[Sansar Editorial] QUAD देश और त्रिपक्षीय मालाबार नौसेना अभ्यास

Sansar LochanSansar Editorial 2020

भारत के रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में इस वर्ष के अंत तक जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बंगाल की खाड़ी में त्रिपक्षीय मालाबार नौसेना अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को जोड़ने के मुद्दे पर चर्चा की है.

हालांकि इस सन्दर्भ में अभी अंतिम निर्णय नहीं हुआ है, पर यह प्रतीत होता है कि ऑस्ट्रेलिया को जल्द ही हरी झंडी दी जा सकती है. विदित हो कि यह 2007 के बाद पहली बार है कि क्वाड के सभी सदस्य संयुक्त सैन्य अब्यास में भाग लेंगे. यह अभ्यास स्पष्ट रूप से चीन को उसके विस्तारवाद को चुनौती देने के लिए है.

चीन इस अभ्यास को लेकर चिंतित क्यों है? 

बीजिंग ने लंबे समय से भारत-प्रशांत क्षेत्र में लोकतंत्र के गठबंधन का विरोध किया है। वह इस समुद्री चतुर्भुज को एक एशियाईनाटो के रूप में देखता है जो केवल चीन के उदय को बाधित करना चाहता है. इसके अलावा, चीन के साथ तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों के समय, मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने के भारत के इरादे को केवल बीजिंग के खिलाफ एक कदम के रूप में माना जा सकता है. भारत के लिए चुनौतियाँ लद्दाख में गतिरोध के बाद, कई भारतीय विश्लेषकों का मानना ​​है कि वह समय आ चुका है कि भारत समुद्री क्षेत्र में अपनी पारंपरिक रक्षात्मक मुद्रा को त्याग दे. यथार्थवादी चाहते हैं कि भारत हिंद महासागर में चीनी चालों का मुकाबला करने के लिए अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ गठबंधन करे. हालाँकि, “चीन पर अधिक दबाव डालकर” और पूरे हिंद महासागर और दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करके, भारत कुछ कठिन परिस्थतियों को झेल सकता है. ऐसे समय में जब भारत और चीन पूर्वी लद्दाख की सीमा पर एक गंभीर बातचीत कर रहे हैं, नई दिल्ली के मालाबार अभ्यास में भाग लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया का निमंत्रण बीजिंग के लिए विपरीत संकेत भेजता है. यदि चीन पूर्वी हिंद महासागर में आक्रामक मुद्रा अपना लेता है तो भारत-चीन संघर्ष का एक नया प्रांगण खुल जाएगा. इसके अलावा, अमेरिका और जापान के सामरिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बिना हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारतीय नौसेना की क्षमता बढ़ेगी नहीं और न ही चुनौती देने वाली बन पाएगी. हम सब जानते हैं कि पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक संघर्ष चल रहा है और  इस बात की पूरी संभावना है कि अमेरिका इस सैन्य-क्वाड का प्रयोग करके भारत को भी इस संघर्ष में खींचने की कोशिश करेगा. इसलिए अभी यह समय नहीं आया है कि भारत गंभीरतापूर्व QUAD की गतिविधियों में लिप्त हो जाए.  

मालाबार नौसैनिक अभ्यास

  • मालाबार नौसैनिक अभ्यास भारत-अमेरिका-जापान की नौसेनाओं के बीच वार्षिक रूप से आयोजित किया जाने वाला एक त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास है.
  • मालाबार नौसैनिक अभ्यास का प्रारम्भ भारत और अमेरिका के मध्य वर्ष 1992 में एक द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास के रूप में हुई था.
  • वर्ष 2015 में इस अभ्यास में जापान के सम्मिलित होने के पश्चात् से यह एक त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास बन गया.

QUAD क्या है?

  • Quad एक क्षेत्रीय गठबंधन है जिसमें ये चार देश शामिल हैं – ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और अमेरिका.
  • ये चारों देश प्रजातांत्रिक देश हैं और चाहते हैं कि समुद्री व्यापार और सुरक्षा विघ्नरहित हो.
  • Quad की संकल्पना सबसे पहले जापान के प्रधानमन्त्रीShinzo Abe द्वारा 2007 में दी गई थी. परन्तु उस समय ऑस्ट्रेलिया के इससे निकल जाने के कारण यह संकल्पना आगे नहीं बढ़ सकी.

