Sansar डेली करंट अफेयर्स, 14 September 2019

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समस्त छात्रों को या यूँ कहें कि संसार लोचन परिवार को….हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ….जय हिन्द!

सम्पादक

संसार लोचन

Sansar Daily Current Affairs, 14 September 2019


GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Functions and responsibilities of the Union and the States, issues and challenges pertaining to the federal structure, devolution of powers and finances up to local levels and challenges therein.

Topic : Krishna water dispute

संदर्भ

कावेरी नदी के जल के बँटवारे को लेकर कृष्णा जल विवाद पंचाट (Krishna Water Disputes Tribunal) ने 2010 में जो आदेश दिया था, आंध्र प्रदेश ने उसकी समीक्षा करने की प्रार्थना की है जिसका महाराष्ट्र और कर्नाटक विरोध करने जा रहे हैं.

ज्ञातव्य है कि 2010 के आदेश में कृष्णा नदी के जल का बंटवारा इस प्रकार हुआ था –

  1. महाराष्ट्र के लिए 81 TMC
  2. कर्नाटक के लिए 177 TMC
  3. आंध्र प्रदेश के लिए 190 TMC

आंध्र प्रदेश की माँग क्या है?

2010 के पंचाट के आदेश के बाद एक नया राज्य तेलंगाना (2014) अस्तित्व में आ गया. इसलिए आंध्र प्रदेश ने माँग की है कि कृष्णा जल विवाद पंचाट में तेलंगाना को भी एक अलग पक्षकार के रूप में रखा जाए और कृष्णा जल को सभी चार राज्यों के बीच बाँटने की कार्रवाई की जाए.

कर्नाटक और महाराष्ट्र का पक्ष

महाराष्ट्र और कर्नाटक का तर्क है कि तेलंगाना तो आंध्र प्रदेश के विभाजन से बना है, इसलिए आंध्र प्रदेश को पंचाट ने कृष्णा जल का जो अंश दिया था उसी में से तेलंगाना को हिस्सा मिलना चाहिए.

कृष्णा नदी

  1. यह नदी बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली एक बड़ी नदी है.
  2. इसका उद्गम महाराष्ट्र के महाबालेश्वर में है.
  3. बंगाल की खाड़ी में गिरने के पहले महाराष्ट्र के अतिरिक्त कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से होकर गुजरती है.
  4. अपनी सहायक नदियों के साथ कृष्णा नदी एक बहुत विशाल घाटी बनाती है जिसके अन्दर चारों राज्यों के कुल क्षेत्रफल का 33% भूभाग आ जाता है.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : India and its neighbourhood- relations / Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests

Topic : Regional Comprehensive Economic Partnership (RCEP)

संदर्भ

आसियान के दस सदस्य देशों तथा छह मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के सहभागियों की क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership – RCEP) की सातवीं मंत्रिस्तरीय बैठक थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में हो रही है.

RCEP से सम्बंधित कुछ तथ्य

  • RCEP आसियान के दस सदस्य देशों (ब्रुनेई, म्यांमार, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम) तथा आसियान से सम्बद्ध अन्य छ: देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड) के लिए प्रस्तावित है.
  • RCEP के लिए वार्ताएँ कम्बोडिया में नवम्बर 2012 में आयोजित आसियान के शिखर सम्मलेन में औपचारिक रूप आरम्भ की गई थीं.
  • RCEP का लक्ष्य है अधिकांश शुल्कों और गैर-शुल्क अड़चनों को समाप्त कर वस्तु-व्यापार को बढ़ावा देना. अनुमान है कि ऐसा करने से क्षेत्र के उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर गुणवत्ता युक्त उत्पादनों के अधिक विकल्प प्राप्त हो सकेंगे. इसका एक उद्देश्य निवेश से सम्बंधित मानदंडों को उदार बनाना तथा सेवा व्यापार की बाधाओं को दूर करना भी है.
  • हस्ताक्षरित हो जाने पर RCEP विश्व का सबसे बड़ा निःशुल्क व्यापार हो जायेगा. विदित हो कि इस सम्बद्ध 16 देशों की GDP $50 trillion की है और इन देशों में साढ़े तीन अरब लोग निवास करते हैं.
  • भारत की GDP-PPP $9.5 trillion की है और जनसंख्या एक अरब तीस लाख है. दूसरी ओर चीन की GDP-PPP $23.2 trillion की है और जनसंख्या एक अरब 40 लाख है.

