सरकार की स्थिरता पर खतरा हो. जैसे- दल के पक्ष में वोट न देने या किसी भी पक्ष को वोट न देने की स्थिति में अयोग्य घोषित करने का आदेश.

GS Paper 2 Source : PIB

pib_logo

UPSC Syllabus : Parliament and State Legislatures – structure, functioning, conduct of business, powers & privileges and issues arising out of these.

Topic : Motion Of No Confidence

संदर्भ

हाल ही में हरियाणा राज्य विधानसभा में, भारतीय जनता पार्टी-जननायक जनता पार्टी की गठबंधन सरकार के विरुद्ध कांग्रेस द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव (no confidence motion) 55-32 मतों के अंतर से पराजित हो गया.

अविश्वास प्रस्ताव क्या है?

  • आपके लिए यह जानना आवश्यक है कि इस प्रस्ताव के विषय में संविधान में कोई उल्लेख नहीं है.
  • केंद्र में यह प्रस्ताव केवल लोकसभा की कार्रवाई से ही जुड़ा है, क्योंकि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है.
  • अविश्वास प्रस्ताव और विश्वास प्रस्ताव दोनों निचले सदन यानी केंद्र सरकार के मामले में लोकसभा और राज्य सरकारों के मामले में विधानसभा में लाये जा सकते हैं.
  • लोकसभा ने अपने नियम 198 के तहत मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया के लिए नियम बनाए हैं.
  • सबसे पहले विपक्षी दल को लोकसभा या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है. इसके उपरान्त स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहती है. जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है तब वो अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकती है. अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे कम-से-कम 50 सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो.
  • कार्य मंत्रणा समितिइस प्रस्ताव पर विचार करती है. उसके बाद लोकसभा में मतदान के लिए रखा जाता है. यदि यह पारित हो जाता है तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है.

विश्वास प्रस्ताव

यह प्रस्ताव केंद्र में प्रधानमंत्री और राज्य में मुख्यमंत्री पेश करते हैं. सरकार के बने रहने के लिए इस प्रस्ताव का पारित होना आवश्यक है. प्रस्ताव पारित नहीं हुआ तो सरकार गिर जाएगी. यह दो परिस्थितियों में लाया जाता है –

  1. जब सरकार को समर्थन देने वाले घटक समर्थन वापिस का ऐलान कर दें, ऐसे में राष्ट्रपति या राज्यपाल प्रधानमन्त्री या मुख्यमंत्री को सदन का भरोसा हासिल करने को कह सकते हैं.
  2. अगर लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अंदर इस पर चर्चा जरुरी है. इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है.

इतिहास

  1. भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 में जे.बी. कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की सरकार के विरुद्ध रखे गये इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट.
  2. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि केन्द्रीय मंत्रिपरिषद् लोकसभा इ प्रति जवाबदेह है, अर्थात् इस सदन में बहुमत हासिल होने पर ही मंत्रिपरिषद बनी रही सकती है. इसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर प्रधानमन्त्री सहित मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है.
  3. संसद में 26 बार से ज्यादा यह प्रस्ताव रखे जा चुके हैं और सर्वाधिक अविश्वास प्रस्ताव 15 बार इंदिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार के विरुद्ध आये. लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने तीन-तीन बार इस प्रस्ताव का सामना किया.
  4. 24 बार ये प्रस्ताव असफल रहे हैं लेकिन 1978 में ऐसे एक प्रस्ताव ने मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया.
  5. इस प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है. उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गाँधी की सरकार के विरुद्ध रखे.
  6. NDA सरकार के पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. वाजपेयी जब खुद प्रधानमन्त्री बने तो उन्हें भी दो बार इस प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. इनमें से पहली बार तो वो सरकार नहीं बचा पाए लेकिन दूसरी बार विपक्ष को उन्होंने हरा दिया.
  7. आमतौर पर जब संसद अविश्वास पर वोट करती है या वह विश्वास मत में विफल रहती है, तो किसी सरकार को दो तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करनी होती है – त्यागपत्र देना, संसद को भंग करने और आम चुनाव का अनुरोध करना.

GS Paper 2 Source : Indian Express

indian_express

UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests.

Topic : First Meeting of BRICS CGETI held under India’s Chairship

संदर्भ

आर्थिक और व्यापक मुद्दों पर ब्रिक्स संपर्क समूह (Contact Group on Economic and Trade Issues  – CGETI) की पहली बैठक 9 से 11 मार्च, 2021 तक भारत की अध्यक्षता में आयोजित की गई.

BRICS क्या है?

