सामान्य अध्ययन पेपर – 2
Q1. एक लोकतांत्रिक देश किसे कहते हैं? इस संदर्भ में भारत में लोकतंत्र की स्थिति पर चर्चा करें. (250 शब्द)
- अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है = Green
- आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow
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सवाल की माँग
✓ एक लोकतांत्रिक देश कैसा होना चाहिए?
✓ अन्य देश का क्या हाल है?
✓ भारत एक लोकतांत्रिक देश कैसे कहा जा सकता है?
X भारत एक लोकतांत्रिक देश है, इस पर सवाल मत उठाएँ. कई लोग भारत एक लोकतांत्रिक देश है, उसपर ही प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं.
उत्तर की रूपरेखा
- एक लोकतांत्रिक देश की विशेषताएँ
- विश्व के कई देशों में क्या स्थिति है?
- भारतीय लोकतंत्र
- विश्लेषण
उत्तर :-
सही मायने में एक लोकतांत्रिक वही है, जहाँ –
- जनता को अपना शासन चुनने का अधिकार होना चाहिए.
- चुनाव में एक से अधिक राजनैतिक विकल्पों के मध्य चुनने की स्थिति होनी चाहिए.
- शासन करने वाले, आम लोगों की आवश्यकताओं पर तत्काल ध्यान दें, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए.
- शासन का स्वरूप जवाबदेही वाला होना चाहिए.
- चर्चा और बहस करने की गुंजाइश होनी चाहिए.
- तानाशाही और हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए.
- जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए.
- आजीविका, स्वास्थ्य, शिक्षा के न्यूनतम साधन उपलब्ध होना चाहिए.
आज विश्व के कई देश स्वयं को लोकतांत्रिक बताते हैं. उनके यहाँ इसके लिए यह तर्क दिया जाता है कि वे एक लोकतांत्रिक देश हैं परन्तु उन देशों में शासक लोगों द्वारा चुने नहीं जाते हैं इसलिए उनको लोकतांत्रिक कहना ठीक नहीं है. उदाहरण के लिए – उत्तरी कोरिया, सऊदी अरब और चीन आदि. इन देशों में एक प्रकार से तानाशाही चलती है.
जहाँ तक भारतीय लोकतंत्र का प्रश्न है तो उसे कई स्तरों पर देखा जा सकता है –
- एक शासन प्रणाली के रूप में भारतीय लोकतंत्र अवश्य ही परिपक्व हो चुका है. भारत को जब आजादी मिली तो उसके तुरंत पश्चात् भारत के हर एक नागरिक को मत का अधिकार दिया गया और स्वतंत्र निर्वाचन की व्यवस्था की गई जो आज तक चली आ रही है.
- ग्रामीण जनता को स्वशासन का अधिकार देकर भारतीय लोकतंत्र ने यह साबित कर दिया कि वह प्रगतिशील है, जीवंत है एवं राजनीतिक परिवर्तनों का एक सशक्त माध्यम है न कि यथास्थितिवादी शासन प्रणाली का.
- दलितों के उत्थान के लिए स्वतंत्रता के पहले और बाद में भी लगातार आवाज उठाई गई. छुआछूत को अपराध घोषित कर दिया गया. आरक्षण के माध्यम से कुछ वर्गों को सामाजिक एवं समतावादी स्वरूप का जीवन्त अनुभव कराया गया.
- महिलाओं से सम्बंधित मुद्दों पर भी भारत ने लगातार कार्य किया. “हिन्दू कोड बिल” इस संदर्भ में मील का पत्थर है. दहेज़ निषेध अधिनियम भी इस परिप्रेक्ष्य में लागू किया गया.
भारत के संदर्भ में यह साफ़ कहा जा सकता है कि हमारे लोकतंत्र में हम सभी को अपनी-अपनी गलती ठीक करने का अवसर अवश्य मिलता है. कोई भी सरकार या दल इस बात की गारंटी नहीं दे सकता कि लोकतंत्र में कोई गलती नहीं हो सकती. इन गलतियों पर सार्वजनिक चर्चा की गुंजाइश लोकतंत्र में होती है और पुनः इनमें सुधार करने की गुंजाइश भी होती है. इसका अर्थ यह है कि या तो शासक समूह अपना फैसला बदले या शासक समूह को ही बदला जा जाए. गैर-लोकतांत्रिक सरकारों में ऐसा करना असंभव है.
Q2. क्या सांसदों या विधायकों का कोर्ट में प्रैक्टिस करना न्यायपालिका या संसद की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है? समीक्षा कीजिए. (250 शब्द)
- अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है = Green
- आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow
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सवाल की माँग
✓ मामला क्या है?
✓ समीक्षा करने का अर्थ हुआ – पक्ष और विपक्ष दोनों में तर्क प्रस्तुत करें
X पक्ष और विपक्ष में तर्क प्रस्तुत करने के बाद निष्कर्ष देना न भूलें.
