पिछले दिनों बिहार के पाँच उत्तरी जिलों में विकट कपाल ज्वर अर्थात् Acute Encephalitis Syndrome (AES) फ़ैल गया है. इस रोग को बिहार में चमकी बुखार कहा जाता है. इस बीमारी से अभी तक सैंकड़ो बच्चों की मृत्यु हो गई है.
AES क्या है?
- विकट कपाल ज्वर (AES ) एक ऐसा रोग है जिसमें बुखार के साथ-साथ कुछ मानसिक लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे – मानसिक सम्भ्रम, भ्रान्ति, प्रलाप अथवा सन्निपात आदि.
- कुछ मामलों में रोगी को मिर्गी भी हो जाती है. इस रोग के लिए कोई आयु अथवा ऋतु का बंधन नहीं होता. फिर भी अधिकतर यह रोग बच्चों और किशोरों को होता है. रोग के कारण या तो मृत्यु हो जाती है अथवा अच्छी-खासी शारीरिक क्षति पहुँचती है.
- AES मुख्य रूप से वायरसों के चलते होता है. इस रोग के अन्य स्रोत हैं – बैक्टीरिया, फफूंद, परजीवी, स्पाइरोशेट, रसायन, विषाक्त तत्त्व एवं कतिपय असंक्रामक एजेंट.
- भारत में AES के 5% से 35% तक मामले जापानी कपाल ज्वर वायरस (Japanese encephalitis virus – JEV) के कारण होता है.
- इस रोग को फैलाने वाले अन्य वायरस हैं – निपाह और जीका.
- यह रोग भारत में उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में होता है. बताया जाता है कि यह रोग तब होता है जब बच्चे खाली पेट कच्ची लीची खा लेते हैं. विदित हो कि कच्ची लीची में हाइपोग्लीसिन A और मेंथलीनसाइक्लोप्रोपिलग्लिसिन (MCPG) नामक विषाक्त तत्त्व होते हैं. इनमें हाइपोग्लीसिन A के कारण उल्टियाँ होने लगती हैं. ऐसी उल्टियों को जमैकन वमन रोग कहा जाता है. दूसरा विषाक्त तत्त्व MCPG लीची के बीजों में पाया जाता है.
दयनीय परिस्थिति
- कई ऐसे माता-पिता इलाज के अभाव में एक से दूसरे अस्पताल में घूम रहे हैं.
- सिर्फ इन्सेफेलाइटिस के मामले नहीं हैं जो बिहार में स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्ध कर रहे हैं. राज्य गर्मी की लहरों से भी जूझ रहा है. मौतों का बढ़ते जाना बिहार में स्वास्थ्य और कल्याण की स्थिति पर बड़ा सवाल खड़ा करता है. एक बात स्पष्ट है कि राजनीतिक लापरवाही से प्राकृतिक परिस्थितियों का विस्तार हुआ है. सरकार द्वारा जो आंकड़े जारी किए गए हैं उनमें यह बताया गया है कि रोगग्रस्त बच्चों में 80% लड़कियां हैं जो कुपोषण की शिकार थीं. यह एक हैरान करने वाला तथ्य है. इसका साफ़ अर्थ है कहीं ना कहीं पोषण में लैंगिक असमानता को यहां देखा जा सकता है कि किस प्रकार बच्चे पोषित खाने से दूर हैं.
- विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक और यूनिसेफ की रिपोर्टों के डेटा विश्लेषण के आँकड़ों से ज्ञात होता है कि जब बच्चों और माताओं के पोषण की बात आती है, तो विश्व के कई पिछड़े देशों के शहर भी मुजफ्फरपुर से बेहतर प्रदर्शन करते हैं.
- मुजफ्फरपुर, बिहार में पहले भी 2010 से 2014 के बीच ऐसे मामले आये थे और 1000 से अधिक बच्चों की बीमारी से मौत भी हुई थी. परन्तु फिर भी, प्राधिकरण और प्रशासन समस्या से निपटने में गंभीरता दिखाने में विफल रहे.
मूल अधिकार
- सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों को सार्वजनिक स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता से संबंधित सुविधाओं का मिलना उनका मूल अधिकार है.
- स्वास्थ्य को सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक आरोग्य की अवस्था समझा जाता है, न कि रोग या दुर्बलता का अभाव मात्र. स्वास्थ्य किसी भी देश के विकास के महत्त्वपूर्ण मानकों में से एक है. भले ही स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं माना जाता हो, परंतु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 की उदार व्याख्या करें, तो कोई भी स्वास्थ्य के अधिकार को अनुच्छेद 21 के अभिन्न अंग के रूप में शामिल करने का प्रयास कर सकता है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है. भारतीय संविधान के अंतर्गत कई प्रावधान हैं जो बड़े पैमाने पर जन स्वास्थ्य से संबन्धित हैं.
- भारतीय संविधान सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार को राज्य का प्राथमिक कर्तव्य मानता है. हालांकि, सच्चाई यह है कि अधिकांश स्वास्थ्य देखभाल के खर्चों का भुगतान बीमा के बजाय रोगियों और उनके परिवारों द्वारा किया जाता है.
- भारत में चिकित्सकों की संख्या 14 लाख है. पर फिर भी, भारत स्वास्थ्य से संबंधित अपने सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों तक पहुँचने में असफल रहा है. ‘पहुंच की परिभाषा’ एक विशिष्ट लागत और सुविधा पर एक निश्चित गुणवत्ता की सेवाएं प्राप्त करने की क्षमता है.
किस प्रकार तैयार होना चाहिए?