RCEP को लेकर भारत की चिंताएँ

यद्यपि RCEP पर सहमति देने के लिए भारत पर बहुत दबाव पड़ रहा है, परन्तु अभी तक भारत इससे बच रहा है. इसके कारण निम्नलिखित हैं –

  • ASEAN आयात शुल्कों को समाप्त करना चाह रहा है जो भारत के लिए लाभप्रद नहीं होगा क्योंकि इसका एक सीधा अर्थ होगा की चीनी माल बिना शुल्क के भारत में आने लगेंगे. यहाँ के उद्योग को डर है कि ऐसा करने से घरेलू बाजार में गिरावट आएगी क्योंकि चीनी माल अधिक सस्ते पड़ेंगे.
  • भारत का यह भी जोर रहा है कि RCEP समझौते में सेवाओं, जैसे – पेशेवरों को आने-जाने के लिए दी जाने वाली कामकाजी VISA, को भी उचित स्थान दिया जाए. अभी तक सेवाओं से सम्बंधित प्रस्ताव निराशाजनक ही रहे हैं क्योंकि ऐसी स्थिति में कोई भी सदस्य देश सार्थक योगदान करने के लिए तैयार नहीं होगा.

RCEP का वर्तमान स्वरूप भारत के लिए हानिकारक क्यों?

  1. भारत में चालू खाता घाटा (current account deficit – CAD) GDP के 8% तक पहुँच गया है. इस स्थिति में यदि RCEP का समझौता अपने वर्तमान स्वरूप में रह जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि भारत को अपने राजस्व के अच्छे-खासे भाग से हाथ धोना पड़ेगा.
  2. वर्तमान RCEP चीनी माल की भारत में पहुँच बढ़ा देगा जिस कारण देश के निर्माण प्रक्षेत्र को आघात पहुंचेगा. स्मरणीय है कि 2017-18 में चीन के साथ व्यवसाय में भारत को 63 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा झेलना पड़ा था.
  3. आसियान के साथ भी भारत की यही दशा है अर्थात् हम जितना निर्यात करते हैं, उससे अधिक आयात करते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि भारत की अर्थव्यवस्था सेवा प्रधान है.
  4. RCEP से सम्बद्ध देश कई उत्पादों पर सीमा पार शुल्क घटाने की माँग करते हैं और भारतीय बाजार में ज्यादा पहुँच बनाना चाहते हैं जिसके लिए भारत तैयार नहीं है.
  5. भारत अन्य जगहों पर भी मोर्चा हारता हुआ दिख रहा है. ये हैं – सिंगापुर का वित्तीय एवं तकनीकी हब, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के कृषि और दूध उत्पाद, दक्षिण-पूर्व एशिया देशों के प्लांटेशन और चीन और अमेरिका के साथ दवा-व्यापार.
  6. विश्व व्यापार संगठन में भारत डिजिटल व्यापार पर चर्चा नहीं होने देता. पर उसका पक्ष कमजोर है क्योंकि ई-कॉमर्स चर्चा का एक अंग है
  7. यदि निवेशों का आना-जाना मुक्त कर दिया जाया तो इसका लाभ बहुत कम भारतीय उठा पायेंगे और दूसरी ओर अमेरिका, सिंगापुर, जापान और चीन के निवेशकों को बहुत लाभ पहुँच सकता है.
  8. भारत की चिंता है कि RCEP ऐसे समझौतों का रास्ता खोल सकता है जिनसे TRIPS समझौते के संदर्भ में भारत को हानि पहुँच सकती है. इसका फल यह होगा कि कृषि बीज और दवा निर्माण के मामले में विश्व के बड़े-बड़े प्रतिष्ठान बाजी मार जाएँगे.

इसमें चीन की इतनी रूचि क्यों हैं?

चीन वस्तु-निर्यात के मामले में विश्व का अग्रणी देश है. इस बात का लाभ उठाते हुए वह चुपचाप अधिकांश व्यापारिक वस्तुओं पर से शुल्क हटाने की चेष्टा में लगा रहता है और इसके लिए कई देशों पर दबाव बनाता रहता है. उसका बस चले तो व्यापार की 92% वस्तुओं पर से शुल्क समाप्त ही हो जाए. इसलिए चीन RCEP वार्ता-प्रक्रिया में तेजी लाने से और शीघ्र से शीघ्र समझौते को साकार रूप देने में लगा हुआ है.

