Sansar डेली करंट अफेयर्स, 08 December 2018

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Sansar Daily Current Affairs, 08 December 2018


GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic :  UN’s Committee on Economic, Social and Cultural Rights

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार समिति (UN Committee on Economic, Social and Cultural Rights – UN CESCR) के अन्दर एशिया-प्रशांत सीट के लिए भूतपूर्व भारतीय राजनयिक प्रीति सरन को निर्विरोध संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् (ECOSOC) द्वारा चुन लिया गया है. उनका कार्यकाल 1 जनवरी, 2019 से आरम्भ होगा और चार वर्ष चलेगा.

CESCR क्या है?

  • इसकी स्थापना 1985 में संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् (ECOSOC) द्वारा हुई थी.
  • इसका उद्देश्य 169 देशों द्वारा स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार संधि (International Covenant on Economic, Social and Cultural Rights – ICESR) के कार्यान्वयन पर नजर रखना है.
  • इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे CESCR को प्रत्येक पाँच वर्ष पर यह प्रतिवेदित करें कि वे किस प्रकार आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा कर रहे हैं.
  • समिति ऐसे सभी प्रतिवेदनों की जाँच करती है और उनपर अपनी चिंताओं और अनुशंसाओं को सम्बन्धित देश को अपनी अंतिम टिपण्णी के रूप में प्रेषित करती है.
  • CESCR के सदस्य विशेषज्ञ के रूप में व्यक्तिगत रूप से काम करते हैं, न कि अपने देश के प्रतिनिधि के रूप में चाहे उनके देश ने उनको नामित ही क्यों न किया हो.
  • CESCR की बैठक जेनेवा में प्रत्येक वर्ष दो बार होती है.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic :  Swaminathan calls GM crops a failure

संदर्भ

अग्रणी कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन ने अपने एक शोधपत्र में Bt कपास को विफल बताया है. उनका यह निष्कर्ष एक पेपर में प्रकाशित हुआ जिसका नाम है – “सतत खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिए आधुनिक तकनीक”/’Modern Technologies for Sustainable Food and Nutrition Security’. इस पेपर में भारत की फसलों के विकास एवं परिवर्तित जीन वाली फसलों (transgenic crops) – विशेषकर Bt कपास और Bt बैंगन तथा DMH-11 नामक परिवर्तित जीन वाली संकर सरसों – की समीक्ष की गई है.

स्वामीनाथन प्रतिवेदन के मुख्य तथ्य

  • स्वामीनाथन ने अपने पेपर में कहा है कि परिवर्तित जीन वाला Bt कपास भारत में असफल रहा है. यह न केवल सतत कृषि तकनीक के रूप में विफल है, अपितु कपास उपजाने वाले किसानों की आजीविका भी इससे सुरक्षित नहीं हुई. विदित हो कि हमारे किसान अधिकतर छोटे और सीमान्त किसान हैं और उनके पास संसाधनों की कमी होती है.
  • इसके अतिरिक्त संशोधित जीन वाली फसलों (GM crops) के मूल्यांकन में न तो सावधानी के सिद्धांत (precautionary principle – PP) को अपनाया गया है और न ही इसमें विज्ञान पर आधारित तथा जैव-सुरक्षा से सम्बन्धित कठोर नियमों पर बल दिया गया है.
  • पेपर में जीन इंजीनियरिंग की तकनीक पर ही प्रश्न यह कहते हुए खड़ा कर दिया गया है कि इससे बुवाई की लागत बढ़ जाती है. इसके अतिरिक्त किसी पौधे में बाहरी जीन (foreign genes) प्रविष्ट करने से उस पौधे के अणु एवं कोष में ऐसे बदलाव आ सकते हैं जिन्हें अभी तक ठीक से समझा नहीं जा सका है.

GM फसल क्या है?

संशोधित अथवा परिवर्तित फसल (genetically modified – GM Modified crop) उस फसल को कहते हैं जिसमें आधुनिक जैव-तकनीक के सहारे जीनों का एक नया मिश्रण तैयार हो जाता है.

ज्ञातव्य है कि पौधे बहुधा परागण के द्वारा जीन प्राप्त करते हैं. यदि इनमें कृत्रिम ढंग से बाहरी जीन प्रविष्ट करा दिए जाते हैं तो उन पौधों को GM पौधा कहते हैं. यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य है कि वैसे भी प्राकृतिक रूप से जीनों का मिश्रण होता रहता है. यह परिवर्तन कालांतर में पौधों की खेती, चयन और नियंत्रित सम्वर्धन द्वारा होता है. परन्तु GM फसल में यही काम प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से किया जाता है.

