Sansar डेली करंट अफेयर्स, 07 January 2022

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Sansar Daily Current Affairs, 07 January 2022


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश.

Topic : Organisation of Islamic Conference – OIC

संदर्भ

हाल ही में, ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ (Organisation of Islamic Conference – OIC) द्वारा अफगानिस्तान को एक आसन्न आर्थिक पतन से बचाने में मदद करने हेतु इस्लामाबाद में एक बैठक बुलाई गयी थी. अफगानिस्तान की आर्थिक विफलता का “भयानक” वैश्विक प्रभाव होने की संभावना व्यक्त की जा रही है.

इस शिखर सम्मेलन में दर्जनों विदेश मंत्रियों के साथ-साथ चीन, अमेरिका और रूस सहित प्रमुख शक्तियों और अफगानिस्तान के प्रतिनिधियों ने भाग लिया.

परिणाम

इस बैठक के अंत में ‘इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक’ (IDB) के माध्यम से मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए एक कोष स्थापित करने का वादा किया गया. यह कोष, विभिन्न देशों के लिए, अफगानिस्तान के तालिबान शासकों से सीधे संपर्क में आये, अनुदान करने के लिए एक कवर प्रदान करेगा.

संबंधित प्रकरण

हाल ही में, अमेरिका और अन्य देशों से अफगानिस्तान की अवरुद्ध परिसंपत्तियों में फंसी हुई लगभग 10 बिलियन डॉलर से अधिक की राशि को ‘जारी’ करने की मांग बढ़ती जा रही है.

  • हालांकि, पहले अमेरिका ने कहा था, कि इसमें से कुछ राशि अल-कायदा द्वारा किए गए 9/11 के आतंकवादी हमलों के पीड़ितों और पीड़ितों के परिवारों से जुड़े मुकदमे से बंधी हुई है.
  • कई राष्ट्रों ने अफगानिस्तान को सहायता प्रदान करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग संस्थानों के साथ मिलकर, देश की बैंकिंग प्रणाली को शीघ्र खोलने की मांग की है.

इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) क्या है?

  • यह विश्व के सभी इस्लामी देशों का एक संगठन है.
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है.
  • इस संगठन की स्थापना 1969 में हुई थी.
  • आज इसमें सदस्य देशों की संख्या 57 है.
  • इसका मुख्यालय जेद्दासऊदी अरब में है.
  • OIC का एक-एक प्रतिनिधिमंडल स्थाई रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ और यूरोपियन यूनियन में प्रतिनियुक्त है.
  • इस संगठन का उद्देश्य इस्लामी विश्व की सामूहिक आवाज के रूप में काम करना तथा मुसलमानों के हितों की रक्षा करना है.
  • निर्गुट आन्दोलन (Non-Aligned Movement – NAM) के समान यह संगठन भी एक दन्तविहीन बाघ है जो सदस्य देशों के बीच होने वाले मसलों पर कुछ नहीं कर पाता.

OIC का भारत के लिए महत्त्व

  • भारत का यह दावा रहा है कि उसे भी इस संगठन का एक सदस्य बनाया जाए क्योंकि भारत में मुसलमानों की आबादी कई देशों की तुलना में अधिक है.
  • OIC के बहुत से देशों के साथ भारत के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक रिश्ते हैं इस संगठन में भारत की सदैव रूचि रही है. पिछली बैठक में भारत को OIC की बैठक में एक सम्मानित अतिथि के रूप में आमंत्रित भी किया गया था.
  • परन्तु पिछले दिनों हुई बैठक में OIC भारत के हितों को दरकिनार करते हुए कश्मीर से भी एक प्रतिनिधि को आमंत्रित किया जिसका भारत की ओर से कठोर प्रतिरोध हुआ.

GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार.

Topic : Collective Security Treaty Organization- CSTO

संदर्भ

तेल समृद्ध कजाखस्‍तान में गृहयुद्ध जैसे हालात हो गए हैं, जिसे देखते हुए हाल ही में ‘सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन’ (Collective Security Treaty Organization- CSTO) द्वारा कज़ाख़िस्तान (Kazakhstan) में बढ़ती अशांति को कम करने में सहायता करने के लिए एक सैन्य-दल भेजा गया है. कज़ाख़िस्तान की पुलिस के अनुसार, सरकारी इमारतों पर प्राप्त करने की कोशिश करने के दौरान दर्जनों लोग मारे गए हैं.

