[Sansar Editorial] कुवैत का अप्रवासी कोटा मसौदा विधेयक – भारतीय श्रमिकों पर संकट

Sansar LochanIndia and non-SAARC countries, Sansar Editorial 2020

कुवैत की नेशनल असेंबली की कानूनी और विधायी समिति ने अप्रवासी कोटा मसौदा विधेयक (draft expat quota bill) को स्वीकृति दे दी है, जिसमें यह कहा गया है कि भारतीयों की आबादी वहाँ की कुल जनसंख्या से 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए. अब इस विधेयक को संबंधित समिति में भेजा जाएगा ताकि एक व्यापक योजना बनाई जाए. नेशनल असेंबली की कानूनी और विधायी समिति ने निर्धारित किया है कि अप्रवासी कोटा विधेयक मसौदा संवैधानिक है. कुवैत में अगर अप्रवासियों के लिए निर्मित यह नया कानून लागू हो जाता है तो 7-8 लाख भारतीय जो कुवैत में रह रहे हैं, उन्हें उस देश से बाहर किया जा सकता है.

गल्फ न्यूज ने बताया कि विधेयक के कानून बन जाने पर 8 लाख भारतीय श्रमिक कुवैत छोड़ने पर विवश हो सकते हैं. विदित हो कि भारतीय समुदाय कुवैत में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है, जिसकी कुल संख्या 14.5 लाख है. कुवैत की 43 लाख की आबादी में से, 30 लाख अप्रवासी ही रहते हैं. कुवैत भारत के लिए धन प्रेषण का एक शीर्ष स्रोत भी है. 2018 में, भारत ने कुवैत से प्रेषण के रूप में $4.8 बिलियन के करीब प्राप्त किया था.

  • कुवैत सरकार द्वारा तेल की कीमतों में गिरावट और कोरोनोवायरस महामारी के कारण खाड़ी देश की प्रवासी आबादी का कुल 30% भाग आधा करने का फैसला करने के साथ, लगभग 8 लाख भारतीयों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
  • कुवैत नेशनल असेंबली की कानूनी और विधायी समिति ने अप्रवासी कोटा विधेयक मसौदे को मंजूरी दे दी है, जिसके अनुसार भारतीयों की आबादी 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए.
  • रिपोर्ट के अनुसार, बिल अब संबंधित समिति को स्थानांतरित कर दिया जाएगा, ताकि एक व्यापक योजना बनाई जाए.

भारत-कुवैत संबंध

  1. इन दोनों देशों के संबंधों में हमेशा एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक और व्यापार आयाम रहा है. हाल के वर्षों में भारत और कुवैत ने परस्पर अपनी नीतियों में संस्कृति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, नागरिक उड्डयन और युवा मामलों पर प्रमुख रूप से ध्यान दिया है.
  2. भारत लगातार कुवैत के शीर्ष व्यापारिक भागीदारों में से रहा है. कुवैत भारत को कच्चे तेल का एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता रहा है. 2017-18 के दौरान, कुवैत भारत का नौवां सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता था, और यह भारत की ऊर्जा जरूरतों का लगभग 4.63 प्रतिशत पूरा करता है.
  3. 2016-17 के दौरान कुवैत के साथ द्विपक्षीय व्यापार $ 5.9 बिलियन था, और 2017-18 में यह 8.53 बिलियन डॉलर हो गया.
  4. FY19 में यह 2.7 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 8.76 बिलियन डॉलर हो गया, जबकि भारतीय निर्यात 1.33 बिलियन डॉलर था, आयात 7.43 बिलियन डॉलर था.
  5. भारत के निर्यात में खाद्य पदार्थ, कपड़ा, इलेक्ट्रिकल और इंजीनियरिंग उपकरण, सिरेमिक, ऑटोमोबाइल, रसायन, आभूषण, धातु उत्पाद, आदि शामिल हैं.
  6. कुवैत भारत के लिए धन प्रेषण के शीर्ष स्रोतों में से एक है. विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2018 में, भारत को कुवैत से प्रेषण के रूप में 4.8 बिलियन डॉलर प्राप्त हुए. भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, कुल प्रेषण का 58.7 प्रतिशत चार राज्यों: केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु द्वारा प्राप्त किया गया था.
  7. प्रेषणों का प्रवाह मोटे तौर पर विदेशी प्रवासियों की राज्यवार रचना को दर्शाता है. ऐसा पाया गया कि दक्षिण राज्य के लोग कुवैत में बहुत ही अधिक संख्या में कार्यरत हैं और कुवैत से भारत में धन प्रेषण में 46 प्रतिशत के लगभग उन्हीं का योगदान है.

