Sansar डेली करंट अफेयर्स, 01 June 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 01 June 2020


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian Constitution—Historical Underpinnings, Evolution, Features, Amendments, Significant Provisions and Basic Structure.

Table of Contents

Topic : Official language in High Courts

संदर्भ

हरियाणा के न्यायालयों में हिन्दी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाने हेतु हरियाणा सरकार के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है. न्यायालय में यह याचिका पाँच वकीलों ने मिलकर दायर की है.

याचिका में क्या कहा गया है?

  • याचिका में हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम’ 2020 में किए गए संशोधन का विरोध किया गया है.
  • याचिका में कहा गया है कि अंग्रेजी भाषा हमारे देश में सर्वत्र बोली जाती है. अंग्रेजी भाषा को अधीनस्थ कोर्ट से हटाने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
  • याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हरियाणा सरकार के इस निर्णय के द्वारा संविधान की धारा 14, 19 और 21 का उल्लंघन किया गया है. इससे हिन्दी और गैर-हिन्दी भाषी वकीलों के बीच एक खाई उत्पन्न करने का प्रयास किया गया है.
  • याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन हरियाणा राज्य के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है. हरियाणा सरकार औद्योगिक हब है और यहाँ अनेक मल्टीनेशनल कंपनियों के कार्यालय हैं.
  • इस राज्य में कई दूसरे राज्यों के लोग और समाज के सभी वर्गों के लोग रहते हैं.
  • याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन यह समझकर किया गया है कि हरियाणा में सभी वकील न केवल हिन्दी जानते हैं बल्कि वे हिन्दी का बेधड़क प्रयोग कर सकते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि यह संशोधन वकीलों के लिए पर्याप्त समस्या लेकर आया है.

इस विषय में संविधान क्या कहता है?

  • संविधान के अनुच्छेद 348 के खंड (1) के उपखंड(क) के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होंगी.
  • इसी अनुच्छेद के खंड (2) के अंतर्गत किसी राज्य का राज्यपाल उस राज्य के उच्च न्यायालय में हिंदी भाषा या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के पश्चात् प्राधिकृत कर सकेगा.
  • राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 7 के अनुसार, किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकता है. अंग्रेजी भाषा से परे ऐसी किसी भाषा में दिये गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश का अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद जारी किया जाएगा.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

14 फरवरी,1950 को राजस्थान के उच्च न्यायालय में हिंदी का प्रयोग प्राधिकृत किया गया. तत्पश्चात् 1970 में उत्तर प्रदेश,1971 में मध्य प्रदेश और 1972 में बिहार के उच्च न्यायालयों में हिंदी का प्रयोग प्राधिकृत किया गया. अतः इन चार उच्च न्यायालयों को छोड़कर देश के शेष बीस उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियों में अंग्रेजी अनिवार्य है.

इस अनुच्छेद की आलोचना करना एक अच्छे आँख वाले को पावर वाला चश्मा पहनाने जैसा है. किसी भी नागरिक का यह अधिकार है कि अपने मुकदमे के बारे में वह न्यायालय में बोल सके, चाहे वह वकील रखे या न रखे. परन्तु अनुच्छेद 348 की इस व्यवस्था के तहत देश के चार उच्च न्यायालयों को छोड़कर शेष बीस उच्च न्यायालयों एवम् सर्वोच्च न्यायालय में यह अधिकार देश के उन 97% जनता से घुमा-फिर कर छीन लिया गया है जो अंग्रेजी बोलने में सक्षम नहीं हैं.

अगर चार उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषा में न्याय पाने का हक है तो देश के शेष बीस उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में निवास करने वाली जनता को यह अधिकार क्यों नहीं? क्या यह उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं है? क्या यह अनुच्छेद 14 द्वारा प्रदत्त ‘विधि के समक्ष समता’ और अनुच्छेद 15 द्वारा प्रदत्त ‘जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध’ के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है?

प्रीलिम्स बूस्टर

 

  • संविधान की धारा 14 – भारत के संविधान में यह कहा गया है कि राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा.
  • संविधान की धारा 19 – यह अभिव्यक्ति की आजादी से सम्बंधित है.
  • संविधान की धारा 21 – प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का सरंक्षण: किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रकिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Separation of Powers between various organs Dispute Redressal Mechanisms and Institutions.

