KUSUM योजना – किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान

RuchiraGovt. Schemes (Hindi)

किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (KUSUM) योजना की घोषणा 2018-2019 के बजट में की गई थी. KUSUM scheme का उद्देश्य किसानों को अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए खेतों में सौर पम्प चलाने और बंजर भूमि का उपयोग सौर ऊर्जा उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करना है.

कुसुम योजना के अंतर्गत कुल क्षमता लागत 1.4 लाख करोड़ रुपये की होगी, जिसमें से केंद्र 48,000 करोड़ रुपयों की वित्तीय सहायता प्रदान करेगा.

कुसुम योजना

  • यह भारत सरकार की 4 लाख करोड़ की एक योजना है जिसके अंतर्गत किसानों की सहायता के लिए 28,250 MW तक सौर ऊर्जा के विकेंद्रीकृत उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा.
  • KUSUM योजना के अनुसार बंजर भूमियों पर स्थापित सौर ऊर्जा परियोजनाओं से उत्पन्न बिजली में से surplus अंश को किसान ग्रिडों को आपूर्ति कर सकेंगे जिससे उन्हें आर्थिक लाभ मिलेगा.
  • इसके लिए, बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) को किसानों से पाँच वर्षों तक बिजली खरीदने के लिए 50 पैसे प्रति इकाई की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन राशि दी जायेगी.
  • सरकार किसानों कोखेतों के लिए 5 लाख ऑफ़-ग्रिड (ग्रिड रहित) सौर पम्प खरीदने के लिए सब्सिडी प्रदान करेगी. केंद्र और राज्य प्रत्येक सौर पम्प पर 30% सब्सिडी प्रदान करेंगे. अन्य 30% ऋण के माध्यम से प्राप्त होगा, जबकि 10% लागत किसान द्वारा वहन की जायेगी.
  • 7,250 MW क्षमता केग्रिड से सम्बद्ध (ग्रिड-कनेक्टेड) खेतों के पम्पों का सौरीकरण (Solarisation) किया जाएगा.
  • सरकारी विभागों के ग्रिड से सम्बद्ध जल पम्पों का सौरीकरण किया जाएगा.

KUSUM YOJANA के कुछ अन्य प्रावधान

  • ग्रामीण क्षेत्र में 500KW से लेकर 2MW तक के नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्र लगाये जाएँगे जो ग्रिड से जुड़े हुए होंगे.
  • कुछ ऐसे सौर जलपम्प लगाये जाएँगे जो किसानों की सिंचाई की आवश्यकता को पूरी करेंगे परन्तु वे ग्रिड से सम्बद्ध नहीं होंगे.
  • वर्तमान में जो किसान ग्रिड से जुड़े सिंचाई पम्पों के स्वामी हैं उन्हें ग्रिड की आपूर्ति से मुक्त किया जाए और उन्हें अधिकाई सौर ऊर्जा को DISCOMs को देकर अतिरिक्त आय कमाने का अवसर दिया जाए.

अपेक्षित लाभ

  • यह कृषि क्षेत्र को डीजल-रहित बनाने में सहायता करेगा. यह क्षेत्रक लगभग 10 लाख डीजल चालित पम्पों का उपयोग करता है.
  • यह कृषि क्षेत्र में सब्सिडी का बोझ कम कर DISCOMs की वित्तीय स्थिति में सुधार करने में सहायता करेगी.
  • विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा उत्पादन को प्रोत्साहन.
  • ऑफ-ग्रिड और ग्रिड कनेक्टेड, दोनों प्रकार के सौर जल पम्पों द्वारा सुनिश्चित जल स्रोतों के प्रावधान के माध्यम से किसानों को जल-सुरक्षा.
  • नवीकरणीय खरीद दायित्व लक्ष्यों को पूरा करने के लिए राज्यों का समर्थन करना.
  • छतों के ऊपर और बड़े पार्कों के बीच इंटरमीडिइट रेंज में सौर ऊर्जा उत्पादन की रीक्तियों को भरना.
  • ऑफ-ग्रिड व्यवस्था के माध्यम से पारेषण क्षति (transmission loss) को कम करना.

