मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Modern History Gs Paper 1/Part 07

Sansar LochanGS Paper 1 2020-21

निम्नलिखित प्रारम्भिक राजनीतिक संगठन (political associations) के विषय में संक्षिप्त टिपण्णी लिखें – 

  1. लैंडहोल्डर्स सोसाइटी/जमींदार सभा

  2. बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी

  3. ब्रिटिश इंडियन सोसाइटी

  4. मद्रास नेटिव एसोसिएशन

  5. बम्बई एसोसिएशन

  6. पूना सार्वजनिक सभा

  7. इंडियन नेशनल कांग्रेस

उत्तर :-

लैंडहोल्डर्स सोसाइटी—जमींदार सभा (The Landholder’s Society)

इसकी स्थापना 1837 ई० में कलकत्ता में हुई. यह बंगाल, बिहार और उड़ीसा के जमींदारों को संस्था थी. यद्यपि यह मूलतः जमींदारों का संगठन था और उनके ही स्वार्थों की रक्षा के उद्देश्य से इसे बनाया गया था, फिर भी इसका उद्देश्य “रंग, वर्ण, जन्म, स्थान या धर्म का भेदभाव किए बगैर जमींदारों के आम स्वार्थों की रक्षा करना और जमीन में दिलचस्पी रखनेवाले सभी वर्गों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करना” था. इसके प्रमुख नेता प्रसन्न कुमार ठाकुर, राजा राधाकांत देव, द्वारकानाथ ठाकुर इत्यादि थे. इसमें अँगरेज जमींदारों को भी शामिल किया गया था. इस सभा ने कंपनी सरकार के सामने अनेक माँगें रखीं जिनमें मुक्त भूमि के अधिग्रहण को बंद करना, अदालतों में बांग्ला भाषा का प्रयोग करना, अदालती खर्चे में कटौती करना, भारतीय श्रमिकों को मॉरीशस ले जाने पर प्रतिबंध लगाना इत्यादि महत्त्वपूर्ण थे. इसने अपनी गतिविधियों को भारत तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि लंदन में भी अपना प्रतिनिधि, जॉन क्राफर्ड को नियुक्त किया. इसने ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी के सहयोग से ब्रिटिश संसद में अपनी माँगों के समर्थन में जनमत प्राप्त करने का भी प्रयास किया. सोसाइटी के कार्यों की समीक्षा करते हुए प्रसिद्ध विद्वान डॉ० राजेन्द्रलाल मित्र ने कहा था, “मैं लैंडहोल्डर्स सोसाइटी को इस देश में ‘स्वतंत्रता का अग्रदूत’ समझता हूँ. इसने लोगों को अपने-अपने अधिकारों के लिए वैधानिक तरीके से लड़ने की कला का पहला पाठ पढ़ाया और उन्हें सिखाया कि इस प्रकार पुरुषार्थ के साथ अपने दावों के लिए दृढ़ता से आवाज उठानी चाहिए और अपना मत प्रकट करना चाहिए.” 1843 ई० के पश्चात् यह संस्था कमजोर पड़ गई.

बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी (The Bengal British India Society)

बंगाल में स्थापित दूसरी महत्त्वपूर्ण संस्था बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी थी. इसकी स्थापना 1843 ई० में हुई. इसमें भी भारतीयों के साथ-साथ गैर-सरकारी अँगरेजों को सम्मिलित किया गया. इस सभा के अध्यक्ष भी एक अँगरेज, जॉर्ज थांपसन थे. यह एक उच्च-मध्यवर्गीय संस्था थी. इसका उद्देश्य “अँगरेजों के अधीन भारत के लोगों की वास्तविक अवस्था के विषय में जानकारी प्राप्त करना और उसका विस्तार करना था तथा अन्य ऐसे शांतिमय और कानूनी साथनों का प्रयोग करना था, जिससे जनता की उन्नति हो, उसके न्यायपूर्वक अधिकारों का प्रसार हो और सभी वर्ग के लोगों के हितों की उन्नति हो.” इस सभा के कुछ सदस्य जमींदारी प्रथा की आलोचना करते थे और किसानों के अधिकारों की बात करते थे. इससे असंतुष्ट होकर बड़े-बड़े जमींदार इस संस्था से अलग हो गए. फलतः, यह संस्था कमजोर पड़ती गई और 1846 ई० के पश्चात् इसका महत्त्व समाप्त हो गया.

ब्रिटिश इंडियन सोसाइटी (The British Indian Society)

1851 ई० में लैंडहोल्डर्स सोसाइटी और बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी का विलयन कर 1852 ई० में एक नई संस्था ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन या सोसाइटी की स्थापना की गई. पहले की दोनों संस्थाओं के सदस्य और नेतागण इसमें सम्मिलित हुए. इस सभा में भी भूमिपतियों का ही प्रभाव था, परंतु इसने कुछ उदारवादी प्रयास भी किए. इसने 1853 ई० के चार्टर के नवीनीकरण के समय एक स्मारपत्र पेश कर भारतीय प्रशासन के जनतंत्रीकरण और उसमें भारतीयों के प्रतिनिधित्व की माँग की. 1856 ई० में इसने पुनः केंद्रीय और प्रांतीय प्रशासनों में प्रतिनिधित्व की माँग रखी. यद्यपि 1857-59 के दौरान इसकी गतिविधियाँ मंद पड़ गईं, फिर भी बाद में यह अपना कार्य करती रही. बंगाल में यह सबसे प्रमुख राजनीतिक संस्था बन गई. इसकी शाखाएँ बंगाल के बाहर भी खुलीं. 1870 ई० के बाद इसका प्रभाव कम पड़ता गया और 1880 ई० तक यह बंगाल के कुछ संपन्न जमींदारों का पारिवारिक संगठनमात्र बनकर रह गया.

