जेम्स द्वितीय 1685 ई. में इंग्लैंड का राजा बना. उसे बहुत सुरक्षित सिंहासन प्राप्त हुआ था. परिस्थिति राजतंत्र के पक्ष में थी. विरोधी दल कुचला जा चूका था. राज्य के प्रति निर्विरोध आज्ञाकारिता का सिद्धांत स्वीकृत हो चूका था. संसद के अधिकांश सदस्य राजा के दैवी अधिकार सिद्धांत के समर्थक थे. जेम्स द्वितीय ने स्वयं ही परिस्थिति को विपरीत बना दिया और उसे अंततोगत्वा गद्दी छोड़कर भागना पड़ा. 1688 ई. में हुए इंग्लैंड की क्रांति को “गौरवपूर्ण क्रांति (Glorious Revolution)” भी कहा जाता है.
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इंग्लैंड की क्रांति संक्षेप में
1688 ई. की क्रांति जेम्स द्वितीय के शासनकाल में हुई थी. क्रांति के लिए जेम्स द्वितीय ने खुद वातावरण तैयार किया था. उसके कार्यों से सभी दल के लोग असंतुष्ट थे. उन्हें विश्वास हो गया था कि राजा स्वेच्छाचारी शासन की पुनरावृत्ति करना चाहता है. जेम्स द्वितीय रोमन कैथोलिक चर्च की शक्ति को बढ़ाना चाहता था. वह कैथलिकों को राज्य के महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करना चाहता था. वह किसी भी कानून को स्थगित अथवा रद्द करने के अधिकार द्वारा अपनी सत्ता को सर्वोपरि बनाना चाहता था. वह टेस्ट एक्ट को समाप्त करना चाहता था और इसलिए उसने न्यायालय में अपने समर्थक न्यायाधीशों को ही रहने दिया. वह स्थाई सेना की सहायता से विरोधियों पर नियंत्रण रखना चाहता था. इंग्लैंड की जनता जेम्स द्वितीय के क्रूर शासन को इसलिए बर्दास्त कर रही थी कि उसकी मृत्यु के बाद इंग्लैंड में कैथोलिक शासन का अंत होगा. लेकिन जून, 1688 ई में जेम्स द्वितीय की दूसरी कैथोलिक पत्नी से एक पुत्र उत्पन्न हुआ. पुत्र के जन्म ने इंग्लैंड की क्रांति को अवश्यम्भावी बना दिया. लोगों को विश्वास हो गया कि जेम्स द्वितीय की नीति अनंत काल तक चलती रहेगी. इस आशंका से लोग भयभीत हो गए. वे क्रांति द्वारा कैथोलिक शासन के अंत का प्रयास करने लगे. प्रतिकूल परिस्थिति के कारण जेम्स द्वितीय ने गद्दी छोड़ दिया. विलियम तृतीय और मेरी को इंग्लैंड का सम्राट और साम्राज्ञी घोषित किया गया. “अधिकारों का घोषणापत्र” तैयार किया गया. जेम्स द्वितीय के सभी कार्यों को अवैध घोषित किया गया. प्रजा तथा संसद के अधिकारों की पुष्टि की गई.
1688 ई. की क्रांति के कारण
1688 ई. के इंग्लैंड की क्रांति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
जेम्स द्वितीय की धार्मिक नीति
जेम्स द्वितीय कट्टर कैथोलिक था. कैथोलिक धर्म के सिधान्तों में उसकी गहरी आस्था थी. वह कैथोलिकों को राज्य के प्रमुख पदों पर नियुक्त करना चाहता था. इस पक्षपात को देखते हुए प्रोटेस्टेंट लोगों ने जेम्स के कार्यों का विरोध करना शुरू कर दिया. विरोधियों का दमन करने के लिए जेम्स द्वितीय ने अनेक कठोर कदम उठाये. हाई कमीशन नामक न्यायालय की स्थापना की गई. कैथोलिक धर्म की आलोचना अथवा निंदा करने का अधिकार किसी को नहीं था. विरोध की परवाह न करते हुए जेम्स द्वितीय ने कैथोलिक धर्म का प्रचार जारी रखा.
फ्रांस के साथ मैत्री सम्बन्ध
जेम्स द्वितीय का विश्वास था कि आवश्यकता पड़ने पर फ़्रांस का राजा लुई चौदहवाँ उसे सेना और धन से सहायता देगा. इस कारण उसने फ्रांस के साथ मैत्री सम्बन्ध बनाए रखना का पूर्ण रूप से प्रयास किया. उसने रोमन कैथोलिकों की सुविधाएँ प्रदान की और प्रोटेस्टेंट धर्म के अनुयायियों पर घोर अत्याचार किया. इंग्लैंड की प्रोटेस्टेंट जनता इस प्रकार के अत्याचार को सहन नहीं कर सकी. उसने जेम्स द्वितीय का विरोध करना शुरू कर दिया.