X पक्ष और विपक्ष के पॉइंट्स में ज्यादा-कम करने से बचे. दोनों को बराबर रखें.
उत्तर की रूपरेखा
- भूमिका – चर्चा का कारण
- पक्ष में तर्क
- विपक्ष में तर्क
- निष्कर्ष
उत्तर :-
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका को निरस्त करते हुए यह फैसला सुनाया है कि एम.पी., एम.एल.ए. और एम.एल.सी. कोर्ट में बतौर वकील प्रैक्टिस कर सकते हैं. आज की तिथि में बड़े-बड़े राजनीतिक दिग्गज जैसे कपिल सिब्बल, पी. चिदम्बरम, अभिषेक मनु सिंघवी आदि कोर्ट में भी प्रैक्टिस करते हैं. ऐसे में यह सवाल उठ जाता है कि एक ही व्यक्ति द्वारा वकील और कानून-निर्माता की दोहरी भूमिका निभाना कहाँ तक न्यायोचित है?
पक्ष में तर्क
- संसद विविधता का एक मंच होना चाहिए जिससे कई प्रकार के लोग अपने मत प्रकट करें और जिसका प्रभाव नीतियों पर भी पड़े.
- संघ लोक सेवा आयोग में भी विभिन्न क्षेत्रों से विशेषज्ञ चुन कर आते हैं जिससे सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन में व्यापक स्तर पर सफलता मिलती है.
- हमारा इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर संविधान के निर्माण तक वकीलों ने ही राजनेता बनकर अग्रणी भूमिका निभाई, जैसे – महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरु, सरदार पटेल, अम्बेडकर आदि. उनके पास स्पष्ट और तार्किक सोच होती है. उन्हें आम लोगों से कानून और कानून-निर्माण के संदर्भ में बेहतर समझ होती है. ऐसे में देश के लिए नीति-निर्माण में भी उनकी योग्यता काफी मायने रखती है.
- सांसद या विधायक होने के नाते वकील जनता की बात को संसद से लेकर न्यायपालिका तक प्रभावी ढंग से रख सकते हैं.
विपक्ष में तर्क
- यदि कोई व्यक्ति सांसद या विधायक या मंत्री रहते हुए कोर्ट में भी प्रैक्टिस कर रहा होता है तो बहुत हद तक संभव है कि वह कोर्ट के फैसले को प्रभावित कर सकता है.
- यदि वह अपना पूरा ध्यान कोर्ट प्रैक्टिस में ही केन्द्रित कर दे तो संसद में उसकी अनुपस्थिति देश के लिए स्वास्थ्यकर नहीं है. भारत को समर्पित सांसदों की जरुरत है.
- इस व्यवस्था से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि एक राजनेता होने के नाते वह धन, बल का प्रयोग कर फैसले को अपने पक्ष में कर सकता है. इससे न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर भी चोट पहुँचेगी.
- जो सांसद और विधायक एक वकील के रूप में काम करते हैं, वे याचिकाकर्ता से शुल्क लेते हैं और प्रतिवादी से अपना वेतन भी वसूल लेते हैं. इसमें प्रतिवादी केंद्र या राज्य सरकार का होता है. यह खुद में विरोधाभासी है क्योंकि वह सार्वजनिक खजाने से वेतन प्राप्त करता है और सरकार के विरुद्ध दलीलें भी पेश करता है इसे व्यावसायिक कदाचार के रूप में भी देखा जा सकता है.
जिस प्रकार भारत विविधताओं वाला देश है, ठीक उसी प्रकार संसद में भी विविधता होनी चाहिए क्योंकि विविधता से ही नीति निर्माण में जवाबदेही और पारदर्शिता को प्रोत्साहन मिलता है. जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत की आजादी में वकीलों का एक बहुत बड़ा दल सक्रिय था जिनमें कई कुशल राजनेता भी थे. इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सराहनीय है.
परन्तु प्रश्न विविधता मूलतः विविधता का नहीं है. संसद में जैसे डॉक्टर, इंजिनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, शिक्षक, समाजसेवी आदि चुन कर आते हैं, उसी प्रकार वकीलों के आने पर विवाद नहीं है. विवाद इस बात का है कि उन्हें अपने साथ-साथ अपना पेशा चलाने की छूट मिले या नहीं, वह भी एक फीस लेकर. यदि कोई डॉक्टर सांसद है और फीस लेकर इलाज भी करता है तो यह उचित नहीं है. इसी प्रकार यदि कोई वकील सांसद होते हुए शुल्क लेकर वकालत करता है तो यह भी न्यायसंगत नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय ने जो व्यवस्था दी है उसमें यही त्रुटि है कि न्यायालय ने शुल्क लेकर वकालत करने के विषय में कुछ नहीं कहा है.
“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan
2 Comments on “[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Polity GS Paper 2/Part 13”
Great job for Hindi medium aspirants .kya yeah site insightsonindia level ke questions deti h?
The challenge of political theory in the concept of gender