असहयोग आन्दोलन 1920 – Non-Cooperation Movement in Hindi

Sansar Lochan#AdhunikIndia, Modern History

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प्रथम विश्वयुद्ध (First World War) के बाद महात्मा गाँधी ने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया और अब कांग्रेस की बागडोर उनके हाथों में आ गई.  महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक नयी दिशा ग्रहण कर ली. राजनीति में प्रवेश के पहले महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका में सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह का प्रयोग कर चुके थे. उन्होंने विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन दिया, उनकी सेवाओं के बदले ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1915 ई. में “कैसरे हिन्द ” की उपाधि दी. 1917 ई. में उन्होंने ने चंपारण आंदोलन के जरिये वहाँ किसानों को अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई. 1918 ई. में उन्होंने अहमदाबाद के मिल मालिकों और मजदूरों के बीच समझौता कराने के लिए अनशन प्रारम्भ कर दिया, जिसमें उन्हें सफलता मिली. इन्हीं सब घटनाओं से गाँधीजी को असहयोग आन्दोलन (Non-cooperation movement) की प्रेरणा मिली.

गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन (Non-cooperation movement) शुरू करने के पीछे सबसे प्रमुख कारण था –अंग्रेजी सरकार की अस्पष्ट नीतियाँ. सरकार के सुधारों से जनता असंतुष्ट थी, सर्वत्र आर्थिक संकट छाया हुआ था तथा महामारी और अकाल फैला हुआ था. ऐसे समय में अंग्रेजी सरकार द्वारा 1919 को रोलेट एक्ट (Roulette Act) प्रस्तुत किया गया जो भारतीयों की नज़र में एक काला कानून था. रोलेट समिति की रिपोर्ट के विरुद्ध हर जगह विरोध हो रहे थे. इस एक्ट के विरोध में पूरे देश में हड़ताल करने का निश्चय किया गया. जब भारतीय विधान सभा में उस विधेयक पर चर्चा हो रही थी, गाँधीजी वहाँ दर्शक के रूप में उपस्थित थे.

सरकार के दमन के खिलाफ विरोध प्रकट करने के लिए अमृतसर में जालियाँवाला बाग़ (Jallianwala Bagh) में आयोजित की गई. जनरल डायर ने सभा को रोकने का कोई उपाय नहीं किया लेकिन उसके शुरू होते ही वह वहाँ पहुँच गया और अपने साथ हथियार-बंद सेना की टुकड़ी और गाड़ियाँ ले गया. बिना चेतावनी दिए उसने आदेश दिया: “तब तक गोली चलाओ जब तक गोला-बारूद ख़त्म न हो जाए.” सारे देशभक्त लोगो के विरोध के बावजूद भी यह विधेयक कानून के रूप में पास कर दिया गया. सैकड़ों पुरुष, स्त्री और बच्चे भून डाले गए.

पंजाब के लोगों का कष्ट देखकर गाँधीजी बहुत विचलित हो गए. वह जान गए थे कि निरस्त्र लोगों पर कैसे-कैसे अत्याचार किये गए हैं.

तब गाँधीजी ने लोगों को सलाह दी कि वे हर तरह से सरकार से असहयोग करें. उन्होंने लोगों से कहा कि वे ब्रिटिश सारकार (British Government) के द्वारा दिए जाने वाले खिताब स्वीकार नहीं करें और जो पहले उन्हें स्वीकार कर चुके हैं वे उन्हें लौटा दें. उन्होंने स्वयं “कैसरे हिन्द  (Kaiser-i-Hind)” नामक स्वर्ण-पदक भी लौटा दिया.

सितम्बर 1920 में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन (Congress Session, Calcutta) में गाँधीजी ने पंजाब में किये गए अत्याचार के विरोध में सरकार के साथ असहयोग का प्रस्ताव रखा. गाँधीजी का प्रस्ताव बहुमत से पारित हो गया. पूरे देश में असहयोग आन्दोलन की शुरुआत हो गई. इसके अंतर्गत उपाधियों तथा अनैतिक पदों का परित्याग करना, स्कूल, कॉलेज तथा सरकारी अदालतों का बहिष्कार, विदेशी वस्तु का परित्याग और स्वदेशी वस्तु के व्यवहार का कार्यक्रम बनाया गया. असहयोग आन्दोलन पूरे चरम पर था, तभी गोरखपुर के निकट चौरी-चौरा नामक स्थान पर आन्दोलनकारियों ने एक थानेदार और 21 सिपाहियों को जला कर मार डाला. असहयोग आन्दोलन (Non-cooperation movement) हिंसात्मक रूप धारण करने लगा. इससे गाँधीजी बहुत विचलित हो उठे. वे सोचने लगे. उन्हें लगा कि लोग निश्चित ही अभी तक सत्याग्रह के लिए तैयार नहीं हुए हैं. तब गाँधीजी ने इसको स्थगित करने की घोषणा की जिससे बहुत से नेता गाँधीजी से रुष्ट भी हुए .

