Sansar डेली करंट अफेयर्स, 13 November 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 13 November 2020


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Role of external state and non-state actors in creating challenges to internal security.

Topic : Bru Refugee Crisis

संदर्भ

हाल ही में पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में वर्षों से शरणार्थी शिविरों में रहने वाले ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में स्थायी तौर पर बसाने की सरकारी योजना का व्यापक विरोध हो रहा है. त्रिपुरा के कंचनपुर सबडिवीजन में कुछ संगठन इसके विरोध में हड़ताल कर रहे हैं. करीब 80 गैर-आदिवासी परिवारों ने एक विद्यालय में शरण ली है क्योंकि हड़ताल से कुछ आंतरिक बस्तियों में तनाव पैदा हो गया है.

पृष्ठभूमि

ब्रू जनजाति का विवाद दशकों पुराना है. दरअसल, इस समुदाय के लोग पड़ोसी मिजोरम के रहने वाले हैं। ज्यादातर ब्रू परिवार मामित और कोलासिब जिले में रहते हैं. ब्रू-रियांग और बहुसंख्यक मिजो समुदाय के बीच 1996 में हुआ सांप्रदायिक दंगा इनके पलायन का कारण बना था. मिजोरम में हिंसक झड़पों के बाद ब्रू जनजाति के हजारों लोग भाग कर पड़ोसी राज्य त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में चले गए थे.

इस तनाव ने ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (बीएनएलएफ) और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (बीएनयू) को जन्म दिया, इन दोनों संगठनों ने राज्य के चकमा समुदाय की तरह एक स्वायत्त जिले की मांग की. इस मुद्दे पर विवाद वर्ष 1995 में उस समय शुरू हुआ जब मिजोरम के ताकतवर संगठनों यंग मिजो एसोसिएशन और मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने ब्रू समुदाय के लोगों की चुनावों में भागीदारी का विरोध किया. इन संगठनों का कहना था कि ब्रू समुदाय के लोग मिजोरम के मूल निवासी नहीं हैं.

ब्रू-रियांग समझौते के तहत क्या-क्या प्रावधान किये गये हैं?

दिल्ली में 16 जनवरी, 2020 को हुए ब्रू-रियांग समझौते के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने करार के अलग-अलग बिंदुओं के बारे में जानकारी दी. यह समझौता करीब 23 वर्षों से चली आ रही बड़ी मानव समस्या का स्थाई समाधान निकालता है. इसके जरिए करीब 34,200 ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में बसाया जाएगा.

1997 में जातीय तनाव के कारण करीब 5,000 ब्रू-रियांग परिवारों ने मिजोरम से त्रिपुरा में शरण ली. इन लोगों को वहाँ कंचनपुर, उत्तरी त्रिपुरा और अस्थाई शिविरों में रखा गया.

  • समझौते के तहत अब इन लोगों को त्रिपुरा में स्थाई तौर से बसाया जाएगा.
  • नई व्यवस्था के तहत विस्थापित परिवारों को 40×30 फीट का आवासीय प्लॉट दिया जाएगा.
  • प्रत्येक परिवार को आर्थिक सहायता भी दी जाएगी.
  • हर परिवार को 4 लाख रु. फिक्स डिपाजिट में दिए जाएँगे.
  • 2 साल तक ₹5,000 प्रतिमाह नकद सहायता दी जाएगी.
  • 2 साल तक मुफ्त राशन दिया जाएगा.
  • मकान बनाने के लिए डेढ़ लाख रुपए दिए जाएंगे.
  • इस नई व्यवस्था के लिए त्रिपुरा सरकार भूमि की व्यवस्था करेगी.
  • नए समझौते के तहत 600 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता केंद्र सरकार की ओर से दी जाएगी.
  • ब्रू-रियांग शरणार्थियों को त्रिपुरा राज्य में रहने वाले नागरिकों के सभी अधिकार दिए जाएँगे.
  • उन्हें त्रिपुरा की वोटर लिस्ट में शामिल किया जाएगा.
  • वे केंद्र और राज्य सरकारों की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे.

त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में शांति के लिहाज से भी यह समझाता बहुत महत्वपूर्ण है. समझौते से त्रिपुरा और मिजोरम के बीच दो दशकों से भी ज्यादा समय से चली आ रही ब्रू शरणार्थी समस्या का समाधान निकल गया है. त्रिपुरा और मिजोरम सरकार ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए केंद्र सरकार का आभार जताया है.