Topic : New Development Bank

संदर्भ

प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने आरटीआई अधिनियम के तहत दायर एक आवेदन में मांगी गई सूचना को साझा करने से यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एच) के अंतर्गत PM CARES FUND ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ (public authority) नहीं है.

पृष्ठभूमि

आरटीआई आवेदन 1 अप्रैल को हर्षा कंदुकुरी द्वारा किया गया था, जो प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात स्थिति राहत कोष (PM CARES FUND) के संविधान के बारे में जानकारी मांग रही थीं. बेंगलुरु में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में एलएलएम की एक छात्रा ने PM CARES FUND के ट्रस्ट डीड, और इसके निर्माण और संचालन से संबंधित सभी सरकारी आदेशों, अधिसूचनाओं और परिपत्रों की प्रतियाँ माँगी थी.

RTI के तहत ‘पब्लिक अथॉरिटी ‘क्या है?

  • आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एच) के अनुसार, “पब्लिक अथॉरिटी” का अर्थ है किसी भी प्राधिकरण या निकाय या स्व-सरकार की संस्था स्थापित या गठित, – (क) संविधान द्वारा या उसके तहत; (ख) संसद द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा; (ग) राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा; (घ) उपयुक्त सरकार द्वारा जारी अधिसूचना या आदेश द्वारा.
  • ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ की परिभाषा में सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा स्वामित्व, नियंत्रित या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित निकाय और उपयुक्त सरकार द्वारा प्रदान किए गए धन द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित शामिल हैं.
  • सरल भाषा में कहें तो, सार्वजनिक प्राधिकरण में वो संस्थान या निकाय आते हैं, जिनका गठन खुद सरकार करती है या फिर वह संविधान या संसद के कानून द्वारा या फिर विधानसभा के किसी कानून द्वारा गठित किए जाते हैं.

पीएम केयर्स फंड क्या है?

  • पीएम केअर्स फंड 28 मार्च, 2020 को किसी भी तरह की आपातकालीन या संकट की स्थिति जैसे कोविड-19 महामारी से निपटने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ बनाया गया था.
  • प्रधानमंत्री, पीएम केअर्स फंड के पदेन अध्यक्ष और रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री, भारत सरकार निधि के पदेन न्यासी होते हैं.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

एक ट्रस्ट के लिए, जो चार कैबिनेट मंत्रियों द्वारा अपनी पूर्व-सरकारी क्षमताओं में बनाया और चलाया जाता है, ‘लोक प्राधिकरण’ का दर्जा देने से इनकार करना पारदर्शिता के लिए एक बड़ा झटका है और हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लेख नहीं करना है.

पीएम केअर्स फंड को ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ का दर्जा देने से अस्वीकार करते हुए, यह अनुमान लगाना उचित है कि यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है. यदि ऐसा है तो इसे कौन नियंत्रित कर रहा है? ट्रस्ट का नाम, रचना, नियंत्रण, प्रतीक का उपयोग, सरकारी डोमेन नाम सब कुछ दर्शाता है कि यह एक सार्वजनिक प्राधिकरण है. बस यह निर्णय लेते हुए कि यह एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है और आरटीआई अधिनियम के आवेदन को सिरे से अस्वीकार कर दिया गया, सरकार ने इसके चारों ओर गोपनीयता की दीवारों का निर्माण किया है. पारदर्शिता और निधि के लिए आरटीआई अधिनियम के आवेदन को अस्वीकार करने से, हमें इस बात के बारे में भी चिंतित होना चाहिए कि निधि कैसे संचालित की जा रही है. हमें विश्वास और सुरक्षा उपायों की निर्णय लेने की प्रक्रिया के बारे में नहीं पता है, ताकि निधि का दुरुपयोग न हो.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

  • नेशनल इन्टरनेट एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया को आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 2 (एच) के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित किया गया है.
  • तदनुसार अधिनियम की धारा 4 (बी) के अंतर्गत इसे अपने संगठन, कार्यों और कर्तव्यों आदि के विवरण प्रकाशित करना होगा और इन्हें नियमित आधार पर अपडेट करना होगा. .
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 पूरे भारत वर्ष में 12 अक्टूबर, 2005 से प्रभावी है.
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एच) में दी गई व्यवस्था के अनुसार किसी “लोक प्राधिकरण (Public Authority)” का अर्थ ऐसा प्राधिकरण या निकाय या स्वायत्त सरकारी संस्था है- (a) जो संविधान या उसके अधीन बनाया गया हो, (b) संसद द्वारा बनाई गई किसी अन्य विधि द्वारा बनाया गया हो, (c) राज्य विधान मण्डल द्वारा बनाई गई किसी अन्य विधि द्वारा बनाया गया हो, (d) समुचित सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना या किये गये आदेश द्वारा स्थापित या गठित किया गया हो,