लचर अनुसंधान को बेहतर बनाने की आवश्यकता : एईएस के कारणों को लेकर पिछले कई वर्षों से चल रहे अनुसंधान का परिणाम उत्साहवर्धक नहीं रहा है. एईएस बीमारी के कारणों के विषय में अबतक कुछ विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हुई है. किसी का मत है कि यह बीमारी मौसम की वजह से होती है तो कोई इसका कारण वायरस बता रहा है. कोई कहता है कि एईएस का आर्द्रता और तापमान के साथ सीधा संबंध है, और एक बार बारिश शुरू होने के पश्चात्, मामलों की संख्या में कमी आने लगती है.
लैब की स्थापना : बीमारी के कारणों में वायरस की जांच के लिए एसकेएमसीएच में वायरोलॉजीकल लैब को जल्द से जल्द शुरू करना चाहिए.
मच्छर से बचाव : ऐसा भी कहा जाता है कि यह रोग एक प्रकार के विषाणु (वायरस) से होता है. इस रोग का वाहक मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो विषाणु उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. बच्चे के शरीर में रोग के लक्षण 4 से 14 दिनों के भीतर दिखने लगते हैं. इसलिए 4 से 14 दिन पर्याप्त समय है जिनके बीच टीकाकरण से इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है.
कर्मियों की कमी की समय को दूर करना : पिछड़े जिलों के अस्पतालों में प्रायः स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या में कमी देखने को मिलती है और दुःख की बात यह है कि इस समस्या की जानकारी स्वास्थ्य महकमे के आलाधिकारियों को भी नहीं होती है. अधिक से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों को अस्पतालों में लगाना चाहिए ताकि इन विपरीत परिस्थितियों का सामना पीड़ित परिवारों को नहीं करना पड़े.
आरोप-प्रत्यारोप का खेल खत्म होना चाहिए : आये दिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र विवादों में घिरा रहता है. साथ ही आरोप-प्रत्यारोप एक दूसरे पर लगाकर टालमटोल करते हुए कर्मचारी नजर आते हैं. कभी दवा नहीं होने की बात बताई जाती है तो कभी डॉक्टर के अभाव की. निर्धन जनता जब भी स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के लिए आते हैं तो पता चलता है कि दवा उपलब्ध है नहीं है. 21वीं शताब्दी में भारत जैसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में ऐसी दयनीय परिस्थिति की परिकल्पना करना बहुत ही कठिन है.
आगे की राह
अवश्यमेव हमारे देश में लोगों के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था की दृष्टि से यह एक चिंताजनक तस्वीर है. इस तस्वीर को किसी भी हाल में परिवर्तित करना ही होगा, तभी हम लोगों के जीवन को रोगरहित बना पायेंगे और स्वच्छ भारत के साथ-साथ एक स्वस्थ भारत का भी निर्माण कर पायेंगे. शहरी भारत में स्वास्थ्य की सभी सुविधाएं विद्यमान हैं. शहरी लोगों के पास पर्याप्त धन भी है, इसलिए वे निजी अस्पतालों में इलाज कराने में समर्थ होते हैं. परन्तु, हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी धन के अभाव के चलते उनकी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का भी अभाव है.
जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश का एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्र में रहता है, इसलिए इस क्षेत्र में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सर्वांगीण पहुंच ऐवारी है, नहीं तो वर्तमान तस्वीर का बदल पाना असंभव है. जन-स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाने के लिए जिला अस्पतालों को उन्नत करने की अधिक आवश्यकता है और उसके पश्चात् ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में सभी आवश्यक मेडिकल सुविधाओं के साथ-साथ जांच की व्यवस्था भी सुनिश्चित होनी चाहिए.
ऐसा करके हम भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं और यह सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने में भी सहायक होगा. हमारा स्वास्थ्य अच्छा होता है, तो हम अधिक काम करते हैं और आर्थिक रूप से भी सुदृढ़ होते चले जाते हैं. इसके लिए दो चीजों की आवश्यकता है, एक तो जन-स्वास्थ्य की प्रभावी सरकारी नीतियाँ बनें और दूसरे इन नीतियों के सही तरीके से क्रियान्वयन के लिए जागरूकता फैलायी जाये.
सरकार ने बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ की थीं. सरकार ने बजट में सभी को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया था. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना या आयुष्मान जैसी नीतियों से ही आम लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध करायी जा सकती हैं. हमें ऐसी ही नीतियों की आवश्यकता है, जो जन-स्वास्थ्य सेवाओं की सर्वसुलभता को सुनिश्चित कर सकें. इस योजना के अंतर्गत जो पचास करोड़ लोगों के स्वास्थ्य के बीमा की बात कही गयी है, वह सुनने में तो कर्णप्रिय प्रतीत होती है, परन्तु आवश्यकता तो इस बात को सुनिश्चित करने की है कि इसका क्रियान्वयन कितनी ईमानदारी से होता है. इस बीमा योजना से समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों की सेहत में सुधार आएगा और उनको आर्थिक तौर पर सुदृढ़ करने में सहायता भी मिलेगी, क्योंकि तब गरीबों को अच्छे इलाज के लिए कर्ज नहीं लेना पड़ेगा. आशा है कि सरकार इसे अच्छे ढंग से क्रियान्वित करे. गाँव और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के जीवन में सार्थक बदलाव लाने और गरीब से गरीब व्यक्ति को भी बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिले, इसके लिए छोटे-बड़े सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में यथासंभव चिकित्सकीय सुविधाओं को उपलब्ध कराना होगा. स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव का न केवल लोगों की सेहत पर असर पड़ता है, बल्कि इसका समाज की आर्थिक स्थिति और मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ता है.
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4 Comments on “[Sansar Editorial] भारत में आम लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में असामनता क्यों?”
Daily editorial hindi mei dala lakriyr Sir plz
good sir bht helpful h
Sir daily editorial dala kijiye hindi
Thank u so much sir