मद्रास नेटिव एसोसिएशन (The Madras Native Association)

बंगाल की तरह मद्रास में भी अनेक राजनीतिक संगठन बनाए गए. इनमें सबसे प्रमुख मद्रास नेटिव एसोसिएशन था जिसकी स्थापना 1852 ई० में हुई. वस्तुतः, यह बंगाल के राजनीतिक संगठनों से प्रभावित था. इस संस्था ने भी 1853 ई० के चार्टर के नवीनीकरण के साथ एक ज्ञापन पेश किया; परंतु इसने 1857 ई० के विद्रोह की निंदा की. फलतः, इसे जनसमर्थन प्राप्त नहीं हो सका और शीघ्र ही यह विस्मृति के गर्भ में खो गया.

बंबई एसोसिएशन (The Bombay Association)

1852 ई० में इस संस्था की स्थापना हुई. इसमें बंबई के विभिन्न जाति और धर्म, धनी व्यापारी एवं मध्यम वर्ग ने व्यक्ति शामिल हुए. प्रारंभ में इस संस्था ने भी 1857 ई० के विद्रोह की निंदा की और अँगरेजों का पक्ष लिया, परंतु 1857 ई० के पश्चात् व्यापारियों और मध्यमवर्ग पर लगाए गए अतिरिक्त करों के बोझ ने इन्हें अँगरेजों का विरोध करने की प्रेरणा दी. इसने भारतीयों से संबंधित प्रश्नों, जैसे – भारत में सिविल सर्विस की परीक्षा कराने, सरकारी पदों पर भारतीयों की नियुक्ति, सरकारी आर्थिक नीतियों के संबंध में अपना प्रतिवेदन सरकार के समक्ष पेश किया. इस संस्था ने लंदन के ईस्ट इंडिया एसोसिएशन एवं भारत के अन्य संगठनों से संपर्क कायम कर भारतीय हितों के लिए सरकार के समक्ष माँगें रखीं. इस संस्था का पतन 1878 ई० के आसपास हो गया.

पूना सार्वजनिक सभा (The Poona Sarvajanik Sabha)

पूना सार्वजनिक सभा की स्थापना 1870 ई० में हुई. इस संस्था का उद्देश्य सरकार और जनता के बीच मध्यस्थता कायम करना था. यह जनता को अपने अधिकारों के प्रति जाग्रत करना चाहती थी. यह सरकार के उद्देश्यों से भी जनता को परिचित कराना चाहती थी. इसकी सदस्यता के नियम कड़े थे. इस संस्था ने प्रारंभ में स्थानीय समस्याओं की तरफ अपना ध्यान दिया, परंतु बाद में इसने राजनीतिक मसलों को भी उठाया. संगठन ने भारतीय राजाओं एवं ब्रिटिश सरकार के साथ संबंध निश्चित करने, सेना में भारतीय और यूरोपीय सिपाहियों के सम्बन्ध, ब्रिटेश संसद में भारतीयों को प्रतिनिधित्व देने इत्यादि की माँगे रखीं. बंबई प्रेसीडेंसी में राजनीतिक चेतना जगाने में इस संस्था का बहुमूल्य योगदान रहा.

इंडियन नेशनल काँफ्रेंस (The Indian National Conference)

क्षेत्रीय स्तर के अतिरिक्त समस्त भारत के लिए एक राजनीतिक संगठन की स्थापना की भी आवश्यकता बहुत दिनों से महसूस की जा रही थी. इस दिशा में कुछ प्रयास भी किए गए थे (लैंडहोल्डर्स सोसाइटी, ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन आदि), परंतु वे क्षेत्रीय संस्थाएँ बनकर ही रह गयीं, अखिल भारतीय स्वरूप प्राप्त नहीं कर सकीं. इल्बर्ट बिल के विरोध और उसके बाद की घटनाओं से क्षुब्ध होकर इंडियन एसोसिएशन के सेक्रेट्री आनंदमोहन बसु ने कलकत्ता में 29-30 दिसंबर, 1883 को सभी राजनीतिक संगठनों के प्रतिनिधियों की एक सभा बुलाई . इस सम्मेलन में सिविल सर्विस परीक्षा-संबंधी नियमों में सुधार, आर्म्स ऐक्ट को समाप्त करने, भारत में प्रतिनिधि-सभाओं की स्थापना आदि की माँग की गई. इस प्रकार, पहली बार विभिन्न राजनीतिक संगठनों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास हुआ. इसी का अगला प्रयास भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना था.

Author
मेरा नाम डॉ. सजीव लोचन है. मैंने सिविल सेवा परीक्षा, 1976 में सफलता हासिल की थी. 2011 में झारखंड राज्य से मैं सेवा-निवृत्त हुआ. फिर मुझे इस ब्लॉग से जुड़ने का सौभाग्य मिला. चूँकि मेरा विषय इतिहास रहा है और इसी विषय से मैंने Ph.D. भी की है तो आप लोगों को इतिहास के शोर्ट नोट्स जो सिविल सेवा में काम आ सकें, मैं उपलब्ध करवाता हूँ. मैं भली-भाँति परिचित हूँ कि इतिहास को लेकर छात्रों की कमजोर कड़ी क्या होती है.
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