Sansar डेली करंट अफेयर्स, 28 March 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 28 March 2020


GS Paper 2 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Welfare schemes for vulnerable sections of the population by the Centre and States and the performance of these schemes; mechanisms, laws, institutions and bodies constituted for the protection and betterment of these vulnerable sections.

Topic : RBI’s COVID-19 Economic Relief Package

संदर्भ

कोरोना वायरस के संकट के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बड़ी राहत दी है.

RBI द्वारा उठाये गये कदम

  • रिज़र्व ऑफ़ इंडिया ने सभी तरह के कर्ज ब्याज में छूट देने की घोषणा की है.
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने कर्ज देने वाले सभी वित्तीय संस्थानों को सावधिक कर्ज की किस्तों की वसूली पर तीन महीने तक रोक की छूट दे दी है.
  • कार्यशील पूंजी पर ब्याज भुगतान को टाले जाने को चूक नहीं माना जाएगा, इससे कर्जदार की रेटिंग (साख इतिहास) पर असर नहीं पड़ेगा.
  • साथ ही बैंकों को EMI पर भी छूट देने की सलाह की है, जिसके बाद बैंक ग्राहकों के लिए जल्द ही ऐलान कर सकते हैं.
  • रेपो रेट में 75 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है और इसे 5.15 से घटाकर 4.45 कर दिया गया है.
  • रिवर्स रेपो रेट में 90 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई है.
  • RBI ने एक वर्ष के लिए नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को पूर्ण प्रतिशत बिंदु से घटाकर 3% कर दिया.

पृष्ठभूमि

सम्पूर्ण विश्व के साथ-साथ भारत में भी कोरोना का कहर जारी है. कोरोना से न केवल मौतें हो रही हैं, बल्कि इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिल रहा है. यही कारण है कि वित्त मंत्री सीतारमण ने हाल ही में 1.70 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान किया, ताकि गरीब, मजदूरों, महिलाओं पर इस कोरोना के असर को थोड़ा कम किया जा सके.

रेपो रेट क्या है?

इसे सरल भाषा में ऐसे समझा जा सकता है. बैंक हमें कर्ज देते हैं और उस कर्ज पर हमें ब्याज देना पड़ता है. ठीक उसी तरह बैंकों को भी अपने दैनिककामकाज के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ जाती है और वे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से कर्ज लेते हैं. इस ऋण पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं.

रेपो रेट से हमें क्या लेना-देना?

जब बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा अर्थात् रेपो रेट कम होगा तो वह भी अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे में समर्थ होंगे और यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाएगा तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा और वे अपने ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा कर देंगे.

रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) क्या है?

यह रेपो रेट से विपरीत होता है. बैंकों के पास जब दैनिक कामकाज के पश्चात् बड़ी राशि बची रह जाती है, तो उस राशि को रिजर्व बैंक में रख देते हैं. इस राशि पर रिज़र्व बैंक उन्हें ब्याज प्रदान करता है. रिजर्व बैंक इस रकम पर जिस दर से ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं.

आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ता है?

जब भी बाज़ारों में बहुत अधिक नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दें. इस तरह बैंकों के कब्जे में बाजार में छोड़ने के लिए कम रकम रह जाएगी.

नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio  or CRR – सीआरआर) क्या है?

बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है, जिसे कैश रिजर्व रेश्यो अथवा नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) कहा जाता है. यह नियम इसलिए बनाए गए हैं, ताकि यदि किसी भी वक्त किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्ताओं को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसा चुकाने से मना न कर सके.

सीआरआर का प्रभाव आम आदमी पर कैसे पड़ता है?

अगर सीआरआर बढ़ता है तो बैंकों को ज्यादा बड़ा हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होगा और उनके पास कर्ज के रूप में देने के लिए कम रकम रह जाएगी. यानी आम आदमी को कर्ज देने के लिए बैंकों के पास पैसा कम होगा.  अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है. लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सीआरआर में बदलाव तभी किया जाता है, जब बाज़ार में नकदी की तरलता पर तुरंत असर न डालना हो, क्योंकि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव की तुलना में सीआरआर में किए गए बदलाव से बाज़ार पर असर ज्यादा समय में पड़ता है.

अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – Repo Rate, SLR, CRR in Hindi


GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Topic : Manipur MLA Shyamkumar disqualified for defection

संदर्भ

मणिपुर विधानसभा स्पीकर खेमचंद सिंह ने राज्य के वन मंत्री एवं भाजपा विधायक टी. श्यामकुमार (T.Shyamkumar)  को अयोग्य करार दे दिया है.

पृष्ठभूमि

  • मणिपुर में 2017 में 60 सीटों पर विधानसभा चुनाव हुआ. कांग्रेस पार्टी 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और बीजेपी 21 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर आई थी. कांग्रेस के नौ विधायक चुनाव के बाद पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए. श्यामकुमार भी उनमें से एक थे, जिन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया गया. इसके बाद अप्रैल 2017 में विधानसभा अध्यक्ष के पास कई अर्जियां दायर करते हुए दलबदल रोधी कानून के तहत श्यामकुमार को अयोग्य ठहराने की मांग की गई. मणिपुर के स्पीकर की तरफ से तय समय से ज्यादा बीत जाने के बाद भी कोई जवाब नहीं आया, तब सुप्रीम कोर्ट ने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर फैसला सुनाया.
  • कांग्रेस ने दल-बदल विरोधी कानून के तहत उनकी अयोग्यता की मांग की थीजिस पर सुनवाई करते हुए पिछली बार शीर्ष अदालत ने मणिपुर विधानसभा के स्पीकर को इस याचिका पर फैसला लेने के लिए चार हफ्ते का समय दिया था. 
  • स्पीकर की तरफ ये फैसला तब लिया गया है जब दस दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर (Manipur) के वन मंत्री एवं भाजपा विधायक टी. श्यामकुमार (Shyamkumar) को मंत्री पद से हटा दिया था.
  • उनके मणिपुर विधान सभा में घुसने पर भी रोक लगा दी थी. दरअसल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद स्पीकर ने इस मामले में 4 सप्ताह के भीतर अयोग्यता पर फैसला नहीं किया था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराज होकर संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया.
  • स्पीकर ने 10वीं अनुसूची का उल्लंघन करार देते हुए यह कार्रवाई की. विदित हो कि 1985 में संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई. यह संविधान में 52वाँ संशोधन था. इसमें विधायकों और सांसदों के पार्टी बदलने पर लगाम लगाई गई. इसमें यह भी बताया गया कि दल-बदल के कारण इनकी सदस्यता भी ख़त्म हो सकती है.

क्या सुप्रीम कोर्ट मंत्री को बर्खास्त कर सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के पास सरकार के किसी कैबिनेट मंत्री को हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेषाधिकार हासिल है. सुप्रीम कोर्ट कैबिनेट मंत्री को बर्खास्त करने के लिए मिली हुई अपनी पूर्ण शक्ति का प्प्र्योग दुर्लभ ही करता है.

क्या है अनुच्छेद 142?

अगर सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगता है कि किसी अन्य संस्था के जरिए कानून और व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए किसी तरह का आदेश देने में देरी हो रही है, तो कोर्ट खुद उस मामले में फैसला ले सकता है. आसान भाषा में समझें तो अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट का ऐसा साधन है, जिसके माध्यम से जनता को प्रभावित करने वाली महत्त्वपूर्ण नीतियों में परिवर्तन कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट इस अनुच्छेद का इस्तेमाल विशेष परिस्थितियों में ही करता है.

संविधान में शामिल किए जाते समय अनुछेद 142 को इसलिए वरीयता दी गई थी क्योंकि सभी का यह मानना था कि इससे देश के वंचित वर्गों और पर्यावरण का संरक्षण करने में सहायता मिलेगी. जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही सर्वोपरि है. सुप्रीम कोर्ट ऐसे आदेश दे सकता है, जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले में न्याय करने के लिये आवश्यक हो.