और इसके अन्तर्गत-

  • केन्द्र सरकार या किसी राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या आंतरिक रूप से वित्तपोषित निकाय और केन्द्र सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित गैर-सरकार संगठन भी लोक प्राधिकरण की परिभाषा में आते हैं. सरकार द्वारा किसी निकाय या गैर-सरकारी संगठन का वित्तपोषण प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष हो सकता है.
  • अधिनियम के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए रिकार्डों का समुचित प्रबन्धन बहुत ही महत्वपूर्ण है. इसलिए लोक प्राधिकरणों को अपने सभी रिकार्ड ठीक तरह से रखने चाहिए. उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके सभी रिकार्ड सम्यक्‌ रूप से सूचीपत्रित और अनुक्रमणिकाबद्ध हों, ताकि सूचना के अधिकार को सुकर बनाया जा सके.
  • लोक प्राधिकरणों को कम्प्यूटरीकृत करने योग्य सभी रिकार्डों को कम्प्यूटरीकृत करके रखना चाहिए.
  • इस तरह कम्प्यूटरीकृत किए गए रिकार्डों को विभिन्‍न प्रणालियों पर नेटवर्क के माध्यम से जोड़ देना चाहिए, ताकि ऐसे रिकार्डों तक पहुंच को सुकर बनाया जा सके.

GS Paper 2 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Government Policies and Interventions for Development in various sectors and Issues arising out of their Design and Implementation.

Topic : 23 additional MFP items included in MSP list

संदर्भ

जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सूची में 23 अतिरिक्त लघु वन उपजों (MFP) को सम्मिलित करने की घोषणा की है. विदित हो कि पहले इसके अन्दर 50 वस्तुएँ आती थीं जो अब बढ़कर 73 हो गई हैं. यह निर्णय कोविड–19 महामारी ओर बहुत ही कठिन परिस्थितियों में लिया गया है.

पृष्ठभूमि

सरकार ने वंचित वनवासियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और उनके सशक्तिकरण में सहायता के लिये लघु वन उपजों की मूल्य श्रृंखला विकसित करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित व्यवस्था के तहत लघु वन उपजों के विपणन की व्यवस्था तैयार करने का 2011 में निर्णय लिया था. इस योजना के तहत 1,126 वन धन केंद्र बनाये गये हैं. इन केंद्रों से 3.6 लाख से अधिक जनजातीय लोग लाभान्वित होते हैं. सरकार ने इस महीने के प्रारम्भ में पहले से सूचीबद्ध 50 लघु वन उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया था.

आवश्कयता

लम्बे समय से 23 फसलों के अतिरिक्त अन्य फसलों को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य में सम्मिलित करने कि माँग कृषकों द्वारा उठाई जा रही हैं. वन क्षेत्रों में उत्पादन होने वाले उपार्जन पर उस क्षेत्र के जनजातीय तथा आदिवासी समाज की निर्भरता रहती है जिनके लिए बाजार मिल पाना और भी कठिन हो जाता है.

गौण वन ऊपज के विभिन्न मदों में 16 से 66 प्रतिशत तक की वृद्धि किया गया है

26 मई, 2020 को अतिरिक्त मदों की यह अनुशंसा 1 मई 2020 को जारी पहले की अधिसूचना के अतिरिक्त है, जिसमें विधमान 50 एमएफपी के लिए एमएसपी संशोधनों की घोषणा की गई थी. गौण वन ऊपज के विभिन्न मदों में यह वृद्धि 16 से 66% तक की गई (कुछ मामलों जैसे कि गिलोय में यह वृद्धि 190% तक की गई) थी. इस वृद्धि से सभी राज्यों में गौण वन ऊपज की खरीद में भी तत्काल और आवश्यक गति मिलने की आशा है.

