[Sansar Editorial] भारत और अमेरिका के बीच सम्बन्ध – India-US Relations

Sansar LochanIndia and non-SAARC countries, Sansar Editorial 2019

शीत युद्ध के बाद की अवधि में आर्थिक सुधारों के साथ अमेरिका के साथ भारत के सम्बन्ध सुदृढ़ हुए. अमेरिका बाजार तक पहुँचने और वाणिज्यिक और सैन्य संबंधों को भी प्रोत्साहन मिला. इसने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों और भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपने संबंधों का विस्तार करने के लिए अपनी कूटनीति को संशोधित किया. लेकिन अमेरिका के बाद की संरक्षणवादी नीति ने भारत को नहीं बख्शा. भारतीय स्टील और अल्मुनियम के लिए उच्च शुल्क ने भारतीय व्यापार को प्रभावित किया है. भारत ने अमेरिका से आयातित कुछ कृषि जिंसों पर उच्च शुल्क लगाकार जवाबी कार्रवाई करने का विचार किया, लेकिन 2 नवम्बर, 2018 तक इस पर रोक लगा दी थी.

दोनों देशों के बीच एक महत्त्वपूर्ण व्यापार मुद्दा था अमेरिका से आयातित चिकित्सा उपकरण. चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के अनुसंधान और नवाचार को प्रभावित करने के लिए कुछ चिकित्सा उपकरणों की कीमत बढ़ाए जाने की आलोचना की गई. भारत के नीति आयोग ने कुछ सुझाव दिए हैं, जिन पर प्रधानमन्त्री कार्यालय से मंजूरी मिलना अभी शेष है. जहाँ तक देशों से व्यापार पर संबंधों का मामला है, तो यह न तो बहुत खराब है और न ही बहुत अच्छा. दूसरी ओर भारत के बाजार पर अमेरिकी कंपनियों की गहरी नजर है. दूसरी ओर, भारत के बाजार पर अमेरिकी कंपनियों की गहरी नजर है. वहीं ट्रम्प की सुरक्षात्मक आर्थिक नीति ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में सहयोग किया है. अतः यह अपेक्षा करना अनुचित है कि ट्रम्प प्रशासन भारत के साथ व्यापार के प्रति कोई उदार रुख अपनाएगा. क्योंकि चीन और भारत को अनुचित व्यापार व्यवहार के देशों की सूची में सम्मिलित किया गया था. हालाँकि इसके बाद भी द्विपक्षीय सम्बन्ध बढ़ते वाणिज्यिक संबंधों के मद्देनज़र बिगड़ा नहीं है.  

वैसे भारत अमेरिका के साथ अपने सम्बन्ध को लेकर काफी सतर्क है. यह चतुर्भुज के साथ सम्बन्ध के स्तर को उन्नत करने के लिए अमेरिका के उस प्रस्ताव पर असहमत है, जिसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत शामिल हैं. चतुर्भुज के लिए चीन की प्रतिक्रियाओं के मद्देनज़र, जिसे दस साल बाद नवम्बर 2018 में पुनर्जीवित किया गया था, भारत ने इसे भारत-प्रशांत के साथ सम्मिलित न करके एक संरक्षित दृष्टिकोण अपनाया है. एक स्वतंत्र और खुला इंडो-पैसिफिक क्षेत्र भारत और यूएस 2+2 वार्ता के बीच चर्चा का विषय था. इसने व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित किया, जो चीन के बेल्ट एंड रोड पहल के मुकाबले के लिए एक विश्वसनीय विकल्प विकास करता है.

अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ईरानी तेल खरीदा रहा है क्योंकि यह भारत की रिफाइनरियों के लिए सस्ता और उपयुक्त है. हालाँकि व्यापार घाटा संतुलित करने के लिए भारत अमेरिका से भी तेल खरीदने पर राजी हो गया है. इसके मद्देनज़र अमेरिका ने प्रतिबंधों में कुछ छूटे देने पर विचार करने का आश्वासन दिया है, लेकिन शीघ्र ही यह भारत को ईरान से तेल आयात रोकने के लिए विवश कर सकता है. अमेरिका का कच्चा तेल भारतीय रिफाइनरियों के लिए ही भले ही उपयुक्त होगा, पर अल्पकालिक परिस्थितियों में अन्य आपूर्तिकर्ताओं के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी. भारत का कहना है कि वह राजनीति के बदले कच्चे तेल के आयात के अर्थशास्त्र को प्रमुखता देगा. भारत को ईरान से रियायती दर पर तेल मिल जाता है. अमेरिका और ईरान दोनों के साथ भारत के विशेष सम्बन्ध रहे हैं, और हम देख रहे हैं कि इस सब को कैसे संतुलित किया जाए, और इसी के साथ रिफाइनर और अंतिम-उपभोक्ताओं के हितों को भी प्रतिकूल प्रभाव से बचाना आवश्यक है. इस बीच भारत में पेट्रोल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हुई है. मूल्य वृद्धि मतदाताओं के लिए एक मुद्दा होगा और सरकार इसे कम करने पर विचार कर सकती है, हालाँकि अभी तक इसने सार्वजनिक दबाव के बावजूद ऐसा नहीं किया है.

भारत अमेरिकी संबंधों को सामरिक व्यापार प्राधिकरण (STA-2) से STA-1 श्रेणी में उन्नत किया गया है. STA-2 में दोहरे उपयोग प्रौद्योगिकी का भारतीय आयात सीमित था. STA-1 श्रेणी में प्रवेश करने के पश्चात् भारत बड़े पैमाने पर ऐसी तकनीकों का आयात करेगा जो पहले निर्यात के लिए प्रतिबंधित थी. 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करते समय भारत द्वारा STA-1 की माँग की गई थी. इसके लिए मानदंड परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह, मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था, वास्सेनर समझौते और ऑस्ट्रेलिया समूह जैसे निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं की सदस्यता है. लेकिन अमेरिका ने परमाणु अप्रसार में योगदान के मद्देनज़र एनएसजी में भारत की गैर सदस्यता में रियायत दी है. न केवल भारत के लिए यह फायदेमंद होगा, बल्कि अमेरिकी कंपनियाँ भी बिना किसी देरी के ऐसी संवेदनशीलता तकनीक की बिक्री के लिए मंजूरी प्राप्त कर सकती हैं.

बड़ी शक्तियों से सैन्य उपकरण खरीदना भारत के लिए आज भी एक बड़ी चुनौती है. इससे पहले अमेरिका के साथ उसके सैन्य वाणिज्य को देखते हुए रूस ने पाकिस्तान को ऐसे उपकरण बेचकर उसका बदला ले लिया. इसलिए रूस से मोबाइल सतह से हवा में मार कर सकने वाली मिसाइल प्रणाली (SAM) एस – 400 की खरीद के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करने के प्रति भारत सतर्क है. अमेरिकी राष्ट्रपति से प्रमाणन के बाद इस अमल में लाया जा सकता है, हालाँकि कैबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी है. अमेरिकी कांग्रेस ने प्रतिबंध अधिनियम के माध्यम से अमेरिका के काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रो सैंक्शंस एक्ट (CAATSA) सर्वसम्मति से पारित किया है, जो कि 2016 में अमेरिकी चुनाव में दखल देने पर रूस को दण्डित करने के लिए अमल में लाया गया था. अमेरिका ने CAATSA, 2017 का उल्लंघन कर रूस से लड़ाकू जेट खरीदने पर चीनी सेना पर प्रतिबंधों में कड़ाई कर दी थी. यह चीन को निर्यात लाइसेंस के लिए आवेदन करने और अमेरिकी वित्तीय प्रणाली में भाग लेने से रोक देगा. हालाँकि अमेरिका ने कुछ देशों के लिए कुछ छूट प्रदान की है जिसमें भारत भी सम्मिलित है. सफल कूटनीतिक प्रयास से भारत रूस से एस – 400 मिसाइल डिफेन्स सिस्टम आयात कर सकता है, जिसका अर्थ है कि अमेरिका भारत की चिंताओं के प्रति संवेदनशील है, क्योंकि रूस ने पाकिस्तान के सैन्य बाजार में प्रवेश कर लिया है. पश्चिम एशिया के साथ बेहतर समुद्री सम्पर्क के लिए ईरान में चाबहार बंदरगाह के निर्माण के लिए भारत की पहल को बाधित नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह चीन द्वारा पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के निर्माण का एक जवाब होगा.

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