Sansar Daily Current Affairs, 10 March 2020
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.
Topic : Centre Cannot Brand Organisations ‘Political’: SC
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों यह व्यवस्था दी कि केंद्र सरकार किसी संगठन को “राजनीतिक” घोषित करके उसे किसी सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए विदेशी धन प्राप्त करने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती है.
मामला क्या है?
इंडियन सोशल एक्शन फोरम (INSAF) ने एक याचिका दायर की थी जिसमें Foreign Contribution Regulation Act (FCRA), 2010 तथा विदेशी अंशदान (विनियमन) नियमावली, 2011 के कतिपय प्रावधानों को चुनौती दी गई थी.
याचिका के अनुसार, ये कानून केंद्र सरकार को यह अनियंत्रित शक्ति प्रदान करते हैं कि वह संगठनों को राजनीतिक करार देते हुए उन्हें विदेशी धन लेने से रोक सके.
विवादित प्रावधान
FCRA का अनुभाग 5(1) : आरोप है कि यह प्रावधान अस्पष्ट है और यह केंद्र को यह निर्णय की पूरी छूट देता है कि कौन संगठन राजनीतिक है अथवा अराजनीतिक.
FCRA का अनुभाग 5(4) : आरोप है कि यह प्रावधान स्पष्ट रूप से उस अधिकारी का नाम नहीं बताता जिसके पास कोई संगठन अपनी शिकायत लेकर जा सकता है.
2011 नियमावली का नियम 3 : इसमें उन राजनीतिक गतिविधियों का वर्णन है जिसके लिए सरकार किसी संगठन को विदेशी धन लेने से रोक सकती है.
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
- यदि कोई संगठन अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले नागरिकों के हित का समर्थन करता है और इसके लिए उसका कोई राजनीतिक लक्ष्य नहीं है, तो उसे राजनीतिक संगठन घोषित करके दण्डित नहीं किया जा सकता.
- परन्तु यदि सिद्ध हो जाए कि वह संगठन किसी राजनीतिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए ऐसा कर रहा है तो उसे विदेशी धन लेने से रोक दिया जाता है.
- कुछ संगठनों के राजनैतिक लक्ष्य होते हैं और इसका वर्णन उनके साहचर्य ज्ञापन (memorandum of association) अथवा उप-नियमों हुआ रहता है. ऐसे संगठनों को विदेशी धन लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
निष्कर्ष
किसी भी संगठन को केवल इस आधार पर दंडित करना कि वह अपने अधिकारों के लिये संघर्ष कर रहे लोगों के समूह का समर्थन करता है, किसी भी आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है. जरूरी है कि नीति निर्माता इस संदर्भ में अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें और न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन किया जाए.
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.
Topic : What is the Opec?
संदर्भ
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल (Crude Oil) की कीमतों में 30 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई है. विदित हो कि 1991 के बाद कच्चे की तेल की कीमतों में यह सबसे बड़ी गिरावट है.
यह गिरावट क्यों आई?
- कच्चे तेल की कीमतों में यह गिरावट सऊदी अरब द्वारा रूस के साथ प्राइस वार के चलते संभवतः हुआ है. तेल उत्पादन कम करने के मुद्दे पर तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक (OPEC) और रूस के बीच समझौता नहीं हो पाया. हम जानते हैं कि OPEC पर सऊदी का दबदबा है. पिछले सप्ताह सऊदी ने रूस को तेल उत्पादन में कटौती का प्रस्ताव दिया था. परन्तु रूस ने सऊदी की बात नहीं मानी और वर्तमान तेल उत्पादन को बनाए रखने की बात कही. इसके पश्चात् रूस को सबक सिखाने के लिए सऊदी अरब ने तेल की कीमत को कर दिया.
- इसके अतिरिक्त कोरोना वायरस (Coronavirus) के प्रकोप के कारण मांग में कमी को भी कीमतों में गिरावट की एक वजह बताया जा रहा है.
- दरअसल, तेल की मांग कम होने के बाद भी आपूर्ति पहले जैसी ही बनी हुई है. ऐसे में तेल निर्यातक देशों के संगठन OPEC और सहयोगियों के बीच तेल उत्पादन में कटौती को लेकर बैठक हुई थी, लेकिन इसमें समझौता नहीं हो पाया है.