 GM फसल की चाहत क्यों?

  • अधिक उत्पादन के लिए.
  • खेती में कम लागत के लिए.
  • किसानी में लाभ बढ़ाने के लिए.
  • स्वास्थ्य एवं पर्यावरण में सुधार के लिए.

GM फसल का विरोध क्यों?

  • यह स्पष्ट नहीं है कि GM फसलों (GM crops) का मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर कैसा प्रभाव पड़ेगा. स्वयं वैज्ञानिक लोग भी इसको लेकर पक्के नहीं हैं. कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी फसलों से लाभ से अधिक हानि है. कुछ वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि एक बार GM crop तैयार की जायेगी तो फिर उस पर नियंत्रण रखना संभव नहीं हो पायेगा. इसलिए उनका सुझाव है कि कोई भी GM पौधा तैयार किया जाए तो उसमें सावधानी बरतनी चाहिए.
  • भारत में GM विरोधियों का यह कहना है कि बहुत सारी प्रमुख फसलें, जैसे – धान, बैंगन, सरसों आदि की उत्पत्ति भारत में ही हुई है और इसलिए यदि इन फसलों के संशोधित जीन वाले संस्करण लाए जाएँगे तो इन फसलों की घरेलू और जंगली किस्मों पर बहुत बड़ा खतरा उपस्थित हो जाएगा.
  • वास्तव में आज पूरे विश्व में यह स्पष्ट रूप से माना जा रहा है कि GM crops वहाँ नहीं अपनाए जाएँ जहाँ किसी फसल की उत्पत्ति हुई हो और जहाँ उसकी विविध किस्में पाई जाती हों. विदित हो कि भारत में कई बड़े-बड़े जैव-विविधता वाले स्थल हैं, जैसे – पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट – जहाँ समृद्ध जैव-विविधता है और साथ ही जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है. अतः बुद्धिमानी इस बात में होगी कि हम लोग किसी भी नई तकनीक के भेड़िया-धसान में कूदने से पहले सावधानी बरतें.
  • यह भी डर है कि GM फसलों के द्वारा उत्पन्न विषाक्तता के प्रति कीड़ों में प्रतिरक्षा पैदा हो जाए जिनसे पौधों के अतिरिक्त अन्य जीवों को भी खतरा हो सकता है. यह भी डर है कि इनके कारण हमारे खाद्य पदार्थो में एलर्जी लाने वाले तत्त्व (allergen) और अन्य पोषण विरोधी तत्त्व प्रवेश कर जाएँ.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic :  Method to simulate, predict solar activity over ten years developed

संदर्भ

कलकत्ता के भारतीय वैज्ञानिक शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER) के शोधकर्ताओं के एक दल ने पिछले 100 वर्षों के डाटा का प्रयोग करते हुए एक विधि निकाली है जिससे अगले सौर-चक्र (2020-2031) के दौरान होने वाली गतिविधि की तीव्रता की भविष्यवाणी की जा सकती है.

पृष्ठभूमि 

400 वर्षों से खगोलवेत्ता सूर्य की सतह पर सौर धब्बों (sun spots) को देखते आये हैं. यह देखा गया है कि सूर्य के ये धब्बे एक चक्रीय पद्धति से बढ़ते चले जाते हैं और अंत में लगभग 11 वर्ष में विलुप्त हो जाते हैं. इस प्रक्रिया को “सौर धब्बा चक्र” अथवा “सौर गतिविधि चक्र” कहा जाता है. वर्तमान में हम लोग 24वें सौर धब्बा चक्र में हैं. यह गणना 1755 ई. से की जा रही है.

खोज से क्या पता चला?

शोधकर्ताओं ने पाया कि सौर गतिविधि अगले चक्र के समय घटेगी नहीं, अपितु यह या तो वर्तमान चक्र के समान रहेगी अथवा इससे अधिक तेज होगी. शोधकर्ताओं के अनुसार यह चक्र 2024 के आस-पास अपने चरम पर होगा.

सौर धब्बे क्या हैं?

