मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Modern History Gs Paper 1/Part 05

Sansar LochanGS Paper 1 2020-21

सहायक संधि से आप क्या समझते हैं? सहायक संधि की प्रमुख शर्तें क्या रखी गई थीं? संक्षेप में चर्चा करें.

उत्तर :-

वेलेजली भारतीय राजनीति को अच्छी तरह परख चुका था. वह समझता था कि कॉर्नवालिस और शोर की अहस्तक्षेप की नीति से कंपनी-शासन के हितों की सुरक्षा नहीं हो सकती है. भारतीय राजनीति को कंपनी के अनुकूल बनाने और कंपनी की सीमा में विस्तार करने के लिए हस्तक्षेप और सक्रिय नीति की आवश्यकता है. वेलेजली का मुख्य उद्देश्य था कंपनी को भारत की सर्वोच्च शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करना तथा फ्रांसीसियों से बढ़ते प्रभाव को समूल नष्ट करना. इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उसने कुछ शत्रु-राज्यों से युद्ध किया, अनेक राज्यों को जबरदस्ती सहायक संधि स्वीकार करने को बाध्य किया तथा कुछ राज्यों को कुशासन के आधार पर कंपनी के संरक्षण में ले लिया गया.

वेलेजली एक महान् साम्राज्यवादी था. कंपनी शासन के विस्तार के लिए उसने जो सबसे सरल और प्रभावशाली अस्त्र व्यवहार में लाया, वह सहायक संधि के नाम से जाना जाता है. इस प्रकार की संधि की व्यवस्था भारत में सर्वप्रथम फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले ने की थी. आवश्यकतानुसार वह भारतीय नरेशों को सैनिक सहायता देता तथा बदले में उनसे घन प्राप्त करता. बाद में क्लाईव एवं कॉर्नवालिस ने भी इसका सहारा लिया, परंतु इस व्यवस्था को सुनिश्चित एवं व्यापक स्वरूप प्रदान करने का श्रेय वेलेजली को ही है.

सहायक संधि की प्रमुख शर्तें निम्नलिखित थीं—

  1. सहायक संधि स्वीकार करनेवाला देशी राज्य अपनी विदेश-नीति को कंपनी के सूपुर्द कर देगा. वह बिना कंपंनी की अनुमति के किसी अन्य राज्य से युद्ध, संधि या मैत्री नहीं कर सकेगा .
  2. देशी राज्य कंपनी की स्वीकृति प्राप्त किए. बिना अँगरेजों के अतिरिक्त किसी अन्य यूरोपीय या अँगरेजों के शत्रु-राज्य के व्यक्ति को अपने दरबार में आश्रय, शरण या नौकरी नहीं देंगे.
  3. संधि स्वीकार करनेवाले देशी राज्यों की सुरक्षा के लिए कंपनी उन राज्यों में एक अँगरेजी सेना रखेगी, जिसका खर्च उस राज्य को ही वहन करना होगा. सेना के खर्च के लिए नकद वार्षिक धनराशि या राज्य का कुछ इलाका कंपनी को सुपुर्द करना होगा.
  4. देशी रियासतें अपने दरबार में एक अंगरेज़ रेजीडेंट रखेंगी तथा रेजीडेंट के परामर्श के अनुसार ही रियासत का शासन-प्रबंध करेंगी .
  5. कंपनी उपर्युक्त शर्तों के बदले सहायक संधि स्वीकार करनेवाले राज्य की बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा की गारंटी लेती थी तथा देशी शासकों को आश्वासन देती थी कि वह उन राज्यों के आंतरिक शासन में हस्तक्षेप नहीं करेगी. इस प्रकार, सहायक संधि द्वारा कंपनी का शासन, उसकी विदेश नीति पर कंपनी का सीधा नियंत्रण स्थापित हो गया. यह वेलेजली की साम्राज्यवादी पिपासा को शांत करने का अचूक अस्त्र बन गया. बिना किसी विशेष परिश्रम और जोखिम के वेलेजली ने इस संधि द्वारा अनेक राज्यों को कंपनी का हितैषी बना डाला.

“सहायक संधि कम्पनी के लिए अत्यंत लाभप्रद सिद्ध हुई.” इस कथन की पुष्टि करें.

उत्तर :-

सहायक संधि ने भारत में अँगरेजी राज्य के विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया. कंपनी को इस संधि से अनेक लाभ हुए. संधि ने कंपनी के हितों की रक्षा की, परंतु देशी राज्यों को दुर्बल कर उन्हें बरबादी के कगार तक पहुँचा दिया. सहायक संधि से कंपनी को निम्नलिखित लाभ हुए—

