न्यायालयों में हिन्दी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाना कितना उचित?

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हरियाणा के न्यायालयों में हिन्दी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाने हेतु हरियाणा सरकार के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है. न्यायालय में यह याचिका पाँच वकीलों ने मिलकर दायर की है.

याचिका में क्या कहा गया है?

  • याचिका में हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम’ 2020 में किए गए संशोधन का विरोध किया गया है.
  • याचिका में कहा गया है कि अंग्रेजी भाषा हमारे देश में सर्वत्र बोली जाती है. अंग्रेजी भाषा को अधीनस्थ कोर्ट से हटाने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
  • याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हरियाणा सरकार के इस निर्णय के द्वारा संविधान की धारा 14, 19 और 21 का उल्लंघन किया गया है. इससे हिन्दी और गैर-हिन्दी भाषी वकीलों के बीच एक खाई उत्पन्न करने का प्रयास किया गया है.
  • याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन हरियाणा राज्य के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है. हरियाणा सरकार औद्योगिक हब है और यहाँ अनेक मल्टीनेशनल कंपनियों के कार्यालय हैं.
  • इस राज्य में कई दूसरे राज्यों के लोग और समाज के सभी वर्गों के लोग रहते हैं.
  • याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन यह समझकर किया गया है कि हरियाणा में सभी वकील न केवल हिन्दी जानते हैं बल्कि वे हिन्दी का बेधड़क प्रयोग कर सकते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि यह संशोधन वकीलों के लिए पर्याप्त समस्या लेकर आया है.

इस विषय में संविधान क्या कहता है?

  • संविधान के अनुच्छेद 348 के खंड (1) के उपखंड(क) के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होंगी.
  • इसी अनुच्छेद के खंड (2) के अंतर्गत किसी राज्य का राज्यपाल उस राज्य के उच्च न्यायालय में हिंदी भाषा या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के पश्चात् प्राधिकृत कर सकेगा.
  • राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 7 के अनुसार, किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकता है. अंग्रेजी भाषा से परे ऐसी किसी भाषा में दिये गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश का अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद जारी किया जाएगा.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

14 फरवरी,1950 को राजस्थान के उच्च न्यायालय में हिंदी का प्रयोग प्राधिकृत किया गया. तत्पश्चात् 1970 में उत्तर प्रदेश,1971 में मध्य प्रदेश और 1972 में बिहार के उच्च न्यायालयों में हिंदी का प्रयोग प्राधिकृत किया गया. अतः इन चार उच्च न्यायालयों को छोड़कर देश के शेष बीस उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियों में अंग्रेजी अनिवार्य है.

इस अनुच्छेद की आलोचना करना एक अच्छे आँख वाले को पावर वाला चश्मा पहनाने जैसा है. किसी भी नागरिक का यह अधिकार है कि अपने मुकदमे के बारे में वह न्यायालय में बोल सके, चाहे वह वकील रखे या न रखे. परन्तु अनुच्छेद 348 की इस व्यवस्था के तहत देश के चार उच्च न्यायालयों को छोड़कर शेष बीस उच्च न्यायालयों एवम् सर्वोच्च न्यायालय में यह अधिकार देश के उन 97% जनता से घुमा-फिर कर छीन लिया गया है जो अंग्रेजी बोलने में सक्षम नहीं हैं.

अगर चार उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषा में न्याय पाने का हक है तो देश के शेष बीस उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में निवास करने वाली जनता को यह अधिकार क्यों नहीं? क्या यह उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं है? क्या यह अनुच्छेद 14 द्वारा प्रदत्त ‘विधि के समक्ष समता’ और अनुच्छेद 15 द्वारा प्रदत्त ‘जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध’ के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है?

प्रीलिम्स बूस्टर

 

  • संविधान की धारा 14 – भारत के संविधान में यह कहा गया है कि राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा.
  • संविधान की धारा 19 – यह अभिव्यक्ति की आजादी से सम्बंधित है.
  • संविधान की धारा 21 – प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का सरंक्षण: किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रकिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.
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