  • सूरज के प्रकाशमंडल में कई बार ऐसे स्थान दिखाई देते हैं जहाँ पर आस-पास की तुलना में अधिक कालिमा होती है. इन्हीं स्थानों को सूरज का धब्बा कहा जाता है. ये ऐसे स्थान हैं जहाँ सतह का तापमान अपेक्षाकृत कम होता है. यह कमी चुम्बकीय क्षेत्र के प्रवाह के जमाव के कारण होती है जिससे संवहन बाधित हो जाता है.
  • सूरज के धब्बे अधिकतर जोड़ों में दिखते हैं और इनकी चुम्बकीय ध्रुवीयता परस्पर विरोधी होती है.

सौर धब्बों का अध्ययन क्यों?

  • सूर्य के दीर्घकालिक परिवर्तनों और हमारी जलवायु पर उनके प्रभाव को समझने के लिए.
  • इन धब्बों (sun spots) के अन्तरिक्षीय  मौसम पर प्रभाव को जानने के लिए. सूर्य के विकिरण, कण-प्रवाह एवं चुम्बकीय प्रवाह से अंतरीक्षीय मौसम प्रभावित होता है. इनके चलते न केवल इलेक्ट्रॉनिक से चलने वाले उपग्रह का नियंत्रण प्रभावित हो सकता है, अपितु इनका प्रभाव हमारी संचार प्रणालियों, ध्रुवों के आस-पास विमान-यातायात और बिजली ग्रिडों पर भी पड़ सकता है.
  • सूरज के धब्बों का सीधा प्रभाव पृथ्वी की जलवायु पर पड़ता है. इसलिए सूरज के धब्बों का अध्ययन किया जाता है जिससे यह भविष्यवाणी की जा सके कि सूरज के धब्बों का अगला चक्र कैसा होगा – इनके समय में क्या सूरज क्या बहुत अधिक सक्रिय होगा और अधिक धब्बे उत्पन्न करेगा या नहीं.

Maunder-like minimum

कुछ लोगों की भविष्यवाणी है कि अगले चक्र (चक्र 25) में सूरज के धब्बे कम होंगे. ऐसा भी अनुमान किया गया है कि सूर्य ऐसे युग की ओर जा रहा है जिसके दौरान उसकी सक्रियता सदैव कम रहेगी. इस अवस्था को सौर वैज्ञानिकों ने “Maunder-like minimum” अर्थात् “मौन्डर के समान न्यूनतम” कहा है. यहाँ पर मौन्डर का अभिप्राय 1645 से लेकर 1715 तक की अवधि से है जब 28 वर्षों तक सूरज के धब्बों की संख्या हजार-हजार करके घटती चली गई थी. इस समय यूरोप और उत्तरी अमेरिका में तापमान औसत से कम होता जा रहा था. यद्यपि अभी भी यह विवाद का विषय है कि मौन्डर न्यूनतम का सम्बन्ध पृथ्वी की जलवायु से है या भी नहीं. ऐसे में सूरज के धब्बों का अध्ययन और भी आवश्यक हो जाता है.


GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic :  Chang’e-4 mission

संदर्भ

चीन ने  Chang’e-4 नामक एक खोजी अंतरिक्षयान प्रक्षेपित किया है जो चाँद के पिछले अँधेरे भाग की खोज करेगा. चाँद के छिपे हुए पार्श्व पर उतरने वाला यह विश्व का पहला खोजी यान होगा. ज्ञातव्य है कि इस अन्तरिक्ष यान का नाम चीन के चन्द्रदेवी के नाम पर रखा गया है. चीन की चन्द्र-अभियान शृंखला की यह चौथी कड़ी है.

पृष्ठभूमि

सर्वविदित है कि पृथ्वी से चाँद का पिछला भाग नहीं दिखता है क्योंकि यह उसी गति से घूमता रहता है जिस गति से चाँद हमारे ग्रह की परिक्रमा करता है.  Chang’e-4 चाँद के इस अन्धकारमय पार्श्व पर उतरेगा. अभी तक कोई भी अन्तरिक्षयान इस भाग पर उतरा नहीं है. चाँद के इस भाग को ‘South Pole-Aitken Basin’ कहा जाता है जो अन्तरिक्ष-वैज्ञानिकों के लिए आज भी एक पहेली है. यदि यह अभियान सफल हो जाता है तो चीन इस मामले में अमेरिका एवं रूस को पीछे छोड़ देगा.