अयोध्या विवाद के ऐतिहासिक फैसले में हुआ था प्रयोग

सुप्रीम कोर्ट ने इसी अनुच्छेद के तहत अयोध्या की विवादित जमीन रामलला विराजमान को सौंपने और मुसलमानों को मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अलग देने का फैसला सुनाया था. शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद 142 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अलग से 5 एकड़ जमीन अलॉट करने का आदेश दिया था.

भोपाल गैस त्रासदी मामला भी अनुच्छेद 142 से संबंधित

सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी मामले में भी अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया था. कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड मामले को भी अनुच्छेद 142 से संबंधित बताया था. इस मामले में कोर्ट ने यह महसूस किया कि गैस के रिसाव से पीड़ित हजारों लोगों के लिये मौजूदा कानून से अलग निर्णय देना होगा.

संविधान की दसवीं अनुसूची क्या है?

राजनीतिक दल-बदल लम्बे समय से भारतीय राजनीति का एक रोग बना हुआ था और 1967 से ही राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक (anti-defection law) लगाने की बात उठाई जा रही थी. अन्ततोगत्वा आठवीं लोकसभा के चुनावों के बाद 1985 में संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से 52वाँ संशोधन पारित कर राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक लगा दी. इसे संविधान की दसवीं अनुसूची (10th Schedule) में डाला गया.

सदस्यता समाप्त

निम्न परिस्थितियों (conditions) में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी –

  • यदि वह स्वेच्छा से अपने दल से त्यागपत्र दे दे.
  • यदि वह अपने दल या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति की अनुमति के बिना सदन में उसके किसी निर्देश के प्रतिकूल मतदान करे या मतदान में अनुपस्थित रहे. परन्तु यदि 15 दिनों निम्न परिस्थितियों (conditions) में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी – के अन्दर दल उसे इस उल्लंघन के लिए क्षमा कर दे तो उसकी सदस्यता (membership) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

सदस्यता बनी रहेगी

निम्न परिस्थितियों (conditions) में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता बनी रहेगी –

  • यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य (Independent Member) किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाये.
  • यदि कोई मनोनीत सदस्य शपथ लेने के बाद माह की अवधि में किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाये.
  • किसी राजनीतिक दल के विलय (merger) पर सदस्यता समाप्त नहीं होगी, यदि मूल दल में कम-से-कम 2/3 सांसद/विधायक दल छोड़ दें.
  • यदि लोकसभा/विधानसभा का अध्यक्ष (speaker) अपना पद छोड़ देता है तो वह अपनी पुरानी में लौट सकता है, इसको दल-बदल नहीं माना जायेगा.

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • दल-बदल पर उठे किसी भी प्रश्न पर अंतिम निर्णय सदन के अध्यक्ष का होगा और किसी भी न्यायालय को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा. सदन के अध्यक्ष को इस कानून की क्रियान्विति के लिए नियम बनाने का अधिकार होगा.
  • स्पष्ट है कि किसी राजनीतिक दल के विलय की स्थिति को राजनीतिक दल-बदल की सीमा के बाहर रखा गया है. राजनीतिक दल-बदल का कारण राजनीतिक विचारधारा या अन्तःकरण नहीं अपितु सत्ता और पदलोलुपता या अन्य लाभ ही रहे हैं. इस दृष्टि से दल-बदल पर लगाई गई रोक “भारतीय राजनीति को स्वच्छ करने और राजनीति में अनुशासन लाने का एक प्रयत्न” ही कहा जा सकता है. वस्तुतः इस कानून में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दलीय अनुशासन के बीच संतुलित सामंजस्य बैठाया गया है.

इतिहास

दल-बदल निषेध कानून (52nd Amendment) और इस कानून की विविध व्यवस्थाओं को 1991 में सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि “दल-बदल” निषेध कानून वैध है, लेकिन दल-बदल निषेध कानून की यह धारा अवैध है कि “दल-बदल (Anti-Defection)” पर उठे किसी भी प्रश्न पर अंतिम निर्णय सदन के अध्यक्ष का होगा और किसी भी न्यायालय को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा. सर्वोच्च न्यालायाय ने अपने निर्णय में कहा कि सदन का अध्यक्ष इस प्रसंग में एक “न्यायाधिकरण” के रूप में कार्य करता है और उपर्युक्त विषय में सदन के अध्यक्ष के निर्णय पर न्यायालय विचार कर सकता है.

