Sansar डेली करंट अफेयर्स, 30 November 2018

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Sansar Daily Current Affairs, 30 November 2018


GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : Fly ash

संदर्भ

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal – NGT) ने  उन तापीय विद्युत् संयत्रों पर पाँच करोड़ रुपये तक का अर्थदंड लगा दिया है जिन्होंने अपने यहाँ उत्पन्न फ्लाई ऐश का पूर्ण निपटान नहीं किया है.

फ्लाई ऐश हानिकारक कैसे?

फ्लाई ऐश में सिलिका, एल्यूमीनियम और कैल्शियम के ऑक्साइड की पर्याप्त मात्रा होती है. आर्सेनिक, बोरान, क्रोमियम तथा सीसा जैसे तत्त्व भी सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं. इस प्रकार इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट उत्पन्न होता है. फैक्ट्रियों से निकलने वाले कोयले के धुओं से फ्लाई ऐश तो वातावरण में फैलता ही है साथ ही साथ कई बार फैक्ट्रियाँ फ्लाई ऐश को जमा कर के बाहर उनका भंडार बना देती हैं. ये सारे कचरे जमा हो-हो कर कभी-कभी पहाड़ जैसा बन जाते हैं. वहाँ से फ्लाई ऐश वातावरण को प्रदूषित करते ही हैं और बहुधा नदी/नहरों में भी फ्लाई ऐश के अंश चले जाते हैं.

फ्लाई ऐश का उपयोग

  • इसे कृषि में अम्लीय मृदाओं के लिए एक अभिकारक के रूप में, मृदा कंडीशनर के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. इससे मृदा की महत्त्वपूर्ण भौतिक-रसायन विशेषताओं, जैसे जल धारण क्षमता, हाइड्रोक्लोरिक कंडक्टिविटी आदि में सुधार होगा.
  • भारत अभी तक फ्लाई ऐश प्रयोग की अपनी संभावनाओं का पूर्ण प्रयोग कर पाने में सक्षम नहीं है. हाल ही के CSE के एक अध्ययन के अनुसार, उत्पादित की जाने वाले फ्लाई ऐश का मात्र 50-60% ही प्रयोग हो पाता है.
  • फ्लाई ऐश का उपयोग सीमेंट, पूर्वनिर्मित भवन सामग्री, ईंटें, सड़कें, आवास एवं औद्योगिक भवनों, बाँधों, फ्लाईओवर, बंजर भूमि के सुधार, खानों के भराव और अन्य सभी निर्माण कार्यों के लिए किया जा सकता है. इन उपयोगों को उचित रूप से बढ़ावा देना चाहिए.

सरकार द्वारा उठाये गये कदम

इसकी सम्भावनाओं के पूर्ण प्रयोग के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित कदम उठाये गये हैं –

  • MoEF (The Ministry of Environment & Forests) द्वारा 2009 में जारी की गई अधिसूचना में फ्लाई ऐश के उपयोग के विषय में दिशानिर्देश दिए गये हैं. उसमें यह लिखा है कि MoEF तापीय बिजली संयंत्र की 100 km. की परिधि में fly ash के प्रयोग का समर्थन करता है.
  • IIT कानपुर और IIT दिल्ली ने NTPC के साथ मिलकर fly ash को लेकर नवाचारी उपयोग करने का प्रयास किया है. उन्होंने हाल ही में Pre-Stressed Railway concrete sleepers का निर्माण किया है.
  • फ्लाई ऐश के उपयोग के लिए नीति बनाने वाला महाराष्ट्र देश का प्रथम राज्य बन गया है. महाराष्ट्र ने सिंगापुर व दुबई जैसे स्थानों से आने वाली माँग को देखते हुए फ्लाई ऐश के निर्यात की एक नीति भी बनाई है जिसमें तापीय बिजली संयंत्रों के आस-पास सीमेंट जैसे ऐश-आधारित औद्योगिक संकुलों के विकास की घोषणा की गई है.
  • कोल ऐश (coal ash/fly ash) का उपयोग कृषि भूमि में उत्पादकता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है. इसलिए किसानों के बीच फ्लाई ऐश के उपयोग को बढ़ावा देने के कार्यक्रम में कृषि विभाग को भी शामिल किया गया है.
  • सरकार ने फ्लाई ऐश का निर्यात करने का भी निर्णय लिया है जिससे 1,500 करोड़ रुपये की राजस्व-प्राप्ति हो सकती है.

