आपका History Revision में स्वागत है. इस लेख के नीचे Revision Series का लिंक दिया है, आप वहाँ जाकर सारे आर्टिकल्स पढ़ सकते हैं. बाबर द्वारा नवनिर्मित मुग़ल साम्राज्य अस्थिर और संकटपूर्ण था. सैनिक शक्ति के बल पर नए साम्राज्य की आधारशिला राखी गई थी. मुग़ल साम्राज्य की जड़ कमजोर थी. विरासत के रूप में हुमायूँ को जो साम्राज्य प्राप्त हुआ जिसकी रक्षा वह नहीं कर पाया और पूरे 15 वर्षों तक शरणार्थी का जीवन व्यतीत करने के बाद वह पुनः भारतीय साम्राज्य पाने में सफल हो गया. बाबर की तरह हुमायूँ के जीवन में भी अनेक उतार-चढ़ाव आये और उसका जीवन कम रोमाच्कारी नहीं था. हुमायूँ के जीवन की घटनाओं को चार भागों में बाँटा जा सकता है –
- प्रारम्भिक जीवन से राज्यारोहण तक (1508-1530 ई.)
- उत्तराधिकार की रक्षा के लिए संघर्ष (1530-1540 ई.)
- शरणार्थी जीवन (1540-1555 ई.)
- पुनर्स्थापन एवं मृत्यु (1955-1956 ई.)
प्रारम्भिक जीवन एवं राज्यारोहण
नासिरउद्दीन मुहम्मद हुमायूँ बाबर का ज्येष्ठ पुत्र था. उसका जन्म मार्च, 1508 ई. में काबुल के किले में हुआ था. हुमायूँ की माता का नाम माहम बेगम था. माहम बेगम हिरात के हुसैन बैकरा की पुत्री थी. बाबर ने 1506 ई. में माहम बेगम से शादी की थी. वह माहम बेगम को सबसे अधिक मानता था. बाबर को तीन और पुत्र थे जिसमें कामरान और असकरी का जन्म गुलरुख बेगम तथा हिंदाल जा जन्म दिलदार अगाची के कोख से हुआ था. प्रारम्भ में बाबर का जीवन स्वयं संकटपूर्ण था. अतः बाल्यकाल में वह हुमायूँ की शिक्षा का प्रबंध ठीक से नहीं कर पाया. किन्तु काबुल लौटने के बाद बाबर ने हुमायूँ की शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध किया. दो अध्यापकों की नियुक्ति बाबर ने की थी. वे थे मौलाना मसीह-अल-दीन रूहुल्ला और मौलाना इलियास. दोनों सुयोग्य प्राध्यापक के संरक्षण में हुमायूँ थोड़े ही दिनों में तुर्की, अरबी और फारसी भाषा का अच्छा ज्ञाता बन गया. साहित्य, गणित, ज्योतिष, दर्शन, खगोल विद्या एवं चित्रकला के प्रति हुमायूँ की अभिरुचि अधिक थी. भारत पर हुमायूँ ने हिंदी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था.
व्यावहारिक जीवन
- मात्र बौद्धिक विकास से बाबर संन्तुष्ट नहीं था. वह हुमायूँ को व्यावहारिक जीवन में भी प्रशिक्षित करना चाहता था. यही कारण था कि मात्र 21 वर्ष की आयु में ही उसे बदख्शां का सूबेदार नियुक्ति किया गया.
- बाबर के भारतीय अभियान में हुमायूँ ने बदख्शां से एक सैनिक टुकड़ी लेकर साहयता की.
- पानीपत और खानवा के मैदान में उसने बाबर के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर युद्ध किया था.
- हुमायूँ की सैनिक क्षमता को ध्यान में रखकर बाबर ने उसे पुनः बदख्शां का गवर्नर नियुक्त किया. बदख्शां ने हुमायूँ 1527 ई. से 1529 ई. तक रहा. इस बीज उजवेगों को दबाने में हुमायूँ असफल रहा.
- अतः बाबर ने अपने गिरते हुए स्वास्थ्य को देखकर उसे आगरा बुला लिया.
- आगरा में कुछ दिन रहने के बाद हुमायूँ को संभल का जागीरदार नियुक्त किया गया. संभल में हुमायूँ बीमार पड़ा. बीमारी की अवस्था में ही उसे आगरा लाया गया. बीमारी दूर होने जाने के बाद बाबर ने अपनी मृत्यु के निकट को देखते हुए सभी सरदारों की एक बैठक बुलाई और उसमें हुमायूँ को अपना उत्तराधिकार घोषित किया.