UPDATE :- 11 August, 2019

दिल्ली में स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र नामक एक लाभ-रहित संगठन ने एक प्रतिवेदन प्रकाशित किया है जिसके अनुसार सिंचाई, विद्युत वितरण कम्पनियों के ऊपर आपूर्ति तथा सब्सिडी का बोझ एवं किसानों को होने वाले कष्ट ऐसी चुनौतियाँ हैं जिनका भारत सरकार की नई योजना – प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) – से पूर्ण समाधान हो जाए यह नहीं कहा जा सकता है.

KUSUM YOJANA को लेकर प्रतिवेदन में वर्णित चिंताएँ

  • प्रतिवेदन के अनुसार कुसुम योजना से भूजल के अत्यधिक शोषण का खतरा है.
  • विद्युत वितरण प्रणालियों पर सब्सिडी का जो बोझ है वह इस योजना से नहीं घटेगा क्योंकि पम्प लगाने को सब्सिडी युक्त कृषि ऊर्जा आपूर्ति में घटत के साथ नहीं जोड़ा गया है. सब्सिडी युक्त सौर पम्प लगाये तो जा रहे हैं परन्तु उनके साथ-साथ कृषि आपूर्ति अथवा सब्सिडी में कटौती नहीं की जा रही है. परिणामतः राज्यों के ऊपर आने वाले सब्सिडी का भार बढ़ सकता है.
  • यह ठीक है कि खेती के लिए फीडरों के सौरीकरण और ग्रिड से जुड़े सौर पम्पों को लगाना आर्थिक रूप से ग्रिड से नहीं जुड़े पम्पों को लगाने से अधिक अच्छे विकल्प हैं क्योंकि इनसे ग्रिड में अतिरिक्त बिजली आ सकती है. परन्तु योजना में पानी के प्रयोग को सीमित करने के उपाय नहीं बताये गये हैं.
  • खेतों में सौर संयंत्र लगाने की योजना धनी किसानों को ही लाभ पहुँचायेगा क्योंकि इसमें बहुत पैसा लगता है और लगाने वाले के पास भूमि को 25 वर्षों के लिए पट्टे पर देना सब के लिए संभव नहीं होता.

KUSUM Scheme को लेकर प्रतिवेदन में वर्णित सुझाव

  • सौर पम्प की योजना के साथ-साथ वैसे स्पष्ट एवं कठोर उपाय भी होने चाहिएँ जिनसे भूजल निष्कासन पर दृष्टि रखी जा सके और उसे नियंत्रित किया जा सके. जो राज्य ऐसे उपाय करने के लिए तैयार हों उन्हीं को सौर पम्प की योजनाओं के लिए निधि मुहैया करनी चाहिए.
  • फीडरों को सौर ऊर्जा से चलने वाला बनाना सबसे किफायती उपाय है, परन्तु इसके साथ-साथ कृषि शुल्क और ऊर्जा आपूर्ति की काल-सीमा भी धीरे-धीरे घटाई जानी चाहिए.
  • यह सच है कि जिन क्षेत्रों में पानी के कमी के चलते किसान दु:खी रहते हैं, वहाँ ग्रिड से जुड़े पम्प लगाना एक अच्छा विकल्प है. परन्तु नेट मीटर की जगह पर एकतरफ़ा ऊर्जा प्रवाह की व्यवस्था आवश्यक है क्योंकि इससे पानी की निकासी को सीमित किया जा सकता है.
  • ग्रिड से नहीं जुड़े पम्प केवल अपवाद स्वरूप उन क्षेत्रों में लगाने चाहिएँ जहाँ बिजली नहीं पहुँची है और भूजल का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा है.
  • छोटे ग्रिड के मॉडल अपनाकर बिना ग्रिड वाले पम्पों का प्रचालन बढ़ाया जा सकता है जिससे कि अधिकाई बिजली का प्रयोग घरों में अथवा अन्य आर्थिक कामों में लगाई जा सके.
  • छोटे और सीमान्त किसानों को सौर पम्प देने के विषय में स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित होने चाहिएँ. इसके लिए छोटे और सीमान्त किसानों को वित्त की सुविधा सुलभ बनानी चाहिए.
  • विद्युत वितरण को कारगर बनाने के लिए सम्बंधित कम्पनियों से पम्प के अधिष्ठापन, संचालन, विपत्र निर्माण और किसानों द्वारा हुए भुगतान के विषय में नियमित रूप से प्रतिवेदन लेना होगा.

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