पूर्वोत्तर के राज्यों के तेज विकास की दिशा में यह समझौता मील का पत्थर साबित होगा. केंद्र सरकार की कोशिश है कि पूर्वोत्तर के सभी इलाकों का तेजी से विकास हो. हर इलाके में संपर्क और संचार से जुड़ी सुविधाओं को पहुँचाया जाए. 

ब्रू-रियांग के पुनर्वासन के सन्दर्भ में सरकार के प्रयास

1997 में मिजोरम से त्रिपुरा जाने के बाद से ही भारत सरकार लगातार यह कोशिश करती रही है कि ब्रू-रियांग समुदाय के परिवारों को स्थाई रूप से बसाया जा सके. त्रिपुरा जाने के 6 महीने बाद ही केंद्र सरकार ने इन शरणार्थियों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की थी. इसके तहत हर बालिक ब्रू व्यक्ति को 600 ग्राम और नाबालिग को 300 ग्राम चावल प्रतिदिन आवंटित किया जाता था. वहीं पुनर्वास के तहत साल 2014 तक कई बैचों में 1,622 परिवारों को मिजोरम वापस लाया गया.

ब्रू-रियांग विस्थापित परिवारों की देखभाल और उनके पुनर्वास के लिए भारत सरकार समय-समय पर त्रिपुरा और मिजोरम सरकारों की सहायता भी करती रही है. 3 जुलाई, 2018 को भारत सरकार, मिजोरम सरकार, त्रिपुरा सरकार और ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता हुआ था जिसके बाद ब्रू-रियांग परिवारों को दी जाने वाली सहायता में कुछ हद तक बढ़ोतरी की गई थी. समझौते के तहत 5,407 ब्रू परिवारों के 32,876 लोगों के लिए 435 करोड़ का राहत पैकेज दिया गया. इसमें हर परिवार को 4 लाख रु. की फिक्स्ड डिपाजिट, घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपए, 2 साल के लिए मुफ्त राशन और हर महीने ₹5,000 दिया जाना शामिल था. इसके अतिरिक्त त्रिपुरा से मिजोरम जाने के लिए मुफ्त ट्रांसपोर्ट, पढ़ाई के लिए एकलव्य स्कूल, डोमिसाइल और जाति प्रमाण पत्र मिलना था. ब्रू लोगों को को मिजोरम में वोट डालने का हक मिलना तय हुआ था. लेकिन यह मूर्त रूप नहीं ले सका क्योंकि अधिकतर विस्थापित ब्रू लोगों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था.

इस समझौते के बाद साल 2018-19 के बीच में दोबारा 328 परिवार, जिसमें 1369 लोग थे, उन्हें त्रिपुरा से मिजोरम वापस लाया गया. हालांकि अधिकांश ब्रू-रियांग परिवारों की यह मांग थी कि ब्रू समुदाय की सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर उन्हें त्रिपुरा में ही बसा दिया जाए. लिहाजा कई विस्थापित ब्रू लोगों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था. वहीं पिछले साल अक्टूबर के महीने में भी त्रिपुरा के राहत शिविरों में रह रहे 35,000 ब्रू शरणार्थियों को वापस मिजोरम में भेजने की प्रक्रिया का नौवां और आखरी चरण शुरू हुआ. लेकिन मुश्किल से 860 ही वापस मिजोरम आए. ब्रू शरणार्थियों ने मिजोरम आने का विरोध किया लेकिन दिसम्बर में त्रिपुरा सरकार और ब्रू शरणार्थी मंच के बीच आपसी बातचीत के बाद ब्रू शरणार्थियों ने अपना विरोध वापस ले लिया.

कौन हैं ब्रू शरणार्थी?

ब्रू जनजाति देश के पूर्वोत्तर हिस्से में बसने वाला एक जनजातीय समूह है. हालांकि ब्रू जनजातियों की छिटपुट आबादी पूर्वोत्तर के कई राज्यों में निवास करती है. लेकिन सबसे ज्यादा तादाद में ब्रू समुदाय मिजोरम की मामित और कोलासिब जिले में निवास करते हैं. हालांकि इस समुदाय में भी तकरीबन एक दर्जन उपजातियां आती हैं. कुछ ब्रू समुदाय पूर्वोत्तर भारत के अलावा बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ी क्षेत्र में निवास करते हैं. मिजोरम में ब्रू समुदाय को अनुसूचित जनजाति का एक समूह यानी ब्रूस शेड्यूल्ड ट्राइब का एक समूह माना जाता है.