  1. सहायक संधि का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि इसके द्वारा सभी देशी राज्यों को निरस्त्र एवं एक-दूसरे से पृथक कर दिया गया. उनकी विदेश-नीति कंपनी के अधीन हो गई. फलतः, वे अगरेजों के विरुद्ध संघ या गुट बनाने से वंचित हो गए . उनकी कमजोरी का लाभ उठाकर कंपनी ने उन्हें एक-एक कर अपने प्रभाव में ले लिया.
  2. देशी राज्यों के व्यय पर देशी राज्यों में एक विशाल सेना का संगठन किया गया. सिद्धांततः, यह सेना देशी राज्यों की सुरक्षा के लिए तैयार की गई थी, परंतु व्यवहार में इसका उपयोग कंपनी ने अपने शत्रुओं और देशी राज्यों को नष्ट करने में ही किया. कंपनी को सेना के संगठन पर खर्च नहीं करना पड़ा. देशी राज्यों के खर्चे पर ही अँगरेजों की विश्वासपात्र सेना तैयार हो गई. देशी राज्यों में सेना रखने की व्यवस्था का एक लाभदायक परिणाम यह भी निकला कि कंपनी की सैनिक सीमाएँ, राजनीतिक सीमाओं से आगे बढ़ गई.
  3. सहायक संधि के द्वारा वेलेजली ने भारत में फ्रांसीसी प्रभाव को बढ़ने से रोक दिया. जब देशी शासकों पर यह रोक लगा दी गई कि वे अंगरेजों के अतिरिक्त अन्य किसी यूरोपीय को अपने यहाँ नौकरी नहीं देंगे तब इसका सबसे बुरा प्रभाव फ्रांसीसियों पर ही पड़ा. धीरे-धीरे फ्रांसीसियों को भारतीय राजनीति से संन्यास लेना पड़ा.
  4. सहायक संधि के द्वारा कंपनी को रेजीडेंटों के माध्यम से देशी रियासतों के प्रशासन पर अपना प्रभाव स्थापित करने में भी मदद मिली. इसी प्रकार, देशी राज्यों के आपसी विवादों में मध्यस्थता कर उन्हें अपने अनुकूल बनाने का अवसर भी कंपनी को प्राप्त हुआ.
  5. सहायक संधि की एक बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसके द्वारा भारत में कम्पनी के विरुद्ध बढ़ते विद्वेष एवं शत्रुता की भावना को नियंत्रित करने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई. देशी राज्य कम्पनी का संरक्षण स्वीकार कर संतुष्ट हो गये. उन्होंने विस्तारवादी योजनाएँ एवं युद्ध त्याग दिए तथा राज्य में शान्ति-सुव्यवस्था के कार्य तक ही अपने को सीमित रखा. स्वयं वेलेजली ने इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कहा था, “इस व्यवस्था से अंग्रेज़-सरकार भारतीयों की महत्त्वाकांक्षी और हिंसा की उस भावना को अधिकार में रख सकी, जो एशिया की प्रत्येक सरकार की विशेषता थी और इससे वह भारत में शान्ति स्थापित रखने में समर्थ हो सकी.” इस प्रकार सहायक संधि कम्पनी के लिए अत्यंत लाभप्रद सिद्ध हुई.

“सहायक संधि जहाँ कम्पनी के लिए वारदान सिद्ध हुई, वहीं भारतीय रियासतों पर इसका अत्यंत ही बुरा प्रभाव पड़ा.” इस कथन की पुष्टि करें.

उत्तर :-

यह सच है कि सहायक संधि जहाँ कम्पनी के लिए एक वरदान सिद्ध हुई, वहीं भारतीय रियासतों पर इसका अत्यंत ही बुरा प्रभाव पड़ा. इसने देशी राज्यों की स्वतंत्रता समाप्त कर दी तथा उन्‍हें पूर्णतः कंपनी पर आश्रित रहने को बाध्य कर दिया.

  • देशी रियासतें निरस्त्रीकरण एवं विदेश-नीति पर कंपनी की सर्वोच्चता स्वीकार कर अपनी स्वतंत्रता गँवा बैठीं. अब वे किसी भी राज्य से कंपनी कीं सहमति के बिना युद्ध, मैत्री या संधि नहीं कर सकती थीं. इस प्रकार, देशी रियासतों के शासक नाममात्र के शासक रह गए, उनकी सार्वभौम शक्ति समाप्त हो गई.
  • राज्य के आंतरिक मामलों में देशी नरेशों की स्वतंत्रता समाप्त हो गई. उन्हें रेजिडेंट के इशारों पर ही शासन चलाने को बाध्य होना पड़ा. फलतः, देशी शासकों ने धीरे-धीरे शासन का भी भार रेजिडेंटों को ही सौंप दिया एवं प्रशासनिक दायित्वों से अपने को मुक्त कर लिया.
  • सहायक संधि का कुप्रभाव देशी राज्यों की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा. सहायक सेना का बोझ उठाने के कारण इनकी आर्थिक दशा बिगड़ गई. इतना ही नहीं, इस सेना का व्यय लगातार बढ़ाया जाता था जिसे देने में देशी राज्य असमर्थ रहते थे. अतः, कंपनी नकद राशि के बदले उन राज्यों का धनी प्रदेश हथिया लेती थी. इससे देशी रियासतों के प्रभाव में कमी आती गई.
  • आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा की गारंटी-प्राप्त देशी राज्य कंपनी के समर्थक और सहायक बन गए. उनकी राष्ट्रीयता एवं आत्मगौरव की भावना समाप्त हो गई. उनका सारा समय भोग-विलास में व्यतीत होने लगा तथा प्रजा पर अत्याचार बढ़ गए. राज्यों की सेनाएँ भंग कर दी गई जिसके कारण बर्खास्त सैनिक असामाजिक और आपराधिक गतिविधियों में भाग लेकर चारों तरफ अव्यवस्था एवं अशांति में वृद्धि करने लगे. इस प्रकार, सहायक संधि से जहाँ ब्रिटिश हितों की सुरक्षा हुई वहीं देशी राज्यों और उसकी प्रजा को इसके दुष्परिणामों को भुगतना पड़ा.
Author
मेरा नाम डॉ. सजीव लोचन है. मैंने सिविल सेवा परीक्षा, 1976 में सफलता हासिल की थी. 2011 में झारखंड राज्य से मैं सेवा-निवृत्त हुआ. फिर मुझे इस ब्लॉग से जुड़ने का सौभाग्य मिला. चूँकि मेरा विषय इतिहास रहा है और इसी विषय से मैंने Ph.D. भी की है तो आप लोगों को इतिहास के शोर्ट नोट्स जो सिविल सेवा में काम आ सकें, मैं उपलब्ध करवाता हूँ. मैं भली-भाँति परिचित हूँ कि इतिहास को लेकर छात्रों की कमजोर कड़ी क्या होती है.
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