आगे की राह

फ्लाई ऐश के 100% उपयोग के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये जा सकते हैं –

  • आस-पास के बाजारों में फ्लाई ऐश आधारित भवन-उत्पादों को उपलब्ध कराना.
  • रेलवे लाइनों को बिछाने के लिए स्लीपर-निर्माण में फ्लाई ऐश के उपयोग को प्रोत्साहित करना.
  • कृषि और बंजर भूमि के सुधार में इसके उपयोग के बारे में जागरूकता में वृद्धि करना.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : Azov sea and Russia-Ukraine sea clash

संदर्भ

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हाल ही में रूस ने विवादित अजोव सागर में यूक्रेन के तीन नौसैनिक जहाज़ों और 20 से अधिक जहाजकर्मियों को अपने आधिपत्य में ले लिया है और इस प्रकार एक बार फिर अजोव सागर को लेकर रूस और यूक्रेन के बीच की तनातनी सामने आ गयी है.

इतिहास

यूक्रेन और रूस दोनों एक दूसरे पर यह आरोप लगाते हैं कि वे अजोव सागर में अंतर्राष्ट्रीय सामुद्रिक कानून का उल्लंघन कर रहे हैं. दोनों देश 1982 की एक संयुक्त राष्ट्र संधि (UN Convention on the Law of the Sea) का हवाला देते हैं जिस पर इन दोनों देशों ने 1990 के दशक में हस्ताक्षर किये थे.

यूक्रेन कहता है कि इस संधि के अनुसार उसे कर्च जलडमरूमध्य (Kerch Strait) और अजोव सागर में आवाजाही की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए. इन दोनों देशों के बीच कर्च जलडमरूमध्य और अजोव सागर के स्वतंत्र उपयोग के विषय में एक द्विपक्षीय समझौता भी है जिसपर रूस ने कभी भी आपत्ति नहीं जतलाई है.

कर्च जलडमरूमध्य का महात्म्य

कर्च जलडमरूमध्य कृष्ण सागर (Black Sea) और अजोव सागर के बीच एकमात्र सम्पर्कसूत्र है. मात्र इसी से होकर यूक्रेन के दो बड़े बंदरगाहों – Mariupol और Berdiansk – तक पहुँचा जा सका है. 2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया था और तब से वह कर्च जलडमरूमध्य पर नियंत्रण रखे हुए है जिसके कारण यूक्रेन के जहाजों को भयंकर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

अजोव सागर का माहात्म्य

यह सागर पूर्वी यूरोप में स्थित है. यह इसके दक्षिण में स्थित लगभग 4 किलोमीटर संकरे कर्च जलडमरूमध्य से कृष्ण सागर से जुड़ा हुआ है. इसीलिए इसे कभी-कभी कृष्ण सागर का उत्तरमुखी विस्तार भी कहा जाता है.

  • अजोव सागर के उत्तर और पश्चिम में यूक्रेन है और पूर्व में रूस.
  • दोन (Don) और कूबन (Kuban) वे दो बड़ी नदियाँ हैं जो इसमें आकर गिरती हैं.
  • अजोव सागर की गहराई 0.9 और 14 मीटर के बीच है.  अतः यह विश्व का सबसे छिछला सागर (shallowest sea) है.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : Security restrictions in border areas revised

संदर्भ

भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने 1990 में निर्गत अपने सुरक्षा प्रतिबंध मार्गनिर्देशों के स्थान पर नए मार्गनिर्देश जारी किये हैं जिनमें सीमा-क्षेत्रों में लगाए गये सुरक्षा प्रतिबंधों में कुछ ढील दी गई है.

मार्गनिर्देशों के मुख्य तथ्य

  • नए नियमों के अनुसार इन निर्माण कार्यों पर से प्रतिबंध उठा लिए गये हैं, जैसे – गाँव के पोखरों का निर्माण, मरम्मत और देख-रेख, पाठशालाओं एवं अस्पतालों जैसे सरकारी भवनों का निर्माण और देख-रेख.
  • नए नियमों के अनुसार केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों के निकायों के द्वारा किये जाने वाले छोटे-मोटे विकास कार्यों की अनुमति दी गई है जिससे सीमा-क्षेत्र में विकास की गति तेज हो सके.

नए मार्गनिर्देशों का माहात्म्य

नए मार्गनिर्देशों की आवश्यकता बहुत दिनों से अनुभव की जा रही थी क्योंकि पुराने प्रतिबंधों के कारण सीमा क्षेत्रों में विकास की गतिविधियाँ बाधित हो रही थीं. छोटे-मोटे निर्माण कार्य भी संभव नहीं हो पा रहे थे.

