फ्रांस की क्रांति (French Revolution): भूमिका
18वीं शताब्दी के 70-80 के दशकों में विभिन्न कारणों से राजा और तत्कालीन राजव्यवस्था के प्रति फ्रांस के नागरिकों में विद्रोह की भावना पनप रही थी. यह विरोध धीरे-धीरे तीव्र होता चला गया. अंततोगत्वा 1789 में राजा लुई 16वाँ (Louis XVI) को एक सभा बुलानी पड़ी. इस सभा का नाम General State था. यह सभा कई वर्षों से बुलाई नहीं गयी थी. इसमें सामंतों के अतिरिक्त सामान्य वर्ग के भी प्रतिनिधि होते थे. इस सभा में जनता की माँगों पर जोरदार बहस हुई. स्पष्ट हो गया कि लोगों में व्यवस्था की बदलने की बैचैनी थी. इसी बैचैनी का यह परिणाम हुआ कि इस सभा के आयोजन के कुछ ही दिनों के बाद सामान्य नागरिकों का एक जुलूस बास्तिल नामक जेल पहुँच गया और उसके दरवाजे तोड़ डाले गए. सभी कैदी बाहर निकल गए. सच पूंछे तो नागरिक इस जेल को जनता के दमन का प्रतीक मानते थे. कुछ दिनों के बाद महिलाओं का एक दल राजा के वर्साय स्थित दरबार को घेरने निकल गया जिसके फलस्वरूप राजा को पेरिस चले जाना पड़ा. इसी बीच General State ने कई क्रांतिकारी कदम भी उठाना शुरू किए. यथा – मानव के अधिकारों की घोषणा, मेट्रिक प्रणाली का आरम्भ, चर्च के प्रभाव का समापन, सामंतवाद की समाप्ति की घोषणा, दास प्रथा के अंत की घोषणा आदि. General State के सदस्यों में मतभेद भी हुए. कुछ लोग क्रांति के गति को धीमी रखना चाहते थे. कुछ अन्य प्रखर क्रान्ति के पोषक थे. इन लोगों में आपसी झगड़े भी होने लगे पर इनका नेतृत्व कट्टर क्रांतिकारियों के हाथ में रहा. बाद में इनके एक नेता Maximilian Robespierre हुआ जिसने हज़ारों को मौत के घाट उतार दिया. उसके एक वर्ष के नेतृत्व को आज भी आतंक का राज (Reign of terror) कहते हैं. इसकी परिणति स्वयं Louis 16th और उसकी रानी की हत्या से हुई. राजपरिवार के हत्या के पश्चात् यूरोप के अन्य राजाओं में क्रोध उत्पन्न हुआ और वे लोग संयुक्त सेना बना-बना कर क्रांतिकारियों के विरुद्ध लड़ने लगे. क्रांतिकारियों ने भी एक सेना बना ली जिसमें सामान्य वर्ग के लोग भी सम्मिलित हुए. क्रान्ति के नए-नए उत्साह के कारण क्रांतिकारियों की सेना बार-बार सफल हुई और उसका उत्साह बढ़ता चला गया. यह सेना फ्रांस के बाहर भी भूमि जीतने लगी. इसी बीच इस सेना का एक सेनापति जिसका नाम नेपोलियन बोनापार्ट था, अपनी विजयों के कारण बहुत लोकप्रिय हुआ. इधर फ्रांस के अन्दर कट्टर क्रांति से लोग ऊब चुके थे. इसका लाभ उठाते हुए और अपनी लोकप्रियता को भुनाते हुए नेपोलियन ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया और एक Consulate बना कर शासन चालने लगा. यह शासन क्रांतिकारी सिद्धांतों पर चलता रहा. अंततः नेपोलियन ने सम्राट की उपाधि अपने आप को प्रदान की और इस प्रकार फ्रांसमें राजतंत्र दुबारा लौट आया. इस प्रकार हम कह सकते हैं फ्रांस की क्रांति (French Revolution) अपनी चरम अवस्था में थी.