वहीं त्रिपुरा में ब्रू एक अलग जाति समूह है. त्रिपुरा में ब्रू समुदाय को रियांग नाम से पुकारा जाता है. ब्रू  समुदाय की भाषा भी ब्रू है. फिलहाल इस भाषा की अपनी कोई लिपि नहीं है. लेकिन ब्रू लोग जिस राज्य में बसते हैं, वहाँ की भाषाएं भी बोल लेते हैं, जैसे – बंगाली, असमिया या मिज़ो. कुछ ब्रू हिंदी और अंग्रेजी भी बोल लेते हैं. ब्रू पहले झूम खेती करते थे जिसमें जंगल के एक हिस्से को साफ करके वहां खेती की जाती है. फसल पैदा होने के बाद और इसे काटने के बाद जंगल की किसी दूसरे हिस्से में यही कवायद फिर दोहराई जाती है. लिहाजा ब्रू एक बंजारा जाति समूह रहा है.

ब्रू समुदाय का इतिहास

ब्रू समुदाय को अलग-थलग करने और उनके पलायन के पीछे खूनी संघर्ष का इतिहास रहा है. दरअसल ब्रू जनजाति और मिज़ो समुदाय के बीच 1997 में सांप्रदायिक दंगा हुआ था. इस दौरान ब्रू जनजाति और मिज़ो समुदाय के बीच कई हिंसक झड़पें भी हुईं. ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट ने एक मिज़ो अधिकारी की हत्या कर दी जिसके बाद दोनों समुदायों के बीच विवाद गहरा गया और दंगे भड़क गए. अल्पसंख्यक होने के कारण ब्रू समुदाय को अपना घर बार छोड़कर त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में जाकर आश्रय लेना पड़ा. पिछले 23 वर्ष से त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में ब्रू समुदाय के लोग रह रहे हैं. दो दशक से भी ज्यादा समय से शरणार्थी शिविरों में रह रहे ब्रू जनजाति के लोग लंबे समय से अपने अधिकारों की मांग कर रहे थे.

ब्रू समुदाय मिजोरम का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक आदिवासी समुदाय है. इस समुदाय के करीब 34,000 लोग पिछले 23 सालों से उत्तरी त्रिपुरा की शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. दरअसल, यह आदिवासी समूह स्वयं को म्यांमार के शान प्रांत का मूल निवासी मानता है. ये लोग सदियों पहले वहन से आकर मिजोरम में बस गए थे. लेकिन 1990 के दशक में इनका बहुसंख्यक मिज़ो लोगों से स्वायत्त डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के मुद्दे पर खूनी संघर्ष हुआ था. इसके बाद लगभग 5,000 से अधिक परिवार मिजोरम से पलायन कर गए. मिजोरम की मिज़ो जनजाति ब्रू को बाहरी मानती रही है. हालाँकि कुछ ब्रू शरणार्थी मिजोरम वापस लौटे और इन लोगों को सरकार की ओर से मदद भी दी गई.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Mechanisms, laws, institutions and bodies constituted for the protection and betterment of these vulnerable sections.

Topic : Religious Code for Sarna Tribal

संदर्भ

हाल ही में, झारखंड सरकार द्वारा सरना धर्म को मान्यता देने और 2021 की जनगणना में एक पृथक कोड के रूप में सम्मिलित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया है. इस पप्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा.

सरना धर्म’ क्या है?

सरना धर्म झारखण्ड के आदिवासियों का आदि धर्म है. परन्तु प्रत्येक राज्य आदिवासी ये धर्म को अलग-अलग नाम से जानते है और मानते है अर्थात जब आदिवासी आदिकाल में जंगलों में होते थे. उस समय से आदिवासी प्रकृति के सारे गुण और सारे नियम को समझते थे और सब प्रकृति के नियम पर चलते थे. उस समय से आदिवासी में जो पूजा पद्धति व परम्परा विद्यमान थी वही आज भी क़ायम रखे है. सरना धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है. सरना धर्म में पेड़, पौधे, पहाड़ इत्यादि प्राकृतिक सम्पदा की पूजा की जाती है.

