भारतीय श्रम कानून और उसकी आलोचना

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भारत ने कुछ राज्यों में श्रमिक कानूनों को पिछले दिनों शिथिल किया था. इसी सन्दर्भ अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation – ILO) ने चिंता प्रकट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहा है कि वे केन्द्रीय और राज्य सरकारों को अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानूनों का पालन करने का सन्देश दें.

पृष्ठभूमि

  • विदित हो कि हाल ही में देश के 10 केंद्रीय श्रमिक संघों ने पत्र के माध्यम से देश में श्रम कानूनों के निलंबन के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के समक्ष उठाया था और साथ ही इस विषय पर ILO के हस्तक्षेप की मांग की थी.
  • ILO की यह प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई है, जब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे कुछ अन्य राज्यों ने आर्थिक तथा औद्योगिक प्रगति का हवाला देते हुए आगामी 2-3 वर्षों के लिये बड़ी संख्या में श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया है.

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भारतीय श्रम कानून क्या है?

“श्रम” समवर्ती सूची में आता है. इसलिए केंद्र और राज्य दोनों अपने-अपने श्रम कानून बनाते हैं. अनुमान है कि वर्तमान में 200 से अधिक राज्य श्रम कानून और लगभग 50 केन्द्रीय श्रम कानून हैं. फिर भी देश में श्रम कानूनों की अभी तक कोई निश्चित परिभाषा नहीं है.

मोटे तौर पर उनको चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है –

  1. कार्यस्थल की दशा
  2. मजदूरी और वेतन
  3. सामाजिक सुरक्षा
  4. नौकरी की सुरक्षा और औद्योगिक सम्बन्ध

भारतीय श्रम कानूनों की आलोचना क्यों होती है?

कहा जाता है कि भारतीय श्रम कानून लचीले नहीं होते हैं. 100 से अधिक कामगारों को रखने वाले प्रतिष्ठानों को ढेर सारी कानूनी अपेक्षाएँ पूरी करनी पड़ती हैं. किसी को नौकरी से निकालने के लिए सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है जिस कारण ये प्रतिष्ठान किसी को नौकरी पर रखने से बचते हैं. इससे एक ओर जहाँ इन प्रतिष्ठानों की वृद्धि कुंठित रहती है, वहीं दूसरी ओर, मजदूरों को कोई लाभ नहीं मिलता.

कई कानून आवश्यकता से अधिक जटिल हैं और उनका सही ढंग से कार्यान्वयन नहीं होता है. इस कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है.

राज्य श्रमिक कानूनों में ढील क्यों दे रहे हैं?

  1. आर्थिक गतिविधियों को उत्प्रेरित करने के लिए कानूनों को शिथिल बनाया गया.
  2. घर लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को रोजगार चाहिए, इसलिए उद्योगों को एक लचीले रखो और हटाओ व्यवस्था ( Hire and Fire Regime) पर काम करने का प्रस्ताव दिया गया है जिससे कि वे अपना काम फिर से शुरू कर सकें.
  3. भारतीय श्रम कानून बहुत उलझे हुए हैं. निवेशक इसकी जटिलता को देख कर भाग खड़े होते हैं. इस कारण भी इन कानूनों को थोड़ा शिथिल किया गया है.

उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश में किये गये मुख्य परिवर्तन

  • उत्तर प्रदेश सरकार ने अध्यादेश निर्गत कर के कुछ कानूनों को छोड़कर अन्य सभी कानूनों के दायरे से व्यवसायों को अगले तीन वर्षों के लिए बाहर कर दिया है.
  • मध्य प्रदेश सरकार ने भी कई श्रम कानून अगले 1000 दिनों के लिए स्थगित कर दिया.

चिंता का विषय

श्रम कानून को स्थगित करने और उद्योगों को खुला हाथ देने से बंदी और छंटनी की भरमार हो सकती है. फलतः देश में बेरोजगारी की स्थिति और बुरी होगी. कामगारों को उनके अधिकार से वंचित करने मानव एवं मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. कामगारों में असुरक्षा की भावना जनम सकती है.

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