1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution) आधुनिक युग की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी. यह क्रांति (French Revolution) निरंकुश राजतंत्र, सामंती शोषण, वर्गीय विशेषाधिकार तथा प्रजा की भलाई के प्रति शासकों की उदासीनता के विरुद्ध प्रारंभ हुई थी. उस समय फ्रांस में न केवल शोषित और असंतुष्ट वर्ग की विद्दमान थे, बल्कि वहाँ के आर्थिक और राजनैतिक ढाँचा में भी विरोधाभास देखा जा सकता था. राजनैतिक शक्ति का केन्द्रीकरण हो चुका था. सम्पूर्ण देश की धुरी एकमात्र राज्य था. समाज का नेतृत्व शनैः शनैः बुद्धिजीवी वर्ग के हाथ में आ रहा था. राजा शासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था. राजा की इच्छाएँ ही राज्य का कानून था. लोगों को किसी प्रकार का नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं था. राजा के अन्यायों और अत्याचारों से आम जनता परेशान थी. भाषण, लेखन और प्रकाशन पर कड़ा प्रतिबंध लगा हुआ था. लोगों को धार्मिक स्वंतत्रता भी नहीं दी गयी थी. राष्ट्र की सम्पूर्ण आय पर राजा का निजी अधिकार था. सम्पूर्ण आमदनी राजा-रानी और दरबारियों के भोग-विलास तथा आमोद-प्रमोद पर खर्च हो जाता था. राज्य के उच्च पदों पर राजा के कृपापात्रों की नियुक्ति होती थी. स्थानीय स्वशासन का अभाव था. फ्रांसीसी समाज दो टुकड़ों में बँट कर रह गया था – एक सुविधा-प्राप्त वर्ग और दूसरा सुविधाहीन वर्ग.
फ्रांस की क्रांति (French Revolution) का प्रभाव विश्वव्यापी हुआ. इसके फलस्वरूप निरंकुश शासन तथा सामंती व्यवस्था का अंत हुआ. प्रजातंत्रात्मक शासन-प्रणाली की नींव डाली गई. सामजिक, आर्थिक और धार्मिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार लाये गए.
राजनैतिक कारण
i) निरंकुश राजतंत्र
राजतंत्र की निरंकुशता फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution) का एक प्रमुख कारण था. राजा शासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था. वह अपनी इच्छानुसार काम करता था. वह अपने को ईश्वर का प्रतिनिधि बतलाता था. राजा के कार्यों के आलोचकों को बिना कारण बताए जेल में डाल दिया जाता था. राजा के अन्यायों और अत्याचारों से आम जनता तबाह थी. वह निरंकुश से छुटकारा पाने के लिए कोशिश करने लगी.
ii) स्वतंत्रताओं का अभाव
फ्रान्स में शासन का अति केन्द्रीकरण था. शासन के सभी सूत्र राजा के हाथों में थे. भाषण, लेखन और प्रकाशन पर कड़ा प्रतिबंध लगा हुआ था. राजनैतिक स्वतंत्रता का पूर्ण अभाव था. लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता भी नहीं थी. बंदी प्रत्यक्षीकरण नियम की व्यवस्था नहीं थी. न्याय और स्वतंत्रता की इस नग्न अवहेलना के कारण लोगों का रोष धीरे-धीरे क्रांति का रूप ले रहा था.
iii) राजप्रसाद का विलासी जीवन और धन का अपव्यय
राष्ट्र की सम्पूर्ण आय पर राजा का निजी अधिकार था. सम्पूर्ण आमदनी राजा-रानी और दरबारियों के भोग-विलास तथा आमोद-प्रमोद पर खर्च हुआ होता था. रानी बहुमूल्य वस्तुएँ खरीदने में अपार धन खर्च करती थी. एक ओर किसानों, श्रमिकों को भरपेट भोजन नहीं मिलता था तो दूसरी ओर सामंत, कुलीन और राजपरिवार के सदस्य विलासिता का जीवन बिताते थे.
iv) प्रशासनिक अव्यवस्था
फ्रान्स का शासन बेढंगा और अव्यवस्थित था. सरकारी पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं होती थी. राजा के कृपापात्रों की नियुक्ति राज्य के उच्च पदों पर होती थी. भिन्न-भिन्न प्रान्तों में अलग-अलग कानून थे. कानून की विविधता के चलते स्वच्छ न्याय की आशा करना बेकार था.
