हड़प्पा लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है. इसलिए मात्र पुरातात्त्विक अवशेषों के आधार पर ही हड़प्पा सभ्यता की विशेषताओं का ज्ञान होता है. लिखित साक्ष्य के अभाव में अवशेषों से सटीक निष्कर्ष निकालना भी कठिन है. अतः हड़प्पा सभ्यता (Harappa Civilization) के बारे में हमारे सभी अनुमान विवाद का विषय हो जाते हैं.
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण
प्रारम्भिक उत्खननों से हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल केवल सिन्धु नदी घाटी क्षेत्र में मिले थे, जिससे इस सभ्यता का नामकरण “सिन्धु घाटी सभ्यता” किया गया था. किन्तु कालांतर में जब सिन्धु नदी घाटी से इतर भौगोलिक क्षेत्रों में इस सभ्यता के अन्य पुरास्थलों की खोज हुई तो इसका यह पुराना नाम अप्रासंगिक हो गया. इस समस्या के समाधान हेतु विद्वानों ने इस सभ्यता का नामकरण पुरातात्त्विक साहित्य में प्रयुक्त होने वाली नामकरण-परिपाटी का अनुकरण करते हुए इसके प्रथम उत्खनित स्थल हड़प्पा के नाम पर “हड़प्पा सभ्यता/Harappa Civilization” कर दिया.
काल-निर्धारण
हड़प्पा सभ्यता के काल-निर्धारण के लिए समकालीन सभ्यताओं के साथ हड़प्पा सभ्यता के संपर्क को प्रकाशित करने वाले साक्ष्यों, यथा – मुहर, व्यापारिक वस्तु तथा समकालीन सभ्यताओं के अभिलेखों की सहायता ली गई है. इनके अतिरिक्त निरपेक्ष काल निर्धारण की शुद्ध वैज्ञानिक विधियों – कार्बन 14 तिथि निर्धारण विधि, वृक्ष – विज्ञान (dendrology), पुरावनस्पति विज्ञान की अन्वेषण विधियों का भी प्रयोग किया गया है. अधिकांश इतिहासकारों का मत है कि हड़प्पा सभ्यता 3300 ई.पू. से 1700 ई.पू. तक विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है.
सैन्धव समाज
हड़प्पा सभ्यता विपुल कृषि अतिरेक की प्राप्ति पर आधारित सिन्धु नदी घाटी में विकसित नागरिक सभ्यता थी. सैन्धव समाज, श्रम विभाजन, विशेषीकरण के आधार पर स्तरीकृत था. इस समाज में विविध समूहों की उपस्थिति का स्पष्ट आभास मिलता है. इस समाज में कृषक, व्यापारी, श्रमिक, राजमिस्त्री, पुरोहित, परिवाहक, सुरक्षाकर्मी, वास्तुकार, कुम्भकार, तक्षक, धातुकर्मी, मछुआरे, सफाई कर्मचारी, बुनकर, रंगसाज, मूर्तिकार, मनकों के निर्माता, नाविक, शासक वर्ग, चूड़ी के निर्माता, शल्य चिकिस्तक, नर्तक वर्ग, सेवक और ईंटों के निर्माता आदि अनेक वर्ग थे.
इस प्रकार यह एक जटिल समाज था जिसमें संबंधों की जटिलता का सहज अनुमान लगाया जा सकता है. इसके बाद भी ऐसा प्रतीत होता है कि समाज के सभी वर्गों के मध्य सहयोग, सौहार्द, सह-अस्तित्व और सहिष्णुता की भावना व्याप्त होगी. उद्यमशीलता इस समाज का निःसंदेह एक विशेष गुण रही होगी जिसके चलते नगरीय समाज निःसंदेह तात्कालिक युग में आज के मापदंडों के आधार पर भी समृद्ध था.
पूजा-पाठ
हड़प्पा के लोग प्रकृति और मातृशक्ति के उपासक थे. इसका आभास पशुपति, मातृदेवी, वृषभ, नाग, प्रजनन शक्तियाँ, जल, वृक्ष, पशु-पक्षी, स्वास्तिक आदि की उपासना के प्रचलन से होता है. कालीबंगा और लोथल से पशुबलि और यज्ञवाद का संकेत मिलता है. जिससे समाज में पुरोहित वर्ग की विशेष भूमिका प्रमाणित होती है.