  • BRICS विश्व की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले पाँच बड़े देशों – ब्राजील, रूस, भारत, चीन एवं दक्षिण अफ्रीका – का संघ है. इसका नाम इन देशों के पहले अक्षरों को मिला कर बना है.
  • BRICS की पहली बैठक जून 2009 रूस के Yekaterinburg शहर में हुई थी.
  • 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल किए जाने से पहले इसे “BRIC” के नाम से जाना जाता था.
  • यह नाम 2001 में Goldman Sachs संस्था के अर्थशास्त्री Jim O’Neill द्वारा सुझाया गया था.
  • इसकी बैठक हर वर्ष होती है जिसमें राजनीतिक एवं सामाजिक-आर्थिक सहयोग के क्षेत्र के विषय में चर्चा होती है.
  • BRICS की अध्यक्षता एक देश के पास न होकर प्रतिवर्ष बदलती रहती है और बदलने का एक क्रम भी BRICS के नाम के अनुसार ही होता है अर्थात् पहले B=Brazil, R=Russia आदि आदि…
  • BRICS में सम्बंधित देशों के प्रमुखों की बैठक तो होती है, साथ ही कई क्षेत्रीय (sectoral) बैठकें भी होती हैं जिनकी संख्या पिछले दस वर्षों में 100 पहुँच चुकी है.
  • BRICS देशों के बीच में सहयोग का कार्यक्रम तीन स्तरों अथवा ट्रैकों (TRACKS) पर चलता है. ये ट्रैक हैं –
  1. Track I = सम्बंधित देशों के बीच में औपचारिक कूटनीतिक कार्यकलाप,
  2. Track II = सरकार से सम्बद्ध संस्थानों, यथा – सरकारी उपक्रम एवं व्यवसाय परिषदों के माध्यम से किये गये कार्यकलाप,
  3. Track III = सिविल सोसाइटी के साथ और “जन से जन” स्तर पर किये गए कार्यकलाप.

BRICS और भारत

हालांकि, भारत को व्यापक रूप से एक मजबूत, उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जाता है, लेकिन BRICS के अन्य सदस्यों से तुलना करने के लिए इसकी आर्थिक क्षमता ही एकमात्र मानदंड नहीं होना चाहिए. समग्र GDP, सामाजिक असमानताओं एवं बुनियादी स्वास्थ्य और अन्य कल्याण सेवाओं तक पहुँच के मामले में, भारत अन्य BRICS राष्ट्रों से पीछे है. कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां भारत अपने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितों की वृद्धि हेतु, इस फोरम का उपयोग कर सकता है –

  • भारत द्वारा विदेशी निवेशकों को और अधिक आकर्षित करने के लिए, अपने बुनियादी डांचे में सुधार हेतु अत्यधिक वित्त की आवश्यकता है. विश्व बैंक और IMF के अतिरिक्त, न्यू डेवलपमेंट बैंक भी एक महत्वपूर्ण संगठन है, जो भारत को बुनियादी ढांचे हेतु ऋण प्रदान कर सकता हैं.
  • भारत की शक्ति श्रम, सेवा, जेनेरिक दवाइयों और सूचना प्रौद्योगिकी में निहित है. इसके साथ ही अन्य BRICS भागीदारों के साथ अन्य पर्याप्त सहक्रियाएं हैं, जिनका उपयोग कर इन क्षेत्रों में अंतर-BRICS संबंधों को और मजबूत बनाया जा सकता है.
  • BRICS के सभी सदस्यों छ्वारा तीव्र शहरीकरण की चुनौती का सामना किया जा रहा है. इससे निपटने के लिए भारत ने BRICS सहयोग तंत्र में अर्थवनाईज़ैशन फोरम को शामिल किया है, जिसके माध्यम से एक-दूसरे के अनुभव से सबक लेकर BRICS सहयोग को आगे बढ़ाया जा सकता है.
  • पूर्व सोवियत संघ के विघटन के पश्चात्, रूस के साथ भारत के महत्त्वपूर्ण संबंधों में कमी आती जा रही थी. BRICS एक महत्वपूर्ण मंच है, जिसके द्वारा भारत रूस के साथ अपने सहयोग को बढ़ावा देने के लिए अपनी वार्ता को आगे बढ़ा सकता है.
  • BRICS में सदस्य देशों के मध्य अधिक साझेदारी और सहयोग का वादा किया गया है. यह द्विपक्षीय मुद्दों को हुल करने के लिए भी मंच विकसित कर सकता है.

GS Paper 2 Source : The Hindu

the_hindu_sansar

UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests.

Topic : QUAD

संदर्भ

12 मार्च को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन, जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन ने, क्वाड समूह के नेताओं के पहले शिखर सम्मेलन में भाग लिया.

ज्ञातव्य है कि यह समूह हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Region) में चीन के प्रभुत्व का सामना करने एवं इस क्षेत्र को सभी के लिए मुक्त, खुला और समान अवसर वाला बनाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए बनाया गया है.

QUAD क्या है?

