Sansar Daily Current Affairs, 21 January 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic : Foreign Contribution (Regulation) Amendment Bill – FCRA
संदर्भ
हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्रालय न राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े दो NGOs राजीव गांधी फाउंडेशन (RGF) एवं राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट (RGCT) के FCRA पंजीकरण का वर्ष 2026 तक के लिए नवीनीकरण किया है.
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष, मंत्रालय ने कांग्रेस से जुड़े इन दोनों NGOs पर वर्ष 2005-06 के दौरान चीनी सरकार से फंड प्राप्त करने की अंतरमंत्रालयी समिति द्वारा जाँच करवाने की बात कही थी, लेकिन हालिया आरटीआई के जवाब में मंत्रालय ने जाँच क परिणामों की जानकारी देने से मना कर दिया.
विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम के बारे में
- विदेशी योगदान के इस्तेमाल को नियमित करने के लिए भारत सरकार ने विदेशी योगदान की स्वीकृति और विनियमन के उद्देश्य से वर्ष 1976 में विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) लागू किया. वर्ष 2010 में इस अधिनियम संशोधन करते हुए कई नए प्रावधान भी जोड़े गये.
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम के अंतर्गत राजनीतिक प्रकृति का कोई भी संगठन, ऑडियो, ऑडियो विजुअल न्यूज या करंट अफेयर्स कार्यक्रम के निर्माण और प्रसारण में लगे किसी भी संगठन को विदेशी योगदान स्वीकार करने के लिये प्रतिबंधित किया गया है.
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 को लोगों या एसोसिएशन या कंपनियों द्वारा विदेशी योगदान के इस्तेमाल को नियमित करने के लिए लागू किया गया था. राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुँचाने वाली किसी भी गतिविधि के लिए विदेशी योगदान को लेने या इसके इस्तेमाल पर पाबंदी है.
कौन-से संस्थान विदेशी सहायता प्राप्त नहीं कर सकते?
चुनाव में उम्मीदवार, सांसद एवं विधायक, राजनीतिक दल, समाचार पत्र एवं खबरों के प्रसारण से जुड़े व्यक्ति एवं संस्थान, सरकारी कर्मचारी एवं न्यायाधीश तथा अन्य संस्थान जिर्न्ह कंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया गया है. उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने FCRA के तहत नये नियम लाकर NGOs के लिए प्रावधानों को और अधिक कठोर बना दिया है.
नये नियम क्या हैं?
- किसी भी संगठन के लिये FCRA के तहत स्वयं को पंजीकृत कराने हतु न्यूनतम 3 वर्ष के लिये अस्तित्त्व में होना आवश्यक है.
- FCRA के तहत पंजीकरण कराने वाले संगठनों के पदाधिकारियों को विदेशी योगदान की राशि और जिस उद्देश्य हेतु वह राशि दी गई है, के लिये दानकर्त्ता से एक विशिष्ट प्रतिबद्धता पत्र जमा कराना होगा.
- FCRA के तहत विदेशी सहायता प्राप्त करने वाले संस्थान केवल SBI की अधिसूचित दिल्ली शाखा मे खोल गये FCRA अकाउंट के जरिये ही यह सहायता प्राप्त कर सकेंगे.
- प्राप्तकर्त्ता संगठन का मुख्य अधिकारी दानकर्त्ता संगठन का हिस्सा नहींं होना चाहिए|
- नये संशोधन, FCRA अधिनियम के तहत प्राप्त विदेशी निधियों को 50% से 20% तक सीमित करने का भी प्रस्ताव करते हैं. हालाँकि असाधारण मामलों में केंद्र सरकार को किसी संगठन को इन शर्तों से छूट देने का अधिकार है.
मेरी राय – मेंस के लिए
विदेशी योगदान पर अत्यधिक नियमन गैर-सरकारी संगठनों के काम को प्रभावित कर सकता है हालाँकि ये सरकारी योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू करने में सहायक हैं तथा उस अंतराल को भरते हैं, जहाँ सरकार काम करने में विफल रहती है।
आवश्यक है कि ये विनियमन वैश्विक समुदाय को अपने कामकाज को सुचारु रूप से करने के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधनों के आदान-प्रदान में बाधा उत्पन्न न करें और इस प्रक्रिया को तब तक प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिये जब तक इस तथ्य के स्पष्ट सबूत न हों कि उस धन का उपयोग अवैध गतिविधियों में किया जा रहा है।
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व.
Topic : Questioning the impartiality of the Election Commission
संदर्भ
हाल ही में, मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner – CEC) सुशील चंद्रा और अन्य निर्वाचन आयुक्त (Election Commissioners) राजीव कुमार और अनूप चंद्र पांडे द्वारा ‘प्रधान मंत्री कार्यालय’ (PMO) द्वारा बुलाई गयी एक ऑनलाइन वार्ता में भाग लेने पर, विपक्ष ने पांच राज्यों में होने वाले आगामी चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठाया है.
आलोचकों का कहना है, कि ‘निर्वाचन आयोग’ एक स्वतंत्र निकाय है और PMO द्वारा ‘निर्वाचन आयोग’ को इस तरह की वार्ता के लिए नहींं बुलाया जा सकता.
केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया
‘निर्वाचन आयोग’ प्रशासनिक रूप से ‘विधि मंत्रालय’ के अंतर्गत आता है. ‘विधि मंत्रालय’ द्वारा जारी एक आधिकारिक संप्रेषण में उक्त प्रकरण के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए कहा है, कि यह बैठक चुनावी सुधारों पर चर्चा के लिए बैठक बुलाई गई थी. साथ ही, मंत्रालय ने जोर देकर कहा है, कि यह बैठक मात्र एक “अनौपचारिक वार्ता” थी.
संबंधित मुद्दे
- ‘प्रधान मंत्री कार्यालय’ (PMO) द्वारा जारी “निर्देश’, निर्वाचन आयोग के स्वतंत्र कामकाज के बारे में चिंता उत्पन्न करते है. आनुक्रमिक ‘मुख्य निर्वाचन आयुक्तों’ द्वारा ‘निर्वाचन आयोग’ की स्वायत्तता की रक्षा करने का जोशपूर्ण तरह से प्रयास किया जाता है.
- खासकर, जब महत्त्वपूर्ण राज्यों में चुनाव नजदीक आ रहे है, ऐसे में इस “अनौपचारिक वार्ता” से आयोग की निष्पक्षता के बारे में भी सवाल उठते हैं.
संविधान में निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारियां और शक्तियां
निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक प्राधिकरण है, संविधान के अनुच्छेद 324 में निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारियां और शक्तियां निर्धारित की गयी हैं.
- निर्वाचन आयोग, कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त रहता है.
- निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव आयोजित करने – चाहे आम चुनाव हों या उपचुनाव- हेतु चुनाव कार्यक्रम निर्धारित किए जाते हैं.
- निर्वाचन आयोग ही, मतदान केंद्रों के स्थान, मतदाताओं के लिए मतदान केंद्रों का नियतन, मतगणना केंद्रों के स्थान, मतदान केंद्रों और मतगणना केंद्रों और इनके आसपास की जाने वाली व्यवस्थाओं और सभी संबद्ध मामलों पर निर्णय लेता है.
- निर्वाचन आयोग के निर्णयों को उपयुक्त याचिकाओं के माध्यम से उच्च न्यायालयों और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है.
- लंबे समय से चली आ रही परंपरा और कई न्यायिक निर्णयों के अनुसार, एक बार चुनाव की वास्तविक प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद, न्यायपालिका चुनावों के वास्तविक संचालन में हस्तक्षेप नहींं करती है.
निर्वाचन आयोग और सरकार के बीच संप्रेषण:
- निर्वाचन आयोग, चुनाव संबंधी मामलों पर सरकार (या तो अपने प्रशासनिक मंत्रालय अर्थात ‘विधि मंत्रालय’ या ‘गृह मंत्रालय’) के साथ, चुनाव के दौरान सुरक्षा बलों की तैनाती के लिए नौकरशाही के माध्यम से संप्रेषण (Communication) करता है.
- ऐसे मामलों में, प्रायः गृह सचिव को ‘पूर्ण आयोग’ के समक्ष आमंत्रित किया जाता है, जिसमे तीनों निर्वाचन आयुक्त मौजूद रहते हैं.
- विधि मंत्रालय द्वारा देश के कानून की बारीकियां सपष्ट की जाती है, और मंत्रालय से यह अपेक्षा की जाती है कि उसके द्वारा निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता सुनिश्चित करने हेतु प्रद्दत संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन नहींं किया जाएगा.
हाल ही में हुई इस प्रकार की घटनाएं:
- वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा के नेतृत्व में निर्वाचन आयोग ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक मामले में क्लीन चिट दी. जिसमे प्रधान मंत्री ने, लातूर में एक चुनावी रैली में सशस्त्र बलों की ओर से एक अपील के साथ अपने अभियान का संदर्भ दिया था.
- 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता के कई उल्लंघन भी हुए हैं.
- इस वर्ष, एक भयंकर महामारी के बीच चुनाव अभियानों पर प्रतिबंध लगाने में आयोग के विलंबित निर्णय पर भी सवाल उठे थे.
मेरी राय – मेंस के लिए
ECI के संवैधानिक उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिये एक निष्पक्ष एवं पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया की आवश्यकता है जो निंदा से परे हो और यही भारतीय राजनीति के इस महत्त्वपूर्ण स्तंभ में लोगों के भरोसे की पुष्टि करेगी। निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर मौजूदा आवरण पर्याप्त रूप से उस ढाँचे को ही कमज़ोर करता है जिस पर भारत की लोकतांत्रिक आकांक्षाएँ टिकी हुई हैं।
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना.
Topic : J&K Delimitation Commission
संदर्भ
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में, ‘जम्मू और कश्मीर परिसीमन आयोग’ (Jammu and Kashmir Delimitation Commission) द्वारा निम्नलिखित सिफारिशें की गयी हैं:
- जम्मू संभाग के लिए छह सीटें और कश्मीर संभाग के लिए एक सीट बढ़ायी जायें.
- अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के लिए 16 सीटें आरक्षित की जायें.
निहितार्थ
जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में अब सदस्यों की संख्या 90 होगी. जबकि केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति समाप्त किए जाने से पहले राज्य की विधानसभा में 87 सदस्य होते थे.
इन सिफारिशों का आधार
‘जम्मू एवं कश्मीर परिसीमन आयोग’ के अनुसार, इसकी अंतिम रिपोर्ट वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर तैयार की जाएगी, और रिपोर्ट में भौगोलिक स्थिति, दुर्गम इलाकों तथा वर्तमान में जारी ‘परिसीमन प्रक्रिया’ (Delimitation Exercise) हेतु संचार के साधनों और उपलब्ध सुविधाओं को भी ध्यान में रखा जाएगा.
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया- घटनाक्रम
- जम्मू-कश्मीर में पहली परिसीमन प्रक्रिया वर्ष 1951 में एक परिसीमन समिति द्वारा निष्पादित की गई थी, और इसके तहत, तत्कालीन राज्य को 25 विधानसभा क्षेत्रों में विभक्त किया गया था.
- इसके बाद, वर्ष 1981 में पहली बार एक पूर्ण परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन किया गया था और इस आयोग द्वारा वर्ष 1981 की जनगणना के आधार पर वर्ष 1995 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की गेन थी. इसके बाद से, राज्य में कोई अब तक कोई परिसीमन नहींं हुआ है.
- वर्ष 2020 में जम्मू-कश्मीर के लिए, वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन करने के लिए, एक ‘परिसीमन आयोग’ का गठन किया गया. इस आयोग को संघ-शासित प्रदेश में सात अन्य सीटों को जोड़ने तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदायों को आरक्षण देने का आदेश दिया गया.
- नए परिसीमन के बाद, जम्मू-कश्मीर में सीटों की कुल संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी जाएगी. ये सीटें ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ (PoK) के लिए आरक्षित 24 सीटों के अतिरिक्त होंगी और इन सीटों को विधानसभा में खाली रखा जाएगा.
परिसीमन क्या है?
परिसीमन का शाब्दिक अर्थ विधान सभा से युक्त किसी राज्य के अन्दर चुनाव क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निधारण होता है.
परिसीमन का कार्य कौन करता है?
- परिसीमन का काम एक अति सशक्त आयोग करता है जिसका औपचारिक नाम परिसीमन आयोग है.
- यह आयोग इतना सशक्त होता है कि इसके आदेशों को कानून माना जाता है और उन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है.
- आयोग के आदेश राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित तिथि से लागू हो जाते हैं. इन आदेशों की प्रतियाँ लोक सभा में अथवा सम्बंधित विधान सभा में उपस्थापित होती हैं. इनमें किसी संशोधन की अनुमति नहीं होती.
परिसीमन आयोग और उसके कार्य
- संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार संसद प्रत्येक जनगणना के पश्चात् एक सीमाकंन अधिनियम पारित करता है और उसके आधार पर केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन करती है.
- इस आयोग में सर्वोच्च न्यायालय का एक सेवा-निवृत्त न्यायाधीश, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और राज्यों के राज्य निर्वाचन आयुक्त सदस्य होते हैं.
- इस आयोग का काम चुनाव क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का इस प्रकार निर्धारण करना है कि यथासम्भव सभी चुनाव क्षेत्रों की जनसंख्या एक जैसी हो.
- आयोग का यह भी काम है कि वह उन सीटों की पहचान करे जो अजा/अजजा के लिए आरक्षित होंगे. विदित हो कि अजा/अजजा के लिए आरक्षण तब होता है जब सम्बंधित चुनाव-क्षेत्र में उनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है.
- सीटों की संख्या और आकार के बारे में निर्णय नवीनतम जनगणना के आधार पर किया जाता है.