RCEP के माध्यम से मुक्त एशिया-प्रशांत व्यापार क्षेत्र (Free Trade Area of the Asia-Pacific – FTAAP) स्थापित करने का लक्ष्य है जिसमें 21 देश होंगे. इन देशों में एशिया-प्रशांत देशों के अतिरिक्त अमेरिका और चीन भी हैं, किन्तु भारत नहीं है.

ज्ञातव्य है कि FTAAP की एक अन्य योजना Trans Pacific Partnership से अमेरिका हट गया है. इससे चीन के लिए अपनी पहल को आगे बढ़ाने का रास्ता प्रशस्त हो गया है.


GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Topic : Shanghai Cooperation Organization (SCO)

संदर्भ

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों का सैन्य औषधि (Military Medicine) से सम्बंधित पहला सम्मेलन नई दिल्ली में 12-13 सितम्बर, 2019 तक चला.

जब से (2017 में) भारत SCO का सदस्य देश बना है तब से ऐसा पहली बार हो रहा है कि SCO रक्षा सहयोग योजना 2019-20 के अंतर्गत भारत में पहली बार कोई सैन्य सहयोग का आयोजन हो रहा है.

उद्देश्य : इस सम्मलेन का उद्देश्य सैन्य औषधि के क्षेत्र में प्रचलित सर्वोत्तम प्रथाओं की जानकारी का आदान-प्रदान, क्षमता संवर्धन करना और मार्ग में आने वाली चुनौतियों का समाधान करना.

शंघाई सहयोग संगठन क्या है?

  • शंघाई सहयोग संगठन एक राजनैतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग संगठन है जिसकी शुरुआत चीन और रूस के नेतृत्व में यूरेशियाई देशों ने की थी. दरअसल इसकी शुरुआत चीन के अतिरिक्त उन चार देशों से हुई थी जिनकी सीमाएँ चीन से मिलती थीं अर्थात् रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान. इसलिए इस संघठन का प्राथमिक उद्देश्य था कि चीन के अपने इन पड़ोसी देशों के साथ चल रहे सीमा-विवाद का हल निकालना. इन्होंने अप्रैल 1996 में शंघाई में एक बैठक की. इस बैठक में ये सभी देश एक-दूसरे के बीच नस्ली और धार्मिक तनावों को दूर करने के लिए आपस में सहयोग करने पर राजी हुए. इस सम्मेलन को शंघाई 5 कहा गया.
  • इसके बाद 2001 में शंघाई 5 में उज्बेकिस्तान भी शामिल हो गया. 15 जून 2001 को शंघाई सहयोग संगठन की औपचारिक स्थापना हुई.

शंघाई सहयोग संगठन के मुख्य उद्देश्य

शंघाई सहयोग संगठन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. सदस्यों के बीच राजनैतिक, आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को बढ़ाना.
  2. तकनीकी और विज्ञान क्षेत्र, शिक्षा और सांस्कृतिक क्षेत्र, ऊर्जा, यातायात और पर्यटन के क्षेत्र में आपसी सहयोग करना.
  3. पर्यावरण का संरक्षण करना.
  4. मध्य एशिया में सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए एक-दूसरे को सहयोग करना.
  5. आंतकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी और साइबर सुरक्षा के खतरों से निपटना.

SCO का विकास कैसे हुआ?

  1. 2005 में कजाकिस्तान के अस्ताना में हुए SCO के सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने पहली बार इसमें हिस्सा लिया.
  2. 2016 तक भारत SCO में एक पर्यवेक्षक देश के रूप में सम्मिलित था.
  3. भारत ने सितम्बर 2014 में शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता के लिए आवेदन किया.
  4. जून 2017 में अस्ताना में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान को भी औपचारिक तौर पर पूर्ण सदस्यता प्रदान की गई.
  5. वर्तमान में SCO की स्थाई सदस्य देशों की संख्या 8 है – चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान.
  6. जबकि चार देश इसके पर्यवेक्षक (observer countries) हैं – अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया.
  7. इसके अलावा SCO में छह देश डायलॉग पार्टनर (dialogue partners) हैं – अजरबैजान, आर्मेनिया, कम्बोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका.

