भूस्खलन क्या है और कैसे होता है? जानें Landslide Warning System के बारे में

Sansar LochanGeography, विश्व का भूगोल

गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में चट्टानी मलबे एवं भू-सतह जैसे ढलान पर स्थित पदार्थों का नीचे तथा बाहर की ओर संचलन भूस्खलन कहलाता है. आइये जानते हैं इस पोस्ट में भूस्खलन कैसे होता है? भूस्खलन चेतावनी प्रणाली (Landslide Warning System) कैसे काम करती है? लैंडस्लाइड और हिमस्खलन (snow avalanches) के प्रबन्धन के लिए क्या-क्या किया जाना चाहिए?

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भूमिका

भारत में मानव-प्रेरित भूस्खलनों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. विचारणीय है कि 2004-2016 के अंतराल 28% निर्माण-प्रेरित landslide की परिघटनाएं घटित हुई थीं, इसके बाद चीन (9%), पाकिस्तान (6%), फिलिपिन्स (5%), नेपाल (5%) और मलेशिया (5%) का स्थान है.

भूस्खलन के कारण कृत्रिम झीलों का निर्माण हो जाता है, जो प्रभावित फ्लैश फ्लड (अकस्मात् आने वाली बाढ़) को प्रेरित कर सकता है. पृथ्वी पर लैंडस्लाइड तीसरी सर्वाधिक विनाशक प्राकृतिक आपदा है. भूस्खलन आपदा प्रबन्धन पर प्रतिवर्ष लगभग 400 अरब डॉलर का व्यय किया जा रहा है.

भूस्खलन के कारण

प्रमुख कारण

Landslide की घटनाएँ मुख्य रूप से प्राकृतिक कारणों से घटित होती हैं जैसे भूकंपीय कम्पन और दीर्घकालिक वर्षा या सीपेज के कारण मृदा परतों के मध्य जल का दाब. हाल के दशकों में, भूस्खलन के लिए उत्तरदायी मानवीय कारण महत्त्वपूर्ण हो गये हैं. इन कारणों में ढलानों पर स्थित वनस्पति की कटाई, प्राकृतिक जल निकासी में अवरोध, जल या सीवर लाइनों में रिसाव तथा सड़क, रेल, भवन-निर्माण के कार्यों के चलते ढलानों को परिवर्तित करना आदि शामिल हैं.

मौसम-प्रेरित भूस्खलन

उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल के दौरान landslide की घटनाएँ उस समय अपेक्षाकृत अधिक होती हैं, जब एशिया के कुछ हिस्सों में चक्रवात, तूफान और टाइफून की अधिकता होती है और मानसूनी मौसम के कारण भारी वर्षा होती है.

अवैध खनन

पहाड़ों को काटने के कारण होने वाले लैंडस्लाइड ग्रामीण क्षेत्रों में एक प्रमुख समस्या हैं, जहाँ लोग घरों के निर्माण के लिए अवैध रूप से पहाड़ी ढलानों पर स्थित सामग्री को एकत्रित करते हैं. घातक भूस्खलन सामान्यतः सडकों और बहुमूल्य संसाधनों से समृद्ध स्थलों के निकट स्थित बसावटों में अधिक घटित होते हैं.

भूकम्प

लैंडस्लाइड-प्रवण हिमालयी क्षेत्र अत्यधिक भूकम्प-प्रवण क्षेत्र है जहाँ तीव्रता वाले भूकम्प आते हैं और इस प्रकार यह क्षेत्र भूकम्प-प्रेरित भूस्खलन के लिए भी प्रवण बन जाता है. भूकम्प-प्रेरित लैंडस्लाइड के कारण हिमालय में लगभग 70 जलबिजली परियोजनाएँ संकट में हैं.

भारत से सम्बंधित लैंडस्लाइड डाटा

ग्लोबल फैटल लैंडस्लाइड डाटाबेस (Global Fatal Landslide Database : GFLD) के अनुसार, एशिया महाद्वीप को सर्वाधिक प्रभावित माना गया है जहाँ 75% (भारत में 20%) landslide की घटनाएँ घटीं. ये घटनाएँ मुख्य रूप से हिमालयी चाप के साथ संलग्न क्षेत्र में घटित हुई हैं.

लैंडस्लाइड से सम्बन्धित वैश्विक डाटाबेस के अनुसार, विश्व के शीर्ष दो भूस्खलन हॉट स्पॉट भारत में विद्यमान हैं : हिमालयी चाप की दक्षिणी सीमा और दक्षिण-पश्चिम भारत का तट जहाँ पश्चिमी घाट अवस्थित है.