- यदि आयोग के सदस्यों में किसी बात को लेकर मतभेद हो तो बहुत के मत को स्वीकार किया जाता है.
- संविधान के अनुसार, परिसीमन आयोग का कोई भी आदेश अंतिम होता है और इसको किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है.
- प्रारम्भ में आयोग भारतीय राज्य पत्र में अपने प्रस्तावों का प्रारूप प्रकाशित करता है और पुनः उसके विषय में जनता के बीच जाकर सुनवाई करते हुए आपत्ति, सुझाव आदि लेता है. तत्पश्चात् अंतिम आदेश भारतीय राजपत्र और राज्यों के राजपत्र में प्रकाशित कर दिया जाता है.
परिसीमन आवश्यक क्यों?
जनसंख्या में परिवर्तन को देखते हुए समय-समय पर लोक सभा और विधान सभा की सीटों के लिए चुनाव क्षेत्र का परिसीमन नए सिरे से करने का प्रावधान है. इस प्रक्रिया के फलस्वरूप इन सदनों की सदस्य संख्या में भी बदलाव होता है.
परिसीमन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के अलग-अलग भागों को समान प्रतिनिधित्व उपलब्ध कराना होता है. इसका एक उद्देश्य यह भी होता है कि चुनाव क्षेत्रों के लिए भौगोलिक क्षेत्रों को इस प्रकार न्यायपूर्ण ढंग से बाँटा जाए जिससे किसी एक राजनीतिक दल को अन्य दलों पर बढ़त न प्राप्त हो.
चुनाव क्षेत्र परिसीमन का काम कब-कब हुआ है?
- चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन का काम सबसे पहले 1950-51 में हुआ था. संविधान में उस समय यह निर्दिष्ट नहीं हुआ था कि यह काम कौन करेगा. इसलिए उस समय यह काम राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग के सहयोग से किया था.
- संविधान के निर्देशानुसार चुनाव क्षेत्रों का मानचित्र प्रत्येक जनगणना के उपरान्त फिर से बनाना आवश्यक है. अतः 1951 की जनगणना के पश्चात् 1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम पारित हुआ. तब से लेकर 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन का काम हुआ. उल्लेखनीय है कि 1976 में आपातकाल के समय इंदिरा गाँधी ने संविधान में संशोधन करते हुए परिसीमन का कार्य 2001 तक रोक दिया था. इसके पीछे यह तर्क दिया था गया कि दक्षिण के राज्यों को शिकायत थी कि वे परिवार नियोजन के मोर्चे पर अच्छा काम कर रहे हैं और जनसंख्या को नियंत्रण करने में सहयोग कर रहे हैं जिसका फल उन्हें यह मिल रहा है कि उनके चुनाव क्षेत्रों की संख्या उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में कम होती है. अतः 1981 और 1991 की जनगणनाओं के बाद परिसीमन का काम नहीं हुआ.
- 2001 की जनगणना के पश्चात् परिसीमन पर लगी हुई इस रोक को हट जाना चाहिए था. परन्तु फिर से एक संशोधन लाया गया और इस रोक को इस आधार पर 2026 तक बढ़ा दिया कि तब तक पूरे भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर एक जैसी हो जायेगी. इसी कारण 2001 की जनगणना के आधार पर किये गये परिसीमन कार्य (जुलाई 2002 – मई 31, 2018) में कोई ख़ास काम नहीं हुआ था. केवल लोकसभा और विधान सभाओं की वर्तमान चुनाव क्षेत्रों की सीमाओं को थोड़ा-बहुत इधर-उधर किया गया था और आरक्षित सीटों की संख्या में बदलाव लाया गया था.
संवैधानिक प्रावधान
- संविधान के अनुच्छेद 82 के अंतर्गत, प्रत्येक जनगणना के बाद् भारत की संसद द्वारा एक ‘परिसीमन अधिनियम’ क़ानून बनाया जाता है.
- अनुच्छेद 170 के तहत, प्रत्येक जनगणना के बाद, परिसीमन अधिनियम के अनुसार राज्यों को भी क्षेत्रीय निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है.
मेरी राय – मेंस के लिए
भारतीय निर्वाचन आयोग ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि पहले परिसीमन ने कई राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को असंतुष्ट किया है, साथ ही सरकार को सलाह दी गई कि भविष्य के सभी परिसीमन एक स्वतंत्र आयोग द्वारा किये जाने चाहिये। इस सुझाव को स्वीकार कर लिया गया और वर्ष 1952 में परिसीमन अधिनियम लागू किया गया। वर्ष 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के तहत चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोग गठित हुए। वर्ष 1981 और 1991 की जनगणना के बाद कोई परिसीमन का कार्य नहीं हुआ।
Sansar Daily Current Affairs, 22 January 2022
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारतीय संस्कृति प्राचीन से आधुनिक काल तक कला रूपों, साहित्य और वास्तुकला के प्रमुख पहलुओं को कवर करेगी.
Topic : Pt. Birju Maharaj
संदर्भ
16 जनवरी को महान् कत्थक नृत्य कलाकार पंडित बिरजू महाराज का निधन हों गया. उन्होंने भारतीय नृत्य कला को विश्वभर में विशिष्ट पहचान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. पंडित बिरजू महाराज, लखनऊ घराने के कथक नर्तकों के महाराज परिवार के वंशज थे, जिसमें अन्य प्रमुख विभूतियों में इनके दो चाचा व ताऊ, शंभु महाराज एवं लच्छू महाराज: तथा इनके स्वयं के पिता एवं गुरु अच्छन महाराज भी आते हैं.
हालांकि इनका प्रथम जुड़ाव नृत्य से ही था, फिर भी इनकी गायकी पर भी अच्छी पकड़ थी. तथा ये एक अच्छे शाखीय गायक भी थे. बिरजू महाराज को अपने क्षेत्र में आरम्भ से ही काफ़ी प्रशंसा एवं सम्मान मिले, जिनमें 1986 में पद्म विभृषण, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान प्रमुख हैं.
कत्थक
- कत्थक, भारत के शास्त्रीय नृत्यों में से एक है. कत्थक शब्द का उदभव “कथा” शब्द से हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- कथा कहना.
- यह मुख्यतः उत्तर भारत का नृत्य है.
- इसे ‘नटवरी नृत्य’ भी कहा जाता है.
- मुगल काल मे यह नृत्य शैली मंदिर से दरबारों तक पहुंच गई.
- कत्थक में ‘ध्रुपद एवं ठुमरी संगीत’ गायन किया जाता है. मुग़ल काल में तराना, ठुमरी और ग़ज़लों का इस्तेमाल शुरू हुआ.
- नर्तक और तबला वादक के बीच जुगलबंदी होती है. इसमें पद-ताल पर विशेष जोर दिया जाता है. तालों को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, जैसे- तोड़ा, टुकड़ा और परना विभिन्न घराने- लखनऊ, जयपुर, बनारस. इन घरानों में लखनऊ घराना सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ.
- लखनऊ घराने की विशेषता उसके नृत्य में भाव, अभिनय व रस की प्रधानता है. अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के संरक्षण में यह एक प्रमुख कला रूप में विकसित हुआ.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध.
Topic : Recent statistics on China’s GDP and population
संदर्भ
चीन की अर्थव्यवस्था वर्ष 2021 में 8.1% की वृद्धि दर से बढ़ी एवं अब 18 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच चुकी है. चीन की जीडीपी वृद्धि दर वर्ष 2011 के बाद सर्वाधिक रही. हालाँकि चीन के लिए एक चिंता का विषय यह भी रहा कि वर्ष 1949 के बाद से चीन में सबसे कम जन्म दर देखी गई, यह अब 1% से भी नीचे आ गई है. वर्ष 2021 में चीन में 1.06 करोड़ बच्चों का जन्म हुआ जो वर्ष 2020 में जन्मे 1.2 करोड़ बच्चों से कम है.
चीन के लिए इन आँकड़ों में सामने आई विशेष चिंता की बात यह है कि आने वाले वर्षों में चीन के पास श्रम शक्ति में कमी होगी, जिससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है. इसे देखते हुए चीन की राष्ट्रीय विधायिका ने पिछले वर्ष ऑपचारिक रूप से सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा प्रस्तावित तीन बच्चों की नीति (Three Child Policy) का समर्थन किया था.
एक संतान नीति
साल 1979 में जब यह नीति लागू हुई थी तब उन लोगों को भारी परेशानी हुई, जो परंपरागत रूप से बड़े परिवारों में रहने के आदी थे. मगर इन परिस्थितियों में बड़ी हुई संतानें इससे अनभिज्ञ थीं.
2016 में चीन ने “एक संतान नीति” (One Child Policy)’ समाप्त कर दिया. एक बच्चे की नीति तीन दशकों से अधिक समय से लागू थी जिसने 400 मिलियन से अधिक जन्मों को रोका है.
दो बच्चों की नीति
चीन ने दशकों पुरानी एक बच्चे की नीति को खत्म करके 2016 में सभी जोड़ों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी थी/इस नीति को चीन में नीति निर्माताओं द्वारा जनसांख्यिकीय संकट माना जाता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic : Narcotic Drugs and Psychotropic Substances (Amendment) Bill, 2021
संदर्भ
‘स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (संशोधन) विधेयक’ 2021 (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances (Amendment) Bill, 2021) अर्थात् ‘NDPS विधेयक’ हाल ही में, संसद द्वारा पारित कर दिया गया है.
यह संशोधन विधेयक, इसी वर्ष 30 सितंबर को प्रख्यापित एक अध्यादेश को प्रतिस्थापित करेगा.
विधेयक का उद्देश्य
सरकार द्वारा यह विधेयक, ‘स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम’ (एनडीपीएस) की धारा 27 के एक प्रावधान में पाई गयी त्रुटि को सुधारने के लिए पेश किया गया है. इस त्रुटि की वजह से अधिनियम की धारा 27 के – अवैध तस्करी के लिए वित्तपोषण करने वालों को दंडित करने संबंधी प्रावधान अप्रभावी हो जाता था.
- वर्ष 2014 में चिकित्सा संबंधी जरूरतों के लिए ’स्वापक औषधियों’ / ‘मादक दवाओं’ के उपयोग को आसान बनाने के लिए ‘अधिनियम’ में संशोधन किया गया था, किंतु दंड प्रावधान में तदनुसार संशोधन नहींं किए जाने से यह ‘त्रुटि’ उत्पन्न हो गयी थी.
- जून 2021 में, त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने कानून का निरीक्षण करने पर इस त्रुटि को चिह्नित किया और केंद्रीय गृह मंत्रालय को अधिनियम की धारा 27 के प्रावधानों में संशोधन करने का निर्देश दिया.
इस संशोधन की आवश्यकता
अधिनयम के प्रारूप में इस त्रुटि का पता तब चला, जब एक आरोपी ने त्रिपुरा में एक विशेष अदालत में अपील दायर करते हुए कहा कि, उस पर अपराध का आरोप नहींं लगाया जा सकता क्योंकि ‘धारा 27 A’ एक ‘खाली सूची’ से संबंधित है. त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने, बाद में केंद्र सरकार को कानून में संशोधन करने का निर्देश दिया.
एनडीपीएस अधिनियम की धारा 27 में त्रुटि
’स्वापक औषधियों’ (Narcotic Drugs) तक बेहतर चिकित्सा पहुंच की अनुमति दिए जाने के लिए वर्ष 2014 में ‘स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम’ में एक संशोधन किया गया, जिसके तहत “आवश्यक स्वापक औषधियों” के परिवहन और लाइसेंस में राज्य द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को हटाया गया था. इसी संसोधन के मसौदे में एक विसंगति भी तैयार हो गयी थी.
- 2014 के संशोधन से पहले, अधिनियम की धारा 2 के खंड (viiia) में उप-खंड (i) से (v) शामिल थे, जिसमें ‘अवैध यातायात’ शब्द को परिभाषित किया गया था.
- इस खंड को ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (संशोधन) अधिनियम’, 2014 द्वारा खंड (viiib) के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया गया था, क्योंकि “आवश्यक स्वापक औषधियों” को परिभाषित करते हुए अधिनियम की धारा 2 में एक नया खंड (viiiia) जोड़ा गया था. हालांकि, अनजाने में इस परिणामी परिवर्तन के अनुरूप ‘एनडीपीएस अधिनियम’ की धारा 27A को संसोधित नहींं किया गया था.
विधेयक से संबंधित आलोचनाएं:
- कुछ विशेषज्ञों का कहना है, कि विधेयक में, संबंधित प्रावधान वर्ष 2014 से होने वाले अपराधों पर ‘पूर्वव्यापी प्रभाव’ से लागू किए जाने का प्रस्ताव किया गया है, अतः यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
- यह क़ानून, अनुच्छेद 21 में प्रद्दत मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है, क्योंकि किसी व्यक्ति को केवल उसी अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है, जिसके लिए अपराध किए जाने के समय कानून मौजूद है.
‘स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम’ / एनडीपीएस अधिनियम
‘एनडीपीएस अधिनियम’ (NDPS Act) के तहत, किसी व्यक्ति को, किसी भी ‘स्वापक औषधि’ (narcotic Drug) या ‘मनःप्रभावी पदार्थ’ (Psychotropic Substance) के उत्पादन, रखने, बेचने, खरीदने, परिवहन करने, भंडारण करने और/या उपभोग करने से प्रतिबंधित किया गया है.
- NDPS एक्ट, 1985 में अब तक तीन बार- वर्ष 1988, 2001 और 2014 में संशोधन किए जा चुके हैं.
- यह अधिनियम पूरे भारत में लागू है, और यह भारत के बाहर के सभी भारतीय नागरिकों तथा भारत में पंजीकृत जहाजों और विमानों पर सवार सभी व्यक्तियों पर भी लागू होता है.
