[Sansar Editorial] अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ विषयक मतभेद

Sansar LochanSansar Editorial 2019, Times of India4 Comments

अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन के विवाद निष्पादन तंत्र की अवेहलना करते हुए एकपक्षीय मार्ग पर चलने का निर्णय किया है. भारत और अमरीका के बीच हाल में हो रहे व्यापार युद्ध को देखकर तो यही लगता है कि अमेरिका अपनी व्यापार नीतियों के लिए भारत को गलत तरीके से लक्षित कर रहा है. भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक संबंध कुछ ठीक नहीं चल रहे क्योंकि अभी तक तो अमेरिका भारत के निर्यात के विरुद्ध एकतरफा कार्रवाई करते हुए दिखाई दे रहा है. यह एकतरफा कार्रवाई 2018 में शुरू हुई थी, इसके बाद भारत ने अपने अमेरिका से आयातित 28 उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने की घोषणा कर दी.

us-india-china-tariff-dispute

यह धीरे-धीरे अब स्पष्ट हो रहा है कि चीन के बाद भारत ट्रम्प प्रशासन के निशाने पर आ गया है. अमेरिकी सचिव ने अपने हालिया बयान में कहा कि “संयुक्त राज्य अमेरिका यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि हम बाजार में अपना अधिक से अधिक पहुंच बनाना चाहते हैं और हमारे जिन देशों के साथ भी आर्थिक संबंध हैं, उनके साथ हो रहे व्यापार बाधाओं को हम दूर करना चाहते हैं।” भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत को “टैरिफ किंग” कह दें, लेकिन आँकड़े यही बताते हैं कि भारत सरकार ने कर आयात में “अधिकतम आत्म-संयम” का प्रयोग किया है.

विश्व व्यापार संगठन समझौते के अंतर्गत भारत को अधिकतम 48.5% शुल्क लगाने की औसत अनुमति दी गई है. परन्तु जो शुल्क वास्तव में लगाया हुआ है वह बहुत कम है (13.8%) जैसा कि विश्व व्यापार संगठन के आँकड़े ही बताते हैं. यदि व्यापार-वेटेज को आधार माना जाए तो यह शुल्क और भी कम अर्थात् 7.5% है.

इसके विरुद्ध चीन को अधिकतम 10% का शुल्क लगाने की अनुमति है और वह लगभग उतना ही अर्थात् 9.8% शुल्क लगा रहा है. इसी प्रकार, दक्षिण कोरिया को अधिकतम 16.5% शुल्क लगाना है और वह 13.7% शुल्क लगा रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि  अमेरिका के द्वारा लगाया गया वास्तविक शुल्क औसतन 3.4% है जोकि उतना ही है जितना लगाने की उसे अनुमति मिली हुई है.

पृष्ठभूमि

यू.एस. ने भारत की व्यापार और अन्य संबंधित आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाए हैं. अमेरिकी एजेंसियों, जैसे –USTR और संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आयोग (USITC) ने भारत की व्यापार नीतियों की “जांच” की है, और इस निष्कर्ष पर पहुँची हैं कि भारत को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना चाहिए जिससे अमेरिकी व्यवसायों को लाभ पहुँचे. यह जाँच विशेषकर 2013 और 2015 के बीच किये गये भारत द्वारा व्यापार, निवेश और औद्योगिक नीतियों पर आधारित है.

यह जाँच अमेरिकी हाउस कमेटी ऑन वेस एंड मीन्स और यूएस सीनेट कमेटी ऑन फाइनेंस के अनुरोध पर “टैरिफ अधिनियम 1930 के तहत की गई थी. इस जाँच में भारत पर आरोप लगाया गया कि भारतीय औद्योगिक नीतियाँ अपने घरेलू उद्योगों को सहारा देने के लिए अमेरिकी आयात और निवेश के विरुद्ध भेदभाव करती हैं. इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था और अमेरिकी नौकरियों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है.

भारत को विश्व व्यापार संगठन के नियमों और विनियमों का पालन करना चाहिए, न कि अमेरिका के

  • विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद से भारत की नीतियां ज्यादातर अपनी प्रतिबद्धताओं के अनुरूप रही हैं और जब-जब नीतियाँ अनुरूप नहीं रही हैं, तब-तब अन्य डब्ल्यूटीओ सदस्यों ने संगठन के विवाद निष्पादन निकाय से संपर्क किया है ताकि भारत को रास्ते पर लाया जा सके.
  • अमेरिका भारत के व्यापार और निवेश नीतियों को चुनौती देने के लिए डब्ल्यूटीओ से संपर्क नहीं कर रहा है. इससे तो यही प्रतीत होता है कि भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार WTO के नियमों की अवहेलना कर रहा है.
  • अमेरिका के अनुसार, भारत के उच्च टैरिफों ने उसको परेशान कर दिया है. पर देखा जाए तो जिन टैरिफ पर अमेरिका आपत्ति जता रहा है, उन टैरिफ को उरुग्वे दौर की बातचीत में संगठन के सभी सदस्यों के परामर्श से सहमति प्रदान की गई थी.
  • इसके अलावा हाल के दिनों में भारत ने कई कृषि और औद्योगिक उत्पादों पर शुल्क घटा दिया है.
  • इसके ठीक विपरीत यू.एस. अपनी उच्च-स्तरीय कृषि सब्सिडी का हमेशा बचाव करता दिखाई देता है. उसके द्वारा दी जाने वाली घरेलू कृषि सब्सिडी इतनी अधिक है जिससे अन्य देश उसके घरेलू बाजार तक पहुंच नहीं बना सकते हैं.
  • इस प्रकार, अमेरिका को अपनी कृषि की रक्षा के लिए टैरिफ की आवश्यकता नहीं है; इसके स्थान पर वह सब्सिडी का उपयोग करता है.
  • डब्ल्यूटीओ ने भारत को यह भी बताया कि अमेरिका तंबाकू (350%), मूंगफली (164%) और कुछ डेयरी उत्पादों (118%) पर बहुत अधिक टैरिफ का उपयोग करता है.

आगे की राह

भारत-यू.एस. व्यापार के बीच इस मनमुटाव की उपज मात्र अमेरिकी व्यवसायों की वह दृढ़ इच्छा है जो भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना अधिक से अधिक प्रभाव छोड़ना चाह रही है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अमेरिकी प्रशासन वैध साधनों को दरकिनार करता हुआ दिखाई दे रहा है.

यदि दो देश अच्छे मित्र हैं तो सहमति-असहमति का दौर तो आएगा ही

वास्तव में, इस मनमुटाव की जड़ में यह बात है कि नियमों की अवहेलना करते हुए अमेरिका भारत की नीतियों को निशाना बना रहा है. ऐसी परिस्थिति में भारत सरकार को दो मोर्चे पर ध्यान केन्द्रित करना होगा –

  1. अपने सबसे बड़े व्यापार-साझेदार के साथ कारोबार चालू रखना.
  2. विश्व के अन्य देशों के साथ सक्रिय रूप से मिलकर अमेरिका पर यह दबाव डाले कि वह नियमों पर आधारित व्यापार प्रणाली की आवश्यकताओं को समझे.

Real latest editorials of >

Sansar Editorial

Print Friendly, PDF & Email
Read them too :
[related_posts_by_tax]

4 Comments on “[Sansar Editorial] अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ विषयक मतभेद”

  1. sir aap jo bhi notes banate hai unki eak book banani chahiye taki pdf book download kareke article ko read kiya ja sake sabhi ko eak sath eak book me.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.