[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Ethics GS Paper 4/Part 2

Sansar LochanGS Paper 4

[no_toc] सामान्य अध्ययन पेपर – 4

प्रशासनिक नैतिकता को बनाए रखने या नैतिकता स्तर को ऊँचा उठाने के उपाय सुझाएँ. (250 words) 

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 4 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“लोक प्रशासनों में लोक/सिविल सेवा मूल्य तथा नीतिशास्त्र : स्थिति तथा समस्याएँ ; सरकारी तथा निजी संस्थानों में नैतिक चिंताएँ तथा दुविधाएँ ; नैतिक मार्गदर्शन के स्रोतों के रूप में विधि, नियम, विनियमन तथा अंतर्रात्मा, शासन व्यवस्था में नीतिपरक तथा नैतिक मूल्यों का सुदृढ़ीकरण, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तथा निधि व्यवस्था (फंडिंग) में नैतिक मुद्दे, कॉर्पोरेट शासन व्यवस्था”.

सवाल का मूलतत्त्व

बहुत ही सरल सवाल है. प्रशासनिक पद पर बैठकर एक लोकसेवक के रूप में आपमें ऐसे क्या गुण होने चाहियें जिनसे आपके नैतिकता का स्तर हमेशा ऊँचा रहे? जैसे आपको ईमानदार, निष्पक्ष, तटस्थ होना चाहिए. अन्य भी इस प्रकार के गुणों की चर्चा करें.

आपके पास भी यदि कोई अन्य points हैं तो अपने नोट्स का फोटो लेकर कमेंट में अपलोड करें.

उत्तर :-

प्रशासन में नैतिकता की माँग अनेक स्तरों पर अनेक कारणों से की जा रही है. अतः प्रशासनिक नैतिकता के मापदंड निश्चित करने के लिए व्यापक और कारगर प्रयासों की आवश्यकता है. इस सम्बन्ध में निम्नलिखित कदम उठाये जा सकते हैं –

1. विश्वास और व्यावसायिक कार्यों में उत्तम सेवा का लक्ष्य – प्रशासनिक नैतिकता के लिए सरकार को ऐसे नैतिक मानदंड स्थापित करने चाहिए, जिससे कार्यों के निष्पादन में गतिशीलता एवं निष्पक्षता आये. सेवाभाव को प्राथमिकता देना सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए जिससे सरकार के संगठन में संलग्न पदाधिकारियों में अहंकार का जन्म न हो.

2. स्वार्थ की संकल्पना – इसकी सदा आशा की जाती है कि लोक सेवक अपने निर्णय बिना किसी पक्षपात या पूर्वाग्रह के ले.

3. तार्किकता व वस्तुनिष्ठता की अवधारणा – मामला चाहे पुरस्कार प्रदान करने का हो या दंड देने का, पदाधिकारी योग्यता के आधार पर अपने विकल्पों के चुनाव के लिए उत्तरदायी है.

4. व्यावहारिक सत्यनिष्ठा – लोक सेवकों को किसी वित्तीय या अन्य किसी अनुग्रह से कभी प्रभावित नहीं होना चाहिए.

5. वित्तीय जवाबदेही – जन पदाधिकारी अपने निर्णयों व कार्यों के लिए जनता के समक्ष उत्तरदायी होना चाहिए तथा अपने कार्यालय के लिए जो कोई भी संवीक्षा उचित हो, स्वयं प्रस्तुत करना चाहिए.

6. ईमानदारी व खुलापन – सार्वजनिक निर्णय एक खुले व ईमानदार तरीके से लिए जाने चाहिए. ये मानक संक्रामक हैं तथा पूरी व्यवस्था के साथ-साथ पूरे समाज में भी फैलने चाहिए.

7. निष्पक्षता – सरकारी कर्चारियों से सर्वप्रथम निष्पक्षता तथा सरकारी कामकाज में सक्रियता की आशा की जाती है. भ्रष्टाचार और पक्षपात से बचने के लिए सरकारी कर्मचारी का समग्र रूप निष्पक्ष होना जरुरी है. उन्हें कानूनों, विनियमों और नियमों में निर्धारित कार्यक्रम तथा नीतियाँ अति-सावधानी के साथ कार्यान्वित करनी चाहिए.