  • Quad एक क्षेत्रीय गठबंधन है जिसमें ये चार देश शामिल हैं – ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और अमेरिका.
  • ये चारों देश प्रजातांत्रिक देश हैं और चाहते हैं कि समुद्री व्यापार और सुरक्षा विघ्नरहित हो.
  • Quad की संकल्पना सबसे पहले जापान के प्रधानमन्त्री Shinzo Abe द्वारा 2007 में दी गई थी. परन्तु उस समय ऑस्ट्रेलिया के इससे निकल जाने के कारण यह संकल्पना आगे नहीं बढ़ सकी.

Quad समूह भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के बीच विचारों के आदान-प्रदान का एक रास्ता मात्र है और उसे उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. इसके गठन का उद्देश्य प्रतिस्पर्धात्मक नहीं है.

हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र

एकल रणनीतिक क्षेत्र के रूप में इंडो-पैसिफिक’ (Indo- Pacific) की अवधारणा, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के परिणाम है. यह, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के मध्य परस्पर संपर्क तथा सुरक्षा और वाणिज्य के लिए महासागरों के महत्त्व का प्रतीक है.

भारत के लिए ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ की भूमिका एवं निहितार्थ

  1. इंडो-पैसिफिक / हिंद-प्रशांत क्षेत्र, जैसा कि, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में वर्णित है, विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से गतिमान हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है. यह, भारत के पश्चिमी तट से संयुक्त राज्य के पश्चिमी तट तक विस्तृत है.
  2. भारत, सदैव से गंभीर राष्ट्रीय महत्त्वाकांक्षाओं वाला देश रहा है और “इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी” अवधारणा का सबसे महत्त्वपूर्ण पैरोकार है.
  3. मुक्त अर्थव्यवस्था के साथ, भारत, हिंद महासागर में आने निकटवर्ती देशों और विश्व की प्रमुख समुद्री शक्तियों के साथ संबंध स्थापित कर रहा है.

मुख्य बिंदु

  • ज्ञातव्य है कि विश्व का लगभग 90% विदेशी व्यापार समुद्र के जरिये किया जाता है और इसके एक बड़े हिस्से का संचालन हिन्द और प्रशांत महासागरों के माध्यम से किया जाता है.
  • 25% विश्व समुद्री व्यापार मलक्का जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है.
  • इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका की वार्षिक रक्षा रिपोर्ट के अनुसार, चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है.
  • इसमें 350 से अधिक जहाज और पनडुब्बी हैं तथा चीन, हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पकड़ का विस्तार करने के अवसरों की खोज कर रहा है.

Prelims Vishesh

NISAR :-

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के साथ पृथ्वी अवलोकन सैटेलाइट मिशन के लिए सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) विकसित किया है, जो बेहद उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें लेने में सक्षम है.
  • नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर (NISAR) पृथ्वी की सतह के निरीक्षण का संयुक्त मिशन है.
  • नासा के अनुसार निसार, रडार की दो भिन्न आवृत्तियों (एल और एस बैंड) का प्रयोग करने वाला पहला उपग्रह अभियान होगा. इससे पृथ्वी की सतह पर एक सेंटीमीटर से भी कम दूरी में होने वाले बदलाव को मापा जा सकेगा.

Loan Write-off :-

  • हाल ही में, यह ज्ञात हुआ है कि बैंकों ने 5.85 लाख करोड़ रुपये के ऋणों को बट्टे खाते में डाल दिया है अर्थात्‌ उन्हें राइट ऑफ कर दिया है.
  • किसी ऋण या संपत्ति को बट्टे खाते में डालने या राइट-ऑफ करने का अर्थ है कि इसका कोई “भावी मूल्य” नहीं है या यह अब अपने उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है.
  • यह एक नियमित प्रक्रिया है, जिसका उपयोग बैंक अपने तुलन पत्रों (बैलेंस-शीट) को साफ-सुथरा करने के लिए करते हैं. ऐसा करने पर बैंक किसी भी ऋण की प्रोविजनिंग के लिए आरक्षित धन या पैसे को मुक्त करते हैं और वे मुक्त धन का प्रयोग अन्य गतिविधियों के लिए कर सकते हैं.
  • यह बुरे ऋण (bad loan) अथवा गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA in Hindi) के मामलों में लागू होता है.
  • यद्यपि, बुरे ऋण को राइट ऑफ करने के बाद भी, ऐसे ऋणों के उधार लेने वाले पुनर्भुगतान के लिए उत्तरदायी होते हैं.

CPCB report on “Contaminated Sites” :-

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में विषाक्त और खतरनाक पदार्थों से दूषित 112 स्थल विद्यमान हैं.
  • इनमें से सर्वाधिक स्थल ओडिशा में स्थित हैं.
  • विदित हो कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) का गठन जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत किया गया है.
  • यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तत्वावधान में कार्यरत है.

Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA

February, 2020 Sansar DCA is available Now, Click to Download

 

Spread the love
Read them too :
[related_posts_by_tax]