गदर पार्टी के बारे में जानें – Gadar Party 1913 in Hindi

Sansar LochanHistory, Modern History

विदेशों में क्रांतिकारी गतिविधियों में गदर पार्टी विशेष रूप से उल्लेखनीय है. इसकी स्थापना लाला हरदयाल ने की थी. 1911 ई. में वह कैलिफ़ोर्निया पहुँचे. 1912 ई. में उन्होंने एक परचा निकाला जिसमें हार्डिंग पर हमले को उचित ठहराया गया था. उन्होंने 10 मई, 1913 ई. को भारतीयों की सभा की जिसमें भारत में गदर (क्रांति) कराने के लिए गदर पार्टी की स्थापना की गई.

एक साप्ताहिक समाचार-पत्र “गदर” निकालने तथा उसे मुफ्त बाँटने का भी निर्णय लिया गया. छापाखाने का नाम “युगांतर आश्रम प्रेस” रखा गया. गदर पत्रिका अंग्रेजी  में प्रकाशित होती थी तथा इसका अनुवाद कई भाषाओं (हिंदी, उर्दू, पंजाबी और गुजराती) में होता था. इसके संपादक बा. गोविन्द बिहारीलाल थे. यह समाचार पत्र चीन, जापान, सिंगापुर, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा, बर्मा और अन्य उन देशों में जहाँ-जहाँ भारतीय रहते थे भेजा जाता था. यह पत्र भारतवासियों को जोरदार भाषा में राज्य क्रान्ति करने के लिए ललकारता था. अनेक रुकावटों के होते हुए भी यह पत्र खुले या गुप्त रूप में उन सभी देशों में पहुँच जाता था जहाँ भारतवासी रहते थे.

जो देशभक्त उस पार्टी की स्थापना के समय उपस्थित थे, उनके नाम ये हैं –

1) पं. जगतराम 2) सरदार करतार सिंह 3) सरदार सिंह डक्की 4) रूढसिंह बिज्जल 6) श्री तारकनाथ दास 7) बा. गोविन्दबिहारी लाल

लाला हरदयाल

शायद आधुनिक पीढ़ी लाला हरदयाल के सम्बन्ध में अधिक नहीं जानती हो क्योंकि अंग्रेजी सरकार उनके तेज को देर तक नहीं सह सकी और उन्हें बहुत जल्दी देश छोड़कर चले जाना पड़ा. जितने दिन वह देश में रहे, उग्र क्रांति के केंद्र बने रहे और विदेश जाकर भी जब तक जिए राष्ट्र की चिंता और सेवा में लगे रहे. उनका पंजाब के नवजीवन के निर्माण में विशेष हाथ था. लाला हरदयाल बहुत ही मेधावी छात्र रहे थे. अंग्रेजी भाषा पर उनका ऐसा प्रभुत्व था कि कई पर्चों में उन्हें पूरे-पूरे अंक प्राप्त हुए थे.

लाला हरदयाल को विश्वास हो गया था कि अग्रेज लोग हिन्दुओं के चरित्र का नाश कर रे हैं, उनकी शिक्षा सम्बन्धी नीति और तरीके हिंदुत्व को क्षीण करने और उनकी सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय व्यक्तित्व का नाश करके जाति की राजनीतिक दासता को लम्बायमाँ करने वाले हैं.

लाला हरदयाल की प्रतिभा तो चमत्कारपूर्ण थी ही. थोड़े ही समय में उनकी ख्याति अमेरिका के विश्वविद्यालयों में फ़ैल गई और कई अमेरिकन विद्वान् उनके भक्त बन गये. वहाँ के कई समाचार पत्रों ने उन्हें “हिन्दू ऋषि” की  उपाधि दे दी.

गदर पार्टी का उद्देश्य

भारत को पूर्णरूप से स्वतंत्र कराना गदर पार्टी का उद्देश्य था. लाला हरदयाल भारतीय सैनिकों में विद्रोह की भावना का प्रसार करना चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि इसके बिना स्वतंत्रता की प्राप्ति संभव नहीं हो सकती थी. गदर पार्टी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जर्मनी, तुर्की आदि देशों से भी सहायता प्राप्त करना चाहती थी. युद्ध आरम्भ होने पर इंग्लैंड के कहने पर अमेरिका ने लाला हरदयाल को देश से निकाल दिया. हरदयाल ने जर्मनी में अपना ठिकाना बना लिया. वहाँ उन्होंने “भारतीय स्वतंत्रता समिति” की स्थापना की. उनकी प्रेरणा से काबुल  में अस्थायी सरकार बनाई गई जिसके अध्यक्ष राजा महेंद्र प्रताप थे. उन्होंने काबुल में रहकर भारत में क्रान्ति करने की योजना बनाई.

क्रान्ति की योजना

1857 के बाद सेना के व्यापक विद्रोह का यह पहला प्रयास था. योजना यह थी कि ईरान, अरब, ईराक, अफगानिस्तान के मुसलमानों का सहयोग लेते हुए तथा पंजाब में सिखों का सहयोग लेते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई की जाये. इस उद्देश्य से भारत में गोला-बारूद और अस्त्र-शस्त्र भेजे गये. लाहौर, बनारस, मेरठ आदि छावनियों में विद्रोह कराने की योजना बनाई गई थी. इसमें रासबिहारी बोस, शचीन्द्र नाथ सान्याल, गणेश पिंगले, करतारसिंह आदि क्रांतिकारियों ने सहयोग प्रदान किया था. लेकिन सरकार को किसी सूत्र से इन लोगों की योजना का पता चल गया. इसे ही लाहौर षड्यंत्र के नाम से भी जाना जाता था.

प्रांत भर में क्रांतिकारियों का ऐसा जाल-सा फ़ैल गया कि उसे समेटने के लिए सरकार को पूरी शक्ति लगानी पड़ी. सैकड़ों गिरफ्तारियाँ हुईं, फाँसियाँ दी गईं और लाहौर षड्यंत्र केस नाम के तीन बड़े-बड़े मुकदमे चलाये गये. क्रांति की चिंगारियों को शांत करने के लिए पंजाब में भारत रक्षा कानून (Defence of India Act) लागू किया गया, जिसके अनुसार षड्यंत्र सबंधी अभियोग स्पेशल ट्रिब्यूनल के सामने पेश किये जाते थे.

कामा गाटा मारू कांड

क्रांतिकारी गतिविधियों का एक अच्छा उदाहरण कामा गाटा मारू कांड है. बाबा गुरुदत्त सिंह ने कामा गाटा मारू नाम के जहाज को भाड़े पर लिया था. इसमें सवार होकर 350 से अधिक पंजाबी सिख, मुसलमान कनाडा के बेन्क्वावर बंदरगाह पहुँचे. उनका उद्देश्य कनाडा में बसना था. लेकिन कनाडा सरकार द्वारा उन्हें उतरने की अनुमति नहीं दी जाने से उन्हें वापस कलकत्ता आना पड़ा. कलकत्ता में बाबा गुरुदत्त सिंह को गिरफ्तार करने का प्रयत्न किया गया, लेकिन वह बच कर निकल गया. यहाँ पुलिस का अन्य यात्रियों से संघर्ष हुआ जिसमें काफी लोग मारे गए, जेल भेज दिए गए और कुछ निकल भागने में सफल हो गए. इससे पंजाब में चारों ओर रोष व्याप्त हो गया. गदर पार्टी ने इस घटना का सभी देशों में प्रचार किया. इससे विदेशी भारतीयों में भी रोष फैला.

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