[Sansar Editorial] दक्षिण एशिया और सतत विकास लक्ष्य – व्यापक विश्लेषण

Sansar LochanSansar Editorial 2019, The Hindu

Original Article Link : The Hindu

दक्षिणी एशिया के विषय में

विदित हो कि दक्षिणी एशिया में पूरे विश्व के क्षेत्रफल का लगभग 3.5% स्थित है. पर जनसंख्या की बात कहें तो विश्व की कुल जनसंख्या का एक चौथाई भाग यहीं निवास करता है. इसलिए हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि दक्षिणी एशिया की भागीदारी सकल अंतर्राष्ट्रीय विकास हेतु महत्त्वपूर्ण है. यह पूरा क्षेत्र अंतर-क्षेत्रीय व्यापार पर आधारित है. आँकड़े कहते हैं कि इस क्षेत्र में होने वाले कुल व्यापार का 5% हिस्सा अंतर-क्षेत्रीय व्यापार पर ही निर्भर है.

यहाँ का प्रति व्यक्ति औसत सकल घरेलू उत्पाद वैश्विक औसत का लगभग 9.64% है. दुःख की बात यह है कि दक्षिणी एशिया में विश्व के 30% से अधिक निर्धन व्यक्ति निवास करते हैं. ऊपर से यह क्षेत्र सदैव आर्थिक और पर्यावरण से सम्बंधित चुनौतियों का वर्षों से सामना करता आया है.

सतत विकास लक्ष्य

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सतत विकास लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की एक सूची है जिसे 2015 में तैयार किया गया था. इसमें वर्णित 17 लक्ष्यों को 2030 तक सभी सदस्य देशों द्वारा पूरा किया जाना है. ये लक्ष्य हैं –

  1. गरीबी के सभी रूपों की पूरे विश्व से समाप्ति
  2. भूख की समाप्ति,खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को प्रोत्साहित करना
  3. सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को प्रोत्साहित करना
  4. समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना
  5. लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना
  6. सभी के लिए स्वच्छता और पानी के सतत प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना
  7. सस्ती,विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना.
  8. सभी के लिए निरंतर समावेशी और सतत आर्थिक विकास,पूर्ण और उत्पादक रोजगार, और बेहतर कार्य कोप्रोत्साहित करना
  9. लचीले बुनियादी ढांचे,समावेशी और सतत औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करना
  10. देशों के बीच और भीतर असमानता को कम करना
  11. सुरक्षित,लचीले और टिकाऊ शहर और मानव बस्तियों का निर्माण
  12. स्थायी खपत और उत्पादन पैटर्न को सुनिश्चित करना
  13. जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करना
  14. स्थायी सतत विकास के लिए महासागरों,समुद्र और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग
  15. सतत उपयोग को प्रोत्साहित करने वाले स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों,सुरक्षित जंगलों, भूमि क्षरण और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास करना
  16. सतत विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समितियों को प्रोत्साहित करने के साथ ही सभी स्तरों पर इन्हें प्रभावी, जवाबदेही बनना ताकि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो सके
  17. सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्ति कार्यान्वयन के साधनों को दृढ़ बनाना.

सतत विकास लक्ष्य के संदर्भ में दक्षिणी एशिया का बुरा प्रदर्शन

सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के विषय में भारत का प्रदर्शन दक्षिणी एशिया के अन्य देशों से भी बुरा है. विदित हो कि भारत में इस क्षेत्र की सबसे बड़ी और विविधतापूर्ण अर्थव्यवस्था है और यहाँ आय-वृद्धि की दर भी तेज है. परन्तु भारत के प्रदर्शन को देखकर यह कहा जा सकता है कि सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति और आर्थिक समृद्धि में कोई कोई प्रयत्क्ष सम्बन्ध नहीं होता है. यह तथ्य इससे भी स्पष्ट होता है कि चारों ओर स्थल से घिरे और विकास के निम्न-स्तर वाले भूटान और नेपाल जैसे देशों ने भी इस मामले में अच्छी रैंक और अत्यधिक ऊँचे अंक प्राप्त किये हैं.

चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि किसी भी लक्ष्य में दक्षिण एशियाई देशों की प्रगति अभी तक पटरी पर नहीं आ सकी है. मात्र श्रीलंका ने लक्ष्य 6 और लक्ष्य 8 की दिशा में कुछ सराहनीय काम किया है.

कुछ लक्ष्यों को लेकर इस क्षेत्र के देशों का प्रदर्शन सामान्य और आगे बढ़ता हुआ दिखता है, परन्तु इस प्रगति की दर लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपर्याप्त ही मानी जायेगी. अधिकांश देश तो ऐसे हैं जो कई लक्ष्यों पर मानो रुक से गये हों.

यही परिस्थिति रही तो पूरी संभावना है कि 17 सतत विकास लक्ष्यों में से 14 पूरे नहीं किये जा सकेंगे.  12 लक्ष्य तो ऐसे हैं जिनमें प्रगति ऋणात्मक है.

ऐसी स्थिति में क्यों है दक्षिणी एशिया?