SCO क्यों महत्त्वपूर्ण है?

SCO ने संयुक्त राष्ट्र संघ से भी अपना सम्बन्ध कायम किया है. SCO संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पर्यवेक्षक है. इसने यूरोपियन संघ, आसियान, कॉमन वेल्थ और इस्लामिक सहयोग संगठन से भी अपने सम्बन्ध स्थापित किये हैं. सदस्य देशों के बीच समन्वय के लिए 15 जनवरी, 2004 को SCO सचिवालय की स्थापना की गई. शंघाई सहयोग संगठन के महत्त्व का पता इसी बात से चलता है कि इसके आठ सदस्य देशों में दुनिया की कुल आबादी का करीब आधा हिस्सा रहता है. इसके साथ-साथ SCO के सदस्य देश दुनिया की 1/3 GDP और यूरेशिया (यूरोप+एशिया) महाद्वीप के 80% भूभाग का प्रतिनिधित्व करते हैं.

इसके आठ सदस्य देश और 4 पर्यवेक्षक देश दुनिया के उन क्षेत्रों में आते हैं जहाँ की राजनीति विश्व राजनीति पर सबसे अधिक असर डालती हैं. श्रम या मानव संसाधन के लिहाज से भारत और चीन खुद को संयुक्त रूप से दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति कह सकते हैं. IT, इंजीनियरिंग, रेडी-मेड गारमेंट्स, मशीनरी, कृषि उत्पादन और रक्षा उपकरण बनाने के मामले में रूस, भारत और चीन दुनिया के कई विकसित देशों से आगे है. ऊर्जा और इंजीनियरिंग क्षेत्र में कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान जैसे मध्य-एशियाई देश काफी अहमियत रखते हैं. इस लिहाज से SCO वैश्विक व्यापार, अर्थव्यवस्था और राजनीति पर असर डालने की क्षमता रखता है. हालाँकि इन देशों के बीच आपसी खीचतान भी रही है. ये सभी देश आतंकवाद से पीड़ित भी रहे हैं. ये देश एक-दूसरे की जरूरतें पूर्ण करने में सक्षम हैं. SCO में शामिल देश रक्षा और कृषि उत्पादों के सबसे बड़ा बाजार हैं. IT, electronics और मशीनरी उत्पादन में इन देशों ने हाल के वर्षों में काफी प्रगति की है.


GS Paper 3 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Science and Technology- developments and their applications and effects in everyday life Achievements of Indians in science & technology; indigenization of technology and developing new technology.

Topic : National Genomic Grid (NGG)

संदर्भ

पिछले दिनों भारत सरकार ने यह घोषणा की कि वह एक राष्ट्रीय जीनोम ग्रिड (National Genomic Grid – NGG) की स्थापना करेगी.

राष्ट्रीय जीनोम ग्रिड क्या है?

  • NGG भारत के कैंसर रोग से पीड़ित रोगियों के जीनोम डाटा का अध्ययन करेगी.
  • यह पूरे देश में कैंसर रोगियों के नमूनों को इकठ्ठा करने के लिए संग्रहण केंद्र बनाएगी जिसमें कैंसर का उपचार करने वाले सभी संस्थानों का सहयोग लिया जाएगा.
  • इस ग्रिड का स्वरूप उसी प्रकार का होगा जिस प्रकार राष्ट्रीय कर्क रोग ऊतक जैव बैंक (National Cancer Tissue Biobank – NCTB) का है, जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), मद्रास में चल रहा है.

NCTB क्या है?

  • राष्ट्रीय कर्क रोग ऊतक जैव बैंक भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology – DST) और IIT, मद्रास की एक संयुक्त पहल है.
  • जिन व्यक्तियों को कैंसर हुआ है उनसे पूछ कर यह कैंसर ऊतकों के नमूने जमा करता है.
  • नमूने लेने के पीछे उद्देश्य शोधकर्ताओं को उच्च गुणवत्ता वाले कैंसर ऊतक तथा रोगियों के आँकड़े उपलब्ध कराना है जिससे कि ऐसे शोध हों जिनसे कैंसर के निदान और उपचार में सुधार हो.
  • इस विषय में होने वाला शोध जीनोम अनुक्रमण (Genome sequencing) की पद्धति से किया जाता है.