रक्षा मंत्रालय के पूर्व के मार्गनिर्देशों में वर्णित प्रावधानों के कारण सीमा-क्षेत्र में निर्माण कार्य प्रभावित हो रहा था. इसलिए, राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार से यह अनुरोध कर रखा था कि इन प्रतिबंधों में छूट दी जाए जिससे विकास का कार्य चलता रहे.


GS Paper 3 Source: Times of India

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Topic : Biggest coral reseeding project launches on Great Barrier Reef

संदर्भ

वैज्ञानिकों ने संकटग्रस्त विशाल प्रवाल भित्ति (Great Barrier Reef) पर प्रवालों को फिर से उत्पन्न करने के लिए अब तक का एक सबसे बड़ा प्रयास आरम्भ किया है जिसके अंदर वहाँ पर प्रवाल के लाखों अंडे और बीजाणुओं को वार्षिक प्रजनन के समय विकसित किया जायेगा. विदित हो कि 1981 में इस प्रवाल भित्ति को विश्व धरोहर स्थल के रूप में चुना गया था.

योजना क्या है?

प्रवालों की संख्या बढ़ाने के लिए इनके अंडों से लार्वे उत्पन्न करने और बाद में उन्हें प्रवाल भित्ति के उन क्षेत्रों में छोड़ने की योजना है जिनको जलवायु से सम्बन्धित प्रवाल श्वेतीकरण (coral bleaching) के कारण सबसे अधिक क्षति पहुँची है.

माहात्म्य

पहली बार लार्वों के विकास और उनको बसाने की बड़े पैमाने पर होने वाली समूची प्रक्रिया को विशाल प्रवाल भित्ति के ऊपर प्रत्यक्ष रूप से लागू किया जा रहा है.

प्रवालों का संकट

  • 2,300 किलोमीटर की विशाल प्रवाल भित्ति में कई प्रवाल जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के बढ़ते हुए तापमान के चलते मारे जा चुके हैं और उनके स्थान पर अस्थि-पंजर ही अवशिष्ट रह गये हैं. इस प्रक्रिया को प्रवाल श्वेतीकरण कहते हैं. पानी के गर्म होने पर प्रवालों के ऊपर से सूक्ष्म प्रकाश संश्लेषक काई (photosynthetic algae) उतर जाती है जिससे वे सफ़ेद पड़ जाते हैं. यदि पानी का तापमान घाट जाए तो यह काई फिर से उनपर बैठ सकती है.
  • 2016-17 में इस भित्ति के उत्तरी भागों में दोनों वर्ष अभूतवर्ष श्वेतीकरण देखा गया, जिस कारण उन्हें ऐसी क्षति पहुँची कि उसकी भरपाई होना कठिन है.

विशाल प्रवाल भित्ति क्या है?

विशाल प्रवाल भित्ति विश्व की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति है जो ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड के समुद्री तट के निकट प्रवाल सागर में अवस्थित है. इसमें 2,900 से अधिक अलग-अलग भित्तियाँ हैं और 900 प्रवाल द्वीप हैं जो लगभग 344,400 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं.

विशाल प्रवाल भित्ति को बाह्य अन्तरिक्ष से भी देखा जा सकता है. हम कह सकते हैं कि यह विश्व की वह सबसे बड़ी संरचना है जो जीवों द्वारा बनाई गई है. यह भित्ति करोड़ों सूक्ष्म जीवों से बनी हुई है जिन्हें प्रवाल पोलिप (coral polyps) कहते हैं.


GS Paper 3 Source: PIB

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Topic : Sustainable Blue Economy Conference in Nairobi , Kenya

संदर्भ

हाल ही में केन्या की राजधानी नैरोबी में पहला सतत नील अर्थव्यस्था सम्मेलन (Sustainable Blue Economy Conference) सम्पन्न हुआ जिसका आयोजन केन्या ने किया था और जापान और कनाडा इसके सह-आयोजक थे. यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के 2030 सतत विकास एजेंडा, 2015 पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन तथा संयुक्त राष्ट्र महासागरीय सम्मेलन 2017 की नवीनतम कड़ी है.

आज हमारे महासागरों और समुद्रों पर न केवल जलवायु परिवर्तन के कारण अपितु प्लास्टिक प्रदूषण के चलते भी भयंकर खतरा है. इस खतरे को समझकर विश्व ने संकल्प किया है कि हम अपने पानी को इस तरह सुरक्षित रखें कि पूरी मानवता को लाभ हो. विश्व की इस चेतना विभिन्न मंचों से प्रकटित हुई है और इस विषय में कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुए हैं जिनके विषय में ऊपर इंगित किया जा चुका है.