टेस्ट एक्ट के प्रति उदासीनाता
टेस्ट एक्ट के अनुसार केवल अंग्रेजी चर्च के अनुयायियों को ही राज्य कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया जा सकता था. इस नियम के कारण कैथोलिकों की नियुक्ति नहीं की जा सकती थी. इसलिए जेम्स द्वितीय ने टेस्ट एक्ट को रद्द करने का प्रयास किया लेकिन संसद ने ऐसा करने की अनुमति नहीं दी. इससे असंतुष्ट होकर जेम्स द्वितीय ने संसद को ही स्थगित कर दिया.
निलंबन और विमोचन के अधिकार का प्रयोग
जेम्स द्वितीय का कहना था कि आवश्यकता होने पर राजा किसी भी नियम को स्थगित अथवा रद्द कर सकता है. इस अधिकार का प्रयोग करके उसने कैथोलिकों के विरुद्ध बने सभी कानूनों को रद्द कर दिया. इंग्लैंड की जनता ने राजा का विरोध किया.
विश्वविद्यालय में हस्तक्षेप
जेम्स द्वितीय ने विश्वविद्यालय के कार्यों में भी हस्तक्षेप किया. विश्वविद्यालय में बड़े-बड़े पदों पर कैथोलिकों की नियुक्ति की गई. कैंब्रिज विश्वविद्यालय के उप-कुलपति को पदच्युत कर दिया गया था क्योंकि उसने एक कैथोलिक को डिग्री देने से इनकार कर दिया था. ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में भी कैथोलिक धर्म का प्रचार की व्यवस्था की गई. क्रिस्ट चर्च के अध्यक्ष के पद पर एक कट्टर रोमन कैथोलिक को नियुक्त किया गया. विश्वविद्यालय के कार्यों में हस्तक्षेप से भी इंग्लैंड की जनता असंतुष्ट थी.
धार्मिक न्यायालय की स्थापना
1686 ई. में जेम्स द्वितीय ने धार्मिक न्यायालय की स्थापना की. इस न्यायालय का मुख्य उद्देश्य पादरियों को राजा की इच्छानुसार कार्य करने के लिए बाध्य करना था. धार्मिक न्यायालय द्वारा कैथोलिक धर्म के विरोधियों को क्रूर सजा दी जाती थी.
स्थायी सेना में वृद्धि
जेम्स द्वितीय को सुरक्षित सिंहासन प्राप्त हुआ था. उस समय न तो आंतरिक विरोध की संभावना थी और न विदेशी आक्रमण का भय था. फिर भी जेम्स द्वितीय स्थायी सेना में वृद्धि करना चाहता था. सैनिकों में अधिकांश कैथोलिक थे. इससे लोगों का आतंकित होना स्वाभाविक था. उन्हें विश्वास हो गया था कि जेम्स द्वितीय स्थायी सेना की सहायता से स्वेच्छाचारी शासन की स्थापना करेगा और कैथोलिक धर्म का प्रचार-प्रसार करेगा.
स्कॉटलैंड और आयरलैंड के प्रति नीति
`जेम्स द्वितीय के स्वेच्छाचारी शासन का प्रभाव स्कॉटलैंड और आयरलैंड पर भी पड़ा था. उसने वहाँ भी ऊँचे-ऊँचे पदों पर कैथोलिकों की नियुक्ति की. आयरलैंड के प्रोटोस्टेंट भयभीत हो गए. स्कॉटलैंड में रोमन कैथोलिकों को पूरी धार्मिक स्वतंत्रता दी गई. इससे लोगों में असंतोष बढ़ा जिसके कारण आगे चलकर क्रांति संभव हो सकी.
चुनाव में हस्तक्षेप
जेम्स द्वितीय चुनाव में भी हस्तक्षेप करने लगा था. वह संसद के सदस्यों को नामजद (nominate) भी करने लगा था. वह अपने समर्थकों की संख्या संसद में बढ़ाना चाहता था. इससे संसद के सदस्य असंतुष्ट थे.