OPEC
- OPEC का फुल फॉर्म है – Organization of the Petroleum Exporting Countries. इस प्रकार यह तेल उत्पादक देशों का एक समूह है जिसकी स्थापना 1960 में ईराक के बग़दाद में हुई थी और यह 1961 से प्रभावी हो गया.
- ओपेक का मुख्यालय इसके गठन के पहले पाँच वर्षों तक जिनेवा, स्विट्जरलैंड में था पर कालांतर में 1 सितंबर, 1965 में इसके मुख्यालय को ऑस्ट्रिया के विएना में स्थानांतरित कर दिया गया.
- ओपेक का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करना है जिससे पेट्रोलियम उत्पादकों के लिए उचित और स्थिर कीमत सुनिश्चित की जा सके.
- ओपेक देश दुनिया की तेल निर्यात का 40 फीसदी से ज्यादा का हिस्सा नियंत्रित करता है. यह 82 फीसदी तेल भंडार के मालिक भी है.
OPEC की सदस्यता
- OPEC के सदस्य तीन प्रकार के होते हैं – संस्थापक सदस्य, पूर्ण सदस्य और सहयोगी सदस्य.
- पूर्ण सदस्य वे देश होते हैं जहाँ से अच्छा-ख़ासा कच्चा तेल निर्यात होता है.
- इस समूह में नए सदस्य तभी शामिल हो सकते हैं जब उनके इस विषय में दिए गये आवेदन पर OPEC के सदस्य 3/4 बहुमत से अपना अनुमोदन दे देते हैं.
- OPEC के कानून में यह प्रावधान है कि उस देश को भी ओपेक में सहयोगी सदस्य बनाया जा सकता है जो पूर्ण सदस्यता की अर्हता नहीं रखता है, पंरतु किसी विशेष परिस्थिति में उसे सदस्य बना लिया जाता है.
- वर्तमान में OPEC संगठन में 13 सदस्य देश हैं, जिनके नाम हैं – अल्जीरिया, अंगोला, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कांगो गणराज्य, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेज़ुएला.
- क़तर 2018 में ओपेक से अलग हो गया.
- इक्वाडोर ने दिसंबर 1992 में अपनी सदस्यता स्थगित कर दी. अक्टूबर 2007 को वह ओपेक में फिर से शामिल हो गया. लेकिन उसने पुनः 1 जनवरी, 2020 को ओपेक की सदस्यता त्याग दी.
भारत पर सकारात्मक प्रभाव
- भारत तेल का चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता है. वह तेल की गिरती दामों का एक बड़ा लाभार्थी भी है. घटी हुई कीमतें न केवल आयात बिल को कम करेंगी बल्कि विदेशी मुद्रा को बचाने में भी सहायक सिद्ध होंगी.
- इससे चालू खाता घाटा संतुलित करने में सहायता प्राप्त होगी.
- तेल की कीमतें कम होने से अन्य आवश्यक वस्तुओं की उत्पादन लागत में भी कमी आएगी और इस प्रकार अर्थव्यवस्था में समग्र मुद्रास्फ़ीति में गिरावट होगी, जिसका सीधा लाभ आम जनता को मिलेगा.
- तेल के दाम में गिरावट से भारतप्रमुख विकास कार्यक्रमों और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर अधिक व्यय के साथ राजकोषीय समेकन का प्रबंधन करने में सक्षम होगा.
- कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के चलते भारत सरकार के लिये सब्सिडी का बोझ बहुत हद तक कम हो जाएगा, जिससे राजकोषीय घाटे को कम करने में सहायता मिलेगी.
भारत पर नकारात्मक प्रभाव
- तेल उत्पादक अर्थव्यवस्थाओं हेतु भारत से निर्यात तब प्रभावित हो सकता है जब तेल की गिरी हुई कीमतों के चलते उन अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर में अप्रत्याशित कमी होगी.
- चौथा सबसे बड़ा तेल आयातक होने के अतिरिक्त, भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा पेट्रोलियम उत्पाद निर्यातक भी है. तेल की कीमतों में गिरावट से अर्थव्यवस्था के इस क्षेत्र को क्षति पहुँचेगी.
