सबसे पहले दादा भाई नौरोजी ने धन के निष्कासन (Drain of Wealth) से सम्बंधित अपनी किताब “Poverty and Un-British Rule in India” में अपने विचारों को रखा. भारत का अथाह धन भारत से इंग्लैंड जा रहा था. धन का यह अपार निष्कासन (Drain of Wealth) भारत को अन्दर-ही-अन्दर कमजोर बनाते जा रहा था. आज हम इस आर्टिकल में दादाभाई नौरोजी के इसी सिद्धांत (theory) की चर्चा करने वाले हैं. इस आर्टिकल में हम दादाभाई नौरोजी के धन-निष्कासन के सिद्धांत को लेकर इतिहासकारों के बीच चल रहे दो परस्पर-विरोधी मतों की भी चर्चा करेंगे और Drain of Wealth Theory के दुष्परिणाम (adverse consequences) भी जानेंगे.
गत सितम्बर 4 को दादाभाई नौरोजी की 194वीं वर्षगाँठ मनाई गई. ज्ञातव्य है कि दादाभाई नौरोजी उन पहले नेताओं में से थे जिन्होंने देश की राष्ट्रीय चेतना को आंदोलित किया. उन्हें ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ़ इंडिया भी कहा जाता है. इनका जन्म वर्तमान गुजरात राज्य के नवसारी में 1825 में हुआ था.
दादाभाई नौरोजी के मुख्य योगदान
- वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से उसके प्रारम्भिक दौर से ही जुड़े हुए थे.
- वे ब्रिटिश संसद में चुने गये पहले भारतीय सदस्य थे.
- 1859 में उन्होंने पहला आन्दोलन छेड़ा था जो भारतीय सिविल सेवा में नियुक्ति में से सम्बंधित था.
- क्रमशः 1865 और 1866 नौरोजी ने लन्दन इंडियन सोसाइटी तथा ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना में सहयोग दिया. ये दोनों संगठन राष्ट्रवादी भारतीयों और भारतीयों से सहानुभूति रखने वाले ब्रिटेन के निवासियों को एक मंच पर लाने में सहायक सिद्ध हुए.
- ईस्ट इंडिया एसोसिएशन के सचिव के रूप में भारत आये और धनराशि संग्रह करने के अतिरिक्त राष्ट्रीय जागरूकता को बढ़ावा भी दिया.
- 1885 में नौरोजी बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बन गये.
- गवर्नर लॉर्ड रे (Lord Reay) के द्वारा वे बॉम्बे विधायी परिषद् में नामित हुए.
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में उनका सहयोग रहा. वे इसके तीन बार अध्यक्ष चुने गये (1886, 1893 और 1906).
- 1893 में उन्होंने भारतीय संसदीय समिति के गठन में सहायता की.
- 1895 में वे रॉयल कमीशन ऑन इंडियन एक्स्पेंडीचर के सदस्य बने.
- दादाभाई नौरोजी ने 1901 में छपी अपनी पुस्तक ‘Poverty and Un-British Rule in India’ के माध्यम से धन-निष्कासन सिद्धांत (Drain Theory) को प्रतिपादित किया.
Drain of Wealth Theory
ब्रिटिश शासक भारतीयों को बलपूर्वक बहुत-सी वस्तुएँ यूरोप (ब्रिटेन छोड़कर) को निर्यात के लिए बाध्य करते थे. इस निर्यात से बहुत मात्रा में आमदनी होती थी क्योंकि अधिक से अधिक माल निर्यात होता था. पर इस अतिरिक्त आय (surplus income) से ही अंग्रेज़ व्यापारी ढेर सारा माल खरीदकर उसे इंग्लैंड और दूसरी जगहों में भेज देते थे. इस प्रकार अंग्रेज़ दोनों तरफ से संपत्ति प्राप्त कर रहे थे. इन व्यापारों से भारत को कोई भी धन प्राप्त नहीं होता था. साथ ही साथ भारत से इंग्लैंड जाने वाले अंग्रेज़ भी अपने साथ बहुत सारे धन ले जाते थे. कंपनी के कर्मचारी वेतन, भत्ते, पेंशन आदि के रूप में पर्याप्त धन इकठ्ठा कर इंग्लैंड ले जाते थे. यह धन न केवल सामान के रूप में था, बल्कि धातु (सोना, चाँदी) के रूप में भी पर्याप्त धन इंग्लैंड भेजा गया. इस धन के निष्कासन (Drain of Wealth) को इंग्लैंड एक “अप्रत्यक्ष उपहार” समझकर हर वर्ष भारत से पूरे अधिकार के साथ ग्रहण करता था. भारत से कितना धन इंग्लैंड ले जाया गया, उसका कोई हिसाब नहीं है क्योंकि सरकारी आँकड़ो (ब्रिटिश आँकड़ो) के अनुसार बहुत कम धन-राशि भारत से ले जाया गया. फिर भी इस धन के निष्कासन (Drain of Wealth) के चलते भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा. धन निष्कासन (Drain of Wealth) के प्रमुख स्रोत की पहचान निम्नलिखित रूप से की गई थी :