सामजिक कारण
i) पादरी वर्ग
फ्रांसमें रोमन कैथोलिक चर्च की प्रधानता थी. चर्च एक स्वतंत्र संस्था के रूप में काम कर रहा था. इसका अपना अलग संगठन था, अपना न्यायालय था और धन प्राप्ति का स्रोत था. देश की भूमि का पाँचवा भाग चर्च के पास था. चर्च की वार्षिक आमदनी करीब तीस करोड़ रुपये थी. चर्च स्वयं करमुक्त था, लेकिन उसे लोगों पर कर लगाने का विशेष अधिकार प्राप्त था. चर्च की अपार संपत्ति से बड़े-बड़े पादरी भोग-विलास का जीवन बिताते थे. धर्म के कार्यों से उन्हें कोई मतलब नहीं था. वे पूर्णतया सांसारिक जीवन व्यतीत करते थे.
ii) कुलीन वर्ग
फ्रांसका कुलीन वर्ग सुविधायुक्त एवं सम्पन्न वर्ग था. कुलीनों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे. वे राजकीय कर से मुक्त थे. राज्य, धर्म और सेना के उच्च पदों पर कुलीनों की नियुक्ति होती थी. वे किसानों से कर वसूल करते थे. वे वर्साय के राजमहल में जमे रहते और राजा को अपने प्रभाव में बनाए रखने की पूरी कोशिश करते थे. कुलीनों के विशेषाधिकार और उत्पीड़न ने साधारण लोगों को क्रांतिकारी बनाया था.
iii) कृषक वर्ग
किसानों का वर्ग सबसे अधिक शोषित और पीड़ित था. उन्हें कर का बोझ उठाना पड़ता था. उन्हें राज्य, चर्च और जमींदारों को अनेक प्रकार के कर देने पड़ते थे. कृषक वर्ग अपनी दशा में सुधार लान चाहते थे और यह सुधार सिर्फ एक क्रांति द्वारा ही आ सकती थी.
iv) मजदूर वर्ग
मजदूरों और कारीगरों की दशा अत्यंत दयनीय थी. औद्योगिक क्रान्ति के कारण घरेलू उद्योग-धंधों का विनाश हो चुका था और मजदूर वर्ग बेरोजगार हो गए थे. देहात के मजदूर रोजगार की तलाश में पेरिस भाग रहे थे. क्रांति के समय (French Revolution) मजदूर वर्ग का एक बड़ा गिरोह तैयार हो चुका था.
v) मध्यम वर्ग
माध्यम वर्ग के लोग सामजिक असमानता को समाप्त करना चाहते थे. चूँकि तत्कालीन शासन के प्रति सबसे अधिक असंतोष मध्यम वर्ग में था, इसलिए क्रांति (French Revolution) का संचालन और नेतृत्व इसी वर्ग ने किया.
आर्थिक कारण
विदेशी युद्ध और राजमहल के अपव्यय के कारण फ्रांस की आर्थिक स्थिति लचर हो गयी थी. आय से अधिक व्यय हो चुका था. खर्च पूरा करने के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा था. कर की असंतोषजनक व्यवस्था के साथ-साथ शासकों की फिजूलखर्ची से फ्रांसकी हालत और भी ख़राब हो गई थी.