कठिनाइयाँ

Chang’e-4 के साथ सबसे बड़ी समस्या यह हो सकती है कि जब वह चाँद की परली ओर उतरेगा तो चीन के वैज्ञानिकों का उससे संचार टूट सकता है. यदि संचार व्यवस्था भंग हो जाती है तो इस समस्या से उबरने के लिए रेडियो टेलिस्कोप जैसे विकल्प का सहारा लेना होगा.


GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic :  UN framework to combat international terrorism

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र संघ ने हाल ही में “संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद विरोधी समन्वय समझौता” (UN Global Counter-Terrorism Coordination Compact) नामक एक नए ढाँचे का अनावरण किया है जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से लड़ना तथा शान्ति एवं सुरक्षा; मानवीयतावादी; मानवाधिकार एवं सतत विकास प्रक्षेत्रों में किए जा रहे प्रयासों का समन्वय का करना है.

यह ढाँचा क्या है?

  • यह ढाँचा एक समझौता है जो इनके बीच किया गया है – संयुक्त राष्ट्र प्रमुख, 36 संगठन, अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (INTERPOL) और विश्व सीमा शुल्क संगठन. इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समस्या से जूझने की स्थिति में सदस्य देशों को बेहतर सहायता देना है.
  • संयुक्त राष्ट्र की समन्वय समिति इस ढाँचे के कार्यान्वयन एवं अनुश्रवन का पर्यवेक्षण करेगी. इस समिति की अध्यक्षता आतंकवाद विरोधी संयुक्त राष्ट्र अवर-महासचिव करेंगे.

इस ढाँचे की आवश्यकता क्यों?

बहुधा देखा जाता है कि मानवाधिकार को सीमित करने वाली नीतियों का यह फल होता है कि जिन समुदायों को ये नीतियाँ सुरक्षा देना चाहती हैं वे ही अलग-थलग पड़ जाती हैं, यद्यपि आतंकवाद से लड़ने में सामान्यतः इन समुदायों की रूचि होती है. परिणाम यह होता है कि इन नीतियों के चलते लोग आतंकवादियों के चंगुल में आ जाते हैं और आतंकवाद को रोकने के सारे प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं. इसलिए इस नए ढाँचे में इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है कि आतंकवाद से लड़ते समय अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों एवं कानूनों का ध्यान रखा जाए.

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता

  • यद्यपि हाल में ISIS और उसके सहयोगियों के विरुद्ध सफलता मिली है, परन्तु यह संभावना सदैव बनी रहती है कि ये दुबारा आ जाएँ अथवा नई जगहों पर सक्रिय हो जाएँ अथवा उनसे प्रेरित व्यक्ति कुछ कार्रवाई कर डाले.
  • इंस्टिट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पीस नामक थिंकटैंक द्वारा निर्गत 2018 के वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (Global Terrorism Index) में यह बतलाया गया है कि यद्यपि पूरे विश्व में आतंकवाद की घटनाओं से मरने वाले जनों की संख्या में 27% की गिरावट आई है, परन्तु अभी भी 67 देशों में आतंकवाद पनप रहा है. आतंकवाद से प्रभावित देशों की यह संख्या पिछले 20 वर्षों में दूसरी सबसे बड़ी संख्या है.
  • यह भी देखा गया है कि आतंकवादियों द्वारा कृत्रिम बुद्धि (AI), ड्रोन एवं 3D (त्रि-आयामी) मुद्रण जैसी नई-नई तकनीकों का भी दुरूपयोग हो रहा है.

GS Paper 3 Source: PIB

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Topic :  Ministry of New and Renewable Energy conferred Skoch Award for National Significance.

संदर्भ

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय को राष्ट्रीय महत्ता के लिए SKOCH पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यह पुरस्कार इसलिए दिया गया है कि इस मंत्रालय ने देश में 73 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता को अधिस्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाई है.

विदित हो कि इस वर्ष नवीकरणीय ऊर्जा से भारत में 1 बिलियन इकाई बिजली उत्पन्न हुई है.

भारत की रैंकिंग

  • पवन ऊर्जा क्षमता में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है.
  • भारत सौर एवं सम्पूर्ण अधिष्ठापित ऊर्जा क्षमता के मामले में विश्व में पाँचवे स्थान पर है.