मादक पदार्थों की तस्करी की समस्या से निपटने हेतु भारत सरकार की नीतियाँ और पहलें:
- विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर, देश के 272 जिलों में ‘नशा मुक्त भारत अभियान‘ या ‘ड्रग्स-मुक्त भारत अभियान‘ को 15 अगस्त 2020 को हरी झंडी दिखाई गई.
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018-2025 की अवधि के लिए ‘नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना’ (National Action Plan for Drug Demand Reduction- NAPDDR) का कार्यान्वयन शुरू किया गया है.
- सरकार द्वारा नवंबर, 2016 में नार्को-समन्वय केंद्र (NCORD) का गठन किया गया है.
- सरकार द्वारा नारकोटिक ड्रग्स संबंधी अवैध व्यापार, व्यसनी / नशेड़ियों के पुनर्वास, और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ जनता को शिक्षित करने आदि में होने वाले व्यय को पूरा करने हेतु “नशीली दवाओं के दुरुपयोग नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कोष” (National Fund for Control of Drug Abuse) नामक एक कोष का गठन किया गया है.
मेरी राय – मेंस के लिए
मादक पदार्थ एक ऐसा रासायनिक पदार्थ है जो चिकित्सक के परामर्श के बिना अपनी शारीरिक और मानसिक कार्यप्रणाली को बदलने के लिये जाता है। यह पदार्थ व्यक्ति को अस्थायी रूप से तनावयुक्त, हल्का व आनंदित कर देता है। भारत के संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाते हुए मादक द्रव्यों के निषेध की चर्चा की गई है। संविधान के अनुच्छेद 47 में “स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक नशीली दवाओं, मदिरा, ड्रग के औषधीय भिन्न उपयोग पर प्रतिबंध” का उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 71 के अंतर्गत सरकार को नशीली दवा के आदी लोगों की पहचान, इलाज और पुनर्वास केंद्र की स्थापना करने का अधिकार प्राप्त है। अतिव्यस्तता और आधुनिक जीवन के तनाव और समस्याओं ने व्यक्तियों को मादक द्रव्य से ग्रसित होने के प्रति बहुत अधिक असुरक्षित बना दिया है। आज की युवा पीढ़ी जो अपनी सृजनात्मकता व रचनात्मकता के बल पर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते थे, गलत संगति या क्षणिक खुशी के कारण मादक पदार्थों के सेवन का शिकार हो रहे हैं। अध्यनों से यह बात सामने आई है कि बदलते परिवेश में महिलाओं व बच्चों में मादक द्रव्यों के दुरुपयोग की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। अतः यह कहा जा सकता है कि आधुनिकता की गलत व्याख्या, व्यवस्तता, अजनबीपन आदि ने हमारे समाज के बहुत बड़े वर्ग को मादक द्रव्यों के दुरुपयोग के प्रति असुरक्षित बना दिया है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है जो देश की भौतिक, सामाजिक-आर्थिक दशा को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic : Labour codes on wages
संदर्भ
भारत में, वर्ष 2022 से शुरू होने वाले आगामी वित्तीय वर्ष तक ‘मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक सुरक्षा और औद्योगिक संबंधों’ पर “चार श्रम संहिताओं” (labour codes on wages, social security, occupational safety and industrial relations) को लागू किए जाने की संभावना है.
इन नई संहिताओं के अंतर्गत, सामान्य रूप से, रोजगार और कार्य संस्कृति से संबंधित कई पहलूओं- जैसे कि कर्मचारियों के हाथ में आने वाला वेतन, काम के घंटे और सप्ताह में कार्य-दिवसों की संख्या आदि – में बदलाव हो सकता है.
विरोध:
हालांकि, तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी सरकार के फैसले के मद्देनजर, ट्रेड यूनियनों ने इन श्रम संहिताओं के खिलाफ अपने आंदोलन को तेज करने की योजना बनाई है.
ट्रेड यूनियनों की मांगें
- ट्रेड यूनियनों का कहना है कि, मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा पर बनाए गई सहिंताओं (Codes) को हम स्वीकार करते है, और इन्हें तत्काल लागू किया जाए.
- ट्रेड यूनियनों द्वारा ‘औद्योगिक संबंध’ (Industrial Relations) और ‘व्यावसायिक सुरक्षा’ (Occupational Safety) पर बनाए गई सहिंताओं पर आपत्ति वयक्त करते हुए इनकी समीक्षा किए जाने की मांग की जा रही है.
‘श्रम संहिताओं’ (labour codes) के बारे में
- कानूनों के इस नवीन सेट में 44 श्रम कानूनों को ‘चार संहिताओं’ में समेकित किया गया है: मजदूरी संहिता (Wage Code), सामाजिक सुरक्षा संहिता (Social Security Code), ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशाएं संहिता’ (Occupational Safety, Health & Working Conditions Code) और औद्योगिक संबंध संहिता (Industrial Relations Code).
- संसद द्वारा पहले ही इन चारों संहिताओं को पारित किया जा चुका है और, इनके लिए राष्ट्रपति की सहमति भी मिल चुकी है.
ये चार संहिताएँ हैं:
- मजदूरी संहिता, 2019 (The Code on Wages, 2019): यह संहिता संगठित और असंगठित क्षेत्र के सभी कर्मचारियों पर लागू होती है. इसका उद्देश्य सभी रोजगारों में ‘वेतन’ / ‘मजदूरी’ और बोनस भुगतान को विनियमित करना है, तथा हर उद्योग, पेशे, व्यवसाय या विनिर्माण में समान प्रकृति के काम करने वाले कर्मचारियों को समान पारिश्रमिक प्रदान करना है.
- ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशाएं संहिता’ 2020 (Occupational Safety, Health & Working Conditions Code, 2020): इसका उद्देश्य 10 या अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों और सभी खदानों और बंदरगाहों / गोदी (Docks) में कम करने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की स्थिति को विनियमित करना है.
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 (Social Security Code, 2020): इसके अंतर्गत सामाजिक सुरक्षा और मातृत्व लाभ से संबंधित नौ कानूनों को समेकित किया गया है.
- औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (Industrial Relations Code, 2020): इसके तहत, तीन श्रम कानूनों अर्थात; ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926, औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 और औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 को समेकित किया गया है. इसका उद्देश्य, उद्योगों पर श्रम कानूनों के अनुपालन बोझ को काफी हद तक कम करके, देश में कारोबारी माहौल में सुधार करना है.
इन संहिताओं के साथ समस्याएं:
- नियमित कामगारों के लिए कार्य-घंटा प्रावधानों में ‘दिन में आठ घंटे से अधिक काम के घंटे तय करने संबंधी’ कोई प्रावधान नहींं किया गया है.
- इन संहिताओं में अंशकालिक कर्मचारियों के लिए समान प्रावधान निर्धारित नहींं किए गए हैं.
- कर्मचारियों के वेतन को प्रभावित करने वाले प्रावधान भी शामिल किए गए हैं.
- श्रम संहिताओं में, प्रावधानों का पालन न करने और दूसरी बार अपराध करने पर, व्यवसायों पर जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान किया गया है. वर्तमान महामारी की स्थिति में, अधिकांश छोटे व्यवसाय, श्रम संहिताओं में किए गए परिवर्तनों को अपनाने और लागू करने की स्थिति में नहींं हैं.
Sansar Daily Current Affairs, 24 January 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic : Haryana notifies Act: 75% job quota for locals in private sector comes into force from January 15
संदर्भ
हाल ही में हरियाणा सरकार द्वारा नवंबर 2020 में हरियाणा की राज्य विधानसभा द्वारा पारित, हरियाणा राज्य रोजगार अधिनियम को लागू कर दिया गया है. इसके माध्यम से कारखानों और निजी क्षेत्र की अन्य नौकरियों में 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित की जायेगीं.
प्रमुख बिंदु
- राज्य विधानसभा ने 5 नवंबर 2020 को स्थानीय उम्मीदवारों के लिए हरियाणा राज्य रोजगार विधेयक पारित किया था. इसके तहत कारखानों और निजी क्षेत्र की अन्य नौकरियों में 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने का फैसला किया गया है.
- यह अधिनियम सभी साझेदारी फर्मों, कंपनियों, ट्रस्टों, सोसाइटियों और 10 या अधिक व्यक्तियों को रोजगार देने वाले किसी भी संगठन पर लागू होता है.
- केन्द्र, राज्य सरकार के उपक्रम इस विधेयक के दायरे में नहींं है.
- राज्य में कारोबार करने वाली निजी कम्पनियों में प्रति माह 50,000 तक के वेतन वाली नौकरियों को इसके दायरे में लाया गया है.
- यह अधिनियम 10 साल के लिए, यानी 2030 तक लागू होगा.
- राज्य के उम्मीदवारों में से उपयुक्त कौशल न मिल पाने पर रोजगार प्रदाता को इससे छूट दी जा सकती है.
- लेकिन साथ ही इस कानून का पालन न करने वालों पर 5 लाख तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान भी किया गया है.
विधेयक से जुड़े विवाद
पिछले वर्ष उक्त विधेयक के विधानसभा में पारित होने पर इसके विरोध में राज्य के औद्योगिक संघों ने न्यायालय जाने का निर्णय किया था तथा कई विशेषज्ञों ने इस विधेयक को अनुच्छेद 16 का उल्लंघन माना है, लेकिन राज्य सरकार के अनुसार अनुच्छेद 16, सार्वजनिक क्षेत्र में नियोजन पर लागू होता है, जबकि यह विधेयक निजी क्षेत्र के लिए लाया गया है. उल्लेखनीय है कि हाल ही में, हरियाणा में देश के सभी राज्यों में सबसे अधिक बेरोजगारी दर (34.1 प्रतिशत) थी. इस कारण राज्य सरकार पर रोजगार देने के लिए कदम उठाने का दबाव था.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध.
Topic : India-Taiwan relations
संदर्भ
भारत और ताइवान द्वारा हाल ही में, एक ‘मुक्त व्यापार समझौते’ तथा एक ताइवानी फर्म द्वारा भारत में ‘सेमीकंडक्टर निर्माण सुविधा’ की स्थापना किए जाने पर ‘वार्ता’ शुरू की गयी है. यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है और दोनों देशों के, समग्र द्विपक्षीय आर्थिक जुड़ाव को व्यापक आधार देने संबंधी संकल्प को दर्शाता है.
यदि ‘सेमीकंडक्टर निर्माण संयंत्र’ स्थापित करने संबंधी उठाया गया कदम सफल हो जाता है, तो यह किसी ताइवानी कंपनी द्वारा किसी अन्य देश में स्थापित किया जाने वाला ऐसा दूसरी सुविधा होगी. इससे पहले ताइवान की एक कंपनी ने ‘संयुक्त राज्य अमेरिका’ में इसी तरह का एक निर्माण-केंद्र स्थापित किया गया है.
ताइवान के संबंध में भारत का दृष्टिकोण:
- ताइवान के संबंध में भारत की नीति स्पष्ट और सुसंगत है, और यह व्यापार, निवेश और पर्यटन के क्षेत्रों में वार्ता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है.
- सरकार व्यापार, निवेश, पर्यटन, संस्कृति, शिक्षा और इस तरह के अन्य क्षेत्रों में, लोगों के परस्पर संपर्क एवं वार्ताओं को बढ़ावा देती है है.
भारत-ताइवान संबंध (Indo- Taiwan relations)
यद्यपि भारत-ताइवान के मध्य औपचारिक राजनयिक संबंध नहींं हैं, फिर भी ताइवान और भारत विभिन्न क्षेत्रों में परस्पर सहयोग कर रहे हैं.
भारत ने वर्ष 2010 से चीन की ‘वन चाइना’ नीति का समर्थन करने से इनकार कर दिया है.
ताइवान के लिए भारत का महत्त्व:
ताइवान, विभिन्न देशों के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने का प्रयास कर रहा है.
- इसके अलावा, चीन द्वारा ताइवान पर सैन्य दबाव लगातार बढ़ाया जा रहा है, जिसके तहत चीन, इस लोकतांत्रिक ताइवान के समीप चीनी युद्धक विमानों के अभियान चला रहा है. बीजिंग, ताइवान अपना दावा करता है और इस पर बलपूर्वक कब्ज़ा करने से इसे कोई गुरेज नहींं है.
आगे की राह
भारत और ताइवान, अपनी साझेदारी के 25 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं.
दिल्ली और ताइपे के बीच, सामूहिक एवं पारस्परिक प्रयासों के तहत, कृषि, निवेश, सीमा शुल्क सहयोग, नागरिक उड्डयन, औद्योगिक सहयोग और अन्य क्षेत्रों सहित कई द्विपक्षीय समझौते किए गए हैं. दोनों देशों के मध्य बढ़ते हुए संबंधों से इस बात का संकेत मिलता है, कि भारत-ताइवान संबंधों को फिर से नया स्वरूप देने का समय आ गया है.
आवश्यकता
- दोनों पक्षों द्वारा एक निश्चित समय सीमा के भीतर, एक रोड मैप तैयार करने के लिए ‘अधिकार प्राप्त व्यक्तियों’ या ‘टास्क फोर्स’ का गठन किया जा सकता है.
- यह दोनों देशों के मध्य ‘स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र’ में सहयोग बढ़ाने का उचित समय है.
- ताइवान अपनी जैव-अनुकूल प्रौद्योगिकियों के माध्यम से, इस चुनौती से निपटने में एक मूल्यवान भागीदार हो सकता है.
चीन- ताइवान संबंध: पृष्ठभूमि
चीन, अपनी ‘वन चाइना’ (One China) नीति के जरिए ताइवान पर अपना दावा करता है. सन् 1949 में चीन में दो दशक तक चले गृहयुद्ध के अंत में जब ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के संस्थापक माओत्से तुंग ने पूरे चीन पर अपना अधिकार जमा लिया तो विरोधी राष्ट्रवादी पार्टी के नेता और समर्थक ताइवान द्वीप पर भाग गए. इसके बाद से ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ ने ताइवान को बीजिंग के अधीन लाने, जरूरत पड़ने पर बल-प्रयोग करने का भी प्रण लिया हुआ है.