- खाड़ी देशों में विशाल संख्या में अनिवासी भारतीय रहते है. यदि इन तेल उत्पादक देशों की विकास दर कम होती है तो उनकी आय पर प्रभाव पड़ सकता है. इसके चलते भारत को प्राप्त होने वाला प्रेषण कम हो जाएगा.
- कम तेल की कीमतों के चलते ईंधन की खपत अधिक हो सकती है जो शहरी प्रदूषण को भी बढ़ा सकती है.
- भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) को बेचने के लिये केंद्र के विनिवेश कार्यक्रम में नकारात्मक रूप से प्रभाव पड़ सकता है.
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Issues related to health.
Topic : Kyasanur Forest Disease
केएफडी बीमारी
- क्यास्नुर वन रोग Kyasanur Forest Disease Virus (KFDV) एक वायरस से होता है जिसे KFDV कहा जाता है.
- इसका यह नाम इसलिए पड़ा कि सबसे पहली बार इस वायरस की पहचान 1957 क्यासनुर वन के एक बन्दर में हुई थी. तब से आज तक प्रतिवर्ष 400-500 मनुष्य इसके शिकार होते रहे हैं.
- इसे मंकी फीवर के नाम से भी जाना जाता है.
- यह वायरस का स्रोत हार्ड टिक्स (Hemaphysalis spinigera) होते हैं. इसका एक बार संक्रमण होने के बाद यह जीवन भर बना रहता है.
- यदि संक्रमित टिक किसी चूहे-छछुन्दर, बंदर आदि को काट लेता है तो वह पशु इस वायरस का वाहक बन जाता है.
- KFDV से epizootics नामक रोग हो जाता है जिससे बंदरों की मृत्यु हो जाती है.
- बताया जाता है कि यह बीमारी ऐसे लोगों को होती है, जो प्रभावित क्षेत्र में रहकर आए हों या जहां पर उक्त वायरस की वजह से बंदरों की मौत हुई है. शासकीय दावों के अनुसार केएफडी बीमारी के प्रकरणों में मृत्यु दर 2-10 प्रतिशत है, जिसमें वयोवृद्ध में उच्च मृत्यु दर दर्ज की गई है.
- इस बीमारी का प्रभाव करीब आठ दिन होता है.
लक्षण और उपचार
- अचानक तेज बुखार आना, ठंड लगना, उल्टी-दस्त होना या जी मचलाना, उदासीनता, सिर दर्द, शरीर दर्द, मांस-पेशियों में जकडऩ, प्रकाश की असहनीयता आदि लक्षण बताए जाते है.
- वहीं केएफडी बीमारी के लिए फिलहाल कोई विशेष उपचार नहीं है. हालांकि लक्षणों के आधार पर डॉक्टर उपचार देते है.
नियंत्रण एवं रोकथाम के उपाय
- वन तथा पशु चिकित्सा विभाग से समन्वय बनाकर वन क्षेत्र में बीमार तथा मृत बंदरों की जानकारी एकत्रित किया जाना. साथ ही प्रभावित क्षेत्र की निगरानी करते रहना.
- वन क्षेत्र, खेत-खलिहान आदि में भ्रमण पूर्व डीएमपी, डीइइटी या मायलोल आदि का उपयोग किया जाना.
- शरीर को (गर्दन, सीना, पीठ व पैर) को ढककर या पूरे कपड़े पहनकर ही वन क्षेत्र, खेत, बगीचे आदि में भ्रमण करना.
- केएफडी वायरस के वाहक टीक को नियंत्रित करने के लिए जहाँ पर बंदर की मृत्यु हुई हो वहाँ पर 50 मीटर की परिधि में दवा का छिडक़ाव किया जाना.
- केएफडी वायरस एक जूनोटिक बीमारी है तथा अन्य विभागों से समन्वय स्थापित किया जाकर भी नियंत्रण पाया जा सकता है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Awareness in the fields of IT, Space, Computers, robotics, nano-technology, bio-technology and issues relating to intellectual property rights.
Topic : Stem Cell Banking
संदर्भ
हाल ही में ‘पूना सिटीज़न डॉक्टर फोरम’ (Poona Citizen Doctor Forum- PCDF) जो नागरिकों और डॉक्टरों के बीच विश्वास के पुनर्निर्माण तथा नैतिक-चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करता है, ने ‘स्टेम सेल बैंकिंग’ क्षेत्र में अनेक अनैतिक तथ्यों को उजागर किया है.