अंतर्राष्ट्रीय सौर संघ की स्थापना भारत की प्रमुख भूमिका रही है.

SKOCH पुरस्कार

  • SKOCH पुरस्कार भारतीय समाज में परिवर्तन और नई पहलों को लाने वालों को दिया जाता है.
  • यह भारत का सर्वोच्च गैर-सरकारी नागरिक सम्मान है.
  • इस अवार्ड के लिए केवल सरकारी विभाग और लोक उपक्रम आवेदन कर सकते हैं.
  • शासन, वित्त, बैंकिंग, प्रौद्योगिकी, कॉर्पोरेट नागरिकता, अर्थशास्त्र और समावेशी विकास के क्षेत्र में स्कोच अवॉर्ड को सर्वोच्च कसौटी माना जाता है.
  • यह पुरस्कार स्कोच कंसल्टेंसी सर्विसेज द्वारा दिया जाता है जो समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को भी देखती है.

GS Paper 3 Source: PIB

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Topic :  Food and Agriculture organization (FAO) Council approves India’s proposal to observe an International Year of Millets in 2023

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संदर्भ

रोम में चल रही खाद्य एवं कृषि संगठन परिषद् की 160वीं बैठक में भारत के इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया कि 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज दिवस (International Year of Millets) के रूप में मनाया जाए. बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि भारत 2020 और 2021 में संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (United Nations World Food Program – WFP) के कार्यकारी बोर्ड का सदस्य रहेगा. ज्ञातव्य है कि मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा, रागी आदि आते हैं.

भारत के संदर्भ में मोटे अनाज के लाभ

मोटे अनाजों के लिए किसी वर्ष को समर्पित करने का यह लाभ होगा कि लोगों में इसके स्वास्थ्यगत लाभों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी. इससे इन सूखा-प्रतिरोधी अनाजों की माँग बढ़ेगी तथा परिणामस्वरूप गरीब और सीमान्त किसान कमाई कर सकेंगे.

सरकार द्वारा मोटे अनाजों को प्रोत्साहन

  • मोटे अनाजों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए भारत ने इन्हें पोषक अनाज (Nutri-Cereals) घोषित कर रखा है और अप्रैल 2018 में ही इन्हें जन-वितरण प्रणाली (Public Distribution System – PDS) में बाँटे जाने वाले अनाज की सूची में डाल दिया है.
  • सरकार की अधिसूचना में मोटे अनाजों को मधुमेह-निरोधी गुणों वाला अनाज बताया गया है और उन्हें पोषक तत्त्वों का बिजलीघर (powerhouse of nutrients) कहा गया है.
  • सरकार जिन मोटे अनाजों को बढ़ावा दे रही है, वे हैं – ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी/काकुन, कुटू आदि.
  • पिछली जुलाई में सरकार ने मोटे अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में अच्छी-खासी वृद्धि कर दी थी जिससे कि अधिक-से-अधिक किसान इन अनाजों का उत्पादन कर सकें. विदित हो कि इन अनाजों के लिए बहुत कम पानी की आवश्यकता पड़ती है.

FAO

खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेषज्ञता प्राप्त एजेंसी है जो भूख को समाप्त करने के लिए विश्व-भर में किये जा रहे प्रयासों का नेतृत्व करती है. यह एक तटस्थ मंच है जिसपर सभी देश मिलकर भूख के बारे में समझौतों और विमर्श की नीति निर्धारित करते हैं. इसमें विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देश शामिल होते हैं और उन सब को बराबर का महत्त्व दिया जाता है. इसका मुख्यालय इटली के रोम शहर में है. इसकी स्थापना 16 अक्टूबर, 1945 में हुई थी.


Prelims Vishesh

Clean Sea- 2018 :-

  • हाल ही में अंडमान निकोबार द्वीप-समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के समीपस्थ समुद्र में भारतीय तटरक्षक (Indian Coast Guard – ICG) द्वारा क्षेत्रीय स्तर का अभ्यास किया गया जो समुद्र में खनिज तेल के बह जाने के कारण होने वाले प्रदूषण को रोकने की तैयारी से सम्बंधित था.
  • ज्ञातव्य है कि इस प्रकार की आपदा को संभालने के लिए भारत में तीन केंद्र स्थापित किये गये हैं जो मुंबई, चेन्नई और पोर्टब्लेयर में हैं.

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