- हालांकि, ताइवान एक स्वशासित देश है और वास्तविक रूप से स्वतंत्र है, लेकिन इसने कभी भी औपचारिक रूप से चीन से स्वतंत्रता की घोषणा नहींं की है.
- “एक देश, दो प्रणाली” (one country, two systems) सूत्र के तहत, ताइवान, अपने मामलों को खुद संचालित करता है; हांगकांग में इसी प्रकार की समान व्यवस्था का उपयोग किया जाता है.
- वर्तमान में, चीन, ताइवान पर अपना दावा करता है, और इसे एक राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाले देशों के साथ राजनयिक संबंध नहींं रखने की बात करता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
Topic : Green Hydrogen Fuel
संदर्भ
केंद्र सरकार द्वारा, सौर ऊर्जा के प्रयोग करके अपशिष्ट जल से ‘हरित हाइड्रोजन ईंधन’ (Green Hydrogen Fuel) का उपयोग करने की योजना बनाई जा रही है. ‘इलेक्ट्रोलाइजर्स’ (Electrolysers) का उपयोग करके इसे संभव किया जा सकता है.
क्रिया-विधि
‘रूफटॉप सोलर’ का इस्तेमाल करके ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन’ को अलग करके, हम इलेक्ट्रोलाइज़र की मदद से ‘हरित हाइड्रोजन’ बना सकते हैं. इसके उत्पादन में बिजली और पानी की लागत नगण्य होगी. हम इस ईंधन का उपयोग कोयले के स्थान पर रेलवे इंजनों, सीमेंट और केमिकल कंपनियों में भी कर सकते हैं.
चुनौतियां
देश में ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ के उपयोग की राह अभी साफ नहींं है और फिलहाल ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ का उत्पादन ‘ग्रे हाइड्रोजन’ (Grey Hydrogen) से थोड़ा महंगा भी है.
देश में ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ के लिए मार्ग अभी साफ नहींं है और फिलहाल ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ का उत्पादन ‘ग्रे- हाइड्रोजन’ (Grey Hydrogen) की तुलना में थोड़ा महंगा है.
हरित हाइड्रोजन
- हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन केंद्रीय बजट वर्ष 2021-22 की सबसे बड़ी घोषणाओं में से एक है, जो हाइड्रोजन को हरित हाइड्रोजन के रूप में निर्दिष्ट करती है.
- जब नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित इलेक्ट्रोलिसिस का उपयोग करके जल से हाइड्रोजन का निष्कर्षण किया जाता है, तो इसे हरित हाइड्रोजन कहा जाता है.
- भारत के लिये राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution- NDC) लक्ष्य को पूरा करने, क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा, पहुँच एवं उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये हरित हाइड्रोजन ऊर्जा महत्त्वपूर्ण है.
- वर्तमान में देश में करीब 6 टन हाइड्रोजन का उत्पादन होता है जो वर्ष 2050 तक 5 गुना बढ़ जाएगा.
हरित हाइड्रोजन क्यों?
- हाइड्रोजन एक ऊर्जा भंडारण विकल्प के रूप में कार्य कर सकता है, जो भविष्य में नवीकरणीय ऊर्जा के रिक्त स्थान को भरने के लिये आवश्यक होगा.
- गतिशीलता के संदर्भ में माल ढुलाई अथवा यात्रियों की लंबी दूरी की आवाजाही के लिये यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण पहल है. रेलवे, बड़े जहाज़ों, बसों अथवा ट्रकों में हाइड्रोजन का उपयोग किया जा सकता है जहाँ लंबी दूरी की यात्रा के लिये पर्याप्त क्षमता नह होने के कारण इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग नहीं किया जा सकता है.
- बुनियादी अवसंरचना के साथ-साथ हाइड्रोजन प्रमुख नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य प्राप्त करने की क्षमता रखता है.
- हाइड्रोजन का उपयोग निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है:
- एक वाहक के रूप में.
- पेट्रोल एवं डीज़ल के लिये एक ईंधन सह ऊर्जा भंडारण विकल्प के रूप में.
- प्रत्यक्ष ईंधन के रूप में.
- जापान जैसे विश्व के कई देश हाइड्रोजन को भविष्य के ऊर्जा माध्यम के रूप में अपनाने हेतु अग्रसर हो रहे हैं.
- जर्मनी एवं कई अन्य यूरोपीय संघ के देशों ने पहले से ही एक महत्त्वाकांक्षी हरित हाइड्रोजन नीति निर्धारित की है.
- यहाँ तक कि UAE एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे देश जिन्हें पारंपरिक रूप से जलवायु कार्रवाई के प्रति पिछड़ा (Laggards) माना जाता है, हरित हाइड्रोजन की ओर अग्रसर है.
Sansar Daily Current Affairs, 25 January 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश.
Topic : Indian Renewable Energy Development Agency Limited
संदर्भ
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने हाल ही में भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेसी लिमिटेड (Indian Renewable Energy Development Agency Limited – IREDA) में नकदी देकर इक्विटी शेयर खरीदने के जरिये 1,500 करोड़ रुपये का निवेश करने को मंजूरी दे दी है. नकदी देकर इक्विटी शेयर जारी करने से साल भर में लगभग 10,200 रोजगारों का सृजन होगा तथा लगभग 7.49 मिलियन टन सीओ2/प्रतिवर्ष के बराबर कार्बन डाई-ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आयेगी.
भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (इरेडा) के बारे में
- वर्ष 1987 में स्थापित IREDA , भारत सरकार के “नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय” के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्यरत एक मिनीरत्न (श्रेणी 1) प्रकार की कंपनी है.
- इसे भारतीय रिज़र्व बैंक के नियमों के अंतर्गत “गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी” (NBFC) के रूप में पंजीकृत किया गया है.
- इसका कार्य नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से संबंधित परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना तथा इनके विकास हेतु इन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करना है.
मेरी राय – मेंस के लिए
संभावित गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की खोज तथा उन्हें किफायती एवं सुलभ बनाने के लिये अनुसंधान की आवश्यकता है। ऊर्जा अवसंरचना का विकास करने के साथ-साथ स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम भंडारण को और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयान मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2017-18 में प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपलब्धता (भारत में) को 23355 मेगाजूल बढ़ाने की आवश्यकता है।
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
Topic : Biological Diversity (Amendment) Bill, 2021
संदर्भ
सरकार ने हाल ही में लोकसभा में ‘जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021′ (Biological Diversity (Amendment) Bill, 2021) पेश किया गया है.
विधेयक के प्रमुख बिंदु
- विधेयक में औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहित करके ‘जंगली औषधीय पौधों’ पर दबाव को कम करने का प्रयास किया गया है.
- विधेयक में ‘आयुष चिकित्सकों’ को जैविक संसाधनों या ज्ञान का उपयोग करने के लिए ‘जैव विविधता बोर्डों’ को सूचित करने से छूट देने का प्रस्ताव किया गया है.
- विधेयक में, अनुसंधान में तेजी लाने, पेटेंट आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाने, कुछ गतिविधियों को गैर-अपराध घोषित करने की सुविधा का प्रावधान किया गया है.
- इसमें राष्ट्रीय हितों से समझौता किये बिना जैव संसाधनों, अनुसंधान, पेटेंट और वाणिज्यिक उपयोग की श्रृंखला में अधिक निवेश लाने पर जोर दिया गया है.
- विधेयक में इस पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जैविक संसाधनों और ज्ञान का उपयोग कौन कर सकता है तथा उपयोग पर निगरानी किस प्रकार की जाएगी.
- विधेयक में ‘राज्य जैव विविधता बोर्डों’ की भूमिका को भी स्पष्ट और सशक्त किया गया है.
जैव विविधता अधिनियम 2002 में संशोधन का कारण
- आयुष चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों द्वारा सरकार से सहयोगात्मक अनुसंधान और निवेश हेतु एक अनुकूल वातावरण बनाने के लिए ‘अनुपालन-प्रक्रिया भार’ को सरल, सुव्यवस्थित और कम करने का आग्रह किया जा रहा था.
- इनके द्वारा पेटेंट आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाने, पहुंच के दायरे को विस्तृत करने तथा स्थानीय समुदायों के साथ लाभ-साझाकरण की भी मांग की गयी थी.
संबंधित चिंताएं
- विधेयक का मुख्य फोकस, स्थानीय समुदायों के संरक्षण, जैव विविधता के संरक्षण और ज्ञान पर होने के बजाय ‘जैव विविधता में व्यापार’ को सुविधाजनक बनाना है.
- यह विधेयक ‘पूर्व विधायी परामर्शक नीति’ (Pre-Legislative Consultative Policy) के तहत अनिवार्य, जनता की राय मांगे बगैर, पेश किया गया है.
- ‘प्रस्तावित संशोधन’ में ‘जैव विविधता के संवहनीय उपयोग और संरक्षण’ में स्थानीय समुदायों की हिस्सेदारी की रक्षा, संरक्षण या वृद्धि करने के संदर्भ में प्रावधान अस्पष्ट हैं.
- कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह संशोधन केवल ‘आयुष मंत्रालय’ को “लाभ” पहुचाने के लिए किए गए हैं.
- विधेयक में, ‘जैव-उपयोग’ (Bio-utilization) शब्द को बाहर कर दिया है, जोकि अधिनियम का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है. ‘जैव उपयोग’ शब्द का प्रयोग नहींं किए जाने से, वाणिज्यिक उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण- वर्गीकरण, प्रोत्साहन और जैव-परख जैसी गतिविधियां छूट जाएगी.
- विधेयक में, कृषित औषधीय पौधों को भी अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन यह पता लगाना व्यावहारिक रूप से असंभव है कि कौन से पौधे उगाए जाते हैं और कौन से जंगली पौधे हैं.
जैविक विविधता अधिनियम, 2002
‘जैव विविधता अधिनियम’ 2002 (Biological Diversity Act, 2002) को जैव विविधता के संरक्षण, इसके अवयवों के सतत उपयोग और जैव संसाधनों के निहित लाभों में उचित एवं साम्य बंटवारा करने तथा उससे संबंधित विषयों का उपबंध करने के लिये अधिनियमित किया गया था.
- इस कानून का मुख्य उद्देश्य, भारत की समृद्ध जैव विविधता और संबंधित ज्ञान को विदेशी व्यक्तियों द्वारा इसका उपयोग किए जाने से बचाना है.
- इसमें, केंद्रीय और राज्य बोर्डों और स्थानीय समितियों की त्रिस्तरीय संरचना के माध्यम से जैव-चोरी की जांच, जैविक विविधता और स्थानीय उत्पादकों की रक्षा करने का प्रावधान किए गए हैं.
- अधिनियम में ‘स्थानीय निकायों’ में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority), राज्य जैव विविधता बोर्ड (State Biodiversity Boards) और जैव विविधता प्रबंधन समितियों (Biodiversity Management Committees) की स्थापना किए जाने का प्रावधान किया गया है.
- राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) को दीवानी न्यायालय के समान शक्ति प्रदान की गयी है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय.
Topic : Prohibition of Child Marriage (Amendment) Bill, 2021’
संदर्भ
हाल ही में, लोकसभा द्वारा ‘बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021’ (Prohibition of Child Marriage (Amendment) Bill, 2021’) को समीक्षा के लिए एक ‘स्थायी समिति’ को भेजा गया है. इस संशोधन विधेयक में महिलाओं के लिए विवाह हेतु कानूनी उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रावधान किया गया है.
इस कानून को लाने के पीछे तर्क:
विवाह की आयु सभी धर्मों, जातियों, पंथों के लिए और महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाले किसी भी रिवाज या कानून को अध्यारोही करते हुए, एक समान रूप से लागू होनी चाहिए.
यह विधेयक निम्नलिखित कानूनों में भी संशोधित करेगा:
- भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1972
- पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936
- मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
- विदेशी विवाह अधिनियम, 1956
संसदीय समितियाँ क्या होती हैं?
लोकसभा वेबसाइट के अनुसार, संसदीय समिति से तात्पर्य उस समिति से है, जो सभा द्वारा नियुक्त या निर्वाचित की जाती है अथवा अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित की जाती है तथा अध्यक्ष के निदेशानुसार कार्य करती है एवं अपना प्रतिवेदन सभा को या अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है.
संसदीय समितियों के प्रकार:
- स्थायी समितियाँ (Standing Committees): ये समितियां अनवरत प्रकृति की होती हैं अर्थात् इनका कार्य प्रायः निरंतर चलता रहता है. इस प्रकार की समितियों को वार्षिक आधार पर पुनर्गठित किया जाता है.
- इन्हें वित्तीय समितियों और विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों (Departmentally-Related Standing Committees- DRSCs) में विभाजित किया जाता है.
- वित्तीय समितियों को विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है, तथा यह तीन प्रकार की होती हैं: लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति एवं सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति.
- तदर्थ समितियां (Select Committees): तदर्थ समितियां किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए नियुक्त की जाती हैं और जब वे अपना काम समाप्त कर लेती हैं तथा अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर देती हैं, तब उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है.
संवैधानिक प्रावधान
संसदीय समितियां, अनुच्छेद 105 (संसद सदस्यों के विशेषाधिकार) तथा अनुच्छेद 118 (संसदीय प्रक्रिया तथा कार्यवाही के संचालन के लिए नियम बनाने हेतु संसद की शक्ति) से अपनी शक्तियां प्राप्त करती हैं.
विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों (DRSCs) की संरचना:
विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों की संख्या 24 है जिनके क्षेत्राधिकार में भारत सरकार के सभी मंत्रालय/विभाग आते हैं.