Quad समूह भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के बीच विचारों के आदान-प्रदान का एक रास्ता मात्र है और उसे उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. इसके गठन का उद्देश्य प्रतिस्पर्धात्मक नहीं है.

नाटो क्या है?

  • नाटो का पूरा नाम है – उत्तर अटलांटिक संधि संगठन है.
  • यह एक अंतरसरकारी सैन्य गठबंधन है.
  • इस पर अप्रैल, 1949 में हस्ताक्षर हुए थे.
  • इसका मुख्यालय बेल्जियम के ब्रूसेल्स नगर में है.
  • इस गठबंधन के कमांड संचालन का मुख्यालय बेल्जियम में ही मोंस नगर में है.

नाटो का महत्त्व

यह सामूहिक सुरक्षा की एक प्रणाली है जिसमें सभी सदस्य देश इस बात के लिए तैयार होते हैं यदि किसी एक देश पर बाहरी आक्रमण होता है तो उसका प्रतिरोध वे सभी सामूहिक रूप से करेंगे.

नाटो के उद्देश्य

राजनैतिक :- नाटो प्रजातांत्रिक मान्यताओं को बढ़ावा देता है. यह सुरक्षा और सैन्य मामलों के समाधान के लिए आपसी सहयोग और परामर्श का एक मंच प्रदान करता है.

सैन्य :- नाटो विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध है. यदि किसी विवाद के निपटारे के लिए कूटनीतिक प्रयास विफल होते हैं तो यह अपनी सैन्य का प्रयोग कर कार्रवाई कर सकता है. नाटो की मूल संधि – वाशिंगटन संधि की धारा 5 के प्रावधान के अनुसार ऐसी स्थिति में नाटो के सभी देश मिलकर सैनिक कार्रवाई करते हैं.

अमरीका के लिए QUAD का महत्त्व

चीन इस क्षेत्र में एकतरफ़ा निवेश और राजनैतिक संधियाँ कर रहा है. अमेरिका इसे अपने वर्चस्व पर खतरा मानता है और चाहता है कि चीन की आक्रमकता को नियंत्रित किया जाए. चीन के इन क़दमों का प्रत्युत्तर देने के लिए अमेरिका चाहता है कि Quad के चारों देश आपस में सहयोग करते हुए ऐसी स्वतंत्र, सुरक्षात्मक और आर्थिक नीतियाँ बनाएँ जिससे क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को रोका जा सके. भारत-प्रशांत सागरीय क्षेत्र में चीन स्थायी सैन्य अड्डे स्थापित करना चाह रहा है. चारों देशों को इसका विरोध करना चाहिए और चीन को यह बता देना चाहिए कि वह एकपक्षीय सैन्य उपस्थिति की नीति छोड़े और क्षेत्र के देशों से विचार विमर्श कर उनका सहयोग प्राप्त करे. चारों देश अपने-अपने नौसैनिक बेड़ों को सुदृढ़ करें और अधिक शक्तिशाली बाएँ तथा यथासंभव अपनी पनडुब्बियों को आणविक प्रक्षेपण के लिए समर्थ बानाएँ.

भारत का दृष्टिकोण

भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते क़दमों को नियंत्रित करना न केवल अमेरिका के लिए, अपितु भारत के लिए उतना ही आवश्यक है. भारत चीन का पड़ोसी है और वह चीन की आक्रमकता का पहले से ही शिकार है. आये दिन कोई न कोई ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं जो टकराव का कारण बनती हैं. इसके अतिरिक्त यदि चीन भारत-प्रशांत क्षेत्र में हावी हो गया तो वह भारत के लिए व्यापारिक मार्गों में रुकावटें खड़ी करेगा और साथ ही इस क्षेत्र के अन्य देशों को अपने पाले लाने में का भरसक प्रयास करेगा. अंततोगत्वा भारत को सामरिक और आर्थिक हानि पहुँचेगी. सैनिक दृष्टि से भी भारत कमजोर पड़ सकता है. अतः यह उचित ही है कि Quad के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका से मिलकर भारत भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए ऐसी नीति तैयार करे और ऐसे कदम उठाये जिससे चीन को नियंत्रण के अन्दर रखा जाए. कुल मिलाकर यह इन चारों देशों के लिए ही नहीं, अपितु यह पूरे विश्व की शांति के लिए परम आवश्यक है.

Sansar Editorial 2020

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