पृष्ठभूमि
पिछले एक दशक में ‘स्टेम सेल बैंकिंग’ का आक्रामक रूप से विपणन किया गया है, जबकि इसका उपयोग अभी भी प्रायोगिक चरण में है. स्टेम सेल बैंकिंग कंपनियाँ भावनात्मक विपणन रणनीति (Emotional Marketing Tactics) के माध्यम से माता-पिता का शोषण कर रही हैं.
क्या है समस्या?
- फोरम के अनुसार, स्टेम सेल बैंकिंग कंपनियाँ डिलीवरी से पहले अपने संभावित ग्राहकों से संपर्क करना शुरू कर देती हैं और प्रतिस्पर्द्धी पैकेज पेश करती हैं.
- निजी कंपनियाँ जो कि इस क्षेत्र में कार्य कर रही हैं, 50 हज़ार से 1 लाख रुपए के बीच पैकेज प्रदान कर रही हैं. हालाँकि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR), वाणिज्यिक स्टेम सेल बैंकिंग की सिफारिश नहीं करता है.
ICMR का दृष्टिकोण
- ICMR का मानना है कि ‘स्टेम सेल बैंकिंग’ का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, साथ ही इसके साथ नैतिक एवं सामाजिक चिंताएँ भी जुड़ी हैं.
- गर्भनाल रक्त का निजी भंडारण उस समय उचित है जब परिवार में बड़े बच्चे का इलाज इन कोशिकाओं के माध्यम से किया जा सकता है तथा मां अगले बच्चे की उम्मीद कर रही होती है. अन्य स्थितियों में माता-पिता को स्टेम सेल बैंकिंग की सीमाओं के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये.
- इस तरह के दिशा-निर्देशों के बावजूदस्टेम सेल बैंकिंग कंपनियों का विपणन लगातार बढ़ रहा है.
स्टेम सेल बैंकिंग क्या है?
- गर्भनाल में मौजूद रक्त में विशेष कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें मूल कोशिकाएं (स्टेम सेल्स) कहा जाता है.
- जन्म के बाद शिशु की गर्भनाल और अपरा (प्लेसेंटा) में बचे खून को भविष्य में चिकित्सकीय इस्तेमाल के लिए इकट्ठा करने, प्रशीतित (फ्रीज) करने और संग्रहित करके रखने की प्रक्रिया को गर्भनाल रक्त बैंकिंग (स्टेम सेल बैंकिंग) कहा जाता है.
- यह बिल्कुल सामान्य खून की तरह होता है लेकिन अंतर बस इतना होता है कि इसमें स्टेम सेल बहुत अधिक पाए जाते हैं.
- स्टेम सेल की खासियत होती है कि इनका विकास अलग अलग सेल्स और टिशू में हो सकता है.
- ये कोशिकाएं, रक्त कोशिकाओं के रूप में विकसित हो सकती हैं, जो कि इनफेक्शन से लड़ती हैं, पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाती हैं और खून के थक्के बनाने में मदद करती हैं.
नवजात शिशु के गर्भनाल का रक्त कैसे जमा किया जाता है?
- यह एक प्राकृतिक तरीका होता है जिसमें खून को सीरिंज द्वारा निकाला जाता है लेकिन कोशिकाओं के खून को नहीं लिया जाता है. इसे बेबी गर्भनाल (Umbical Chord) से जमा किया जाता है और स्टेम सेल बैंक में जमा किया जाता है. इससे haematological or immunological डिसऑर्डर ठीक किया जाता है.
- गर्भनाल में लगभग 75 एमएल रक्त रहता है लेकिन स्टेम सेल की संख्या कम होती है ये इसका एक अवगुण है लेकिन ये टिशू या ऑर्गेन बनाने में काफी सहायक होते हैं.
स्टेम सेल किसमें इस्तेमाल होता है?
- बोन मैरो के ट्रांसप्लांट में इसका इस्तेमाल किया जाता है.