- 13 वीं लोकसभा तक प्रत्येक DRSC में 45 सदस्य होते थे – जिनमे से 30 सदस्यों को लोकसभा से तथा 15 सदस्यों को राज्यसभा से नाम-निर्दिष्ट किया जाता था.
- जुलाई 2004 में विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों के पुनर्गठन के बाद, इनमें से प्रत्येक समिति में 31 सदस्य होते हैं – 21 लोक सभा से तथा 10 राज्य सभा से जिन्हें क्रमश: लोक सभा के अध्यक्ष तथा राज्य सभा के सभापति द्वारा नाम-निर्दिष्ट किया जाता है.
- इन समितियों को एक वर्ष की अधिकतम अवधि के लिए गठित किया जाता है और समितियों के पुनर्गठन में प्रतिवर्ष सभी दलों के सदस्यों को सम्मिलित किया जाता है.
संसदीय समिति प्रणाली का महत्त्व:
- अंतर-मंत्रालयी समन्वय
- विस्तृत संवीक्षा हेतु उपकरण
- लघु-संसद के रूप में कार्यकारी निकाय
Sansar Daily Current Affairs, 26 January 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय. संघ और राज्यों के कार्य और उत्तरदायित्व, संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ.
Topic : Belagavi border dispute
संदर्भ
स्वतंत्रता के समय तथा 1956 में ‘भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन’ के बाद से, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच चले आ रहे एक ‘अंतर-राज्यीय विवाद’ ने कर्नाटक के बेलागवी क्षेत्र में फिर से अपना सिर उठा लिया है.
हाल ही में हुई छोटी-छोटी घटनाओं की वजह से इस विवाद को तेज कर दिया है, और सीमा के दोनों ओर कन्नड़ समर्थक और मराठी समर्थक भावनाएं भड़क उठी हैं.
बेलागवी सीमा विवाद की उत्पत्ति
पूर्ववर्ती बॉम्बे प्रेसीडेंसी एक एक बहुभाषी प्रांत था, जिसमे वर्तमान कर्नाटक राज्य के बीजापुर, बेलागवी, धारवाड़ और उत्तर-कन्नड़ जिले सम्मिलित थे. बॉम्बे प्रेसीडेंसी में मराठी, गुजराती और कन्नड भाषाएं बोलने वाले लोग रहा करते थे.
- वर्ष 1948 में, बेलगाम नगरीय निकाय ने अनुरोध किया था कि मुख्य रूप से मराठी भाषी जनसँख्या वाले जिले को प्रस्तावित महाराष्ट्र राज्य में शामिल कर दिया जाए.
- हालाँकि, भाषाई और प्रशासनिक आधार पर राज्यों को विभाजित करने वाले राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत बेलगाम और बॉम्बे प्रेसीडेंसी के 10 अन्य तालुकों को तत्कालीन मैसूर राज्य (जिसे 1973 में कर्नाटक का नाम दिया गया था) का एक हिस्सा बना दिया गया.
महाजन आयोग की रिपोर्ट
राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा, राज्यों का सीमांकन करते हुए, 50 प्रतिशत से अधिक कन्नड़ भाषी आबादी वाले तालुकों को मैसूर राज्य में शामिल कर दिया गया.
- इस क्षेत्र के मैसूर में शामिल किए जाने का काफी विरोध किया गया. विरोध करने वालों का कहना था, कि इस क्षेत्र में मराठी भाषियों की संख्या 1956 में यहाँ रहने वाले कन्नड़ भाषियों से अधिक हो गयी है.
- सितंबर 1957 में, बॉम्बे सरकार द्वारा इनकी मांग को आवाज दी गयी और केंद्र के समक्ष विरोध दर्ज कराया गया, जिसके परिणामस्वरूप अक्टूबर 1966 में पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में महाजन आयोग का गठन किया गया.
आयोग की सिफारिश
अगस्त 1967 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश के अनुसार- 264 गांवों को महाराष्ट्र (जिसका 1960 में गठन किया गया) में स्थानांतरित किया जाएगा तथा बेलगाम और 247 गाँव कर्नाटक में रखे जाएंगे.
बाद का घटनाक्रम
- महाराष्ट्र द्वारा इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया तथा इसे पक्षपाती और अतार्किक बताते हुए इसकी समीक्षा किए जाने की मांग की गई.
- कर्नाटक ने इस रिपोर्ट का स्वागत किया और इसके कार्यान्वयन हेतु दबाव देता रहा है, हालांकि इसे केंद्र द्वारा औपचारिक रूप से स्वीकार नहींं किया गया है.
- महाराष्ट्र, बेलगाम शहर, जो वर्तमान में कर्नाटक का हिस्सा है, सहित सीमा पर स्थित 814 से अधिक गाँवों पर दावा करता है.
- महाराष्ट्र की सरकारों द्वारा इन क्षेत्रों को राज्य में सम्मिलित किये जाने की मांग की जाती रही है- जबकि कर्नाटक के द्वारा इन दावों का विरोध किया जाता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic : Mekedatu Balancing Reservoir Project
संदर्भ
हाल ही में, कर्नाटक ने ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ (CWMA) द्वारा अपनी अगली बैठक में ‘मेकेदातु संतुलन जलाशय परियोजना’ (Mekedatu Balancing Reservoir Project) पर ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ (DPR) को मंजूरी दिए जाने की मांग की है.
संबंधित प्रकरण:
तमिलनाडु द्वारा ‘मेकेदातु’ (Mekedatu) में कावेरी नदी पर कर्नाटक द्वारा जलाशय बनाने के कदम का विरोध किया जा रहा है. हालांकि, कर्नाटक सरकार का कहना है, कि ‘मेकेदातु परियोजना’ से कोई “खतरा” नहींं है और राज्य द्वारा इस परियोजना को शुरू किया किया जाएगा.
समाधान हेतु उपाय
इस बीच, केंद्र सरकार ने कहा है, कि इस परियोजना के लिए ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ (CWMA) की अनुमति लेना आवश्यक है.
- कर्नाटक द्वारा भेजी गई ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ (Detail Project Report – DPR) को अनुमोदन के लिए CWMA के समक्ष कई बार पेश किया चुका है, किंतु संबधित राज्यों, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच सहमति नहींं बन पाने के कारण इस मुद्दे पर चर्चा नहींं हो सकी है.
- साथ ही, ‘कावेरी जल विवाद प्राधिकरण’ के अंतिम निर्णय, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संशोधित किया गया था, के अनुसार, ‘जल शक्ति मंत्रालय’ द्वारा ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ (DPR) पर विचार करने के लिए पहले CWMA की स्वीकृति लेना आवश्यक है.
चूंकि, यह परियोजना एक अंतर-राज्यीय नदी के पार प्रस्तावित की गई है, अतः इसे ‘अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम’ (Interstate Water Dispute Act) के अनुसार, परियोजना के लिए नदी के निचले तटवर्ती राज्यों की मंजूरी लेना भी आवश्यक है.
मेकेदाटु बाँध परियोजना क्या है?
- यह कर्नाटक सरकार की एक परियोजना है जो मेकेदाटु में चलाई जायेगी. यह स्थान कर्नाटक के रामनगरम जिले में कावेरी नदी के तट पर है.
- इस परियोजना का प्राथमिक उद्देश्य बेंगलुरु को पेयजल मुहैया करना और इस क्षेत्र के भूगर्भ जल के स्तर को ऊँचा करना है.
परियोजना से सम्बन्धित विवाद
तमिलनाडु को इस परियोजना पर आपत्ति है जिसको लेकर उसने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दी है. इस राज्य का मुख्य तर्क यह है कि यह परियोजना कावेरी नदी जल पंचाट के अंतिम निर्देश का उल्लंघन करता है और प्रस्तावित दो जलाशयों के निर्माण के कारण कृष्णराज सागर तथा कावेरी जलाशय के नीचे के निकटवर्ती नदी क्षेत्र तथा कर्णाटक और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित Billigundulu में जलप्रवाह को अवरुद्ध कर देगा.
दूसरी ओर कर्नाटक का कहना है कि यह प्रस्तावित परियोजना तमिलनाडु को दिए जाने वाले जल की निश्चित मात्रा को छोड़ने में आड़े नहीं आएगी और न ही इसका उपयोग सिंचाई के लिए किया जाएगा.
CWC क्या है?
- केन्द्रीय जल आयोग जल संसाधन से सम्बंधित एक मूर्धन्य तकनीकी निकाय है जोजल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय के तहत आता है.
- CWC का अध्यक्ष चेयरमैन कहलाता है जो भारत सरकार के पदेन सचिव के स्तर का होता है.
- आयोग का कार्य सम्बंधित राज्य सरकारों के साथ विमर्श कर देश-भर में जल संसाधनों के नियंत्रण, संरक्षण एवं उपयोग के लिए आवश्यक योजनाओं को आरम्भ करना, उनका समन्वयन करना और उन्हें आगे बढ़ाना है जिससे कि बाढ़ का नियंत्रण हो तथा सिंचाई, नौकायन, पेयजल आपूर्ति तथा जलशक्ति विकास के कार्य सम्पन्न हो सकें.
- यदि आवश्यक हो तो यह आयोग ऐसी योजनाओं की छानबीन, निर्माण तथा क्रियान्वयन को भी अपने हाथ में लेता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: बैंकिंग क्षेत्र और एनबीएफसी/राजस्व नीति.
Topic : India Post Payment Bank
संदर्भ
इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक (IPPB) ने यह घोषणा की है कि उसने अपने तीन वर्ष के संचालन में 5 करोड़ ग्राहक आधार के स्तर को पार कर लिया है और वह देश में तेजी से बढ़ते हुए डिजिटल भुगतान बैंकों में शामिल हो गया है.
मुख्य बिंदु
- आईपीपीबी ने लगभग 1.47 लाख डोरस्टेप बैंकिंग सेवा प्रदाताओं की मदद से 1.36 लाख डाकघरों में (इनमें से 1.20 लाख ग्रामीण डाकघरों में) डिजिटल और पेपरलेस मोड में ये पांच करोड़ खाते खोले हैं.
- कुल खाताधारकों में से लगभग 48 प्रतिशत महिलाएं खाताधारक हैं; जबकि 52 प्रतिशत पुरुष हैं जो यह दर्शाता है कि यह बैंक महिला ग्राहकों को बैंकिंग नेटवर्क के तहत लाने पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है.
- लगभग 98 प्रतिशत महिलाओं के खाते उनके घर जाकर खोले गए और 68 प्रतिशत से अधिक महिलाएं डीबीटी का लाभ उठा रही हैं.
- एक अन्य उपलब्धि यह है कि आईपीपीबी ने युवाओं को डिजिटल बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठाने के लिए आकर्षित किया है.
- 41 प्रतिशत से अधिक खाताधारक 18 से 35 वर्ष के आयु वर्ग के हैं.
भुगतान बैंक क्या है?
भुगतान बैंक सामान्य बैंकों की तरह पूर्ण सेवा प्रदान करने वाले बैंक नहीं होते हैं, इनका मुख्य उद्देश्य वित्तीय समावेशन में तेजी लाना है. नचिकेत मोर समिति की अनुशंसाओं पर भुगतान बैंकों के गठन का निर्णय लिया गया.
इनके सम्बन्ध में निम्न प्रमुख प्रावधान किए गए हैं: –
- ₹100 करोड़ की न्यूनतम पूँजी निवेश की आवश्यकता होगी.
- भुगतान बैंक मुख्य रूप से रेमिटेंस सेवाओं के लिए होंगे और ₹1 लाख तक की जमा स्वीकार कर सकेंगे.
- ये ग्राहकों को ऋण नहींं देंगे और उन्हें अपने धन को सरकारी बांड में लगाना होगा या सामान्य बैंक में जमा राशि के रूप में रखना होगा.
- ये मांग जमा स्वीकार कर सकते हैं.
- ये एटीएम/डेबिट कार्ड जारी कर सकते हैं पर क्रेडिट कार्ड जारी नहींं कर सकते.
- इक्विटी पूंजी के लिए प्रवर्तकों की न्यूनतम प्रारंभिक योगदान राशि पहले 5 वर्षों के लिए कम से कम 40 फ़ीसदी होनी चाहिए.
IPPB क्या है?
भारत डाक भुगतान बैंक (IPPB) एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी होगी जो संचार मंत्रलाय के डाक विभाग के अधीनस्थ होगी. इसपर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व होगा और RBI इसका प्रशासी निकाय (governed by) होगा.
मुख्य तथ्य
- भारत डाक भुगतान बैंक ने 30 जनवरी, 2017 से काम का आरम्भ कर दिया था. आरम्भ में इसकी दो प्रायोगिक शाखाएँ खुली थीं, एक रायपुर और एक राँची में.
- IPPB बचत खाते पर 4% का ब्याज देगा.
- यह बैंक बेकिंग से सम्बंधित अन्य कार्य भी करेगा, जैसे – बचत और चालू खाते, धन स्थानान्तरण, प्रत्यक्ष लाभ स्थानान्तरण, बिल एवं यूटिलिटी भुगतान तथा मर्चेंट भुगतान.
- इस बैंक को यह अनुमति दी गई है कि वह अपने खातों से डाक बचत बैंक के 17 करोड़ खातों को जोड़ ले.
Payment Bank की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें >> Payment Bank
Sansar Daily Current Affairs, 27 January 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय.
Topic : Xinjiang Dispite
संदर्भ
चीन द्वारा, देश के उत्तर-पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में दुर्व्यवहार की शिकायतों को लेकर चीनी अधिकारियों पर लगाए गए दंड के प्रत्युत्तर में अमेरिकी सरकार के ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग’ के चार सदस्यों पर प्रतिबंधों की घोषणा की गयी है.
