Sansar डेली करंट अफेयर्स, 07 January 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 07 January 2020


GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Topic : State can regulate minority institutions

संदर्भ

एक महत्त्वपूर्ण निर्णय करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि सरकार की सहायता से चलने वाले अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों यह दावा नहीं कर सकते हैं कि अपने यहाँ शिक्षकों की नियुक्ति पर उनका निरंकुश अधिकार है. इस निर्णय में कहा गया है कि सरकार इन संस्थानों में नियुक्ति पर हस्तक्षेप कर सकती है जिससे कि शिक्षा के स्तर में उत्कृष्टता लाई जा सके.

मामला क्या है?

पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 (West Bengal Madrassas Service Commission Act, 2008) के अनुसार मदरसों में शिक्षकों का चयन और नियुक्ति का फैसला एक आयोग कर सकता है. इस अधिनियम की सांविधानिक वैधता को यथावत् रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम पर कलकत्ता उच्च न्यायालय के द्वारा दिए गये  न्यायादेश को यह कहकर निरस्त कर दिया कि इसके विभिन्न प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 30 का उल्लंघन करते हैं और इसलिए संविधानविरुद्ध है.

अनुच्छेद 30

संविधान का अनुच्छेद 30 कहता है कि सभी धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को यह अधिकार है कि वे अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्थान स्थापित करें और उसे चलायें.

सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा प्रकट मंतव्य

  • कोई संस्थान चाहे अल्पसंख्यकों का हो अथवा बहुसंख्यकों का हो, वहाँ उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा के मामले में राष्ट्रीय हित के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता है.
  • अनुच्छेद 30(1) की भावना यह है कि अल्पसंख्यकों एवं बहुसंख्यकों के संस्थानों दोनों के प्रति समान व्यवहार हो तथा दोनों प्रकार के संस्थानों में नियम और विनियम एक जैसे होने चाहिएँ.
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि शिक्षा की गुणवत्ता तथा अल्पसंख्यकों के द्वारा शैक्षणिक संस्थान संचालित करने के अधिकार दोनों के बीच किस प्रकार संतुलन बनाया जाए. इसके लिए न्यायालय ने शिक्षा को दो वर्गों में बाँटा है – धर्मनिरपेक्ष शिक्षा तथा वैसी शिक्षा जिसका प्रत्यक्ष उद्देश्य किसी धार्मिक अथवा भाषाई अल्पसंख्यक समुदाय की विरासत, संस्कृति, लिपि और विशेष लक्षणों का संरक्षण करना है.
  • जहाँ तक दूसरे वर्ग का प्रश्न है सर्वोच्च न्यायालय इस बात का पक्षधर है कि शिक्षकों की नियुक्ति में प्रबंधकों को अधिक से अधिक नियंत्रण दिया जाए क्योंकि किसी विशेष धार्मिक दर्शन और उसके प्रचार-प्रसार के विषय में वही शिक्षक अच्छी शिक्षा दे सकते हैं जो उस धर्म का पालन करते हैं.
  • परन्तु, जिन अल्पसंख्यक संस्थानों का पाठ्यक्रम विशुद्ध रूप से धर्मनिरपेक्ष है, वहाँ यह प्रयास होना चाहिए कि अच्छे से अच्छे शिक्षकों के द्वारा शिक्षा दी जाए.

अनुच्छेद 30(1)

  • अनुच्छेद 30(1) के अनुसार अल्पसंख्यकता का आधार मात्र भाषा अथवा धर्म हो सकता है, न कि नस्ल या जाति.
  • यह अनुच्छेद अल्पसंख्यकों को शिक्षा संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार देता है. वस्तुतः यह किसी अलग संस्कृति के संरक्षण में शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका को मान्यता देता है. एक बहुसंख्यक समुदाय भी एक शैक्षणिक संस्थान खोल और चला सकता है, परन्तु उसे अनुच्छेद 30(1)(a) में वर्णित विशेष अधिकार नहीं मिलेंगे.

अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को दिए गये विशेष अधिकार

  • अनुच्छेद 30(1)(a) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों (Minority Educational Institutions – MEIs) को विशेष अधिकार प्रदान करता है. इसके अनुसार अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को दिया गया शिक्षा अधिकार वस्तुतः एक मौलिक अधिकार है. यदि ऐसे संस्थान की संपदा सरकार ले लेती है तो उस संस्थान को उचित क्षतिपूर्ति दी जायेगी जिससे वह किसी और जगह पर शैक्षणिक संस्थान स्थापित कर सके.
  • अनुच्छेद 15(5) के अनुसार, ऐसे संस्थानों में आरक्षण लागू नहीं होता है.
  • शिक्षा अधिकार अधिनियम (Right to Education Act) के अनुसार इन संस्थानों से यह अपेक्षा नहीं होती कि वे आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के 6 से 14 वर्ष के बच्चों को नामांकन में 25% तक आरक्षण दें.
  • सेंट स्टीफेंस बनाम दिल्ली विश्वविद्यालय वाद, 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी थी कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान अल्पसंख्यकों के लिए 50% सीट आरक्षित कर सकते हैं.
  • TMA पई एवं अन्य बनाम कर्नाटक सरकार एवं अन्य, 2002 वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी थी कि MEI प्रवेश के लिए अलग प्रक्रिया अपना सकते हैं यदि यह प्रक्रिया पारदर्शी, न्यायोचित और मेधा पर आधारित हो. ऐसे संस्थान अपनी ओर से अलग ढंग के शुल्क लगा सकते हैं परन्तु वे कैपिटेशन शुल्क नहीं ले सकते हैं.

GS Paper 2 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Important aspects of governance, transparency and accountability, e-governance- applications, models, successes, limitations, and potential; citizens charters, transparency & accountability and institutional and other measures.

Topic : NetSCoFAN

संदर्भ

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने आहार एवं पोषण के क्षेत्र में काम करने वाले शोध एवं शिक्षा संस्थानों के एक नेटवर्क का अनावरण किया है जिसका नाम NetSCoFAN है.

NetSCoFAN क्या है?

  • इस नेटवर्क में संस्थानों को आठ समूहों में बाँटा गया है, जैसे – जीव वैज्ञानिक, रासायनिक, पोषाहार एवं लेबलिंग, पशु मूल का आहार, पादप मूल का आहार, जल एवं पेय पदार्थ, भोजन परीक्षण तथा अधिक सुरक्षित एवं टिकाऊ डिब्बाबंदी.
  • इन आठ समूहों के लिए FSSAI को नाभिक कार्यालय बनाया गया है जिसका काम एक ऐसा “रेडी रेकनर” बनाना होगा जिसमें सभी शोधकार्यों, विशेषज्ञों और संस्थानों की सूची होगी.
  • NetSCoFAN विभिन्न क्षेत्रों में शोध की कमियों का पता लगाएगा और खाद्य सुरक्षा से सम्बंधित एक डेटाबेस तैयार करेगा जिससे कि जोखिम मूल्यांकन की गतिविधियाँ संचालित की जा सकें.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Disaster and disaster management.

Topic : National Disaster Response Fund

संदर्भ

राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से केंद्र सरकार ने सात राज्यों में बाढ़ राहत के लिए 5,908 करोड़ रु. विमुक्त किये हैं. ये राज्य हैं – उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, त्रिपुरा, असम, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश.

NDRF क्या है?

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुभाग 46 में प्रावधान किया गया NDRF केंद्र सरकार द्वारा प्रबंधित एक ऐसा कोष है जिससे आपदा होने पर राहत एवं पुनर्वास के कार्य के लिए धनराशि खर्च की जाती है.
  • पहले इस कोष का नाम राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक कोष (NCCF) हुआ करता था. ज्ञातव्य है कि राज्यों को राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष अलग से उपलब्ध होता है. पैसा कम पड़ जाने पर NDRF उन्हें अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध कराता है.