जनसांख्यिकी असंतुलन

  • बताया जा रहा है कि नया मसौदा विधेयक इस प्रकार बनाया गया है जिससे कुवैत में विद्यमान वर्तमान “जनसांख्यिकीय असंतुलन” को ठीक किया जा सके. विदित हो कि कुवैत विधि निर्माताओं की धारणा है कि देश में जनसंख्या का संतुलन बिगड़ चुका है. न केवल भारतीय, राष्ट्र में रहने वाले मिस्र के लोगों को भी इस गंभीर अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है.
  • यद्यपि कानून के कार्यान्वयन के विषय में कोई औपचारिक योजना अभी तक तैयार नहीं की गई है, लेकिन ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि देश अगले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे अपनी प्रवासी आबादी में कटौती कर सकता है. फिर भी, देश में कार्यरत भारतीय श्रमिकों के लिए इसके बड़े निहितार्थ होंगे, जिनमें से कई पहले से ही COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न बेरोजगारी से पीड़ित हैं.

भारतीय समुदाय

  • भारतीय दूतावास के अनुसार, कुवैत में दस लाख से अधिक भारतीय जो कानूनी कार्यबल के रूप में हैं, के अलावा, लगभग 10,000 भारतीय नागरिक हैं जिन्होंने अपने वीजा को खत्म कर लिया है.
  • कुवैत में भारतीय समुदाय प्रति वर्ष 5-6% की दर से बढ़ रहा है. अब कुवैत ने COVID-19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक संकट के चलते देश के आव्रजन में अचानक रोक लगाने का निर्णय ले लिया है.
  • भारतीय सबसे बड़े प्रवासी समुदाय हैं और मिस्रवासी दूसरे सबसे बड़े हैं. वहाँ कार्यरत भारतीयों में 2.5 लाख महिलाएँ और तीन चौथाई या लगभग 7.5 लाख भारतीय पुरुष हैं.
  • यह अनुमान है कि 5.23 लाख भारतीय निजी क्षेत्र में तैनात हैं, जैसे कि निर्माण श्रमिक, तकनीशियन, इंजीनियर, डॉक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, आईटी विशेषज्ञ, आदि और 1.16 लाख लोग आश्रित हैं. कुवैत के 23 भारतीय स्कूलों में लगभग 60,000 भारतीय छात्र पढ़ते हैं. लगभग 3.27 लाख घरेलू कामगार (यानी ड्राइवर, माली, सफाईकर्मी, नानी, रसोइया और गृहिणी) हैं जिन्हें अपने पति / बच्चों को देश में लाने की अनुमति नहीं है. लगभग 28,000 भारतीय विभिन्न नौकरियों जैसे नर्सों, राष्ट्रीय तेल कंपनियों में इंजीनियरों और कुछ वैज्ञानिकों के रूप में कुवैती सरकार के लिए काम करते हैं.

अब क्या होगा?

गल्फ़ कोपरेशन काउंसिल (GCC) देशों में लगभग आठ मिलियन भारतीय काम करते हैं. उनमें से लगभग 2.1 मिलियन लोग केरल से हैं. जीसीसी देशों में भारतीय प्रवासी समुदायों के अन्य प्रमुख योगदानकर्ता उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब और राजस्थान हैं.

भले ही कुवैत सरकार नौकरियों का राष्ट्रीयकरण कर दे और अप्रवासियों को काम से निकाल-बाहर कर दे पर ऐसी बहुत संभावना है कि निजी कंपनियां फिलहाल तो ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी. GCC देशों में उच्च-स्तरीय कार्य वर्ग में सबसे अधिक दबदबा वहां के स्थानीय लोगों का है और उसके बाद अमेरिका, यूरोप के निवासियों का स्थान आता है. उसके बाद भारतीय या अन्य एशियाई देश के श्रमिक आते हैं. इसलिए हम ऐसा कह सकते हैं कि वहां की नौकरियों में, या यूँ कहे कि नौकरियों की श्रेणियों में जनसांख्यिकीय विविधता देखी जा सकती है जिसे इतनी आसानी से अचानक तोड़ देना असंभव है. वैसे भी, भारतीय मजदूर वर्ग के लोग इन खाड़ी देशों में जाकर जो काम करते हैं, वे अरब लोग करना पसंद नहीं करेंगे.

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