पृष्ठभूमि
अमेरिका ने ‘शिनजियांग प्रांत’ में की जा रही कार्रवाई के लिए कई चीनी बायोटेक और निगरानी कंपनियों पर नए प्रतिबंध लगा दिए हैं. चीन के पश्चिमी क्षेत्र में ‘उइगर मुसलमानों’ के मानवाधिकारों के हनन पर बीजिंग के खिलाफ अमेरिका का यह नवीनतम कदम है.
संबंधित प्रकरण
कई देशों ने ‘शिनजियांग’ (Xinjiang) में मुस्लिम उइगर समुदाय के लिए चीन से “कानून के शासन का पूर्ण सम्मान सुनिश्चित करने” की मांग की है.
विश्वसनीय रिपोर्टों से संकेत मिलता है, कि शिनजियांग में एक लाख से अधिक लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है तथा उइगरों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को अनुचित रूप से लक्षित करते हुए व्यापक निगरानी की जा रही है, और उइघुर संस्कृति तथा मौलिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया गया है.
चीन की प्रतिक्रिया:
पर्याप्त सबूतों के बावजूद, चीन, उइगरों के साथ दुर्व्यवहार से इनकार करता है, और जोर देकर, केवल चरमपंथ का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन किए गए “व्यावसायिक प्रशिक्षण” केंद्र चलाने की बात करता है
उइगर कौन हैं?
- उइगर मुसलमानों की एक नस्ल है जो बहुत करके चीन के Xinjiang प्रांत में रहती है.
- उइगर लोगउस प्रांत की जनसंख्या के 45% हैं.
- विदित हो कि तिब्बत की भांति Xinjiang भी चीन का एक स्वायत्त क्षेत्र घोषित है.
उइगरों के विद्रोह का कारण
- कई दशकों से Xinjiang प्रांत में चीन की मूल हान (Han) नस्ल के लोग बसाए जा रहे हैं. आज की तिथि में यहाँ 80 लाख हान रहते हैं जबकि 1949 में इस प्रांत में 220,000 हान रहा करते थे.
- हान लोग अधिकांश नई नौकरियों को हड़प लेते हैं और उइगर बेरोजगार रह जाते हैं.
- उइगरों की शिकायत है कि सैनिक उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं जबकि सरकार यह दिखाती है कि उसने सभी को समान अधिकार दिए हुए हैं और विभिन्न समुदायों में समरसता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता.
Topic : James Webb Space Telescope – JWST
संदर्भ
हाल ही में, नासा (NASA) ने 24 दिसंबर को ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ (James Webb Space Telescope – JWST) को प्रक्षेपित करने की घोषणा की है.
विश्व की प्रमुख अंतरिक्ष विज्ञान वेधशाला JWST, तीन दशकों से अधिक समय से कार्यरत नासा के प्रमुख टेलीस्कोप ‘हबल स्पेस टेलीस्कोप’ का स्थान लेगी.
‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ (JWST) के बारे में
जेडब्लूएसटी, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (NASA), यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency) और केनेडियन अंतरिक्ष एजेंसी (Canadian Space Agency) का एक संयुक्त उपक्रम है.
- ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’, अंतरिक्ष में परिक्रमा करती हुए एक अवरक्त वेधशाला (Infrared Observatory) है, जो लंबी तरंग दैर्ध्य कवरेज और बहुत बेहतर संवेदनशीलता के साथ ‘हबल स्पेस टेलिस्कोप’ (Hubble Space Telescope) के कार्यों में सहायक होगी तथा इसकी खोजों का विस्तार करेगी.
- इससे पूर्व, जेडब्ल्यूएसटी (JWST) को एनजीएसटी (New Generation Space Telescope – NGST) के नाम से जाना जाता था, फिर वर्ष 2002 में इसका नाम बदलकर नासा के पूर्व प्रशासक ‘जेम्स वेब’ के नाम पर कर दिया गया|
- यह 6.5 मीटर प्राथमिक दर्पण युक्त एक बड़ी अवरक्त दूरबीन होगी.
दूरबीन के उद्देश्य और कार्य
‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ (JWST) को बिग बैंग के बाद् बनने वाले प्रथम तारों और आकाशगंगाओं की खोज करने तथा तारों के चारों ओर के ग्रहों के परिवेश का अध्ययन करने संबंधी कार्य करने के उद्देश्य से निर्मित किया गया है|
- यह दूरबीन, ब्रह्मांड में गहराई से अवलोकन करेगी और ‘हबल स्पेस टेलीस्कोप’ के साथ कार्य करेगी.
- दूरबीन में 22 मीटर (टेनिस कोर्ट के आकार की) की लम्बाई वाले सौर-सुरक्षाकवच (Sunshield) और 6.5 मीटर चौड़ाई के दर्पण और इन्फ्रारेड क्षमताओं से लैस उपकरण लगे होंगे.
- वैज्ञानिकों को उम्मीद है, कि यह ‘सेट-अप’ ब्रह्मांड 13.5 अरब साल पहले घटित हुई बिग बैंग की घटना के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली प्रथम आकाशगंगाओं को भी देख सकने में सक्षम होगी.
कक्षीय परिक्रमा:
- ‘हबल स्पेस टेलीस्कॉप’ लगभग 570 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है.
- ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ वास्तव में पृथ्वी की परिक्रमा नहींं करेगा, बल्कि यह 1.5 मिलियन किमी दूर पृथ्वी-सूर्य लेगरेंज़ बिंदु 2 (Earth-Sun Lagrange Point 2) पर स्थापित किया जाएगा.
- लेगरेंज़ बिंदु 2 (L 2) पर ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ का सौर-कवच, सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा से आने वाले प्रकाश को अवरुद्ध कर देगा, जिससे दूरबीन को ठंडा रहने में मदद मिलगी. किसी ‘अवरक्त दूरबीन’ के लिए ठंडा रहना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय.
Topic : Sarathi Mobile App
संदर्भ
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने ‘सारथी मोबाइल एप्लिकेशन’ लॉन्च किया. यह एप्लिकेशन निवेशकों को प्रतिभूति बाजारों के बारे में जानकारी प्रदान करता है.
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से प्रतिभूति बाजार में प्रवेश करने वाले व्यक्तिगत निवेशकों की संख्या बढ़ रही है. इन व्यक्तिगत निवेशकों की मदद के लिए यह एप्प लॉन्च किया गया है. साथ ही, नए निवेशक ट्रेडिंग करने के लिए स्मार्ट फोन का उपयोग कर रहे हैं. इस प्रकार, उन्हें मोबाइल एप्प के माध्यम से सहायता प्रदान की जा रही है.
एप्लिकेशन की विशेषताएँ
- यह एप म्यूचुअल फंड, इसके कामकाज, व्यापार और निपटान, KYC (अपने ग्राहक को जानें) प्रक्रियाओं, बाजार में विकास आदि के विषय में स्पष्टीकरण प्रदान करता है.
- यह iOS और एंड्रॉयड दोनों यूजर्स के लिए उपलब्ध है.
- एप्लिकेशन हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करता है. भविष्य में, इस एप्प को स्थानीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराया जाएगा.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड
- अप्रैल, 1988 में Securities & Exchange Board of India (SEBI) की स्थापना हुई.
- जनवरी, 1992 को सेबी को वैधानिक शक्ति प्रदान की गयी.
- इसका मुख्यालय मुंबई में है.
- इसके क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में हैं.
- इसके कार्य हैं – प्रतिभूतियों में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना, प्रतिभूति बाजार के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और उससे सम्बंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना.
Sansar Daily Current Affairs, 28 January 2022
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: 8वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय.
Topic : Subhash Chandra Bose
संदर्भ
हाल ही में, सरकार द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में और साल भर चलने वाले समारोह के एक भाग के रूप में इंडिया गेट पर उनकी एक भव्य प्रतिमा स्थापित की गयी है.
‘सुभाष चंद्र बोस’ के बारे में
- सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) का जन्म 23 जनवरी 1897 को तत्कालीन बंगाल प्रांत, की उड़ीसा डिवीजन के कटक शहर में हुआ था.
- उनका जन्मदिन 23 जनवरी को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
- सुभाष चंद्र बोस, दो बार हरिपुर अधिवेशन 1938 तथा त्रिपुरी अधिवेशन 1939 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे.
- उन्होंने 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बंगाल में कांग्रेस के भीतर ‘अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक’ का गठन किया.
- वर्ष 1919 में, उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) परीक्षा उत्तीर्ण की थी, हालांकि बाद में बोस ने इस नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
- वे विवेकानंद की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे.
- चित्तरंजन दास उनके राजनीतिक गुरु थे.
आजाद हिंद सरकार
- वर्ष 1943 में बोस के पोर्ट ब्लेयर, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पहुचने पर जापान ने ‘आजाद हिंद सरकार’ उन्हें सौंप दी. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इन द्वीपों पर जापान ने कब्जा कर लिया था.
- वर्ष 1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जापानी कब्जे वाले सिंगापुर में आज़ाद हिंद की अस्थायी सरकार के गठन की घोषणा की थी.
- ‘आर्जी हुकुमत-ए-आज़ाद हिंद’ के (Arzi Hukumat-e-Azad Hind) रूप में जानी जाने वाले इस सरकार का धुरी राष्ट्रों; इम्पीरियल जापान, नाजी जर्मनी, इटालियन सोशल रिपब्लिक और उनके सहयोगियों द्वारा शक्तियों द्वारा समर्थन किया गया था.
- उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के उत्तरार्ध-काल में एक अनंतिम निर्वासित-सरकार के बैनर तले भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए संघर्ष शुरू किया.
आजाद हिंद सरकार की संरचना:
- सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित अनंतिम आजाद हिंद सरकार में, विदेशों में रहने वाले भारतीय शामिल हो गए थे. मलय (वर्तमान मलेशिया) और बर्मा (अब म्यांमार) में भारतीय प्रवासी आबादी से पूर्व कैदियों और हजारों नागरिक स्वयंसेवक ‘आजाद हिंद फ़ौज’ में शामिल हो गए.
- अस्थाई सरकार के अंतर्गत, सुभाष चन्द्र बोस ने राज्य के प्रमुख, प्रधान मंत्री और युद्ध और विदेशी मामलों के मंत्री का कार्यभार संभाला था.
- कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने महिलाओं के संगठन का नेतृत्व किया और एस ए अय्यर ने प्रचार तथा प्रसार का दायित्व संभाला.
- क्रांतिकारी नेता रासबिहारी बोस को सरकार के सर्वोच्च सलाहकार के रूप में नामित किया गया था.
सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार:
आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में देश में व्यक्तिगत स्तर पर तथा संगठनों के अमूल्य योगदान और निस्वार्थ सेवा को पहचान देने और उन्हें सम्मानित करने के लिए, भारत सरकार द्वारा सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार के नाम से वार्षिक पुरस्कार स्थापित किया गया है.
- इस पुरस्कार की घोषणा हर साल 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर की जाती है.
- पुरस्कार के रूप में संस्थान को 51 लाख रुपये नकद तथा एक प्रमाण पत्र एवं व्यक्तिगत स्तर पर 5 लाख रुपये नकद तथा एक प्रमाण पत्र प्रदान किये जाते हैं.
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि.
Topic : Sant Ravidas
संदर्भ
हाल ही में पंजाब में 14 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के मतदान को आगे बढ़ाकर 20 करने का निर्णय लिया गया है, क्योंकि 14 फरवरी को संत रैदास की जयंती भी होगी तथा इस दिन पंजाब के दोआब क्षेत्र में रहने वाले रविदासी समुदाय के लोग वाराणसी की यात्रा पर जाते हैं. जालंधर में स्थित डेरा सचखंड बल्ला के द्वारा इस यात्रा का संचालन किया जाता है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 से डेरा सचखंड रविदास जी की शिक्षाओं और रविदासी धर्म को मान रहा है, इसकी घोषणा वाराणसी में ही की गई थी.
संत रैदास के बारे में
- गुरू रविदास (रैदास) का जन्म काशी (बनारस) में माघ पूर्णिमा के दिन संवत 1433 में हुआ था.
- वे सिकंदर लोदी और हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन कवि कबीर के समकालीन माने जाते हैं.
- संत रैदास मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा के दिखावे में विश्वास नही करते थे एवं मानव मात्र की सेवा और आपसी भाईचारे में विश्वास रखते थे.
- भक्तिकालीन कवयित्री मीरा बाई संत रैदास को अपना गुरु मानती थी.
- रेदास ने अपने काव्यों में ब्रजभाषा का उपयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी एवं खड़ी बोली के शब्दों का भी समावेश देखने को मिलता है.
- रैदास के 40 पद सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी सम्मिलित हैं.
- दलित परिवार में संत रविदास ने जूते बनाने का व्यवसाय करते हुए संतों की संगति में अध्यात्म और सामाजिक समानता का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने के बाद ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ का उद्धोष कर, रूढ़िवादी समाज को जातिगत और धार्मिक श्रेष्ठता की जगह, आंतरिक पवित्रता, निर्मलता, प्रेम और मानवीय करुणा का मंत्र दिया था.
- यह भी उन्हीं की रचना है – “हिंद तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा. दोऊ एकऊ दजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा”.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि.
Topic : UDAN Scheme and related problems
संदर्भ
‘भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण’ (Airports Authority of India – AAI) द्वारा अब तक उड़ान (UDAN) योजना के तहत 948 हवाई मार्गों को मंजूरी दी जा चुकी है, जिनमें से 65 हवाई अड्डों और 8 हेलीपोर्ट को जोड़ते हुए 403 मार्गों पर कार्य जारी हो चुका है. हालांकि, शुरू किए गए कुछ हवाई मार्गों को बंद भी कर दिया गया है.