NDRF को पैसा कहाँ से आता है?

  • NDRF के लिए धन की व्यवस्था बजट में कुछ वस्तुओं पर लगने वाले उत्पाद एवं सीमा शुल्क पर सेस लगाकर की जाती है.
  • वर्तमान में एक राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क (National Calamity Contingency Duty – NCCD) भी लगाया जा रहा है जिसका पैसा NDRF को जाता है.
  • इसके अतिरिक्त आपदा प्रबंधन अधिनियम में यह प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति अथवा संस्था NDRF को वित्तीय योगदान कर सकता है.
  • NDRF के लेखा की जाँच भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) करता है.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Conservation related issues.

Topic : Kerala to turn to Miyawaki method

संदर्भ

केरल सरकार वन रोपण की मियावाकी पद्धति (Miyawaki method) अपनाने जा रही है जिसके अन्दर सरकारी कार्यालय-परिसरों, आवासीय सोसाइटियों, विद्यालय परिसरों और सरकारी भूमि (puramboke land) पर पेड़ रोपने का काम किया जाता है.

मियावाकी पद्धति (Miyawaki method) क्या है?

  • यह वनरोपण की एक पद्धति है जिसका आविष्कार मियावाकी नामक जापान के एक वनस्पतिशास्त्री ने किया था. इसमें छोटे-छोटे स्थानों पर छोटे-छोटे पौधे रोपे जाते हैं जो साधारण पौधों की तुलना में दस गुनी तेजी से बढ़ते हैं.
  • यह पद्धति विश्व-भर में लोकप्रिय है और इसने शहरी वनरोपण की संकल्पना में क्रांति ला दी है. दूसरे शब्दों में, घरों और परिसरों के पिछवाड़ों को उपवन में परिवर्तित कर दिया है. चेन्नई में भी यह पद्धति अपनाई जा चुकी है.

इस पद्धति की प्रक्रिया

  1. सबसे पहले एक गड्ढा बनाना होता है. जिसका आकार प्रकार भूमि की उपलबध्ता पर निर्भर होता है. गड्ढा खोदने के भी पहले तीन प्रजातियों की एक सूची बनानी होती है. इसके लिए ऐसे पौधे चुने जाते हैं जिनकी ऊँचाई पेड़ बनने पर अलग-अलग हो सकती है.
  2. अब इस गड्ढे में कम्पोस्ट की एक परत डाली जाती है. तत्पश्चात् बगासे और खोपरों जैसे प्राकृतिक कचरे की एक परत गिराई जाती है और सबसे ऊपर लाल मिट्टी की एक परत बिछाई जाती है.
  3. तीनों पौधे एक साथ नहीं रोप कर थोड़े-थोड़े दिन पर रोप जाते हैं और इनके पेड़ कितने बड़े होंगे इस पर भी विचार किया जाता है.
  4. यह पूरी प्रक्रिया 2-3 सप्ताह में पूरी हो जाती है.
  5. इन पौधों को नियमित रूप से एक वर्ष तक संधारित किया जाता है.

लागत विश्लेषण

मियावाकी पद्धति में 600 वर्ग फुट के उपवन को लगाने में लगभग 20,000  रु. की लागत बैठती है.


GS Paper 4 Source: Indian Express

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Topic : Ethical veganism

संदर्भ

यूनाइटेड किंगडम के एक आजीविका न्यायाधिकरण ने यह व्यवस्था दी है कि ब्रिटेन के कानून के द्वारा जिन दार्शनिक विश्वासों के प्रति भेदभाव न करने की सुरक्षा दी गई है उनमें नैतिक वीगनवाद (Ethical veganism) भी सम्मिलित है.

मामला क्या है?

जोर्डी केस्मीजना (Jordi Casamitjana) नाम के एक मनुष्य ने यह दावा किया था कि “लीग अगेंस्ट क्रुअल स्पोर्ट्स” नामक एक पशु कल्याण संस्था ने उसे नौकरी से इसलिए निकाल दिया था कि उसने आरोप लगाया था कि इस संस्था का पैसा ऐसी कम्पनियों में लगाया जाता है जो पशु परीक्षण किया करते हैं.