सात पादरियों का मुकदमा
जेम्स द्वितीय ने 1688 ई. में दूसरी घोषणा प्रकाशित की. उसने राज्य के प्रत्येक चर्च में इसे लगातार दो रविवारों को पढ़ने का आदेश दिया था. राजा की घोषणा की संसद की स्वीकृति प्राप्त नहीं थी. इसलिए राजा के आदेश को स्वीकार करना राजा की निरंकुशता को स्वीकार करना था. कैंटरबरी के आर्कविशप और छ: अन्य विशपों ने राजा के सामने एक आवेदन-पत्र प्रस्तुत कर आदेश को वापस लेने की माँग की. जेम्स द्वितीय ने इनपर राजद्रोह का अभियोग लगाकर मुकदमा चलवाया. लेकिन न्यायालय ने विशपों को निर्दोष घोषित किया. इससे लोगों ने आनंद और उत्साह की लहर दौड़ गई.
पुत्र का जन्म
जैसा हमने ऊपर भी लिखा है कि जेम्स द्वितीय ने अपनी कैथोलिक पत्नी से एक पुत्र को को जन्म दिया. इससे लोगों को लगने लगा कि यह कैथोलिक हमेशा उनपर भविष्य में भी हावी ही रहेंगे. उन्हें विश्वास हो गया कि बच्चे का लालन-पालन कैथोलिक वातावरण में होगा और उसे कैथोलिक शिक्षा दी जाएगी. इस प्रकार जेम्स द्वितीय की मृत्यु के बाद कैथोलिक शासन चलता रहेगा. इस आसह्नका से ही लोग भयभीत हो गए. अब वे क्रांति के द्वारा ही कैथोलिक शासन का अंत कर सकते थे.
क्रांति के परिणाम
- राजा की शक्ति में कमी आई.
- संसद के अधिकारों में वृद्धि हुई.
- क्रांति के बाद अनेक अधिनियम बने.
- धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया गया.
- नौ-सेना, स्थल सेना आदि के व्यय के ब्योरे और ऋण का अनुमान लगाया.
- न्यायालय को स्वतंत्रता मिली.
- फ़्रांस को पराजित कर इंग्लैंड ने एक नयी यूरोपीय नीति अपनाई.
- स्कॉटलैंड को क्रांति से सांविधानिक और राजनीतिक लाभ प्राप्त हुए.
- क्रांति का आयरलैंड पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा. आयरलैंड का ऊन का व्यापार चौपट हो गया.
1688 ई. की क्रांति इंग्लैंड के इतिहास में एक युगांतकारी घटना थी. निरंकुश राजतंत्र की परम्परा समाप्त हो गयी और राजा को वैधानिक सीमा में जकड़ दिया गया. 1689 ई . में अधिकार-विधेयक पारित हुआ. इसके अनुसार, राजा संसद की सहमति के बिना न तो किसी कानून को स्थगित कर सकता था, न किसी नए कानून को लागू कर सकता था, न नया कर लगा सकता था और न किसी व्यक्ति की सजा माफ़ कर सकता था. यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि कैथोलिक या कैथोलिक स्त्री से शादी करने वाला कोई भी व्यक्ति इंग्लैंड की गद्दी का अधिकारी नहीं होगा. निरंकुश राजतंत्र की जगह नियमानुमोदित शासन की स्थापना हुई. संसद की शक्ति बढ़ी. वह राजसत्ता पर नियंत्रण रखने लगी और राजकोष पर उसका एकमात्र अधिकार हो गया.
संसद ने विद्रोही-कानून पास किया गया. इससे सेना पर संसद का नियंत्रण हो गया. त्रैवार्षिक कानून पास कर हर तीसरे वर्ष पर संसद का निर्वाचन अनिवार्य कर दिया गया. सहिष्णुता-कानून पास कर सभी प्रोटेस्टेंट सम्प्रदायों को धार्मिक स्वतंत्रता दी गयी. 1701 ई. में उत्तराधिकार निर्णायक कानून बना. इसके अनुसार ये तय हुआ कि इंग्लैंड का राजा प्रोटेस्टेंट ही होगा. कार्यपालिका, न्यायपालिका और व्यवस्थापिका पर संसद का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया. अब राजा की जगह संसद संप्रभु हो गया. राजा की निरंकुशता समाप्त हो गई और संसद की संप्रुभता स्थापित हुई.
6 Comments on “इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति -Glorious Revolution 1688 in Hindi”
Very nice sir
Rus ki kranti, odhoyogik kranti or world war ka content daliye
Sir apka pura history ka notes kaise milega upsc optional ke liye
Very nice……
Sir iska pdf kaise download kren
sir ias ke liye kon kon se book read krni pdegii
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