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के अनुसार, भारत के कुल स्थलीय क्षेत्र का लगभग 12.6% भूस्खलन-प्रवण संकटग्रस्त क्षेत्र के अंतर्गत आता है.

सिक्किम की सुभेद्यता: यह 4,895 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र लैंडस्लाइड के प्रति संवेदनशील है, जिसमें से 3,638 वर्ग किमी क्षेत्र मानव जनसंख्या, सड़कों और अन्य अवसंरचनाओं से घिरा हुआ है.

Landline Warning System

हाल ही में, पूर्वोत्तर हिमालय के सिक्किम-दार्जलिंग क्षेत्र में एक वास्तविक समय (Real Time) आधारित भूस्खलन चेतावनी प्रणाली की स्थापना की गई है. इसके माध्यम से 24 घंटे पहले ही अग्रिम चेतावनी जारी की जा सकेगी. इस प्रणाली में 200 से अधिक सेंसर हैं जो भूगर्भीय और हाइड्रोलॉजिकल मापदंडों जैसे – वर्षा, पोर प्रेशर (मृदा में स्थित जल का दाब) और भूकम्पीय गतिविधियों का मापन कर सकते हैं.

इसे सिक्किम राज्य आपदा प्रबन्धन के सहयोग से केरल स्थित अमृता विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने स्थापित किया है. इसे आंशिक रूप से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया गया है. इस विश्वविद्यालय द्वारा पूर्व में केरल के मुन्नार जिले में एक भूस्खलन चेतावनी प्रणाली की स्थापना की जा चुकी है.

भूस्खलन और हिमस्खलन पर रोकथाम के लिए उठाये जा सकने वाले मानवीय कदम

  1. देश को प्रभावित करने वाली landslide घटनाओं से सम्बन्धित सूची तैयार करना और उसे निरंतर अद्यतन करना.
  2. सीमा सड़क संगठन, राज्य सरकारों और स्थानीय समुदायों के परामर्श से क्षेत्रों की पहचान और प्राथमिक निर्धारण के बाद सूक्ष्म और वृहत स्तर पर भूस्खलन खतरे की क्षेत्रीय मैपिंग करना.
  3. भूस्खलन शोध, अध्ययन और प्रबन्धन के लिए एक स्वायत्त राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना करना.
  4. ढलानों के स्थिरीकरण के लिए गति अवरोधकों (pacesetter) की स्थापना करना.
  5. Landslide सम्बन्धी शिक्षा एवं पेशेवरों के प्रशिक्षण को बढ़ावा देना.
  6. भूस्खलन अध्ययन पर नई संहिता और दिशा-निर्देशों का विकास करना और मौजूदा दिशा-निर्देशों में संशोधन करना.

वर्तमान में लैंडस्लाइड को रोकने से सम्बन्धित भारत द्वारा उठाये कदम

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India : GSI)

  • GSI भूस्खलन डेटा संग्रह और भूस्खलन अध्ययन करने के लिए भारत सरकार की एक “नोडल एजेंसी” है तथा इसके द्वारा सभी प्रकार के भूस्खलनों और ढाल स्थिरता सम्बन्धी शोध कार्य किया जाता है.
  • यह खान मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत है.

नेशनल लैंडस्लाइड ससेप्टिबिलिटी मैपिंग (NLSM), 2014

  • GSI द्वारा 2018 के अंत तक लगभग 1.71 लाख वर्ग किसी क्षेत्र को कवर करने वाले भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रों (Landslide Susceptibility Maps) के निर्माण को सम्पन्न करने हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया है.
  • इस परियोजना द्वारा भारत के सभी भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों का समेकित भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र और भूस्खलन इन्वेंटरी मानचित्र प्रदान किया जाएगा, जिसका उपयोग आपदा प्रबन्धन समूहों के वास्तुकारों तथा भावी योजनाकारों द्वारा किया जा सकता है.

नेशनल लैंडस्लाइड रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट (NLRMP)

NDMA (National Disaster Management Authority) द्वारा एक नेशनल लैंडस्लाइड रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट (NLRMP) चलाया जा रहा है. इस परियोजना के अंतर्गत मिजोरम में एक भूस्खलन स्थल का चयन किया गया है.

भूस्खलन पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम (International Programme on Landslides : IPL)

IPL का उद्देश्य लैंडस्लाइड जोखिम शमन पर विशेष रूप से विकासशील देशों में अंतर्राष्ट्रीय सहकारी अनुसन्धान और क्षमता निर्माण करना है. समाज और पर्यावरण के लाभ के लिए सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का संरक्षण किया जायेगा. IPL की गतिविधियों द्वारा आपदा न्यूनीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय रणनीति (ISDR) में योगदान दिया जाएगा.

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