8. राजनैतिक तटस्थता -राजनैतिक तटस्थता प्रजातांत्रिक ढाँचे में प्रशासन की दक्षता और ईमानदारी के लिए सरकारी सेवा का एक आवश्यक अंग है. इसका अर्थ यह है कि सरकारी कर्मचारीयों को सोच-विचार के निष्पक्ष ढंग से, स्वतंत्र और स्पष्ट परमर्श देते रहना चाहिए.


सामान्य अध्ययन पेपर – 4

“भावात्मक प्रज्ञता” (Emotional Intelligence) क्या होती है और यह लोगों में किस प्रकार विकसित की जा सकती है? किसी व्यक्ति विशेष को नैतिक निर्णय लेने में यह कैसे सहायक होती है?  (250 words) 

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 4 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“भावनात्मक समझ : अवधारणाएँ तथा प्रशासन और शासन व्यवस्था में उनके उपयोग और प्रयोग”.

सवाल का मूलतत्त्व

उत्तर में भावात्मक प्रज्ञता की परिभाषा रहनी चाहिए. क्या भावात्मक प्रज्ञता जन्मजात है या यह भाव समाज के बीच रहकर प्राप्त अनुभवों से हमारे अन्दर विकसित की जा सकती है? उत्तर लिखने के पहले ये सोचकर रखें कि नैतिक निर्णय क्या होते हैं? नैतिक निर्णय क्या दूसरों के भावनाओं का ख़याल रखकर निर्णय लेना है या तटस्थ मात्र रहकर निर्णय लेना नैतिक निर्णय है?

उत्तर :-

भावात्मक प्रज्ञता या भावात्मक बुद्धिमत्ता व्यक्ति की वह क्षमता है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी व दूसरों की भावनाओं को समझ व नियंत्रित कर सकता है. इसके द्वारा व्यक्ति के गुणों को पहचान कर पाना व परिस्थितियों को समझना आसान हो जाता है. इसके द्वारा व्यक्ति अपने आचरण, बातचीत करने के ढंग और सम्बन्धों को मजबूत करने में श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है. किसी व्यक्ति को उसके स्वयं के तथा अपने कार्यक्षेत्र के वातावरण के बीच तालमेल बढ़ाने में भावात्मक बुद्धिमत्ता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है.

भावात्मक बुद्धिमत्ता या प्रज्ञता का विकास केवल अनुभव और व्यावहारिक ज्ञान से ही होता है. इसके लिए परिस्थतियों को समझना और उनका विश्लेषण करना विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की प्रतिक्रियाओं को समझना, किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से पहले सभी सम्बंधित तथ्यों की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेना आदि आवश्यक है. भावात्मक प्रज्ञता के विकास के लिए व्यक्ति द्वारा आत्म संयम, अपनी भावनाओं पर नियंत्रण और आत्म-विश्लेषण भी सहायक होता है. यदि व्यक्ति अपने कार्य, अपने राष्ट्र और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का अनुभव करता है, अपने कार्यों से दूसरों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर सचेत रहता है तो उसके व्यक्तित्व में भावात्मक प्रज्ञता का विकास होता है.

भावात्मक बुद्धिमत्ता व्यक्ति को नैतिक निर्णय दिलवाने में सहायक होती है क्योंकि ऐसे व्यक्ति का उसके कार्यक्षेत्र के वातावरण से सामजंस्य बेहतर होता है. भावात्मक बुद्धिमत्ता से युक्त व्यक्ति अपने निर्णय से अपने आस-पास के वातावरण और अन्य व्यक्तियों पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा, को लेकर विश्लेषण करता है और उसके बाद ही कोई निर्णय लेता है. वह यह भी समझने में सक्षम हो जाता है कि अन्य लोग उससे क्या अपेक्षा करते हैं?

इस प्रकार भावात्मक बुद्धिमत्ता या प्रज्ञता से नैतिक निर्णय लेने वाले व्यक्ति औरों (जो यंत्रवत कार्यालयों या किसी पद में आसीन होकर मात्र खानापूर्ति करते हैं) की तुलना में अधिक सक्षम होते हैं.

“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan

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