न्यायाधिकरण की व्यवस्था

न्यायाधिकरण का कहना था कि किसी दार्शनिक विश्वास की परीक्षा के लिए जो पात्रताएँ होती हैं वे सभी नैतिक वीगनवाद में देखे जाते हैं. इसलिए अन्य विश्वासों की तरह इस विश्वास को भी The Equality Act, 2010 के अन्दर सुरक्षा मिलनी चाहिए.

वीगनवाद क्या है?

मोटे तौर पर उस व्यक्ति को वीगन कहा जाता है जो माँस उत्पादों के साथ-साथ पशुओं से उत्पन्न उत्पादों, जैसे – दूध, अंडे आदि, का उपभोग नहीं करता.

नैतिक वीगनवाद और उसके प्रकार

  • नैतिक वीगनवाद उस अवधारणा को कहते हैं जो वीगन जीवनशैली के साथ एक सकारात्मक नैतिक मूल्यांकन भी जोड़ता है.
  • नैतिक वीगनवाद के दो प्रकार हैं – व्यापक पूर्णता के लिए आग्रह रखने वाला वीगनवाद (broad absolutist veganism) और विनम्र नैतिक वीगनवाद (modest ethical veganism).
  • पूर्णता का आग्रह रखने वाले वीगनवाद में पशुओं से बनने वाले किसी भी उत्पाद को सर्वथा निःसिद्ध माना जाता है. दूसरी ओर, विनम्र नैतिक वीगनवाद में केवल कुछ पशुओं से उत्पन्न उत्पादों की मनाही होती है, जैसे – बिल्ली, कुत्ता, गाय, सूअर आदि.
  • पूर्णता का आग्रह रखने वाले वीगनवादी किसी भी दशा में चमड़े का बटन नहीं दबायेंगे चाहे ऐसा करना किसी वैश्विक परमाणु युद्ध को रोकने के लिए आवश्यक ही क्यों न हो.

नैतिक वीगनवाद और नैतिक शाकाहार में अंतर – Difference between ethical vegetarianism and ethical vegetarianism

एक ओर जहाँ नैतिक शाकाहार में पशुओं से बने उत्पाद (दूध छोड़कर) का विरोध होता है, वहीं दूसरी ओर नैतिक वीगनवाद में पशु दुग्ध का भी बहिष्कार किया जाता है.


Prelims Vishesh

Smog tower :-

  • वायु प्रदूषण को ठीक करने के लिए दिल्ली में पहली बार एक स्मोग टावर लगाया गया है.
  • ऐसे टावर बड़े पैमाने पर वायु को साफ़ करने का काम करते हैं.
  • इनसे गुजरने वाली वायु प्रदूषक तत्त्वों से रहित हो जाती हैं.
  • टावर में लगे फ़िल्टर अपने कार्बन नैनोफाइबर के द्वारा वायु में स्थित पार्टिकुलेट मैटर को घटा देते हैं.

Bibi Ka Maqbara :

  • महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एक मकबरा है जो औरंगजेब द्वारा 1660 में अपनी मुख्य पत्नी दिलरस बानू बेगम की याद में बनाया गया था.
  • इस मकबरे को दक्कन का ताज भी कहते हैं क्योंकि यह ताजमहल से बहुत ही अधिक मिलता-जुलता है.

‘Zo Kutpui’ festival :

  • मिजो जनजातियों को एक करने के उद्देश्य से मिज़ोरम सरकार विश्व-भर में “जो कुटपुइ” नामक उत्सवआयोजित करेगी.
  • इस प्रकार का पहला उत्सव त्रिपुरा के पास स्थित मिज़ो समुदाय के गढ़ वान्गमुन में आयोजित होगा. इस अवसर पर विभिन्न मिजो जनजातियों के बड़े-बड़े लोग जमा होंगे और सांस्कृतिक कार्यक्रम देखेंगे और लोक गीतों का आनंद लेंगे.

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