- स्टेम सेल का इस्तेमाल खून को बनाने वाले स्टेम सेल को ट्रांसप्लांट करने में किया जाता है. अगर कोई ब्लड कैंसर या कोई और हेमोटॉलॉजिकल डिसऑर्डर से गुजर रहा हो तो hematopoietic स्टेम सेल ट्रांसप्लांट या बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जाती है.
- यह ब्लड डिसऑर्डर और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के लिए उपयोगी है.
- ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि स्टेम सेल अनुभवहीन कोशिकाएं होती है. वो नुकसान नहीं पहुंचा सकती. अगर स्टेम सेल पूरी तरह से नहीं मिल रहा फिर भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
स्टेम सेल दूसरे सेलों से अलग कैसे?
- स्टेम सेल विशेष कार्य के लिए बने नहीं होते हैं. उन्हें यह क्षमता है कि सेलों में विभाजन करके वे अपने आप को फिर से नया कर लेते हैं, कभी-कभी तो लम्बी अवधि तक निष्क्रिय होने के बाद भी.
- विशेष शारीरिक अथवा प्रायोगिक परिस्थितियों में स्टेम सेल को किस ऊतक अथवा अंग का कार्य करने वाले सेल में बदला जा सकता है.
- आंत एवं अस्थि-मज्जा जैसे कुछ अंगों में स्टेम सेल नियमित रूप से विभाजित होते रहते हैं और क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत और नए ऊतकों का निर्माण करते रहते हैं. परन्तु अन्य अंगों, जैसे – अग्नयाशय और हृदय में ये स्टेम सेल विशेष परिस्थितियों में ही विभाजित होते हैं.
भ्रूण स्टेम सेल और वयस्क स्टेम सेल में अंतर
- वयस्क और भ्रूण स्टेम सेल में सबसे बड़ा अंतर यह है कि भ्रूण स्टेम सेल शरीर के किसी भी प्रकार के सेल में बदल सकता है क्योंकि यह प्लूरीपोटेंट होता है. परन्तु वयस्क स्टेम सेल यह क्षमता नहीं होती.
- भ्रूण स्टेम सेल को अपेक्षाकृत अधिक सरल रूप से संरक्षित कर उपजाया जा सकता है.दूसरी ओर, वयस्क स्टेम सेल परिपक्व ऊतकों में कम ही होते हैं, इसलिए किसी वयस्क ऊतक से इनको अलग करना एक चुनौती वाला कार्य होता है.
किस तरह की स्थिति में स्टेम सेल की मदद ली जा सकती है?
- भारत में थैलेसेमिया के मरीजों की बडी संख्या है. हर साल बड़ी संख्या में थैलेसेमिया के मरीज अस्पताल जाते हैं जो नवजात शिशु होते हैं और उन्हें ट्रांसप्लांट की जरूरत होती
है. - ब्लड कैंसर, ल्युकिमिया, अप्लास्टिक एनिमिया के मरीजों के इलाज के लिए भी कोल्ड ब्लड सहायक है. इनका इलाज हेमोटॉपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के जरिये संभव है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : IP related issues.
Topic : Basmati GI tag
संदर्भ
मध्य प्रदेश में होने वाले बासमती चावल के लिए भौगोलिक संकेतक (GI) टैग पाने के वहाँ की राज्य सरकार के प्रयासों को तब धक्का मिला जब मद्रास उच्च न्यायालय ने उसकी याचना को निरस्त कर दिया.
न्यायालय ने क्या कहा?
न्यायालय का मन्तव्य था कि एक ही उत्पाद के लिए दो GI पंजीकरण प्रमाणपत्र निर्गत नहीं किया जा सकता. यदि याचिकाकर्ता चाहते हैं कि तो उन्हें इसके लिए ट्रेडमार्क रजिस्टरार के यहाँ एक आवेदन देकर APEDA को निर्गत हुए GI प्रमाण पत्र को रद्द करवाना होगा या उसमें संशोधन करवाना होगा.
पृष्ठभूमि
मई 2010 में, जीआई का दर्जा केवल पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्सों में उगाए गए बासमती को दिया गया था. मध्य प्रदेश ने मांग की कि उसके 13 जिलों को पारंपरिक बासमती के बढ़ते क्षेत्रों के रूप में मान्यता दी जाए. मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर बासमती होता है, लेकिन उसे नकार दिया गया.