हड़प्पा सभ्यता का जो समाज था वह कर्मकांड और अनुष्ठान में विश्वास करता था. हड़प्पा सभ्यता के लोग अनेक काल्पनिक मिश्रित पशु और मानवों की उपासना करते थे. पशुपति मुहर संन्यासवाद या समाधि या योग के महत्त्व को इंगित करता है. अनेक मुहरों एवं मृदभांडों पर देवी-देवताओं का चित्रण किया गया था. इन तथ्य से भक्तिभावना या भक्तिवाद का स्पष्ट साक्ष्य मिलता है.
मतांधता से मुक्त समाज
हड़प्पा सभ्यता में रहने वाले लोगों ने मृत्यु के बाद के जीवन/पुनर्जन्म की कल्पना भी की. यही कारण है कि मृतक के साथ समाधि में दैनिक जीवन/उसकी प्रिय वस्तुओं को समाधिस्थ किया गया. हड़प्पावासी कुछ अहितकारी अदृश्यशक्ति यथा भूत-प्रेत, शैतान, दानव की भी कल्पना करते थे. सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि जिस प्रकार अनेक शताब्दियों तक हड़प्पा सभ्यता पुष्पित अवस्था में रही, इसका आधारभूत कारण संभवतः अत्यधिक धार्मिक सहिष्णुता का शास्वत-सत्य था. इस प्रकार हड़प्पाई समाज अगर अनेकानेक विविधताओं के बाद भी अपना सर्वांगीण विकास करने में समर्थ था तो इसका कारण इस समाज को पूर्वाग्रह या मतांधता से मुक्त होना रहा होगा. निरपेक्षता इस समाज की एक प्रमुख विशेषता थी. विविधता में एकता और एकता में विविधता का हड़प्पा समाज एक अनोखा उदाहरण है.
शांतिप्रिय
हड़प्पा सभ्यता में सभी वर्गों के लोग श्रेष्ठ नागरिक होने के साथ ही शांतिप्रिय और अत्यधिक अनुशासित भी थे. यही कारण है कि इन्होंने अपने भवनों का निर्माण नगर प्रशासकों के द्वारा स्वीकृत भवन-मानचित्र के आधार पर किया. यहाँ आक्रमण करने योग्य अस्त्र-शस्त्र उपलब्ध नहीं हुए हैं और न ही बन्दीगृह का कोई साक्ष्य मिला है. इससे सिद्ध होता है कि वे अपने सुरक्षा के प्रति आश्वस्त थे. उन्हें न तो आक्रमण का भय था और न ही वे साम्राज्यवादी थे.
हड़प्पा सभ्यता में रहने वाले लोग की एक विशिष्ट जीवन शैली थी. भौतिक सुखों की उपलब्धि के लिए वे लोग सदैव उद्यमरत रहते थे. यही कारण है कि उन्होंने श्रेष्ठ वस्त्र-आभूषण, शृंगारप्रियता का परिचय दिया. सिन्धुवासियों ने नव पीढ़ी के लिए मनोरंजन हेतु अनेक खिलौनों का निर्माण किया और चारदिवारी के अन्दर खेले जाने योग्य चौपड़ और शतरंज जैसे खेलों का आविष्कार किया.
वैज्ञानिक मानसिकता
इन लोगों की एक विशेषता “वैज्ञानिक मानसिकता” भी थी जो उनकी उद्यमशीलता से प्रतिबिम्बित होती है. गणित, विज्ञान, जलविज्ञान, समुद्र विज्ञान, रसायन, भौतिक शास्त्र, वनस्पति विज्ञान और जीव विज्ञान में उनकी विशेष रुचि का उद्देश्य था – जीवन शैली को परिष्कृत किया जाना . उन्होंने सूक्ष्मतम मनकों का निर्माण किया. विश्वास नहीं होता कि एक ग्राम भार में लगभग 300 सूक्ष्मतम मनकों को गिना जा सकता था. इनकी निर्माण तकनीक क्या थी? किसी अत्यधिक पतले धागे के चारों ओर जिस सामग्री से सूक्ष्मतम मनके’ का निर्माण किया जाना था, उसका पेस्ट किया गया होगा और फिर संभवतः किसी पशु की पूँछ के बाल से छोटे-छोटे मनके काटकर, तत्पश्चात् बहुत अधिक तापक्रम पर पकाया गया होगा. इस प्रकार सूक्ष्मतम मनके का निर्माण हुआ.