- इसका प्रमुख कारण, जमीन के अभाव की वजह से हवाईअड्डों की स्थापना में विफलता, एयरलाइनों को अपना निर्वाह करने योग्य ‘मार्ग’ खोजने में कठिनाई और कोविड-19 महामारी के प्रतिकूल प्रभाव आदि थे.
- कई छोटे, क्षेत्रीय विमान वाहकों की खराब वित्तीय स्थिति इस योजना के लिए अभिशाप रही है.
उड़ान योजना क्या है?
UDAN भारत सरकार की एक मूर्धन्य योजना है जिसका अनावरण अप्रैल, 2017 में किया गया था. यह योजना जून, 2016 में लागू राष्ट्रीय नागर विमानन नीति (National Civil Aviation Policy – NCAP) का एक प्रमुख अवयव है. UDAN क्षेत्रीय विमानन बाजार को विकसित करने के लिए एक नवोन्मेषी योजना (innovative scheme) है. यह योजना बाजार तंत्र पर आधारित है जिसके अंतर्गत वायुयान सेवादाताओं के द्वारा सीटों के लिए सब्सिडी हेतु बोली लगाई जाएगी. यह योजना इस प्रकार की अभी तक की पहली योजना है जो आर्थिक रूप से आम नागरिकों के लिए व्यवहार्य और लाभदायक है. इससे विश्व-स्तर पर क्षेत्रीय मार्गों पर सस्ती उड़ानें भरी जा सकेंगी.
चुने गए एयरलाइन ऑपरेटरों को सामान्य जहाज़ों में न्यूनतम 9 और अधिकतम 40 उड़ान सीटें रियायती दरों पर देनी होंगी तथा हेलीकाप्टरों में न्यूनतम 5 और अधिकतम 13 सीटों का प्रावधान करना होगा. सामान्य जहाज़ों और हेलिकोप्टरों में क्रमशः लगभग एक घंटे और आधे घंटे की यात्रा के लिए आरक्षित सीटों का अधिकतम किराया 2,500 रु. तय किया गया है.
उड़ान योजना के लाभ
- इस योजना के द्वारा नागरिकों को वायुयात्रा की कनेक्टिविटी मिलेगी
- यह सभी हितधारकों के लिए एक स्पर्द्धा की स्थिति प्रदान करेगा
- रोजगार के अवसर प्रदान करेगा
- क्षेत्रीय हवाई संपर्क और बाजार का विस्तार होगा
- राज्य सरकारों को दूरदराज के क्षेत्रों के विकास, व्यापार और वाणिज्य के विस्तार और पर्यटन की वृद्धि का लाभ प्राप्त होगा.
उड़ान 1.0
- इस चरण के तहत 5 एयरलाइन कंपनियों को 70 हवाई अड्डों (36 नए बनाए गए परिचालन हवाई अड्डों सहित) के लिये 128 उड़ान मार्ग प्रदान किये गए.
उड़ान 2.0
- वर्ष 2018 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 73 ऐसे हवाई अड्डों की घोषणा की जहाँ कोई सेवा प्रदान नहीं की गई थी या उनके द्वारा की गई सेवा बहुत कम थी.
- उड़ान योजना के दूसरे चरण के तहत पहली बार हेलीपैड भी योजना से जोड़े गए थे.
उड़ान 3.0
- पर्यटन मंत्रालय के समन्वय में उड़ान 3.0 के तहत पर्यटन मार्गों का समावेश.
- जलीय हवाई-अड्डे को जोड़ने के लिए जल विमान का समावेश.
- उड़ान के दायरे में पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई मार्गों को लाना.
उड़ान 4.0
- उड़ान 4.0 के तहत छत्तीसगढ़ में बिलासपुर और अंबिकापुर हवाई अड्डों को जोड़ने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा.
- उड़ान योजना राज्य के उन क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करती है जो हवाई सेवा से नहींं जुड़े हैं.
- नागरिक उड्डयन मंत्रालय जिन राज्यों पर विशेष ध्यान दे रहा है, छत्तीसगढ़ उनमें से एक है.
मेरी राय – मेंस के लिए
यदि विमानन क्षेत्र को प्रतिस्पर्द्धी बनाने व अच्छी सेवाएँ देने के लिये निजी क्षेत्र की कंपनियों को बढ़ावा दिये जाने की नीति है तो फिर विमानन कंपनियाँ घाटे में क्यों चली जाती हैं और क्यों बंद हो जाती हैं? कारोबारी प्रबंधन के जानकारों से लेकर नियामक तक विमानन कंपनियों में संकट की आहट को आखिर समय रहते क्यों नहींं पहचान पा रहे हैं? क्या इस क्षेत्र के लिये सरकार की ओर से कारगर नीतियाँ नहींं बनाई जा रही हैं? क्या इस पर निगरानी के लिये कोई तंत्र नहींं होना चाहिये? स्पष्ट है कि भारत में विमानन उद्योग के लिये हालात अच्छे नहींं हैं. आखिर इसके लिये किसे ज़िम्मेदार ठहराया जाए?
सुरक्षित विमान यात्रा भी विमानन क्षेत्र की एक गंभीर चुनौती बनी हुई है. बोइंग 737 मैक्स विमानों पर पूरे विश्व में रोक लग चुकी है. दो विमान हादसों में 300 से ज़्यादा यात्रियों की मौत के बाद यह रोक लगाई गई थी. इन विमानों में प्रयोग होने वाली सॉफ्टवेयर प्रणाली MCAS में समस्या होने से दुर्घटनाएँ हुई थीं. बोइंग 737 मैक्स विमानों के डिज़ाइन में लगातार बदलाव किये जाते रहे हैं. पायलटों को उड़ान संबंधी नए मानकों का प्रशिक्षण नहींं मिला था जिसके कारण ये दुर्घटनायें हुईं थीं. अब DGCA को सुरक्षा संबंधी मानदडों में कड़े बदलाव करने होंगे
Sansar Daily Current Affairs, 29 January 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना.
Topic : Why is consent of A-G required to initiate contempt proceedings?
संदर्भ
हाल ही में, भारत के महान्यायवादी ‘के के वेणुगोपाल’ ने संविधान और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कथित टिप्पणी को लेकर ‘धर्म संसद’ के नेता यति नरसिंहानंद के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए सहमति प्रदान कर दी है.
सहमति की आवश्यकता:
अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15 के अनुसार, शीर्ष अदालत के समक्ष आपराधिक अवमानना कार्यवाही को शुरू करने के लिए भारत के महान्यायवादी अथवा सॉलिसिटर जनरल की अनुमति लेना एक आनिवार्य शर्त है.
‘अदालत की अवमानना’ से संबंधित कानून
अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 (Contempt of Courts Act, 1971) में सिविल अवमानना तथा आपराधिक अवमानना को परिभाषित किया गया है, तथा अवमानना के मामले में दोषियों को दण्डित करने हेतु अदालत की शक्तियाँ एवं प्रक्रिया निर्धारित की गयी है.
- अदालत की अवमानना का अर्थ, अदालत की गरिमा, न्याय और इसके प्राधिकार का विरोध अथवा अवज्ञा करने वाले व्यवहार से किसी न्यायालय तथा इसके अधिकारियों की अवहेलना करना तथा उसके अधिकारों के प्रति अनादर प्रदर्शित करना है.
अवमानना कार्यवाही शुरू करने हेतु महान्यायवादी (अटार्नी जनरल) की सहमति की आवश्यकता:
किसी शिकायत को संज्ञान में लेने से पहले, अटॉर्नी जनरल की सहमति आवश्यक किए जाने का उद्देश्य अदालत का समय बचाना है.
- अवमानना कार्यवाही शुरू करने हेतु, अदालत पहला मंच होती है, यदि सार-हीन याचिकाएं दायर की जाती हैं, तो अदालतों का कीमती समय बर्बाद होता है.
- अटार्नी जनरल सहमति का उद्देश्य सार-हीन याचिकाओं पर रोक लगाना है. ऐसा माना जाता है, कि अदालत के अधिकारी के रूप में, अटार्नी जनरल स्वतंत्र रूप शिकायतों की वैधता संबंधी जांच करेगा.
किन परिस्थितियों में अटार्नी जनरल की सहमति की आवश्यकता नहींं होती है?
- जब कोई प्राइवेट सिटीजन, किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ अदालत की अवमानना कार्यवाही शुरू करना चाहता है, तो इसके लिए अटार्नी जनरल की सहमति अनिवार्य होती है.
- हालाँकि, जब अदालत द्वारा स्वयं ही अवमानना कार्यवाही शुरू की जाती है, तो अटार्नी जनरल की सहमति की आवश्यकता नहींं होती है.
- ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भारतीय संविधान में अदालत को अवमानना कार्यवाही शुरू करने शक्ति प्रदान की गयी है, और अदालत अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करने के लिए अटार्नी जनरल की सहमति पर निर्भर नहींं है.
अटार्नी जनरल द्वारा सहमति देने से मना करने की स्थिति में:
- यदि अटार्नी जनरल सहमति देने से इनकार करता है, तो मामला इसके साथ ही खत्म हो जाता है.
- हालांकि, शिकायतकर्ता, इस मामले को अलग से अदालत के संज्ञान में ला सकता है और अदालत से इस मामले पर संज्ञान लेने का आग्रह कर सकता है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129 और 215 में क्रमशः सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय को न्यायालय की अवमानना के लिए दोषी व्यक्तियों को दंडित करने की शक्ति प्रदान की गयी है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय.
Topic : District Good Governance Index
संदर्भ
हाल ही में इंडोनेशिया की संसद ने इंडोनेशिया की राजधानी को जकार्ता से “नुसंतारा” में स्थानान्तरित करने की अनुमति दे दी है.
उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जावा द्वीप में स्थित जकार्ता शहर में समुद्र जल का स्तर बढ़ता जा रहा है, वर्ष 2050 तक जकार्ता के एक तिहाई हिस्से के जलमग्न हो जाने का अनुमान भी लगाया है.
इसके अलावा यहाँ बाढ़ की समस्या आम हो गई है. पिछले कुछ दशकों से यह शहर भीड़-भाड़ वाला और बेहद प्रदूषित हो गया है.
नुसंतारा
- नई प्रस्तावित राजधानी “नुसंतारा” जकार्ता से 2000 किमी दूर बोर्नियो द्वीप में इंडोनेशिया के पूर्वी कालिमंतान प्रांत में स्थित है.
- राजधानी क्षेत्र यहाँ लगभग 56,180 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तृत होगा. हालाँकि पर्यावरणविदों ने इस क्षेत्र में राजधानी के विकास के कारण वर्षा वनों वाले पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने के सम्बन्ध में चेतावनी जारी की है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय.
Topic : District Good Governance Index
संदर्भ
हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा जम्मू और कश्मीर में ‘जिला सुशासन सूचकांक’ (District Good Governance Index – DGGI) जारी किया गया.
जम्मू और कश्मीर, इस तरह का सूचकांक जारी करने वाला भारत का पहला केंद्र शासित प्रदेश है.
‘जिला सुशासन सूचकांक’ (DGGI) के बारे में
- यह सूचकांक जम्मू-कश्मीर के 20 जिलों के लिए जारी किया गया है.
- इस सूचकांक को जम्मू और कश्मीर सरकार की सहभागिता में प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) ने तैयार किया है.
- सूचकांक के तहत, केन्द्र और राज्य सरकार की नीतियां, योजनाएं और कार्यक्रमों की मॉनीटरिंग को इस इन्डेक्स में समाहित किया गया है.
सूचकांक का महत्त्व
- जम्मू-कश्मीर में शुरुआत होने के बाद इस सूचकांक का प्रसार धीरे-धीरे अन्य सभी राज्यों में हो जाएगा और, देशभर के ज़िलों के बीच भी लोकाभिमुख सुशासन देने की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का आरंभ होगा.
- जम्मू-कश्मीर ज़िला सुशासन सूचकांक में शासन के 10 क्षेत्रों और 58 संकेतकों को शामिल किया गया है.
- इस सुशासन सूचकांक के ज़रिए केंद्र-शासित प्रदेश के ज़िलों के बीच जो स्पर्धा होगी इससे बहुत बड़ा फ़ायदा जम्मू-कश्मीर की आम जनता को होगा. इससे सेवाओं का स्तर भी सुधरेगा और इससे जम्मू-कश्मीर में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा.
सूचकांक के महत्त्वपूर्ण बिंदु
- ‘जिला सुशासन सूचकांक’ (DGGI) की समग्र रैंकिंग में ‘जम्मू जिले’ को शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है, इसके बाद जम्मू संभाग के डोडा और सांबा जिले आते हैं.
- इसके बाद, श्रीनगर संभाग का पुलवामा जिला चौथे स्थान पर और श्रीनगर जिला पांचवें स्थान पर रहा.
- राजौरी जिले को सूचकांक में अंतिम स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि पुंछ और शोपियां जिले भी रैंकिंग में सबसे निचले स्थानों पर रहे हैं.
- ‘सार्वजनिक अवसंरचना और उपयोगिता क्षेत्र’ में श्रीनगर जिले को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है.
- ‘कश्मीर संभाग’ में श्रीनगर जिला ‘सुशासन सूचकांक’ की समग्र रैंकिंग में 313 अंकों के साथ शीर्ष 5 जिलों में शामिल है.
- ‘कृषि और संबद्ध क्षेत्र’ में किश्तवाड़ जिला शीर्ष स्थान रहा.
- ‘मानव संसाधन विकास’ क्षेत्र में ‘पुलवामा’ जिला, ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य’ क्षेत्र में रियासी जिला, ‘समाज कल्याण और विकास’ क्षेत्र में रामबन जिला तथा ‘वित्तीय समावेशन’ क्षेत्र में ‘गांदरबल’ जिले को शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है.
‘राष्ट्रीय सुशासन सूचकांक’ में जम्मू-कश्मीर का प्रदर्शन:
इससे पहले पिछले साल 25 दिसंबर को केंद्र सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय सुशासन सूचकांक’ (National Good Governance Index) जारी किया गया था.
