कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं समाधान) अधिनियम, 2013 – विशाखा गाइडलाइन

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Tougher law against sexual harassment at work

कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए कानूनी ढाँचा सुदृढ़ करने के निमित्त गृह मंत्री अमीत शाह की अध्यक्षता में गठित मंत्री समूह (GoM) ने अपने सुझावों को अंतिम रूप दे दिया है.

पृष्ठभूमि

यह मंत्री समूह अक्टूबर, 2018 में उस समय गठित हुआ था जब #MeToo आन्दोलन चल रहा था जिसमें कई स्त्रियों ने सोशल मीडिया पर अपने उत्पीड़न की बात बताई थी.

वर्तमान की स्थिति

वर्तमान में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए एक अधिनियम प्रभावी है जिसका नाम है – कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं समाधान) अधिनियम, 2013 (Sexual Harassment of Women and Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act in 2013).

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा अस्तित्व में लाया गया यह अधिनियम सरकारी कार्यालयों, निजी क्षेत्रों, गैर-सरकारी संगठनों और असंगठित क्षेत्रों पर लागू है.

कठोरतर प्रावधानों की आवश्यकता क्यों पड़ी?

  • 2013 के अधिनियम में आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee – ICC) को एक व्यवहार न्यायालय की शक्तियां तो दे दी गई थीं, किन्तु यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि इस समिति के सदस्य कानूनी पृष्ठभूमि के होने चाहिएँ अथवा नहीं. ICC के महत्त्व को देखते हुए यह एक बहुत बड़ी कमी थी.
  • 2013 के अधिनियम में नियोजनकर्ताओं को अपनी-अपनी ICC के गठन का निर्देश गया था और यह प्रावधान किया गया था कि यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनपर 50,000 रु. का आर्थिक दंड लगेगा. परन्तु व्यवहार में यह प्रावधान अपर्याप्त सिद्ध हुआ क्योंकि बहुत सारे नियोजनकर्ता अपने यहाँ ICC गठन करने से कतराते रहे.

प्रस्तावित सुझावों में विशाखा मार्गनिर्देश (Vishakha guidelines) की भूमिका

मंत्रीसमूह ने जो सुझाव दिए हैं वे मोटे तौर पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1997 में दिए गये विशाखा मार्गनिर्देशों पर ही आधारित हैं जिनको दृष्टिगत रखते हुए 2013 का अधिनियम बना था.

ज्ञातव्य है कि विशाखा गाइडलाइन में नियोजनकर्ता को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने का दायित्व दिया गया था.

यौन उत्पीड़न की परिभाषा

2013 के अधिनियम के अनुसार, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किये गये निम्नलिखित अवांछित कृत्य अथवा व्यवहार यौन उत्पीड़न कहलायेंगे –

  1. शारीरिक संपर्क और छेड़छाड़
  2. लैंगिक आधार पर कसी गई फब्तियाँ
  3. अश्लील चित्रों का प्रदर्शन
  4. यौन सम्पर्क के लिए माँग या अनुरोध
  5. कोई भी अन्य ऐसा अवांछित शारीरिक, शाब्दिक अथवा अशाब्दिक आचरण जिसकी प्रकृति यौनाचार से सम्बंधित हो.

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं समाधान) अधिनियम, 2013 के मुख्य प्रावधान

  1. इस अधिनियम में यौन उत्पीड़न से सम्बंधित शिकायत करने, जाँच-पड़ताल करने और कार्रवाई करने की प्रक्रियाएँ वर्णित की गई हैं.
  2. इसके अनुसार प्रत्येक नियोजनकर्ता को अपने वैसे कार्यालय अथवा शाखा में एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) गठित करनी होगी जहाँ 10 से उससे अधिक कर्मी काम करते हों.
  3. इसमें यौन उत्पीड़न के विभिन्न पहलुओं की परिभाषा के साथ-साथ उससे सम्बंधित प्रक्रियाओं का विधान किया गया है.
  4. अधिनियम कहता है कि यदि किसी ऐसी महिला के साथ यौन उत्पीड़न हुआ हो जो कार्यालय में काम नहीं करती हो वरन किसी काम से आई हो तो उसको भी इस अधिनियम के तहत सुरक्षा मिलेगी.
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