[Sansar Editorial] विशेष राज्य का दर्जा क्या होता है और यह किसे दिया जाता है?

RuchiraSansar Editorial 201816 Comments

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विशेष राज्य का दर्जा देने की प्रथा 5th pay commission के recommendation पर 1969 में प्रारम्भ की गई थी. शुरुआत में विशेष राज्य का दर्जा तीन राज्यों को दिया गया – असम, नागालैंड और जम्मू कश्मीर. आज कुल 11 राज्यों के पास विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है. आज हम जानेंगे कि विशेष राज्य का दर्जा क्या होता है और यह किस राज्य को दिया जा सकता है? संविधान में इसे लेकर क्या प्रावधान हैं और Gadgil Formula क्या है? किन परिस्थतियों में किसी राज्य को special category status दिया जाता है?

चर्चा में क्यों?

Update 10 February, 2019: आंध्र प्रदेश ने विशेष राज्य दर्जे (Special Category Status – SCS) के लिए अपनी माँग फिर से दुहराई है.

वैसे आंध्र प्रदेश special category status को मांगने वाला पहला राज्य नहीं है. इससे पहले बिहार,ओडिशा समेत कई राज्य विशेष राज्य की श्रेणी को लेकर माँग कर चुके हैं.

चिंतनीय बातें

यदि किसी नए राज्य को विशेष दर्जा मिलता है तो इसका परिणाम यह होगा कि कई अन्य राज्य भी यह दर्जा माँगने लगेंगे. इस प्रकार तो दर्जे की विशेषता ही समाप्त हो जायेगी. आर्थिक रूप से भी यह राज्यों के लिए लाभकारी  नहीं रह जाएगा क्योंकि विशेष दर्जे के तहत मिलने वालों लाभों की एक सीमा है. इससे तो अच्छा यह होगा कि विशेष दर्जा के बदले राज्य विशेष पैकेज माँग सकते हैं.

विशेष राज्य का दर्जा क्या होता है ?

विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद राज्यों को कई तरह के फायदे होते हैं. इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है – केन्द्रीय सहायता में बढ़ोतरी. केंद्र अपने अनेक योजनाओं को लागू करने के ऐवज में राज्यों को वित्तीय मदद देते हैं.

कब किसे मिला दर्जा?

  • 1969-1974 – चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान पहली बार असम, जम्मू-कश्मीर और नागालैंड.
  • 1974-1979 – पाँचवी पंचवर्षीय योजना के दौरान हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और त्रिपुरा.
  • 1990 के वार्षिक योजना में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम जुड़े.
  • 2001 को उत्तराखंड को यह दर्जा मिला.

Gadgil Formula

केंद्र द्वारा जो राज्यों को संसाधन उपलब्ध कराये जाते थे, उनमें कोई भी विशेष नियमों का पालन नहीं होता था. इसके चलते अलग-अलग क्षेत्रों का विकास एक समान नहीं हो पा रहा था. विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे का मुद्दा 1969 में सर्वप्रथम राष्ट्रीय विकास परिषद् की बैठक में DR Gadgil Formula के अनुमोदन के बाद सामने आया. DR Gadgil के formula में कहा गया कि राष्ट्रीय विकास परिषद् की ओर से कुछ राज्यों को विकास के लिए विशेष राज्य का राज्य दर्जा दिया जाना चाहिए. इससे पहले तक केंद्र के पास राज्यों को अनुदान देने का कोई specific formula नहीं था. उस समय तक सिर्फ योजना आधारित अनुदान ही दिए जाते थे. DR Gadgil Committee ने जो रिपोर्ट दी, उसे राष्ट्रीय विकास परिषद् ने ही स्वीकृति प्रदान की. इस रिपोर्ट में कहा गया कि –

  1. असम, J&K और नागालैंड को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए और केंद्र से मिलने वाले अनुदान में प्राथमिकता दी जाए.
  2. इसके अलावा इन तीन राज्यों की आवश्यकताओं को पूर करने के बाद जो संसाधन बच जायेंगे, उन्हें 60% जनसंख्या के आधार पर 7.5%  उस राज्य से मिलने वाले कर के आधार पर, 25% उस राज्य की प्रति व्यक्ति आय के आधार पर और 7.5% उस राज्य की विशेष परिस्थतियों के आधार पर धन वितरित किये जाएँ.

सामान्य राज्य Vs विशेष राज्य

  1. सामान्य राज्य को केंद्र के द्वारा प्रदत्त वित्तीय सहायता में 70% कर्ज के रूप में और 30% मदद के तौर पर मिलता है.
  2. लेकिन जिस राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिलता है, उसे केंद्र से मात्र 10% कर्ज के रूप में और बाकी 90% मदद के तौर पर वित्तीय सहायता प्राप्त होती है.
  3. इसका अर्थ यह हुआ कि special category status वाले राज्य को मिलने वाली केन्द्रीय सहायता में सीधे-सीधे 60% की बढ़ोतरी हो जाती है.

और क्या-क्या फायदे हैं?

कर्ज मुक्त केंद्रीय सहायता के अलावा special category status के कई अन्य फायदे हैं. विशेष दर्जा प्राप्त करने वाले राज्यों में निजी पूँजी निवेश के तहत अगर कोई उद्योग या कारखाना स्थापित करना चाहे तो उसे – उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, आय कर, बिक्री कर और कॉर्पोरेट टैक्स जैसे केन्द्रीय करों से ख़ास छूट मिल जाती है. इन करों में ऐसी रियायतों से उस राज्य में पूँजी निवेश का आकर्षण बढ़ जाता है और इस कारण वहाँ रोजगार के कई अवसर पैदा हो जाते हैं. विशेष राज्य की स्थिति में केन्द्रीय योजनाओं में देनदारी बहुत कम हो जाने के कारण जो बचत होती है, उसका इस्तेमाल राज्य अपनी अन्य योजनाओं के लिए करते हैं. इसी बहाने राज्य को अपनी आधारभूत संरचनाओं और दूसरे उद्योगों के विकास करने का मौका मिल जाता है.