कज़ाख़िस्तान में हालिया घटनाक्रम:

लंबे समय से मध्य एशिया के पूर्व सोवियत गणराज्यों में सबसे स्थिर के रूप में देखा जाने वाला, ऊर्जा संसाधनों से समृद्ध कज़ाख़िस्तान, वर्तमान में, कई दशकों में पहली बार सबसे बड़े संकट का सामना कर रहा है. देश में ईंधन की बढ़ती कीमतों के विरोध में कई दिनों से प्रदर्शन जारी थे, जिससे व्यापक अशांति व्याप्त हो गई है.

सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन

  • यह एक अंतर-सरकारी सैन्य गठबंधन (छह देशों का) है जो 2002 में लागू हुआ था.
  • इसका मुख्यालय रूस की राजधानी मास्को में स्थित है.
  • वर्तमान में आर्मेनिया, बेलारूस, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, रूसी संघ और ताजिकिस्तान इसके सदस्य हैं.
  • इसका उद्देश्य साइबर सुरक्षा और स्थिरता सहित शांति, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सुरक्षा को मज़बूत करना, स्वतंत्रता की सुरक्षा, सदस्य देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की स्थापना करना है.
  • 1991 में एक स्वतंत्र गणराज्य बनने के बाद से मध्य एशियाई देश पर शासन करने वाले शासकों के अस्तित्व को खतरे में डालने वाले विरोधों पर अंकुश लगाने के लिये इसने कज़ाखस्तान को प्रभावित करना शुरू कर दिया.
  • वर्ष 1992 में सोवियत संघ के बाद के छह राज्यों ने स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल से संबंधित – रूस, आर्मेनिया, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान ने सामूहिक सुरक्षा संधि पर हस्ताक्षर किये थे.
  • इसे “ताशकंद पैक्ट” या “ताशकंद संधि” के रूप में भी जाना जाता है.
  • सोवियत संघ के बाद के तीन अन्य राज्यों- अज़रबैजान, बेलारूस और जॉर्जिया ने अगले वर्ष हस्ताक्षर किये पर संधि 1994 में प्रभावी हुई.
  • पाँच साल बाद, नौ में से अज़रबैजान, जॉर्जिया और उज़्बेकिस्तान को छोड़कर बाकी सभी राज्यों ने इस संधि को पांँच और वर्षों के लिये नवीनीकृत करने पर सहमति व्यक्त की तथा वर्ष 2002 में उन छह राज्यों ने सीएसटीओ (CSTO) को एक सैन्य गठबंधन के रूप में बनाने पर सहमति व्यक्त की.

GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय.

Topic : Domestic Systemically Important Banks: D-SIBs

संदर्भ

हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 2021 की ‘प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंकों’ अर्थात् ‘डी-एसआईबी’ (Domestic Systemically Important Banks D-SIBs) की सूची जारी की गयी है.

रिजर्व बैंक द्वारा सरकारी स्वामित्व वाले भारतीय स्टेट बैंक और निजी ऋणदाताओं ICICI बैंक और HDFC बैंक को ‘प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंकों’ के रूप में घोषित किया है. इन बैंकों को ‘विफल होने में पर्याप्त समय’ (Too Big to Fail -TBTF) लेने वाला माना जाता है.

प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (SIBs) 

  • कुछ बैंक अपने आकार, क्रॉस-ज्यूरिडिक्शनल गतिविधियों, कार्यान्वयन संबंधी जटिलता की कमी, प्रतिस्थापन और परस्पर जुड़ाव के कारण प्रणालीगत रूप से काफी महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं.
  • ये बैंक अपनी विशेषताओं के परिणामस्वरूप इतने महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं कि आसानी से विफल नहीं हो सकते हैं. इसी धारणा के चलते संकट की स्थिति में सरकार द्वारा इन बैंकों पर समर्थन किया जाता है.
  • प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (SIBs) प्रणालीगत जोखिमों और उनके द्वारा उत्पन्न नैतिक जोखिम से निपटने के लिये अतिरिक्त नीतिगत उपायों के अधीन होते हैं यानी संकट की स्थिति में ये बैंक अतिरिक्त नीतिगत उपायों को अपना सकते हैं.
  • प्रणालीगत जोखिम को किसी कंपनी, उद्योग, वित्तीय संस्थान या संपूर्ण अर्थव्यवस्था की विफलता या विफलता से जुड़े जोखिम के रूप में परिभाषित किया जा सकता है.
  • नैतिक जोखिम एक ऐसी स्थिति है, जिसमें एक पक्ष यह मानकर जोखिमपूर्ण घटना में शामिल होता है कि वह जोखिम से सुरक्षित है और जोखिम की लागत किसी दूसरे पक्ष द्वारा वहन की जाएगी.