मध्य प्रदेश सरकार का कहना है कि राज्य में उगाये जाने वाले बासमती चावल को GI टैग नहीं मिलने से उन किसानों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा जो इस चावल की खेती पर मुख्य रूप से निर्भर हैं. साथ ही बासमती के निर्यात पर भी इसका असर पड़ेगा और अप्रत्यक्ष रूप से बासमती निर्यात से होने वाले आर्थिक लाभ से देश वंचित रहेगा.
GI टैग क्या है?
- GI का full-form है – Geographical Indicator
- भौगोलिक संकेतक के रूप में GI टैग किसी उत्पाद को दिया जाने वाला एक विशेष टैग है.
- नाम से स्पष्ट है कि यह टैग केवल उन उत्पादों को दिया जाता है जो किसी विशेष भगौलिक क्षेत्र में उत्पादित किये गए हों.
- इस टैग के कारण उत्पादों कोकानूनी संरक्षण मिल जाता है.
- यह टैग ग्राहकों को उस उत्पाद की प्रामाणिकता के विषय में आश्वस्त करता है.
- डब्ल्यूटीओ समझौते के अनुच्छेद 22 (1) के तहत GI को परिभाषित किया गया है.
- औद्योगिक सम्पत्ति की सुरक्षा से सम्बंधित पहली संधिके अनुसार GI tag को बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का एक अवयव माना गया है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI WTO के बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के व्यापार से सम्बंधित पहलुओं पर हुए समझौते से शाषित होता है. भारत में वह भौगोलिक वस्तु संकेतक (पंजीकरण एवं सुरक्षा) अधिनयम, 1999 से शाषित होता है.
भौगोलिक संकेतक पंजीयक
- भौगोलिक वस्तु संकेतक (पंजीकरण एवं सुरक्षा) अधिनयम, 1999 के अनुभाग 3 के उप-अनुभाग (1) के अंतर्गत पेटेंट, रूपांकन एवं व्यापार चिन्ह महानिदेशक की नियुक्ति GI पंजीयक के रूप में की जाती है.
- पंजीयक को उसके काम में सहयोग करने के लिए केंद्र सरकार समय-समय पर अधिकारियों को उपयुक्त पदनाम के साथ नियुक्त करती है.
Prelims Vishesh
Kishori shakti karyakram :-
- ओडिशा के बरहामपुर की 14 किशोरी लड़कियों ने शहर की झुग्गियों में रहने वाली बालिकाओं को सशक्त करने के लिए किशोरी शक्ति कार्यक्रम नामक एक अभियान चलाया है जिसमें लड़कियों को मासिक स्वच्छता और विवाह की सही उम्र के विषय में जागरूक बनाया जाएगा और साथ ही पढ़ाई को बीच में छोड़ने वाली लडकियों को फिर से पढ़ाई शुरू करने के लिए प्रेरित किया जाएगा.
- इसके अतिरिक्त उन्हें कौशल्य सिखाये जाएँगे.
- इसके लिए चुनी हुई झुग्गियों में “टीन क्लब” गठित किये जाएँगे जिसके सदस्य लड़के और लडकियाँ दोनों होंगी.
Women Transforming India Awards :–
- नीति आयोग द्वारा दिए जाने वाले भारत को बदलने वाली महिला पुरस्कार (Women Transforming India Awards) चौथी बार दिए जा रहे हैं.
- यह पुरस्कार भारत की ऐसी महिला नेताओं को दिए जाते हैं जिन्होंने देश को बदलने की दिशा में अभूतपूर्व काम किये हों.
- इसमें अधिकतर पुरस्कार उद्यमिता के लिए दिए जाते हैं.
WISTEMM program :-
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग एक कार्यक्रम कार्यान्वित करता है जिसका WISTEMM है.
- WISTEMM का पूरा नाम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, आभियांत्रिकी, गणित एवं औषधि क्षेत्र में कार्यरत महिलाएँ (Women in Science, Technology, Engineering, Mathematics and Medicine) है.
- इस कार्यक्रम 21 से लेकर 45 वर्ष की भारतीय महिलाओं को शोध के लिए अमेरिका के मूर्धन्य संस्थानों में भेजा जाता है.
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