- ईस्ट इंडिया कम्पनी के कर्मचारियों का वेतन, भत्ते और पेंशन
- बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल एवं बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स का वेतन व भत्ते
- 1858 के बाद कंपनी की सारी देनदारियाँ
- उपहार से मिला हुआ धन
- निजी व्यापार से प्राप्त लाभ
- साम्राज्यवाद के विस्तार हेतु भारतीय सेना का उपयोग किया जाता था, जिससे रक्षा बजट का बोझ भारत पर ही पड़ता था (20वीं सदी की शुरुआत में यह रक्षा बजट 52% तक चला गया था)
- रेल जैसे उद्योग में में धन लगाने वाले पूंजीपतियों को निश्चित लाभ का दिया जाना आदि
इतिहासकारों में दो मत
इस धन-निष्कासन (Drain of Wealth) का भारत पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा. दादाभाई नौरोजी ने इसे “अंग्रेजों द्वारा भारत का रक्त चूसने” की संज्ञा दी. कई राष्ट्रवादी इतिहासकारों और व्यक्तियों ने भी अंग्रेजों की इस नीति की कठोर आलोचना की है. इतिहासकारों का एक वर्ग (साम्राज्यवादी विचारधारा से प्रभावित) इस बात से इनकार करता है कि अंग्रेजों ने भारत का आर्थिक दोहन किया. वे यहाँ तक सोचते हैं कि इंग्लैंड को जो भी धन प्राप्त हुआ वह भारत की सेवा करने के बदले प्राप्त हुआ. उनका विचार था कि भारत में उत्तम प्रशासनिक व्यवस्था, कानून और न्याय की स्थापना के बदले ही इंग्लैंड भारत से धन प्राप्त करता था. किन्तु इस तर्क में दम नहीं है. यह सब जानते हैं कि अंग्रेजों ने भारत का आर्थिक शोषण किया. वे भारत आये ही क्यों थे? क्या उन्होंने दूसरे देशों की सेवा करने का बीड़ा उठाया था? सरकारी आर्थिक नीतियों का बहाना बना कर धन का निष्कासन (Drain of Wealth) कर भारत को गरीब बना दिया गया. यह बात इससे स्पष्ट हो जाती है कि 19वीं-20वीं शताब्दी में भारत में कई अकाल पड़े जिनमें लाखों व्यक्तियों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा. राजस्व का बहुत ही कम भाग अकाल के पीड़ितों पर व्यय किया जाता था. भूखे गांवों में खाना नहीं पहुँचाया जाता था. अंग्रेजों के इस कुकृत्य से साफ़-साफ़ पता चलता है कि वे भारत की सेवा नहीं वरन् भारत का दोहन करने आये थे.
धन-निष्कासन के दुष्परिणाम – Adverse Consequences of Drain of Wealth
- धन के निष्कासन (Drain of Wealth) के परिणामस्वरूप भारत में “पूँजी संचय (capital accumulation)” नहीं हो सका.
- लोगों का जीवन-स्तर लगातार गिरता चला गया. गरीबी बढ़ती गई.
- धन के निष्कासन के चलते जनता पर करों का बोझ बहुत अधिक बढ़ गया.
- इसके साथ साथ कुटीर उद्योगों का नाश हुआ.
- भूमि पर दबाव बढ़ता गया और भूमिहीन कृषि मजदूरों की संख्या बढ़ती चलती गई.
21 Comments on “दादाभाई नौरोजी का धन-निष्कासन का सिद्धांत : Theory of Drain of Wealth”
That time will be really pitiable…
Sir please arrange all notes in
Timeline
Sir please mains test
Series start kijie
sir ye notes mains ke hisab se hai na sir ki pre ke hisab se
For Both…
good work bhai keep it.
It is splendid.
Good content
Good sir. Thanks for providing drain wealth theory in Hindi
Bhut acha h sir mujhe kafi samjh me aaya h
nyc sir…nice notes about dada bhai nauraji dhan ka nishkashan in hindi
thanku sir
Thank you,Sir.
Sir aapke article bahut acche hn par kya me ek suggestion de sakta hn
yes please, will love your suggestion
I loke it
accha likha
Very very nice sir
Very good sir
Thanks a lot for this
Outstanding article
Very nice