भारत की भूमिका

विश्व के अन्य देशों की भाँति भारत ने भी नीली अर्थव्यस्था के क्षेत्र में कई पहलें की हैं, जैसे सागरमाला कार्यक्रम और समुद्र तटीय आर्थिक जोन (Coastal Economic Zones – CEZs) का निर्माण.

सागरमाला कार्यकम

  • इस कार्यक्रम के अन्दर 600 से अधिक परियोजनाओं का काम हो रहा है जिनपर 2020 तक लगभग लगभग 8 लाख करोड़ रु. का विशाल निवेश किया जायेगा.
  • इस परियोजना के लागू होने से ढुलाई पर भारत को 6 बिलियन रु. प्रति वर्ष की बचत होगी. साथ ही न केवल 10 मिलियन नए रोजगार बनेंगे अपितु बंदरगाहों की क्षमता में 800 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष की वृद्धि भी होगी.

समुद्र तटीय आर्थिक जोन

  • इन जोनों पर प्रति जोन 150 मिलियन डॉलर का निवेश प्रस्तावित है.
  • इन जोनों में उन उद्योगों और शहरों का विकास होगा जो समुद्र पर निर्भर हैं और सामुद्रिक सम्पर्क के माध्यम से वैश्विक व्यापार में योगदान करते हैं. इस प्रकार ये जोन नीली अर्थव्यस्था के आधार-स्तम्भ के रूप में कार्य करेंगे.
  • इन आर्थिक जोनों में समुद्र तटीय समुदायों और लोगों के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा और इसके लिए कौशल विकास केंद्र स्थापित किये जाएँगे जहाँ इन समुदायों को यह सिखाया जाएगा कि वे सामुद्रिक संसाधनों, आधुनिक मछली मारने के तकनीकों और समुद्र तटीय पर्यटन का सतत उपयोग कैसे हो.
  • समुद्र तटीय क्षेत्रों के लिए कई पर्यावरण अनुकूल कदम उठाये गये हैं, जैसे – विभिन्न बंदरगाहों में 31 MW का अपना-अपना सौर उर्जा संयत्र का निर्माण, समुद्र में तेल बह जाने से निबटने के लिए आवश्यक प्रबंध तथा बंदरगाहों पर बेकार जल को फिर से उपयोग में लाने के उपाय ढूँढना.

Prelims Vishesh

Emergency Response Support System (ERSS) for Himachal Pradesh :-

  • भारत सरकार के गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने हिमाचल प्रदेश के लिए आपातकालीन प्रतिक्रिया सहयोग प्रणाली (Emergency Response Support System – ERSS) का अनावरण किया.
  • इस प्रणाली के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश देश का वह पहला राज्य बन गया है जहाँ एकल अखिल भारतीय आपातकालीन फ़ोन संख्या (112) आरम्भ की गई है.

Legion d’Honneur (Legion of Honour) :-

  • WIPRO के अध्यक्ष अज़ीम प्रेमजी जो फ्रांस ने अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘Chevalier de la Legion d’Honneur’ दिया है.
  • यह सम्मान उन्हें बेंगलुरु में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में उनके योगदान और उनके मानवतावादी कार्यों के लिए दिया गया है.

Atomic Energy Regulatory Board (AERB) :-

  • भारत सरकार ने सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक नागेश्वर राव गुंटुर को आणविक ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board – AERB) का अध्यक्ष नियुक्त किया है.
  • ज्ञातव्य है कि इस बोर्ड की स्थापना नवम्बर 1983 में हुई थी.
  • इस बोर्ड का एक प्रमुख कार्य भारत में आणविक ऊर्जा और विकिरण के उपयोग को इस प्रकार नियमित करना है कि उससे स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को अवांछित क्षति नहीं पहुँचे.

Country’s first owl festival in Pune :-

  • भारत का पहला उलूक उत्सव (owl fest) पुणे के पुरंदर तालुका के पिन्गोरी गाँव में आयोजित हो रहा है.
  • यह देश का ऐसा द्विदिवसीय उत्सव है जिसे उल्लू के बारे में जागरूकता पैदा करने और इसके साथ जुड़े कई अंधविश्वासों को खत्म करने के इरादे से आयोजित किया जाता है.

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