न्यूनतन समर्थन मूल्य सूची में सम्मिलित फसलों के नाम

नये जोड़े गए 14 मद, जो वैसे तो कृषि उपज हैं, भारत के पूर्वात्तर हिस्से में वाणिज्यिक रूप से नहीं उगाए जाते हैं, लेकिन वनों में जंगली क्षेत्रों में उगते पाए जाते हैं. इसलिए मंत्रालय ने पूर्वोत्तर के लिए एमएफपी मदों के रूप में इन विशिष्ट मदों को शामिल करने पर अनुकूल तरीके से विचार किया है.

इसके अतिरिक्त भारत भर में वन्य क्षेत्रों में उपलब्ध निम्नलिखित 9 मदों को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ इस अधिसूचना में शामिल किया गया है –

  1. वन तुलसी बीज
  2. वन जीरा
  3. इमली बीज
  4. बाँस झाड़ू
  5. सूखा आँवला
  6. कचरी बहेड़ा
  7. कचरी हर्रा
  8. लाख के बीज
  9. कटहल के बीज

लघु वन उपज का महत्त्व

  • लघु वन उपज (Minor Forest Produce : MFP) वन क्षेत्र में निवास करने वाली जनजातियों के लिए आजीविका का प्रमुख स्रोत है.
  • वन में निवास करने वाले लगभग 100 मिलियन लोग भोजन, आश्रय, औषधि एवं नकदी आय के लिए MFP पर निर्भर करते हैं.
  • जनजातीय लोग अपनी वार्षिक आय का लगभग 20-40% MFP एवं सम्बद्ध गतिविधियों द्वारा प्राप्त करते हैं तथा इसका महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण से भी सुदृढ़ संबंध है क्योंकि अधिकांश MFP का संग्रहण, उपयोग और बिक्री महिलाओं द्वारा ही की जाती है.
  • MFP क्षेत्र में देश में वार्षिक रूप से लगभग 10 मिलियन कार्य दिवस के सृजन की क्षमता है.
  • अनुसूचित जनजाति एवं परम्परागत निवासी (वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम), 2006, लघु वन उपज (MFP) को पादपों से उत्पन्न होने वाले सभी गैर-लकड़ी वन उत्पादों के रूप में परिभाषित करता है. इसके अंतर्गत बाँस, ब्रशवुड, स्टम्प, केन, ट्यूसर, कोकून, शहद, मोम, लाख, तेंदु/केंडू पत्तियाँ, औषधीय पौधे, जड़ी-बूटी, जड़ें, कंद इत्यादि सम्मिलित हैं.
  • सरकार ने पहले भी आदिवासी जनसंख्या की आय की सुरक्षा हेतु लघु वन उपज (MFP) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price – MSP)” नामक योजना आरम्भ की थी.”

मेरी राय – मेंस के लिए

 

मेरी राय – मेंस के लिए

  • सरकार की इस पहल से जनजातीय संग्रहकर्ताओं की आजीविका पर व्यापक असर पड़ेगा.
  • एमएसपी में इस वृद्धि से कम से कम 20 राज्यों में गौण जनजातीय उपज की खरीद को तेजी मिल पाएगी.
  • कोरोना संक्रमण के कारण देश में अभूतपूर्व चुनौती पैदा हुई है. कई क्षेत्रों में लघु वन उत्‍पादों या काष्‍ठेतर वन उत्‍पादों के संग्रहण का यही उपयुक्‍त समय है. इसे देखते हुए, इनकी खरीदारी को बढ़ावा देना ज़रूरी है क्‍योंकि यह जनजातीय लोगों की अर्थव्‍यवस्‍था और आजीविका से जुड़ा मुद्दा है.
  • जनजातीय आजीविका और उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री वन-धन योजना राज्‍य में लोकप्रिय हो रही है.
  • वन क्षेत्र के आसपास रहने वाले लगभग 10 करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं. यह डाटा राष्ट्रीय वन अधिकार अधिनियम समिति द्वारा एकत्र किया गया था. इसलिए, यह आवश्यक है कि लघु वनोपजों का नियमन किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि आदिवासी इसका अधिकतम लाभ उठाएँ.
  • 27 राज्‍यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में 1,205 वन -धन विकास केंद्रों को स्वीकृति दी गई है, जिनसे तीन लाख साठ हजार जनजातीय संग्राहकों के उद्यमी बनने का मार्ग प्रशस्‍त होगा.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

न्यूनतम समर्थन मूल्य वह न्यूनतम मूल्य होता है, जिस पर सरकार किसानों द्वारा बेचे जाने वाले अनाज की पूरी मात्रा क्रय करने के लिये तैयार रहती है. जब बाज़ार में कृषि उत्पादों का मूल्य गिर रहा हो, तब सरकार किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों को क्रय कर उनके हितों की रक्षा करती है.


GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Issues of Buffer Stocks and Food Security; Technology Missions

Topic : Locust control

संदर्भ

पाकिस्तान की सीमा से लगे राजस्थान के कुछ क्षेत्र हर वर्ष टिड्डियों के हमले का ख़ामियाज़ा उठाते हैं परन्तु गत तीन दशकों में ऐसा प्रथम बार हुआ है जब टिड्डियों का हमला इतना व्यापक है और टिड्डियों के ये दल उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तक में प्रवेश कर चुके हैं.

पिछले कुछ सप्ताहों से पश्चिम और दक्षिण एशिया तथा पूर्व अफ्रीका के कई देशों में टिड्डियों का आक्रमण (locust attacks) देखा जा रहा है.

इनसे कौन-से देश प्रभावित हो रहे हैं?

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने टिड्डियों के प्रकोप के तीन हॉटस्पॉट का पता लगाया है जहाँ परिस्थिति अत्यंत ही खतरनाक बताई जा रही है, ये हैं – हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका, लाल सागर क्षेत्र और दक्षिण-पश्चिम एशिया.

इन हॉटस्पॉट में स्थिति अभी क्या है?

  1. इन तीनों में हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका को दुष्प्रभावित क्षेत्र बताया जा रहा है जहाँ FAO के अनुसार, खाद्य सुरक्षा और रोजगार पर अभूतपूर्व खतरा मंडरा रहा है.
  2. यूथोपिया और सोमालिया से निकलर ये टिड्डी दल दक्षिण में केन्या और अफ्रीका 14 अन्य देशों तक चले गये हैं.
  3. लाल सागर क्षेत्र में इन टिड्डियों का प्रकोप सऊदी अरब, ओमान और यमन में देखा जा सकता है.
  4. दक्षिण-पश्चिम एशिया में इनसे ईरान, पाकिस्तान और भारत में क्षति की सूचना मिल रही है.
  5. पाकिस्तान और सोमालिया ने पिछले दिनों टिड्डियों के प्रकोप को देखते हुए आपातकाल घोषित कर दिया है.

टिड्डी क्या होते हैं?

टिड्डी छोटे श्रृंगों वाले ग्रासहोपर होते हैं जो उत्पाती भीड़ बनाकर लम्बी दूरी तक (1 दिन में 50 किलोमीटर तक) चले जाते हैं और इसी बीच उनकी संख्या तेजी से बढ़ती जाती है.

भारत में चार प्रकार के टिड्डे पाए जाते हैं –

  1. मरुभूमि टिड्डा (Schistocerca gregaria)
  2. प्रव्राजक टिड्डा (Locusta migratoria)
  3. बम्बई टिड्डा (Nomadacris succincta)
  4. पेड़ वाला टिड्डा (Anacridium)

टिड्डे कैसे क्षति पहुँचाते हैं?

ये हजारों के झुण्ड में आते हैं और पत्ते, फूल, फल, बीज, छाल और फुनगियाँ सभी खा जाते हैं और ये इतनी संख्या में पेड़ों पर बैठते हैं कि उनके भार से ही पेड़ नष्ट हो जाते हैं.

भारत और विश्व-भर में सबसे विध्वंसकारी कीट मरुभूमि टिड्डा होता है. इसका एक वर्ग किलोमीटर तक फैला छोटा झुण्ड एक दिन में उतना ही अनाज खा जाता है जितना 35,000 लोग खाते हैं.