  • दक्षिणी-एशिया के देशों के बीच परस्पर आर्थिक सहयोग का सदैव अभाव देखा जाता रहा है. यदि देखा जाए तो BIMSTEC और बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) जैसी पहलों द्वारा यहाँ के देशों को एक-दूसरे से जोड़ने की भरपूर कोशिश की गई है और ये ही पहलें सतत विकास लक्ष्यों के 2030 के एजेंडे को प्राप्त करने के लिए सहयोग, सहकार्यता और अभिसरण (3C) का अवसर प्रदान करती हैं.
  • यह सच है कि अधिकांश दक्षिण एशियाई देशों ने अत्यधिक गरीबी को जड़ से उखाड़ फेकने के लिए बहुत ही अधिक प्रयास किया है, परन्तु ये देश उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी ढाँचे, जीरो हंगर, लिंग समानता, शिक्षा, स्थायी शहरों आदि के सम्बन्ध में लगातार चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इसके अतिरिक्त, दक्षिण एशिया के देश आये दिन प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन का सामना करते रहते हैं.

चुनौती

दक्षिण एशियाई देशों के बीच एक महत्‍वाकांक्षी और परस्‍पर जुड़े हुए वैश्विक विकास एजेंडे के लिए नई वैश्विक भागीदारी की जरूरत है. इसमें विकास के लिए धन की व्‍यवस्‍था करना, आम लोगों को सूचना प्रौद्योगिकी नेटवर्क के माध्यम से जोड़ना, अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार प्रवाह की व्‍यवस्‍था करना और आँकड़ों के संकलन एवं विश्‍लेषण को पुष्‍ट करना सम्मिलित है. जब दुनिया वैश्विक विकास के लिए एकजुट हो रही है, तब भी 2014 में सरकारी विकास सहायता 135.2 अरब अमरीकी डॉलर थी, जो तब तक का सबसे ऊंचा स्‍तर था. अब तक सिर्फ 7 देशों ने अपनी सकल राष्‍ट्रीय आय का 0.7% सरकारी विकास सहायता के रूप में देने का संयुक्‍त राष्‍ट्र का लक्ष्‍य पूरा किया है. वैसे तो दुनिया भर के लोग भौतिक और डिजिटल नेटवर्क के जरिए करीब आए हैं, लेकिन 4 अरब से अधिक लोग इंटरनेट का उपयोग नहीं करते और उनमें से 90% विकासशील देशों में हैं. इंटरनेट के उपयोग में जैंडर भेद सबसे कम विकसित देशों में 29% तक जाता है.

निष्कर्ष

दक्षिणी एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) मृतप्राय हो चुका है और इसका योगदान क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहन देने में नगण्य बन चुका है. यदि इसे पुनः सुदृढ़ कर दिया जाए तो यह SDG को प्राप्त करने हेतु क्षेत्रीय एकीकरण और सहयोग पर एक आम सहमति बनाने में महत्त्वपूर्ण मंच साबित हो सकता है.

सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त कर दक्षिणी एशियाई के देश आर्थिक वृद्धि, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्रों में संतुलन बना सकते हैं. बस इन देशों के बीच इन लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु क्षेत्रीय समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है जिससे शांति एवं समृद्धि की राह पर ये देश आगे बढ़ सकें.

दक्षिणी एशिया के पास समृद्ध संस्कृति व इतिहास, प्रचुर प्राकृतिक संपदा और विपुल मानव संसाधन है. उन्हें अपनी राष्ट्रीय नीतियों को इन लक्ष्यों के अनुसार ढालना होगा. इस क्षेत्र को चाहिए कि वह आर्थिक विकास को वृहद् और सर्व समावेशी बनाए और गरीबों और अमीरों के बीच बढ़ती खाई को पाटने के लिए भरपूर कोशिश करे. हम इस सच्चाई से अवगत हैं कि संस्कृति की कीमत पर प्राप्त किया गए विकास का स्थायी हो पाना असंभव है. जब तक विकास को मानवीय सूरत नहीं दी जायेगी, तब तक यह कभी भी स्थायी नहीं हो सकेगा.

सरकारी योजनाओं को समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक प्रभावी ढंग से पहुंचाकर गरीबी को जड़ से मिटाने के महत्त्वपूर्ण लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है. आँकड़े बताते हैं कि सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में वैश्विक स्तर पर प्रत्येक वर्ष 50 से 70 खरब US डॉलर के खर्च की जरूरत है. विश्व के विकासशील देशों को इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में वार्षिक रूप से 39 खरब अमेरिकी डॉलर का खर्च का वहन करना पड़ेगा. यदि हम अपने देशी की बात कहें तो हमारे देश को सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में आगामी 15 वर्ष तक वार्षिक स्तर पर 565 अरब डॉलर खर्च करने पड़ सकते हैं.

सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में लैंगिक समानता एक महत्त्वपूर्ण कारक है. हम इस सच्चाई से भली-भाँति परिचित हैं कि एक महिला को पढ़ा कर सम्पूर्ण समाज को शिक्षित किया जा सकता है. महिला सशक्तीकरण के लिये महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकार प्रदान करने एवं स्वास्थ्य सुविधाओं तक उनकी पहुंच बढ़ाने जैसी बातों पर ध्यान केंद्रित किये जाने की आवश्यकता है. अच्छी बात यह है कि दक्षिणी एशिया में स्त्रियों का सम्मान किया जाता है और वहाँ की स्त्रियाँ भारतीय स्त्रियों की तुलना में अधिक शिक्षित हैं और व्यवसाय में बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं.

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