चुंकि आदिवासी प्रकृति पूजक है, प्रकृति पूजक सरना धर्म को ‘आदि धर्म’ भी कहा जाता रहा है. सरना धर्म आदिवासियों में “हो”, “संथाल”, “मुण्डा”, “उराँव” , “बेदिया” , “कुड़मी महतो” इत्यादि खास तौर पर इसको मानते हैं. जानकारी के अभाव में सरना धर्म को छोड़ कर बहुत से आदिवासी लोग ईसाई धर्म , हिन्दू धर्म और इस्लाम धर्म अपना रहे हैं. जिससे जो कि आदिकाल से जिस परम्परा को मानते आ रहा है, उसे छोड़ने पर विवश हैं. सरना धर्म के अंदर अधिकतर परम्पराएँ प्रकृति पूजक मानी जाती है जिस प्रकार से सनातन धर्म में भी प्रकृति को पूजा जाता है, उसी प्रकार से सरना के अंदर भी आदिवासी लोग प्रकृति को पूजते हैं!

वर्तमान विवाद का विषय

इस धर्म को मानने वाले कई आदिवासी बाद में धर्म परिवर्तित कर ‘ईसाई’ बन गए हैं– राज्य की कुल आबादी में लगभग 4% से अधिक ईसाई हैं, जिनमें से अधिकांश आदिवासी हैं.

  1. वर्तमान में विवाद का विषय यह है, कि धर्म परिवर्तित कर ‘ईसाई’ बने आदिवासी अल्पसंख्यक के रूप में आरक्षण का लाभ ले रहे हैं और साथ ही अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाले लाभ भी ले रहे हैं.
  2. सरना धर्म का पालन करने वाले आदिवासियों का कहना हैं, कि अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाले लाभ धर्म परिवर्तित कर ‘ईसाई’ बने लोगों को न देकर केवल उन्हें मिलने चाहिए.

पृथक कोड की जरूरत

  1. राज्य में सरना आदिवासियों की जनसंख्या वर्ष 1931 में कुल जनसंख्या की 3 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2011 में घटकर 26.02 प्रतिशत हो गई है. इसका एक कारण दूसरे राज्यों में काम के लिए जाने वाले आदिवासी भी थे, इन्हें राज्य की जनगणना में दर्ज नहीं किए गया था.
  2. अन्य राज्यों में इनकी गणना जनजाति में रूप में नहीं की जाती है.
  3. अतः, एक पृथक कोड सरना आदिवासियों को जनगणना में दर्ज किया जाना सुनिश्चित करेगा.

पृथक कोड का औचित्य

1871 और 1951 के मध्य, जनगणना में आदिवासियों के लिए एक पृथक कोड सम्मिलित किया जाता था, मगर, 1961-62 के आसपास इसमें परिवर्तन कर दिया गया.

  1. विशेषज्ञों का कहना है कि आज जब सम्पूर्ण विश्व में प्रदूषण को कम करने और पर्यावरण की रक्षा करने पर ध्यान दिया जा रहा है, तो ऐसे में सरना को धर्म का दर्जा प्रदान करना दूरदर्शी निर्णय होगा, क्योंकि इस धर्म का मूल तत्व प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करना है.
  2. इनकी भाषा और इतिहास का संरक्षण भी आदिवासियों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू है.
  3. यदि केंद्र ने नए सरना कोड को मंजूरी प्रदान कर देता है वर्ष 2021 में होने वाली जनगणना में एक नए धर्म के लिए स्थान देना होगा.
  4. वर्तमान में, जनगणना के प्रारूप में नागरिक केवल छह धर्मों, हिंदू, इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन में से किसी एक को अपना धर्म घोषित कर सकते हैं.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian and its neighbourhood. Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Topic : FATF Urges G20 To Set Example, Act Now On Money Laundering

संदर्भ

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने जी20 संगठन से कहा है कि वह मनी लांड्रिंग से निपटने के लिए अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर सभी अन्य संगठनों , देशों के समक्ष एक उदाहरण पेश करे . FATF का कहना है कि अब समय आ गया है जब विश्व के सबसे बड़े औद्योगिक देश वैश्विक अर्थव्यवस्था के हित में धन शोधन जैसी विभीषिका पर निर्णायक प्रहार करें.