दल-बदल अधिनियम के लाभ

  • इससे किसी सरकार को स्थायित्व मिलता है क्योंकि दल बदलने पर इसमें रोक लगाईं गई है.
  • यह सुनिश्चित करता है कि विधायक अथवा सांसद अपने दल के प्रति निष्ठावान रहें और साथ ही उन नागरिकों के प्रति निष्ठा रखें जिन्होंने उन्हें चुना है.
  • इससे दलीय अनुशासन को बल मिलता है.
  • इसमें राजनीतिक दलों के विलयन का भी प्रावधान है.
  • आशा की जाती है कि इससे राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार घटेगा.
  • यह उन सदस्यों के लिए दंडात्मक प्रावधान करता है जो एक दल से दूसरे दल में चले जाते हैं.

GS Paper 3 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Disaster and disaster management.

Topic : Prime Minister’s National Relief Fund

संदर्भ

भारत के उपराष्ट्रपति और सभापति श्री एम. वेंकैया नायडू ने देश में COVID-19 के प्रकोप से निपटने के लिए एवं सरकार के प्रयासों को सुदृढ़ करने के लिए प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF)  में अपने एक महीने के वेतन के बराबर राशि का योगदान दिया है.

प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष

  • पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिएजनवरी, 1948 में तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अपील पर जनता के अंशदान से प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना की गई थी.
  • प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की धनराशि का इस्तेमाल अब प्रमुखतया बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए किया जाता है. इसके अतिरिक्त, सरकारी/प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की सूची में शामिल अस्पतालों में गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए भी आर्थिक सहायता दी जाती है.
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष को दिए गए सभी अनुदान/योगदान आयकर की धारा 80(जी) के तहत आयकर से छूट प्राप्त है.
  • प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के प्रमुख प्रधानमंत्री होते हैं.
  • प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का संचालन अवैतनिक आधार पर होता है. प्रधान मंत्री के एक संयुक्त सचिव इस कोष के सचिव के रूप में कार्य करते हैं. अवैतनिक आधार पर, निदेशक स्तर के एक अधिकारी उनकी सहायता करते हैं.
  • प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की लेखा परीक्षा सरकार से बाहर एक स्वतंत्र लेखा परीक्षक द्वारा की जाती है. वर्तमान में, सार्क एंड एसोसिएट्स, चार्टर्ड लेखाकार इसके लेखा परीक्षक हैं.
  • आयकर अधिनियम के अंतर्गत प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की लेखा परीक्षा की कोई सांविधिक अवधि नहीं है. आमतौर पर जल्द से जल्द लेखा-परीक्षा पूरी कराई जाने की कोशिश की जाती है. वर्ष 2018-19 तक की लेखा परीक्षा हो चुकी है.
  • प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में केवल व्यक्तियों और संस्थाओं से प्राप्त अंशदानों को ही स्वीकार किया जाता है. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की बैलेंस शीट्स से अथवा बजटीय स्रोतों से प्राप्त अंशदानों को स्वीकार नहीं किया जाता है.

Prelims Vishesh

Petroleum & Explosives Safety Organization :-

  • पेट्रोलियम तथा विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पेसो) का मुख्यालय नागपुर मे है.
  • इसकी स्थापना 9 सितम्बर 1998 में हुई थी.
  • इसका संचालन मुख्य विस्फोटक नियंत्रक के द्वारा किया जाता है और यह विस्फोटक एवं यह पेट्रोलियम क्षेत्रों की सुरक्षा आवश्यकताओं की देखभाल करने के लिए एक नोडल एजेंसी है.
  • इसके पांच मंडल कार्यालय कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, फरीदाबाद और आगरा में है.

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