टिड्डी नियंत्रण के उपाय

  • टिड्डियों को नष्ट करने के लिए मुख्य रूप से वाहनों के माध्यम से ओर्गेनोफोस्फेट (organophosphate) रसायन का छिड़काव किया जाता है. यह छिड़काव हाथ से चलने वाले स्प्रेयर से भी किया जाता है और कभी-कभी हेलीकॉप्टर से भी.
  • कभी-कभी कुछ ऐसे जीव और परजीवी भी हैं जो इन टिड्डियों को खाते हैं और वे उनका खात्मा नहीं कर पाते हैं क्योंकि टिड्डी दल एक स्थान से दूसरे स्थान तक तेजी से चले जाते हैं.
  • टिड्डियों का कम आक्रमण होने पर यांत्रिक विधि से टिड्डियों का नियंत्रण किया जा सकता है. इसमे खाइयां खोद कर या शाखाओं के साथ हॉपरों को गिरा कर या पीट कर नियंत्रित कर सकते है, लेकिन यह बहुत अधिक श्रम का काम है.
  • जहर युक्त चारे द्वारा: टिड्डियों के नियंत्रण के लिए इस विधि का परयोग 1950 के दशक में बहुत होता है. इस विधि में गेहूँ के भूसे या मक्के के दानों में कीटनाशकों की धूल मिलाकर टिड्डियों के आक्रमण वाली जगह या उनके रास्तों में डाल दिया जाता है.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

  • इस साल भारत में टिड्डी दल का पहला हमला राजस्थान के गंगानगर में 11 अप्रैल को हुआ था. ये टिड्डियां पाकिस्तान से भारत में दाख़िल हुईं थीं. टिड्डे की एक प्रजाति रेगिस्तानी टिड्डा सामान्यत: सूनसान इलाक़ों में पाई जाती है. ये एक अंडे से पैदा होकर पंखों वाले टिड्डे में तब्दील होता है. लेकिन कभी-कभी रेगिस्तानी टिड्डा ख़तरनाक रूप ले लेता है. जब हरे-भरे घास के मैदानों पर कई सारे रेगिस्तानी टिड्डे इकट्ठे होते हैं तो ये निर्जन स्थानों में रहने वाले सामान्य कीट-पतंगों की तरह व्यवहार नहीं करते हैं.
  • टिड्डी नियंत्रण (Locust Control) के लिए सरकारी स्तर पर कीटनाशक छिड़काव (Pesticides Spray) के साथ अब किसानों को अपने खेतों को टिड्‌डी दलों के हमलों से बचाने के लिए अनुदान (Subsidy On Pesticides) देना चाहिए.
  • ऐसा प्रावधान किया जाना चाहिए जिससे किकिसान किसी भी लाइसेंस धारक ग्राम सेवा सहकारी समिति, क्रय-विक्रय सहकारी समिति, लैम्प्स, कीटनाशी निर्माता, पंजीकृत विक्रेता से रसायन संपूर्ण कीमत अदा कर खरीद सके.
  • कृषि विभाग की ओर से अनुदान राशि का कृषक के खाते में ऑनलाइन भुगतान किया जाना चाहिए ताकि उन्हें दस्तावेजों को जमा करने के लिए अनावश्यक लम्बी कतार में खड़ा न होना पड़े.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

  • इफको ऐप – टिड्डियों के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए इफको किसान के विशेषज्ञों की सलाह दी जाती है. इफको किसान ऐप के माध्यम से भी फसल सुरक्षा के उपाय बताए जाते हैं.
  • वयस्क टिड्डे सबसे अधिक हानिकारक और लंबी दूरी की यात्रा करने सक्षम होते हैं.


GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Disaster and disaster management.

Topic : Disaster Management Act

संदर्भ

भारत में कोरोना महामारी के प्रकोप को रोकने हेतु देश में लॉकडाउन लगाया गया है. इस दौरान केंद्र सरकार ने अनेक आदेश और दिशानिर्देश निर्गत किए हैं. ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 68 दिनों के अबतक के लॉकडाउन में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रति दिन औसतन 1.3 आदेश निर्गत किए हैं. हाल ही में, एमएचए द्वारा राज्यों को लॉकडाउन से संबंधित 94 आदेश, दिशानिर्देश और पत्र निर्गत किए गए हैं.

ये सभी आदेश आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत निर्गत किए गए हैं. 2004 में सुनामी के बाद इस कानून का मसौदा तैयार किया गया था और 16 साल में यह प्रथम बार लागू हुआ है.

कोरोना महामारी को लेकर आपदा प्रबंधन अधिनियम की प्रासंगिकता

कोरोना महामारी देश की ऐसी पहली जैविक महामारी है जिसे पहली बार देश की कानूनी संस्थाएँ एवं संवैधानिक संस्थाएँ मिल कर नियंत्रण में लाने का प्रयास कर रही हैं.