एफएटीएफ के अध्यक्ष का कहना है कि मनी लांड्रिंग एक विक्टिमलेस क्राइम नहीं है और अप्रभावशाली कार्यवाहियों के प्रभाव पड़ रहे हैं. मनी लांड्रिंग से निपटने की दिशा में कदम उठा पाने में असफल रहने का मतलब है संगठित अपराधी मानव , ड्रग्स , हथियार , वन्य जीवों की तस्करी में सफल होते रहेंगे और इसके साथ ही इस प्रक्रिया में भ्रष्ट साझेदार और आतंकवादी बिना किसी भय के कानून और व्यवस्था को चोट पहुंचाते रहेंगे.

मनी लॉन्ड्रिंग का अर्थ

  • मनी लॉन्ड्रिंग से तात्पर्य अवैध तरीके से कमाए गए काले धन को वैध तरीके से कमाए गए धन के रूप में परिवर्तित करना है.
  • मनी लॉन्ड्रिंग अवैध रूप से प्राप्त धनराशि को छुपाने का एक तरीका होता है. मनी लॉन्ड्रिंग के माध्यम से धन ऐसे कामों या निवेश में लगाया जाता है कि जाँच करने वाली एजेंसियों को भी धन के मुख्य स्रोत का पता लगाने में बहुत ही मशक्कत करनी पड़ती है, जो व्यक्ति इस प्रकार के धन की हेरा-फेरी करता है, उसे ‘लाउन्डर’ (The Launder) कहा जाता है. विदित हो कि पैसे की लॉन्डरिंग प्रक्रिया में तीन चरण सम्मिलित होते हैं—
  1. प्लेसमेंट (Placement)
  2. लेयरिंग (Layering)
  3. एकीकरण (Integration)
  • पहले चरण का संबंध नगदी के बाजार में आने से होता है. इसमें लाउन्डर (The launderer) अवैध तरीके से कमाए गए धन को वित्तीय संस्थानों जैसे बैंकों या अन्य प्रकार के औपचारिक या अनौपचारिक वित्तीय संस्थानों में नगद रूप से जमा करता है.
  • ‘‘मनी लॉन्ड्रिग’’ में दूसरा चरण ‘लेयरिंग’ अर्थात् धन छुपाने से सम्बन्धित होता है. इसमें लाउन्डर लेखा किताब (Book of accounting) में गड़बड़ी करके और अन्य संदिग्ध लेन-देन करके अपनी असली आय को छुपा लेता है. लाउन्डर, धनराशि को निवेश के साधनों जैसे कि बांड, स्टॉक, और ट्रैवेलर्स चेक या विदेशों में अपने बैंक खातों में जमा करा देता है. यह खाता अक्सर ऐसे देशों की बैंकों में खोला जाता है जोकि मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी अभियानों में सहयोग नहीं करते हैं.
  • एकीकरण मनी लॉन्ड्रिंग प्रक्रिया का अंतिम चरण होता है. जिसके माध्यम से बाहर भेजा गया पैसा या देश में खपाया गया पैसा वापस लाउन्डरर के पास वैध धन के रूप में आ जाता है. ऐसा धन अक्सर किसी कंपनी में निवेश, अचल संपत्ति खरीदने, लक्जरी सामान खरीदने आदि के माध्यम से वापस आता है.

हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग से संबन्धित कानून

  • फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) , विश्व स्तर पर सरकारों द्वारा स्थापित संस्था है जोकि मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी संगठनों को धन के अंतरण के लिए बैंकिंग प्रणालियों के इस्तेमाल को रोकने के तौर-तरीकों के मानक का निर्धारण और इससे जुड़ी नीतियों के विकास और प्रोत्साहन का कार्य करती है.
  • वर्ष 2010 में भारत फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) का 34वाँ सदस्य बना.
  • भारत में हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने हेतु धन शोधन निवारण अधिनियम,2002 (Prevention of Money Laundering Act-PMLA) है.
  • धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों को कालेधन के कारोबार में लिप्त व्यक्तियों की गिरफ्तारी और उन पर मुकदमा चलाने के अतिरिक्त अपराधिक कृत्यों से प्राप्त संपत्ति को संलग्न/ज़ब्त करने का अधिकार देता है.