इन बैंकों की विफलता के कारण बैंकिंग व्यवस्था द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली आवश्यक सेवाएँ भी बाधित हो सकती हैं, जिससे इनकी संपूर्ण आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

घरेलू-प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (D-SIBs)

  • बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (BCBS) ने अक्तूबर 2012 में D-SIBs से संबंधित अपनी रूपरेखा को अंतिम रूप दिया था. D-SIBs फ्रेमवर्क इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि बैंकों की विफलता का प्रभाव घरेलू अर्थव्यवस्था पर न पड़े.
  • G-SIBs फ्रेमवर्क के विपरीत D-SIBs फ्रेमवर्क राष्ट्रीय अधिकारियों द्वारा किये गए मूल्यांकन पर आधारित होता है.
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वर्ष 2014 में D-SIBs से संबंधित रूपरेखा जारी की थी. D-SIBs की रूपरेखा के मुताबिक, रिज़र्व बैंक के लिये घरेलू बैंकों को घरेलू- प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (D-SIBs) के रूप में नामित करना और उनके प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण स्कोर (SISs) के आधार पर उपयुक्त श्रेणी में रखना आवश्यक है.

GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास.

Topic : Uses of Drone 

संदर्भ

नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) द्वारा केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों को विभिन्न क्षेत्रों में ड्रोन (Drone) का उपयोग किए जाने के संबंध में एक नोट भेजा गया है.

ड्रोन का प्रभावी ढंग से उपयोग किए जाने वाले क्षेत्र

  • गृह मंत्रालय: निगरानी, ​​स्थितिजन्य विश्लेषण, अपराध नियंत्रण, वीवीआईपी सुरक्षा, आपदा प्रबंधन आदि के लिए.
  • रक्षा मंत्रालय: युद्ध कार्यों हेतु, दूरदराज के इलाकों में संचार, ड्रोन-प्रत्युत्तर समाधान आदि हेतु.
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय: दवाओं की डिलीवरी, दूरस्थ या महामारी प्रभावित क्षेत्रों से नमूने एकत्र करने हेतु.
  • पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, और विद्युत मंत्रालय: परिसंपत्तियों एवं ट्रांसमिशन लाइनों की रियल टाइम निगरानी, चोरी की रोकथाम, दृश्यक निरीक्षण / रखरखाव, निर्माण योजना और प्रबंधन, आदि.
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय: अवैध शिकार-रोधी कार्रवाई, वन और वन्य जीवन की निगरानी, प्रदूषण आंकलन, और साक्ष्य एकत्र करने हेतु.
  • सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय: अंशतः लागत और आवश्यक अनुमोदन हासिल करने के उपरांत घटनाओं / कार्यक्रमों और दुर्गम स्थानों की उच्च गुणवत्ता युक्त वीडियोग्राफी करने हेतु. इस निर्णय से, बिना शोर-शराबे के निम्न ऊंचाई से शूटिंग करने की सुविधा उपलब्ध होगी और धूल प्रदूषण तथा दुर्घटनाओं संबंधी जोखिम को रोका जा सकेगा.
  • अन्य क्षेत्र: आपदा प्रबंधन, आपातकालीन प्रतिक्रिया, निरीक्षण/रखरखाव कार्य और परियोजना निगरानी आदि.