- सुशासन सूचकांक- 2021 के अनुसार जम्मू और कश्मीर ने 2019 से 2021 की अवधि में सुशासन संकेतकों में 7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है.
- वाणिज्य व उद्योग, कृषि व इससे संबद्ध क्षेत्र, सार्वजनिक अवसंरचना व उपयोगियताओं, न्यायपालिका और सार्वजनिक सुरक्षा क्षेत्रों में राज्य का ठोस प्रदर्शन देखा गया है.
Sansar Daily Current Affairs, 31 January 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: वैधानिक निकाय, अर्ध-न्यायिक निकाय, ई-गवर्नेंस.
Topic : Food Corporation of India – FCI
संदर्भ
भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India – FCI) भारतीय खाद्य निगम के 58वें स्थापना दिवस के अवसर पर उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री ने भारतीय खाद्य निगम में सुधार के लिए 5 सिद्धांत दिए, जो हैं-
- लोग FCI को एक अक्षम एवं भ्रष्ट निकाय के रूप में देखते हैं. अत: लोगों के सामने इसे एक गतिशील, समावेशी एवं ईमानदार निकाय के रूप में प्रस्तुत करना होगा.
- खरीद से लेकर वितरण तक एंड टू एंड तकनीकी समाधानों को एकीकृत करने पर ध्यान देना होगा.
- संकटग्रस्त किसान/किसान उत्पादक संगठन की समस्या के तुरंत समाधान हेतु एक शिकायत निवारण तन्त्र का निर्माण करना होगा.
- आधुनिक बुनियादी ढाँचे और लॉजिस्टिक्स के लिए योजना बनाना.
- भारत को फ़ूड हब बनाने के लिए विश्व की सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाना.
भारतीय खाद्य निगम (FCI) के बारे में
- FCI एक सांविधिक निकाय है जिसे भारतीय खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत वर्ष 1965 में स्थापित किया गया.
- FCI के पहले कार्यालय का उद्घाटन 14 जनवरी, 1965 को तंजावुर, तमिलनाडु में ही हुआ था.
- देश में भीषण अन्न संकट, विशेष रूप से गेहूँ के अभाव के चलते इस निकाय की स्थापना की गई थी.
- इसका मुख्य कार्य खाद्यान्न एवं अन्य खाद्य पदार्थों की खरीद (Procurement), भंडारण (Storage), परिवहन (Transportation), वितरण (Distribution) और बिक्री करना है.
- FCI नई दिल्ली में स्थित अपने मुख्यालय, पाँच आंचलिक कार्यालयों, पच्चीस क्षेत्रीय कार्यालयों और 170 ज़िला कार्यालयों के देशव्यापी नेटवर्क के माध्यम से अपने कार्यों का समन्वय करता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध.
Topic : Strategic significance of bridge China is building on Pangong Tso
संदर्भ
‘पैंगोंग त्सो’ (Pangong Tso) झील पर चीन द्वारा एक पुल का निर्माण किया जाना, भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी गतिरोध की श्रंखला में चीन की नवीनतम कार्रवाई है.
चीन के निर्माणाधीन पुल की अवस्थित:
- चीन द्वारा यह पुल, ‘पैंगोंग त्सो झील’ के उत्तरी तट पर, तथा दक्षिण तट पर स्थित चुशुल सब-सेक्टर में बनाया जा रहा है.
- यह पुल भारत द्वारा दावा किए जाने वाले क्षेत्र के भीतर स्थित है, हालांकि इस क्षेत्र पर 1958 से चीन का नियंत्रण है.
भारत के लिए इस पुल का महत्त्व
- यह पुल, ‘पैंगोंग त्सो झील’ के दोनों किनारों के मध्य सबसे नजदीकी बिंदुओं में से एक बिंदु पर ‘पीपल्स लिबरेशन आर्मी’ (PLA) के सैनिकों की त्वरित लामबंदी में मदद करेगा.
- कैलाश पर्वत श्रेणी इस ‘पुल’ से लगभग 35 किमी पश्चिम में अवस्थित है. पुल का निर्माण होने जाने पर, चीनी सैनिक ‘कैलाश पर्वत श्रेणी’ को आसानी से पार करने में सक्षम हो जाएंगे तथा इसे पार करने में लगने वाला लगभग 12 घंटे का समय घटाकर लगभग चार घंटे का हो जाएगा.
- इससे इस क्षेत्र में बीजिंग द्वारा किए जाने अपने अधिकार के दावे को मजबूती मिलेगी.
पैंगोंग त्सो के बारे में
पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) का शाब्दिक अर्थ “संगोष्ठी झील” (Conclave Lake) है. लद्दाखी भाषा में पैंगोंग का अर्थ है, समीपता और तिब्बती भाषा में त्सो का अर्थ झील होता है.
- पैंगोंग त्सो, लद्दाख में 14,000 फुट से अधिक की ऊँचाई पर स्थित एक लंबी संकरी, गहरी, स्थलरुद्ध झील है, इसकी लंबाई लगभग 135 किमी है.
- इसका निर्माण टेथीज भू-सन्नति से हुआ है.
- यह एक खारे पानी की झील है.
- काराकोरम पर्वत श्रेणी, जिसमे K2 विश्व दूसरी सबसे ऊंची चोटी सहित 6,000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली अनेक पहाड़ियां है तथा यह ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और भारत से होती हुई पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर समाप्त होती है.
- इसके दक्षिणी तट पर भी स्पंगुर झील (Spangur Lake) की ओर ढलान युक्त ऊंचे विखंडित पर्वत हैं.
- इस झील का पानी हालाँकि, एकदम शीशे की तरह स्वच्छ है, किंतु ‘खारा’ होने की वजह से पीने योग्य नहींं है.
इस स्थान पर विवाद का कारण
वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control– LAC) – सामान्यतः यह रेखा पैंगोंग त्सो की चौड़ाई को छोड़कर स्थल से होकर गुजरती है तथा वर्ष 1962 से भारतीय और चीनी सैनिकों को विभाजित करती है. पैंगोंग त्सो क्षेत्र में यह रेखा पानी से होकर गुजरती है.
- दोनों पक्षों ने अपने क्षेत्रों को चिह्नित करते हुए अपने- अपने क्षेत्रों को घोषित किया हुआ है.
- भारत का पैंगोंग त्सो क्षेत्र में 45 किमी की दूरी तक नियंत्रण है, तथा झील के शेष भाग को चीन के द्वारा नियंत्रित किया जाता है.
फिंगर्स क्या हैं?
पैंगोंग त्सो झील में, ‘चांग चेन्मो रेंज’ (Chang Chenmo range) की पहाड़ियां आगे की ओर निकली हुई (अग्रनत) हैं, जिन्हें ‘फिंगर्स’ (Fingers) कहा जाता है.
इनमे से 8 फिंगर्स विवादित है. इस क्षेत्र में भारत और चीन के बीच LAC को लेकर मतभेद है.
- भारत का दावा है कि LAC फिंगर 8 से होकर गुजरती है, और यही पर चीन की अंतिम सेना चौकी है.
- भारत इस क्षेत्र में, फिंगर 8 तक, इस क्षेत्र की संरचना के कारण पैदल ही गश्त करता है. लेकिन भारतीय सेना का नियंत्रण फिंगर 4 तक ही है.
- दूसरी ओर, चीन का कहना है कि LAC फिंगर 2 से होकर गुजरती है. चीनी सेना हल्के वाहनों से फिंगर 4 तक तथा कई बार फिंगर 2 तक गश्त करती रहती है.
पैंगोंग त्सो क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण का कारण
- पैंगोंग त्सो झील रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण चुशूल घाटी (Chushul Valley) के नजदीक है. वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान चीन द्वारा मुख्य हमला चुशूल घाटी से शुरू किया गया था.
- चुशूल घाटी का रास्ता पैंगोंग त्सो झील से होकर जाता है, यह एक मुख्य मार्ग है, चीन, इसका उपयोग, भारतीय-अधिकृत क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए कर सकता है.
- चीन यह भी नहींं चाहता है, कि भारत LAC के आस पास कहीं भी अपने बुनियादी ढांचे को विस्तारित करे. चीन को डर है, कि इससे अक्साई चिन और ल्हासा-काशगर (Lhasa-Kashgar) राजमार्ग पर उसके अधिकार के लिए संकट पैदा हो सकता है.
- इस राजमार्ग के लिए कोई खतरा, लद्दाख और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में चीनी साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षाओं के लिए बाधा पहुचा सकता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
Topic : 4th Asia Ministerial Conference on Tiger Conservation
संदर्भ
हाल ही में, मलेशिया सरकार और ग्लोबल टाइगर फोरम (Global Tiger Forum – GTF) द्वारा ‘बाघ संरक्षण पर चौथा एशिया मंत्रिस्तरीय सम्मेलन’ (4th Asia Ministerial Conference on Tiger Conservation) आयोजित किया गया था.
यह सम्मेलन ‘वैश्विक बाघ पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम’ (ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम) और बाघ संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धताओं की प्रगति की समीक्षा को लेकर महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है.
परिणाम: इस सम्मलेन में ‘कुआलालंपुर संयुक्त वक्तव्य’ (Kuala Lumpur Joint Statement) को अपनाया गया.
शिखर सम्मेलन में भारत का वक्तव्य
- भारत, इस साल के अंत में रूस के व्लादिवोस्तोक में होने वाले ग्लोबल टाइगर समिट (वैश्विक बाघ सम्मेलन) के लिए नई दिल्ली घोषणा पत्र को अंतिम रूप देने में टाइगर रेंज देशों को सुविधा प्रदान करेगा.
- 2010 में नई दिल्ली में एक “प्री टाइगर समिट” बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें ग्लोबल टाइगर समिट के लिए बाघ संरक्षण पर मसौदा घोषणा को अंतिम रूप दिया गया था.
बाघ संरक्षण हेतु भारत के प्रयास
- भारत ने लक्षित वर्ष 2022 से 4 साल पहले 2018 में ही बाघों की जनस्न्क्य को दोगुना करने की उल्लेखनीय उपलब्धि प्राप्त कर ली है.
- भारत में बाघ प्रबंधन की सफलता का मॉडल अब शेर, डॉल्फिन, तेंदुए, हिम तेंदुए और अन्य छोटी जंगली बिल्लियों जैसे अन्य वन्यजीवों के लिए दोहराया जा रहा है.
- बाघ संरक्षण के लिए बजटीय आवंटन 2014 के 185 करोड़ रुपये से बढाकर 2022 में 300 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
- भारत में 14 टाइगर रिजर्व को पहले ही अंतरराष्ट्रीय सीए/टीएस मान्यता (CA|TS accreditation) से सम्मानित किया जा चुका है और अधिक टाइगर रिजर्व को सीए/टीएस मान्यता दिलाने के प्रयास जारी हैं.
- भारत में 51 टाइगर रिजर्व द्वारा लगभग 3 मिलियन मानव-दिवस रोजगार सृजित किए जा रहे हैं और प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (CAMPA) से धन का उपयोग टाइगर रिजर्व के मुख्य क्षेत्रों से स्वैच्छिक गांव पुनर्वास को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है.
- भारत, टाइगर रेंज कंट्रीज के एक अंतर सरकारी मंच ‘ग्लोबल टाइगर फोरम’ (GTF) के संस्थापक सदस्यों में से एक है और और इन वर्षों में GTF ने भारत सरकार, तथा भारत के बाघ आबादी वाले राज्यों और टाइगर रेंज देशों के साथ मिलकर काम करते हुए कई विषयगत क्षेत्रों पर अपने कार्यक्रमों का विस्तार किया है.
- ‘ग्लोबल टाइगर फोरम’ बाघ संरक्षण हेतु कार्य करने वाला एकमात्र अंतर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय निकाय है. इसकी स्थापना बाघ संरक्षण में अभिरुचि रखने वाले सदस्य देशों द्वारा बाघों की सुरक्षा हेतु एक वैश्विक अभियान शुरू करने के लिए की गई है.
भारत में बाघों की पुनर्प्राप्ति (टाइगर रिकवरी) को सफल बनाने हेतु दो कानूनी उपकरण
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972.
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980. इस अधिनियम के तहत ‘बाघ परियोजना’ (प्रोजेक्ट टाइगर) को सुदृढ़ किया गया था.
बाघ की संरक्षण स्थिति:
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में सूचीबद्ध.
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) रेड लिस्ट: लुप्तप्राय (Endangered).
- लुप्तप्राय वन्यजीव तथा वनस्पति प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) की परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध.
कंजर्वेशन एश्योर्ड | टाइगर स्टैंडर्ड्स (CA|TS) क्या है?
CA|TS को को टाइगर रेंज कंट्रीज (TRCs) के वैश्विक गठबंधन द्वारा मान्यता संबंधी उपकरण के रूप में स्वीकार किया गया है और इसे बाघों एवं संरक्षित क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा विकसित किया गया है.
- इसे आधिकारिक तौर पर वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था.
- यह मानक लक्षित प्रजातियों के प्रभावी प्रबंधन के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करता है और प्रासंगिक संरक्षित क्षेत्रों में इन मानकों के मूल्यांकन को प्रोत्साहित करता है.
- CA|TS, विभिन्न मानदंडों का एक सेट है, जो बाघ से जुड़े स्थलों को इस बात को जांचने का मौका देता है कि क्या उनके प्रबंधन से बाघों का सफल संरक्षण संभव होगा.
बाघ संरक्षण पर काम करने वाला एक अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन ‘ग्लोबल टाइगर फोरम’ (GTF), और वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड इंडिया, भारत में CA|TS मूल्यांकन के लिए ‘राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण’ के दो कार्यान्वयन भागीदार हैं.
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