FATF क्या है?

  • FATF एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो 1989 में G7 की पहल पर स्थापित किया गया है.
  • यह एक नीति-निर्माता निकाय है जिसका काम विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय विधायी एवं नियामक सुधार लाने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति तैयार करना है.
  • FATF का सचिवालय पेरिस के OECD मुख्यालय भवन में स्थित है.

FATF के उद्देश्य

FATF का उद्देश्य मनी लौन्डरिंग, आतंकवादियों को धनराशि मुहैया करने और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को खतरे में डालने जैसी अन्य कार्रवाइयों को रोकने हेतु कानूनी, नियामक और संचालन से सम्बंधित उपायों के लिए मानक निर्धारित करना तथा उनको बढ़ावा देना है.

ब्लैक लिस्ट और ग्रे लिस्ट क्या हैं?

FATF देशों के लिए दो अलग-अलग सूचियाँ संधारित करता है. पहली सूची में वे देश आते हैं जहाँ मनी लौंडरिंग जैसी कुप्रथाएँ तो हैं परन्तु वे उसे दूर करने के लिए एक कार्योजना के प्रति वचनबद्ध होते हैं. दूसरे प्रकार की सूची में वे देश हैं जो इस कुरीति को दूर करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं. इनमें से पहली सूची को ग्रे लिस्ट और दूसरी को ब्लैक लिस्ट कहते हैं.

एक बार जब कोई देश ब्लैक लिस्ट में आ जाता है तो FATF अन्य देशों को आह्वान कर उनसे कहता है कि ब्लैक लिस्ट में आये हुए देश के साथ व्यवसाय में अधिक सतर्कता बरतें और यदि आवश्यक हो तो उसके साथ लेन-देन समाप्त ही कर दें.


GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation.

Topic : Mangroves Forests

संदर्भ

मैंग्रोव वन (Mangrove Forests) तीव्र गति से संकटग्रस्त होते जा रहे हैं. एक हालिया अध्ययन में, वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव क्षेत्रों में निरंतर गिरावट को दर्शाया गया है, क्योंकि नदी पर निर्मित बांध, कीचड़ (मृदा) की आपूर्ति को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं, जो मैंग्रोव के विकास हेतु आवश्यक है. साथ ही, इस रिपोर्ट में इमारतों और समुद्री दीवारों (कृत्रिम तटबंध) के कारण हुए उनके पर्यावास स्थलों के अतिक्रमण को भी इंगित किया गया है. हालांकि, स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (State of Forest Report 2019) के अनुसार भारत में मैंग्रोव आच्छादन में वृद्धि हुई है.

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र स्थलीय वनों और जलीय समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य करता है. यह लवण-सहिष्णु वनस्पति है, जो नदियों और ज्वारनदमुखों के अंतर्ज्वारिय क्षेत्रों में उत्पन्न होती है.

मैंग्रोव से प्राप्त होने वाले लाभ

तटीय संरक्षण (Coastal protection): मैंग्रोव वन तटों को मजबूत आधार प्रदान करते हैं तथा तूफान, समुद्री जल धाराओं, तरंगों और ज्वार से होने वाले क्षरण को भी कम करने में सहायता करते हैं.

जलवायु विनियमन (Climate regulation): मैंग्रोव वनों में वस्तुतः स्थलीय वनों (terrestrial forests) की तुलना में चार गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता मौजूद है.

जल निस्यंदन (Water filtration): 2-5 हेक्टेयर मैंग्रोव की सहायता से 4 हेक्टेयर जलीय कृषि (aquaculture) के अपशिष्ट जल का निस्तारण किया जा सकता है.

मत्स्यन (Fisheries): मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में 3000 से अधिक मछलियों की प्रजातियां पाई जाती हैं.

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme) के नैरोबी अभिसमय (Nairobi Convention) द्वारा पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र के लिए मैंग्रोव पारितंत्र पुनर्स्थापन (Mangrove Ecosystem Restoration) पर दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं. इन अभिसमय का उद्देश्य स्वस्थ नदियों, तटों और महासागरों के साथ एक समृद्ध पश्चिमी हिंद महासागरीय क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देना है. हालांकि, भारत इस अभिसमय का पक्षकार नहीं है.