भारत की ड्रोन नीति (Drone Policy)

  • भारत में ड्रोन का चलन जिस प्रकार बढ़ रहा था उसे देखते हुए 1 दिसंबर, 2018 को संपूर्ण भारत में ड्रोन नीति (Drone Policy) लागू की गई थी.
  • इस नीति में यह निर्धारित किया गया था कि कोई भी व्यक्ति 18 वर्ष की उम्र से पहले ड्रोन नहीं उड़ा सकता है, साथ ही यह भी आवश्यक है कि उसने दसवीं क्लास तक पढ़ाई की हो और उसे ड्रोन से संबंधित बुनियादी चीज़ों की जानकारी हो.
  • नीति ने ड्रोन उड़ाने संबंधी निम्नलिखित ज़ोन निर्धारित किये थे:
    1. रेड ज़ोन        उड़ान की अनुमति नहीं
    2. येलो ज़ोन       नियंत्रित हवाई क्षेत्र – उड़ान से पहले अनुमति लेना आवश्यक
    3. ग्रीन ज़ोन       अनियंत्रित हवाई क्षेत्र – स्वचालित अनुमति
    4. नो ड्रोन ज़ोन    कुछ विशेष जगहों पर ड्रोन संचालन की अनुमति नहीं
  • ड्रोन नीति में कृषि, स्वास्थ्य, आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में ड्रोन का वाणिज्यिक इस्तेमाल 1 दिसंबर, 2018 से प्रभावी हो गया था, लेकिन खाद्य सामग्री समेत अन्य वस्तुओं की आपूर्ति के लिये अनुमति नहीं दी गई थी.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

भारत आक्रामक क्षमता बढ़ाने के लिए ड्रोन हासिल करने की कोशिशें कर रहा है. भारतीय सेना जासूसी ड्रोन का इस्तेमाल कई सालों से कर रही है. भारत की ड्रोन सेना में अधिकतर ड्रोन इसराइल निर्मित हैं.

हालांकि हाल के सालों में भारत ने इसराइल और अमेरिका जैसे देशों के साथ जो गठजोड़ किए हैं उनसे संकेत मिलते हैं कि भारत मानवरहित विमानों के ज़रिए दुश्मन के ठिकानों को नेस्तनाबूद करने की क्षमता हासिल करने पर ज़ोर दे रहा है.

हाल के सालों में क्षेत्र में जो सुरक्षा हालात बने हैं उनके मद्देनज़र ये भारत की ज़रूरत भी बन गया है.

वर्तमान समय में ड्रोन तकनीक अपने विकास के एक नए दौर से गुज़र रही है जिसके कारण यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि इसका प्रयोग मानव जाति की सहायता एवं उसके हित के लिये ही हो, न कि असामाजिक तत्त्वों द्वारा मानवीय हितों को नुकसान पहुँचाने के लिये.


Prelims Vishesh

Zero-day vulnerability :-

  • 0 दिन / जीरो-डे वल्नरबिलिटी (zero-day vulnerability) एक प्रकार का सुरक्षा दोष है, जिसे सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं किया गया है. इसके लिए अभी तक कोई सॉफ़्टवेयर पैच या उपचार तकनीक उपलब्ध नहीं है.
  • लॉग4शैल (Log4Shell) को सार्वजनिक रूप से प्रकट किए जाने से कम से कम एक सप्ताह पहले, इसके इस्तेमाल करने के प्रयासों को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि यह ‘जीरो-डे वल्नरबिलिटी’ थी, हालांकि, इसे केवल एक बहुत ही संक्षिप्त अवधि के लिए नोट किया गया था.
  • लॉग4जे (log4j), जावा सॉफ्टवेयर के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली ‘सॉफ्टवेयर लॉगिंग लाइब्रेरी’ है. इस महीने की शुरुआत में, इस लाइब्रेरी में एक महत्वपूर्ण सुरक्षा भेद्यता के बारे में जानकारी सार्वजनिक रूप से प्रकट की गई थी.

Soya Meal as an Essential Commodity :-

‘सोया खाद्य पदार्थों’ की घरेलू कीमतों को कम करने के लिए, सरकार ने ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955’ के तहत ‘सोया खाद्य’ को आवश्यक वस्तु घोषित करते हुए एक अधिसूचना जारी की है.

  • सरकार के इस निर्णय से बाजार में सोया निर्मित खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि की संभावना वाली किसी भी अनुचित गतिविधि (जैसे जमाखोरी, कालाबाजारी आदि) पर लगाम लगने की उम्मीद है.
  • सोयाबीन, भोजन में सबसे महत्वपूर्ण प्रोटीन स्रोत है, इसका उपयोग कृषि-कार्यों में काम आने वाले जानवरों को खिलाने के लिए किया जाता है. कुछ देशों में इसका उपयोग मानव उपभोग के लिए भी किया जाता है. सोयाबीन खाद्य, सोयाबीन तेल के निष्कर्षण का उप-उत्पाद से निर्मित होता है.

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