आज हम खेड़ा सत्याग्रह (Kheda Movement) के विषय में पढ़ने वाले हैं. खेड़ा एक जगह का नाम है जो गुजरात में है. चंपारण के किसान आन्दोलन के बाद खेड़ा (गुजरात) में भी 1918 ई. में एक किसान आन्दोलन हुआ. गाँधीजी ने खेड़ा में भी किसानों की बदतर हालत को सुधारने का अथक प्रयास किया. खेड़ा में भी बढ़े लगान और अन्य शोषणों से किसान वर्ग पीड़ित था. कभी-कभी किसान जमींदारों को लगान न देकर अपना आक्रोश प्रकट करते थे. 1918 ई. में सूखा के कारण फसल नष्ट हो गयी. ऐसी स्थिति में किसानों की कठिनाइयाँ बढ़ गईं.
भूमिकर नियमों के अनुसार यदि किसी वर्ष फसल साधारण स्तर से 25% कम हो तो वैसी स्थिति में किसानों को भूमिकर में पूरी छूट मिलनी थी. बम्बई सरकार के पदाधिकारी सूखा के बावजूद यह मानने को तैयार नहीं थे कि उपज कम हुई है. अतः वे किसानों छूट देने को तैयार नहीं थे. लगान चुकाने हेतु किसानों पर लगातार दबाव डाला जाता था.
खेड़ा सत्याग्रह
चंपारण के बाद गाँधीजी ने खेड़ा के किसानों की ओर ध्यान दिया. उन्होंने किसानों को एकत्रित किया और सरकारी कार्रवाइयों के खिलाफ सत्याग्रह करने के लिए उकसाया. किसानों ने भी गाँधीजी का भरपूर साथ दिया. किसानों ने अंग्रेजों किए सरकार को लगान देना बंद कर दिया. जो किसान लगान देने लायक थे उन्होंने भी लगान देना बंद कर दिया. सरकार ने सख्ती से पेश आने और कुर्की की धमकियाँ दी पर उससे भी किसान नहीं डरे. इस आन्दोलन में बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया. अनेक किसानों को जेल में डाल दिया गया.
जून, 1918 ई. तक खेड़ा का यह किसान आन्दोलन (Kheda Movement) एक व्यापक रूप ले चुका था. किसान के इस गुस्से और निडर भाव को देखते हुए सरकार को उनके सामने झुकना पड़ा और अंततः सरकार ने किसानों को लगान में छूट देने का वादा किया. पते की बात ये है कि इसी आन्दोलन के दौरान सरदार वल्लभभाई गाँधीजी के संपर्क में आये और कालान्तर में पटेल गाँधीजी के पक्के अनुयायी बन गए.
चंपारण और खेड़ा आन्दोलन का महत्त्व
चंपारण और खेड़ा के किसान आन्दोलनों (Champaran and Kheda Satyagraha) के महत्त्व की बारे में यदि बात करें तो ये दोनों आन्दोलन पूर्व के आन्दोलनों की तुलना में बहुत शांत तरीके से संपन्न किए गए थे. किसानों ने सत्याग्रह कर के सरकार को विवश कर दिया कि वह उनकी दशा में सुधार लाये. दोनों आन्दोलनों में किसानों की जीत हुई. इन आन्दोलनों से किसानों के साथ-साथ पूरे भारतवर्ष में उत्साह का संचार हुआ और आत्मविश्वास की भावना जगी. 1919 ई. के बाद किसानों ने अधिक संगठित रूप से आन्दोलन किए. किसान सभा नामक शक्तिशाली किसान संगठन की स्थापना भी हुई.
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3 Comments on “खेड़ा सत्याग्रह – एक किसान आन्दोलन 1918”
Thanks for help of a MA student
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Thanks sir for this wonderful article