मैंग्रोव संरक्षण के उपाय

  • सुंदरबन के कुछ हिस्सों को कानूनी तौर पर राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों (विशेष रूप से बाघ संरक्षण) के रूप में संरक्षित किया गया है.
  • वैज्ञानिकों ने नीदरलैंड की तर्ज़ पर समुद्रतटीय मृदा के कटाव को रोकने हेतु डाइकों (Dikes) के निर्माण का सुझाव दिया है.
  • सुंदरबन को रामसर कन्वेंशन के अंतर्गत शामिल किया जाना एक सकारात्मक कदम है। यह कन्वेंशन नमभूमि (Wetlands) और उनके संसाधनों के संरक्षण तथा बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग के लिये राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का ढाँचा उपलब्ध कराता है.
  • सुभेद्यता के अनुसार सुंदरबन को विभिन्न उपक्षेत्रों में विभाजित कर प्रत्येक के लिये एक निर्देशित समाधान कार्यक्रम अपनाया जाना चाहिये.
  • इस क्षेत्र में नदियों के अलवणीय जल की मात्रा में वृद्धि के उपाय किये जाने चाहिये.

मानवीय कारणों से होने वाले निम्नीकरण को रोकने के लिये-

  • स्थानीय समुदायों को जागरूक करना एवं उनकी समस्याओं के लिये वैकल्पिक समाधानों को लागू करना.
  • सामान्य पर्यटन की जगह जैव-पर्यटन (Eco-Tourism) को बढ़ावा देना.
  • वनोन्मूलन (Deforestration) पर रोक एवं वनीकरण को बढ़ावा देना.
  • संकटग्रस्त जीवों एवं वनस्पतियों की सुरक्षा को बढ़ावा देना.
  • जैव-तकनीक के माध्यम से मैंग्रोव का संरक्षण एवं पुनर्स्थापन.

Prelims Vishesh

Sarhad Vistar Vikasotsav 2020 :-

  • इसका आयोजन गुजरात के कच्छ जिले के सीमांत क्षेत्रों में किया जाएगा.
  • इसका उद्देश्य दूरस्थ और सीमावर्ती गांवों में स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सड़क संपर्क से संबंधित समस्याओं का समाधान करना है.
  • इसका आयोजन सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (Border Area Development Programme : BADP) के तहत किया जा रहा है.
  • BADP को वर्ष 1993-94 में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में आरंभ किया गया था.
  • BADP का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा के निकट स्थित दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की विशेष विकासात्मक आवश्यकताओं को पूर्ण करना और उनके कल्याण हेतु कार्य करना है.

Quick Reaction Surface-to-Air Missile (QRSAM) System :-

  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने ओडिशा तट से दूर चांदीपुर में एकीकृत परीक्षण रेंज से QRSAM का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है.
  • QRSAM एक छोटी दूरी वाली सतह से हवा में मार करने की क्षमता से युक्त मिसाइल प्रणाली है. इसे स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया गया है. यह शत्रु के हवाई हमलों से सेना की बख्तरबंद संरचनाओं को एक सुरक्षा कवच प्रदान करती है. इसकी मारक क्षमता 25 से 30 किमी है.

Space X NASA’s upcoming CREW1 mission :-

  • क्रू-1 (CREW1), छह क्रू मिशनों की श्रृंखला में से प्रथम मिशन है, जिसे नासा और स्पेसएक्स द्वारा वाणिज्यिक क्रा प्रोग्राम के भाग के रूप में संचालित किया जाएगा.
  • नासा का वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से अंतरिक्ष यात्रियों को लाने और वहाँ ले जाने के लिए नासा और निजी उद्योग के मध्य एक साझेदारी है.
  • यह कार्यक्रम नासा जैसी एजेंसियों के लिए अंतरिक्ष में जाने की लागत को कम करने का एक उपाय सिद्ध हो सकती है.
  • बोइंग और स्पेसएक्स को सितंबर 2014 में नासा द्वारा चयनित किया गया था, ताकि क्रू के सदस्यों को अमेरिका से ISS स्थानांतरित करने हेतु एक लागत प्रभावी परिवहन प्रणाली विकसित की जा सके.

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