संविधान में केंद्र और राज्य संबंध को लेकर तीन तरह की सूचियां हैं: संघ सूचीराज्य सूची और समवर्ती सूची.

सामाजिक सुरक्षा से संबंधित मामले राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में और विषय समवर्ती सूची में सूचीबद्ध हैं.

समवर्ती सूची की मद संख्या :-

  • मद सं. 23: सामाजिक सुरक्षा और बीमा, रोज़गार और बेरोज़गारी.
  • मद सं. 29 :मानव, जीव जंतुओं व पौधों को को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों का निवारण विषय वर्णित है.

इसके अतिरिक्त संविधान के अनुच्छेद 14,15 एवं 21 तथा अनुच्छेद 39  को एक साथ पढ़ने से यह निष्कर्ष निकलता है कि “लोक स्वास्थ्य” की संपूर्ण जिम्मेदारी प्रशासन पर है जिसमें केंद्र और प्रांतों की समान जवाबदेही है.

आपदा प्रबन्धन अधिनियम, 2005

  • भारत सरकार ने 23 दिसम्बर, 2005 को आपदा प्रबन्धन अधिनियम (Disaster Management Act) पारित किया था.
  • बाद में इस अधिनियम के अनुसार राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (NDMA) तथा राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (SDMAs) गठित किये गये जिनके अध्यक्ष क्रमशः प्रधानमन्त्री और सम्बंधित राज्य के मुख्यमंत्री होते हैं. इसका प्रशासनिक नियंत्रण भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन होता है.

चुनौतियाँ

ज्ञातव्य है कि किसी भी आपदा से लड़ने के लिए और उससे होने वाले जोखिमों तथा जन-धन की हानि को कम करने के लिए समय पर उसका पूर्वानुमान करना एक महत्त्वपूर्ण कार्य होता है. समय पर चेतावनी मिल जाने से कई ऐसे काम किये जा सकते हैं जो देश के हित में हों.

समय पर चेतवानी के उपाय

  • समय पर चेतावनी की प्रणाली में उन समुदायों को शामिल करना चाहिए जो आपदा से प्रभावित होने वाले हैं.
  • जनता-जनार्दन में जागरूकता उत्पन्न करना.
  • चेतावनी का प्रसार कारगर ढंग से करना.
  • यह सुनिश्चित किया जाए कि आपदा के प्रति निरंतर चौकस तैयारी रहे.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

  • 21वीं शताब्दी के पूर्व के दशक में भारत को कई भीषण आपदाओं को झेलना पड़ा. इनमें 2001 का भुज का भूकम्प, 2004 की हिन्द महासागर की सुनामी, 2005 में कश्मीर का भूकम्प, 2008 में कोसी की बाढ़, 2009 में आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक में आई बाढ़, 2010 में लेह में बादल फटने और उत्तराखण्ड की बाढ़ तथा 2011 का सिक्किम का भूकम्प प्रमुख हैं.
  • भारत की विशाल जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग आपदाओं का शिकार बनता रहता है. भारत के पूर्वी हिस्से में भौगोलिक नदी और तटवर्ती क्षेत्रों की स्थलाकृतिक विशेषताओं के कारण बाढ़ और चक्रवात का जोखिम बना रहता है.
  • भारत में हर वर्ष करीब 20 करोड़ लोगों को बाढ़ का सामना करना पड़ता है. भूगर्भीय, जल-मौसम विज्ञानी और मानव-जनित एवं प्रौद्योगिकीय आपदाओं की सम्भावना वाले क्षेत्रों में करोड़ों भारतीयों के प्रभावित होने की आशंका को देखते हुए यह स्वाभाविक हो जाता है कि आपदाओं के शमन, निवारण और उनसे निपटने की तैयारियों को सुदृढ़ बनाने के लिए मिशन की भाँति एक अभियान चलाया जाना चाहिए.
  • आपदाओं के विनाशकारी प्रभावों से खतरे में आए लोगों की समस्याओं और कठिनाइयों को दूर करने के लिए प्रशासन का चुस्त-दुरुस्त और संवेदनशील होना आवश्यक है और इसमें कोई ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए. इस कार्य से जुड़े सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को पूरी पारदर्शिता के साथ अपना उत्तरदायित्व निभाना होगा. उन्हें ‘सब चलता है’ की मनोवृत्ति त्याग कर पूरे दायित्व के साथ नयी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए अपने आचरण में आमूल परिवर्तन लाना होगा. अकस्मात् आई आपदा की स्थिति में छिन्न-भिन्न हुई सेवाओं की बहाली, आपदाग्रस्त लोगों को कुशलतापूर्वक सेवाएँ प्रदान करने और राहत सामग्री के सुचारू रूप से वितरण की पारदर्शी व्यवस्था होनी होगी.
  • महामारी जैसी आपातकालीन स्थितियों में कानूनी ढांचे की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि वह सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र, नागरिकों के कर्तव्य व अधिकारों की परिधि में सरकारी प्रक्रिया के दायरे को संवर्धित व व्यवस्थित करते हैं. इस दिशा में केंद्र सरकार द्वारा मॉडल पब्लिक हेल्थ एक्ट 1987 को विकसित करने का प्रयास किया गया था पर राज्यों की असहमति के चलते वह मूर्त रूप नहीं ले सका. इसके अतिरिक्त “द नेशनल हेल्थ बिल 2009″ का भी उल्लेख किया जा सकता है जिसे बाद की सरकारों द्वारा भुला दिया गया. यही उपयुक्त समय है, जब सरकारों द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर संजीदगी दिखाई जाए और पूरी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ लोक स्वास्थ्य पर, समयानुकूल एक मुकम्मल, प्रभावी कानूनी तंत्र विकसित किया जाए जिससे कि भारत आपदा से आने से पहले ही पूरी तरह से तैयार हो.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

