वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2020 – Global Climate Risk Index

Sansar LochanBiodiversityLeave a Comment

जर्मनवाच नामक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण से सम्बंधित थिंकटैंक ने पिछले दिनों 2020 का वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक (Global Climate Risk Index 2020) प्रकाशित कर दिया.

प्रतिवर्ष छपने वाले इस सूचकांक में यह दर्शाया जाता है कि आंधी, बाढ़, लू आदि मौसम से जुड़ी आपदाओं का विभिन्न देशों पर कितना दुष्प्रभाव पड़ा है.

ज्ञातव्य है कि जर्मनी के बॉन और बर्लिन नगरों से काम करने वाली संस्था जर्मनवाच विकास एवं पर्यावरण से जुड़ा एक ऐसा स्वतंत्र संगठन है जो सतत वैश्विक विकास के लिए काम करता है.

वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2020

भारत के सन्दर्भ में मुख्य निष्कर्ष

  • जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से भारत विश्व का पाँचवा सर्वाधिक संकटग्रस्त देश है.
  • 2017 में भारत की रैंक 14वीं और 2018 में पाँचवी थी. इस प्रकार 2017 की तुलना में इस देश की रैंक खराब हुई है.
  • जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप हुई मौतों की संख्या सबसे अधिक भारत में दर्ज हुई.
  • आर्थिक क्षति की दृष्टि से भी 2018 में भारत दूसरा सबसे अधिक दुष्प्रभावित देश रहा.
  • भारत की रैंकिंग गिरने के पीछे कई कारण रहे, जैसे – भयंकर वृष्टिपात और उसके चलते आई विकट बाढ़ और भूस्खलन. इन सब कारणों से 1,000 लोगों को प्राण गंवाने पड़े.

विश्व के सन्दर्भ में मुख्य निष्कर्ष

  • 2018 में जलवायु परिवर्तन की मार सबसे अधिक जापान ने झेली थी.
  • जर्मनी और कनाडा भी जलवायु-विपदाओं से ग्रस्त होने वाले देश रहे.
  • विश्व-भर में जलवायु परिवर्तन से होने वाली क्षति का एक कारण लू का बढ़ता हुआ प्रकोप है.

जलवायु परिवर्तन विकट मौसम के लिए उत्तरदायी कैसे है?

  • कई अध्ययनों का यह निष्कर्ष है कि जलवायु प्रणाली के अधिक गर्म होने के कारण कुछ विकट जलवायवीय घटनाओं की बारंबारता, तीव्रता और अवधि में बढ़ोतरी हुई है.
  • उदाहरण के लिए, वैश्विक ताप वृद्धि से तापमान बढ़ जाता है और इससे जलचक्र में तीव्रता उत्पन्न होती है. इसका तात्पर्य यह है कि एक ओर जहाँ सूखे अधिक होंगे, वहीं सूखी मिट्टी और बढ़ी हुई आर्द्रता के कारण बाढ़ भी अधिक होगी.
  • जैसे-जैसे वैश्विक तापमान जलचक्र में तीव्रता लाता है, वैसे-वैसे अतिवृष्टि की संभावना बढ़ती जाती है.
  • समुद्रों की सतह का तापमान बढ़ने से आँधियों और अतिवृष्टि में बढ़ोतरी के साथ-साथ पवन की गति में वृद्धि देखी जाती है. जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि का मरुस्थलीकरण और गुणवत्ता में क्षरण होता है. फलतः जैव विविधता को क्षति तो पहुँचती ही है, साथ ही दावानल अर्थात् जंगलों में आग लगने की संभावना भी प्रबल हो जाती है.
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