असहयोग आन्दोलन स्थगित हो गया पर फिर भी इसका महत्त्व कम नहीं है. यह विश्व इतिहास में पहला अहिंसात्मक विद्रोह था जो समाप्त होने के बाद भी किसी-न-किसी रूप में चलता ही रहा. इसे प्रथम जन-आन्दोलन की संज्ञा पाई. अपने राजनैतिक अधिकारों के प्रति जनता में जागरूकता की भावना इसी असहयोग आन्दोलन के परिणामस्वरूप आई. इसने भारत में राष्ट्रीयता की भावना को व्यापक रूप में प्रज्ज्वलित किया.

असहयोग आन्दोलन – संक्षेप में

असहयोग आन्दोलन का प्रथम चरण जनवरी से मार्च 1921 तक माना जाता है, जिसमें गांधीजी एवं अली बंधुओं ने राष्ट्रव्यापी जनसंपर्क अभियान चलाया. इनका आग्रह था कि विद्यार्थी सरकारी नियंत्रण वाले शिक्षण संस्थाओं तथा वकील  अदालत छोड़ दें. सी. आर. दास, मोतीलाल नहेरू, एम. आर. जयकर, वल्लभ भाई पटेल और अन्य लोगों ने वकालत छोड़ दी. विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया गया और कई जगहों पर विदेशी कपड़ों की होली जलायी गयी. इस आन्दोलन का एक अत्यंत लोकप्रिय कार्यक्रम था- ताड़ी की दुकान पर धरना.

असहयोग आन्दोलन के दूसरे चरण (मार्च से जुलाई 1921) में सारा ध्यान कोष इकठ्ठा करने, सदस्य संख्या बढ़ाने तथा चरखा बांटने पर दिया गया. तिलक स्वराज कोष भी बनाया गया, जिसमें लक्ष्य 1 करोड़ से भी अधिक धन इकठ्ठा किया गया.

तीसरे चरण (जुलाई से नवम्बर 1921) में  और अधिक उग्र रूप अपनाया गया. इसमें विदेशी कपड़े एवं प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन का बहिष्कार किया गया. प्रांतीय समितियों को भी नागरिक अवज्ञा करने की अनुमति दी गयी. गांधीजी ने स्वयंसेवकों से जेल भरने का आह्नान किया. बम्बई में वुफछ हिंसक झड़पें भी हुईं.

चौथे चरण (नवम्बर से फरवरी 1922) में सरकार ने दमन का सहारा लिया. गांधीजी को छोड़कर सी. आर. दास सहित सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. सरकार ने गांधीजी और खिलाफत के नेताओं में फूट डालने का भी प्रयास किया, परन्तु वे असफल रहे. सर्वदलीय सम्मेलन और वायसराय के नाम गांधीजी के पत्र दोनों का सरकार पर कोई असर नहीं हुआ. गांधीजी ने घोषणा की कि यदि सरकार नागरिक स्वतंत्रता बहाल नहीं करेगी, राजनीतिक बंदियों को रिहा नहीं करेगी तो वे देशव्यापी सविनय अवज्ञा आन्दोलन छेड़ने को बाध्य हो जाएँगे. गांधीजी ने अंत में बारदोली में जन सविनय अवज्ञा आन्दोलन छेड़ने का निर्णय नागरिक स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाने के मुद्दे पर लिया. देश के अन्य भागों से यह अपेक्षा की गयी कि वे अनुशासन और शांति बनाये रखकर सहयोग दें, ताकि बारदोली आन्दोलन पर पूरा ध्यान दिया जा सके. परन्तु इसे और इसके साथ-साथ चल रहे पूरे देश के आन्दोलनों को 11 फरवरी को गांधीजी के कहने पर बंद कर दिया गया. इसका कारण 5 फरवरी, 1922 को चौरा-चौरी में एक भीड़ द्वारा 22 पुलिस वालों को जिन्दा जलाया जाना था.

परिणाम

  • असहयोग आन्दोलन ने देश की जनता को आधुनिक राजनीति से परिचय कराया आरै उसमें आजादी की इच्छा जगायी.
  • इसने यह दिखाया कि भारत की दीन-हीन जनता भी आधुनिक राष्ट्रवादी राजनीति की वाहक हो सकती है.
  • यह पहला अवसर था जब राष्ट्रीयता ने गांवों, कस्बों, स्कूलों आदि सबको अपने प्रभाव में ले लिया.
  • हालाँकि इसकी उपलब्धियाँ कम थीं, लेकिन जो वुफछ हासिल हुआ, वह आगामी संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार करने में सहायक हुआ.
  • बड़े पैमाने पर मुसलमानों की भागीदारी और सांप्रदायिक एकता इस आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी.
  • मुसलमानों की भागीदारी ने ही इस आन्दोलन को जन आन्दोलन का स्वरूप दिया.
  • असहयोग आन्दालेन का एक प्रमुख परिणाम यह हुआ कि भारतीय जनता के मन से भय की भावना समाप्त हो गयी.

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Sources: Wikipedia (Wiki), NCERT, NIOS, गाँधीजी की कहानी (निबंध) by Rajkumari Shankar

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