बौधिक जागरण
विचारकों और दार्शनिकों ने फ्रांसकी राजनैतिक एवं सामाजिक बुराइयों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया और तत्कालीन व्यवस्था के प्रति असंतोष, घृणा और विद्रोह की भावना को उभरा. Montesquieu, Voltaire, Jean-Jacques Rousseau के विचारों से मध्यम वर्ग सबसे अधिक प्रभावित था. Montesquieu ने समाज और शासन-व्यवस्था की प्रसंशा Power-Separation Theory का प्रतिपादन किया. वाल्टेयर ने सामाजिक एवं धार्मिक कुप्रथाओं पर प्रहार किया. रूसो ने राजतंत्र का विरोध किया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल दिया. उसने जनता की सार्वभौमिकता के सिद्धांत (Principles of Rational and Just Civic Association) का प्रतिपादन किया. इन लेखकों ने लोगों को मानसिक रूप से क्रान्ति के लिए तैयार किया.
सैनिकों में असंतोष
फ्रांस की सेना भी तत्कालीन शासन-व्यवस्था से असंतुष्ट थी. सेना में असंतोष फैलते ही शासन का पतन अवश्यम्भावी हो जाता है. सैनिकों को समय पर वेतन नहीं मिलता था. उनके खाने-पीने तथा रहने की उचित व्यवस्था नहीं थी. उन्हें युद्ध के समय पुराने अस्त्र-शस्त्र दिए जाते थे. ऐसी स्थिति में सेना में रोष का उत्पन्न होना स्वाभाविक था.
फ्रांसीसी क्रांति के परिणाम
निरंकुश शासन का अंत कर प्रजातंत्रात्मक शासन-प्रणाली की नींव डाली गई. प्रशासन के साथ-साथ सामजिक, धार्मिक एवं आर्थिक जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए. फ्रांस की क्रांति (French Revolution) ने निरंकुश शासन का अंत कर लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांत को प्रतिपादित किया. क्रांति के पूर्व फ्रांसऔर अन्य यूरोपीय देशों के शासक निरंकुश थे. उनपर किसी प्रकार का वैधानिक अंकुश नहीं था. क्रांति ने राजा के विशेषाधिकारों और दैवी अधिकार सिद्धांत पर आघात किया. इस क्रांति के फलस्वरूप सामंती प्रथा (Feudal System) का अंत हो गया. कुलीनों के विदेषाधिकार समाप्त कर दिए गए. किसानों को सामंती कर से मुक्त कर दिया गया. कुलीनों और पादरियों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गये. लोगों को भाषण-लेखन तथा विचार-अभीव्यक्ति का अधिकार दिया गया. फ्रांस की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कर-प्रणाली (tax system) में सुधार लाया गया. कार्यपालिका, न्यायपालिका और व्यवस्थापिका को एक-दूसरे से पृथक् कर दिया गया. अब राजा को संसद के परामर्श से काम करना पड़ता था. न्याय को सुलभ बनाने के लिए न्यायालय का पुनर्गठन किया गया. सरकार के द्वारा सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था की गई. फ्रांसमें एक एक प्रकार की शासन-व्यवस्था स्थापित की गई, एक प्रकार के आर्थिक नियम बने और नाप-तौल की नयी व्यवस्था चालू की गई. लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली. उन्हें किसी भी धर्म के पालन और प्रचार का अधिकार मिला. पादरियों को संविधान के प्रति वफादारी की शपथ लेनी पड़ती थी. French Revolution ने लोगों को विश्वास दिलाया कि राजा एक अनुबंध के अंतर्गत प्रजा के प्रति उत्तरदायी है. यदि राजा अनुबंध को भंग करता है तो प्रजा का अधिकार है कि वह राजा को पदच्युत कर दे. यूरोप के अनेक देशों में निरंकुश राजतंत्र को समाप्त कर प्रजातंत्र की स्थापना की गयी.
59 Comments on “[विश्व इतिहास] फ्रांस की क्रांति – 1789 French Revolution”
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