उद्देश्य

राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देने के पीछे मुख्य उद्देश्य होता है उनका पिछड़ापन और क्षेत्रीय असंतुलन दूर करना.

शर्तें (Conditions)

किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए विशेष शर्तें निर्धारित की गई हैं. जैसे –

  1. वह राज्य दुर्गम इलाकों वाला पर्वतीय भूभाग हो.
  2. राज्य का कोई हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगा हो.
  3. प्रति व्यक्ति आय और गैर कर राजस्व काफी कम हो.
  4. आधारभूत ढाँचे का अभाव हो.
  5. जनजातीय आबादी की बहुलता हो और आबादी का घनत्व काफी कम हो.
  6. इनके अलावा राज्य का पिछड़ापन, भौगोलिक स्थिति, सामाजिक समस्याएँ भी इसका आधार हैं.

संविधान में प्रावधान

भारतीय संविधान में  किसी भी राज्य के लिए विशेष श्रेणी के राज्य का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन पहले का योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद् ने ये मानते हुए कि देश के कुछ इलाके तुलनात्मक रूप से दूसरे इलाकों से पिछड़े हुए हैं, उन्हें अनुच्छेद 371 के तहत विशेष केन्द्रीय सहायता देने का प्रावधान किया था. इसके आधार पर आगे चलकर कुछ राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया.

Difference between Special Status & Special State

दरअसल Special Status और Special State दोनों अलग-अलग चीजें हैं.

  1. Special State का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 370 में है. (विस्तार से यहाँ पढ़ें >> Click)
  2. Special State संसद के दोनों सदनों में 2/3 बहुमत से पारित अधिनियम के जरिये भारत के संविधान में किया गया प्रावधान है जैसा कि जम्मू-कश्मीर के मामले में है.
  3. Special Category के बारे में तो हम लोग पढ़ ही रहे हैं.

तो फिर Special State के क्या फायदे हैं?

  1. संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष राज्य (Special State) का दर्जा दिया गया है.
  2. यहाँ देश के दूसरे राज्यों की तरह कानून लागू नहीं होते हैं.
  3. केन्द्रीय सरकार इस राज्य में सिर्फ रक्षा, विदेश नीति, वित्त और संचार मामलों में ही दखल दे सकती है.
  4. संघ और समवर्ती सूची के तहत आने वाले विषयों पर केंद्र सरकार कानून नहीं बना सकती.
  5. दूसरे कानूनों को लागू कराने के लिए केन्द्रीय सरकार को राज्य की सहमति लेनी पड़ती है.

इसलिए यहाँ जो Special Status के बारे में जो मैं आपको बता रहीं हूँ वह Special State वाले मामले से बिलकुल अलग है, इसलिए confuse न हों.

स्पेशल स्टेटस – Important Facts

Special Status का प्रावधान 1969 में राष्ट्रीय विकास परिषद् द्वारा दिया गया था. परिषद् ने कहा कि विषम भौगोलिक स्थिति और दुर्गम पर्वतीय इलाकों में केंद्र की ओर से विशेष सहायता देना आवश्यक है. इसके तहत कुल 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया. जैसा कि मैं आपको बता चुकी हूँ कि राज्य को स्पेशल स्टेटस देने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है.

लेकिन इसके बावजूद संविधान में राज्यों में असमान्य विकास की आशंकाओं को दूर करने के लिए कुछ विशेष प्रावधान मौजूद हैं. जैसे –

  1. संविधान के भाग 21 में अनुच्छेद 371 से 371 (J) तक 12 राज्यों के बारे में विशेष प्रावधान का जिक्र है.
  2. ये 12 राज्य हैं – महाराष्ट्र, गुजरात, नागालैंड, असम, मणिपुर, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक और गोवा.
  3. इसका उद्देश्य इन राज्यों के पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोगों के आर्थिक एवं सांस्कृतिक हितों की रक्षा करना है.
  4. लेकिन इनमें से कई राज्य ऐसे हैं जहाँ जटिल भौगोलिक क्षेत्र, पिछड़ापन, जनजातीय इलाके, अंतर्राष्ट्रीय सीमा जैसी विषम परिस्थतियाँ मजूद हैं. इसलिए इनके लिए 1960 के दशक में अलग केन्द्रीय सहायता की कोशिश शुरू हुई .

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16 Comments on “[Sansar Editorial] विशेष राज्य का दर्जा क्या होता है और यह किसे दिया जाता है?”

  1. sir
    ydi aapne whatsapp group bnaya hai toh mujhe bhi uss group me add karne ki kripa kre

    mera whatsapp number ************ hai

  2. Thanks mam.ab tk me yhe samjh rha thaki vises rajya ka darja sirf j&k ko savidhan ke anuched 370 ke tahat diya h.dusre rajyo ke bare me mujhe koi jankari nhi thi..Pr apne to es lekh me sampurn jankari di h..Thank you mam

  3. बहुत ही ज्यादा informative और कमाल का ये column है। Thanks Ruchira M’am and Sansaar Lochan.

    I hope another column like this would be available soon.

  4. sir aap whatsapp share button kyu nahi daalte? mai ye sare articles apne group me share karna chahta hu

    1. Oye deepak dhyan se dekh!
      wtsapp ka bhi sharing button available hai….
      question puchne se phele dekh to le ek baar

  5. was missing today ruchira mam article..today
    and aaj hi unka article aa gaya
    thank u mam…plzz keep writing

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