NDRF

  • इसका गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ के तहत हुआ था. सन् 1980 से लेकर 2005 तक अलग-अलग समय पर (1) जम्मू-कश्मीर का भूकंप और उसकी वजह से हुआ हिमस्खलन(2) उत्तराखंड, गुजरात और महाराष्ट्र में आए भूकंप(3) असम, बिहार और महाराष्ट्र की बाढ़(4) पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में आए चक्रवात, (5) भोपाल गैस त्रासदी तथा (6) आंध्रप्रदेश, केरल, तमिलनाडु और अंडमान-निकोबार की सुनामी की वजह से बहुत अधिक संख्या में जानमाल की हानि हुई, इसके अलावा पीड़ित व्यक्तियों को अपनी संपत्ति, पशुधन और खाने-पीने के अभावों का सामना करना पड़ा. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 बनाया और 2006 में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का गठन हुआ.
  • यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है.
  • इसका मुख्यालय अंत्योदय भवन, नई दिल्ली में है.

राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) 

  • SDRF हर राज्य में गठित हुआ है. इसका गठन 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के अनुसार हुआ है. ज्ञातव्य है कि इसके गठन के लिए 13वें वित्त आयोग ने अनुशंसा की थी.

Prelims Vishesh

Financial Stability and Development Council (FSDC) :-

  • वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद् का गठन दिसम्बर, 2010 में हुआ था.
  • इसका उद्देश्य है – वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के तन्त्र को सुदृढ़ करना एवं उसे संस्थागत बनाना.
  • विभिन्न नियामक संस्थाओं के बीच समन्वय को बढ़ावा देना तथा वित्तीय प्रक्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करना.
  • इस परिषद् के अध्यक्ष केन्द्रीय वित्त मंत्री होते हैं.

Charru mussel :-

  • मूल रूप से दक्षिण और मध्य अमेरिकी तटों पर पाए जाने वाले आक्रमणशील ‘चारु मुसेल’ (Charru Mussel) का केरल में बहुत तेज़ी से प्रसार हो रहा है, जो एक चिंता का विषय बना हुआ है.
  • विदित हो कि इस प्रजाति के पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव के साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं लेकिन फ्लोरिडा में इसके द्वारा विद्युत ऊर्जा संयंत्र प्रणाली को प्रभावित कर आर्थिक क्षति पहुँचाने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं.
  • चारु मुसेल छोटे और पतले कवच का होता है जिसकी कवच की सतह पर पसलियाँ नहीं होती हैं.
  • यह अत्यधिक खारे जल में रह सकते हैं परंतु कम तापमान में इनकी सहनशीलता सीमित होती है.

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