माहात्म्य

  1. राष्ट्रीय जीनोम ग्रिड के माध्यम से सरकार चाहती है कि कैंसर से सम्बंधित शोध को बढ़ावा मिले और विभिन्न आर्थिक वर्गों के जनों के लिए इसका उपचार सुगम हो.
  2. NGG कैंसरकारी जीनोमों के अध्ययन में तो सहायता करेगा ही, साथ ही भारतीय लोगों में कैंसर का सही इलाज किस ढंग से हो इसके बारे में इंगित करेगा.

GS Paper 3 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Infrastructure related issues.

Topic : National Infrastructure Pipeline

संदर्भ

2019-20 से लेकर 2024-25 तक सभी वित्तीय वर्षों के लिए राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (National Infrastructure Pipeline) किस प्रकार की हो इसके निर्धारण के लिए भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव की अध्यक्षता में एक कार्यदल का गठन किया गया है.

राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन क्या है और इसका महत्त्व क्या है?

  • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन यह देखेगी कि देश में चल रहीं अवसंरचना से जुड़ी परियोजनाएँ ठीक से तैयार हुईं हैं और उनका काम ठीक से शुरू हुआ है अथवा नहीं.
  • ये परियोजनाएँ ग्रीन फील्ड और ब्राउन फील्ड दोनों प्रकार की होंगी. शर्त यह है कि इनकी लागत 100 करोड़ से ऊपर की होनी चाहिए.
  • प्रत्येक मंत्रालय/विभाग का यह दायित्व होगा कि वह परियोजनाओं का अनुश्रवन करे और यह सुनिश्चित करे कि उनका समय पर तथा निर्धारित लागत के अन्दर कार्यान्वयन हो जाए.
  • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन का उद्देश्य देश में अवसंरचना के क्षेत्र में वार्षिक निवेश इतना बढ़ाया जाए कि 2024-25 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर की GDP का लक्ष्य पूरा किया जा सके.

अवसंरचना में पैसा लगाना आवश्यक क्यों?

  • 2008-17 के दशक में भारत ने अवसंरचना में 1.1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया था.
  • यदि सतत आधार व्यापक एवं समावेशी वृद्धि का लक्ष्य प्राप्त करना है तो उसके लिए यह आवश्यक हो जाता है कि हमारी अवसरंचनाएँ उच्च गुणवत्ता वाली हों.
  • भारत की वृद्धि दर अभी ऊँची चल रही है. इसको बनाये रखने के लिए अवसंरचना में निवेश आवश्यक होगा.
  • 2024-25 तक पाँच ट्रिलियन GDP (पढ़ें > GDP in Hindi) पाने के लिए भारत को 2019-20 से लेकर 2024-25 तक 1.4 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने पड़ेंगे.

Prelims Vishesh

Time Bank :-

कमलनाथ सरकार मध्यप्रदेश में अनूठा प्रयोग करने जा रही है. इसके अंतर्गत विदेशों की तर्ज पर राज्य में ‘टाइम बैंक’ बनाया जाएगा. जैसे बुरे समय के लिए बैंक में पैसा जमा किया जाता है, उसी तरह इसमें आम आदमी अपने बुरे समय के लिए ‘टाइम’ को रिजर्व रख पाएगा. जिस प्रकार पैसों के लिए बैंक कार्य करता है, उसी प्रकार टाइम बैंकिंग हेतु सरकार बैंक भी तैयार करेगी. यह संभवत: देश में अपनी तरह का पहला प्रयोग होगा.

Imported Inflation :

  • जुलाई और अगस्त 2019 में भारतीय मुद्रा के कमजोर पड़ जाने से देश में आयातित मुद्रा स्फीति (imported inflation) होने की संभावना जताई जा रही है.
  • ज्ञातव्य है कि जब आयातित वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि के कारण किसी देश में सामान्य मूल्य स्तर ऊँचा हो जाता है तो ऐसी मुद्रा स्फीति को आयातित मुद्रा स्फीति कहा जाता है.
  • भारत में मात्र कच्चे तेल और सोना इन दो वस्तुओं का आयात मूल्य बढ़ जाने से हमारे आयात का खर्च ऊपर की ओर भाग जाता है.

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