जिस प्रकार उन्होंने अपने अन्नागारों में सीलन से बचाने के लिए काष्ठयुक्त चबूतरे का निर्माण किया, वायु और प्रकाश संचरण का समुचित प्रबंध किया, यह उनकी वैज्ञानिक मानसिकता का प्रतीक है.
जिस प्रकार लोथल जैसे स्थल पर उन्होंने एक गोदीवाड़ा का निर्माण किया उससे यही आभास मिलता है कि इस स्थल के चयन के पूर्व अनेक दशकों तक नक्षत्रों के पृथ्वी के सापेक्षिक स्थिति परिवर्तन, सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा तीनों के विशेष स्थितियों में आने से समुद्र के व्यवहार पर जो प्रभाव पड़ता है उससे ज्वार-भाटे की स्थिति उत्पन्न होती है, उसका उन्हें ज्ञान था. समुद्र जल स्तर का ऊँचा होना और उसका तटीय सम्पर्क और जल स्तर का निम्नतम बिंदु का ज्ञान, गोदी के निर्माण और जलपोतों के आवागमन के लिए बहुत आवश्यक था.
बाटों के मध्य अनुपात के आधार पर यह कहा जा सकता है कि दशमलव प्रणाली का उन्हें ज्ञान था.
भौगोलिक विस्तार
हड़प्पा का सर्वेक्षण मैसन ने 1826 में किया था. तत्पश्चात् यहाँ 1853 और 1873 में पुरावस्तुएँ प्राप्त की गई थीं. पुनः 1912 में जे.एफ. फ्लीट ने यहाँ से प्राप्त पुरावशेषों पर एक लेख रॉयल एशियाटिक सोसाइटी में प्रकाशित कराया था. किन्तु 1921 में दयाराम साहनी द्वारा यहाँ कराये गए उत्खनन से अंततः इस पुरास्थल की एक विशिष्ट सभ्यता के प्रतिनिधि स्थल के रूप में पहचान हो सकी. अब तक उत्तर जम्मू स्थित मांडा से दक्षिण में महाराष्ट्र स्थित दैमाबाद तक पश्चिम में बलूचिस्तान स्थित सुत्कागेंडोर से पूर्व में गंगा-यमुना दोआब स्थित आलमगीरपुर तक विस्तृत 12,996,00 वर्ग कि,इ. के त्रिभुजाकार क्षेत्र में लगभग 2000 से अधिक पुरास्थलों की खोज चुकी है. इनमें से दो-तिहाई पुरास्थल भारतीय क्षेत्र में मिले हैं.
इस प्रकार यह सभ्यता अपनी समकालीन मेसोपोटामिया तथा मिस्र की सभ्यताओं के विस्तार क्षेत्र के कुल योग से भी बड़े क्षेत्र में विस्तृत थी. भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में पंजाब, सिन्धु, बलूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात, पश्चिम-उत्तर प्रदेश तथा उत्तर पूर्वी महाराष्ट्र में स्थित यह सभ्यता विविधतायुक्त भौगिलिक क्षेत्र में फैली थी.
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19 Comments on “हड़प्पा सभ्यता : एक संक्षिप्त अवलोकन – Harappa Civilization”
Thanks for Provide Best Notes for any Competitive Exam.
Use Indian full map including pok also it is part of India not Pakistan Remember……..
Nice work sr
Kashmir ka north west part Ko Pakistan me dikha Rakha h map me ???
please use flow chart form sir
Thanks sir but plz add it how to harappan declined with thinkers quotes or thinker perspective plz sir
Thankyou sir
This is amazing. This articles covers the topic very easily. It’s very beneficial for the students of history. Thank you so much.
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Bahut achha sir
Hum iska dhanyavaad bhi nhi kr sakte
nice sir
dhanyavaad
It’s beneficial for Hindi medium aspirants.
I think if students read this notes every day 2 chapter then he/ she can achieve his/ her goal
नमस्कार सर, इनके अवशेष देखने के लिए कौन-से museum में जाना पड़ेगा और हमें बहुत जानकारी प्राप्त हुई है आप का आर्टिकल बहुत ही महत्व पूर्ण है. पढ़के आच्छा लगा धन्यवाद.
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Thanks to give me details
Hello sir , is mai aap ne kai chijo ka jikr nahi kiya hai
thanks to give me details about hadappa civilization in hindi
Nice work Sir
Thanks again for all questions
इस लेख मे (सिन्धु घाटी की सभ्यता ) मे कृषि से सम्बन्धित अंश नहीं दर्शाया गया है जो महत्वपूर्ण है।