हुमायूँ की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ
नया मुग़ल साम्राज्य ज्वालामुखी के कगार पर खड़ा था. आंतरिक विद्रोह, साम्राज्य की अस्त-व्यस्तता, सगे-सम्बन्धियों की लोलुपता और सैनिकों के बीच असंतोष की स्थिति के कारण हुमायूँ के लिए दिल्ली की गद्दी फूलों की सेज के बदले काँटों का ताज साबित हुआ. विषम परिस्थिति को नियंत्रित करने के लिए कुशल, कूटनीतिज्ञ, योग्य सेनानायक और प्रतिभा के धनी शासक की अवाश्यकता थी. किन्तु दुर्भाग्यवश हुमायूँ की व्यक्तिगत खामियों के फलस्वरूप मुग़ल साम्राज्य की हालत बद-से-बदटार हो गई.
उत्तराधिकार की रक्षा के लिए संघर्ष
बहुमुखी विरोध के बावजूद हुमायूँ राज्यारोहण के बाद मुग़ल साम्राज्य की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए सक्रिय था. प्रारम्भिक अवस्था में भाग्य ने हुमायूँ का साथ दिया. वह मुग़ल साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था. अतः सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण ठिकानों पर उसने अधिकार कायम करने के लिए आक्रमण की नीति अपनाई.
कालिंजर पर आक्रमण
कालिंजर बुन्देलखंड में था. सैनिक रिष्टि से कालिंजर एक महत्त्वपूर्ण दुर्ग था. कालिंजर का शासक प्रतापरूद्र कालपी पर अधिकार करना चाहता था. राज्यारोहण के पाँच या छ: महीने के बाद हुमायूँ ने कालिंजर पर 1531 ई. में आक्रमण किया. कालिंजर के दुर्ग पर मुग़ल सेना का घेरा कई महीने तक रहा. इस बीच महमूद लोदी ने जौनपुर और उसके निकटवर्ती क्षेत्र पर अधिकार कर लिया. ऐसी स्थिति में हुमायूँ ने कालिंजर के शासक के साथ समझौता कर लिया. कालिंजर के राजा प्रतापरूद्र ने हुमायूँ की अधीनता स्वीकार कर ली. हुमायूँ को उपहार के रूप में बारह मन सोना प्राप्त हुआ. कालिंजर का राज्य नष्ट नहीं हुआ. प्रतापरूद्र हुमायूँ का शत्रु बन गया और वह विरोधी अफगानों को सहायता देने लगा. इस प्रकार कालिंजर अभियान हुमायूँ की भूल थी.
महमूद लोदी के विरुद्ध संघर्ष
महमूद लोदी ने अफगानों को संगठित कर जौनपुर और आसपास के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया. हुमायूँ ने महमूद लोदी को दबाने के उदेश्य से कालिंजर का घेरा उठा लिया और आगरा लौटकर एक विशाल सेना के साथ जौनपुर ओअर अधिकार कर लिए. इस घटना के बाद महमूद लोदी मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध आक्रमण करने का साहस नहीं जुटा पाया.
कामरान का विद्रोह
हुमायूँ को अफगानों एवं मिर्जाओं के साथ उलझा हुआ देखकर कामरान ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने का निश्चय कर लिया. उसने अफगानिस्तान का प्रबंध असकरी को सौंपकर पंजाब, मुल्तान और लाहौर पर अधिकार कर लिया. हुमायूँ को विवशता में पंजाब, मुल्तान और लाहौर पर कामरान के अधिकार को मान्यता देनी पड़ी.
चुनार का घेरा
चुनार का दुर्ग शेर खां के अधिकार में था. शेर खां कुशल कूटनीतिज्ञ था. वह मुगलों के साथ प्रत्यक्ष युद्ध कर अपनी सैन्य शक्ति को नष्ट करना नहीं चाहता था. इसलिए उसने हुमायूँ के साथ समझौता कर लिया. हुमायूँ भी गुजरात के शासक बहादुरशाह को दबाना चाहता था. अतः संधि के लिए जब शेर खां के द्वारा पहल की गई तो हुमायूँ ने उसे स्वीकार कर लिया. चुनार का दुर्ग शेर खां को सौंप दी गई. शेर खां ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली और 500 अफगान सैनिकों ले साथ अपने पुत्र क़ुतब खां को हुमायूँ की सेवा में भेज दिया. हुमायूँ शेर खां की चाल समझ नहीं पाया. शेर खां अपनी शक्ति बचाकर बंगाल-विजय करने में सफल हो गया. चुनार का दुर्ग शेर खां को सौंप कर हुमायूँ ने भूल की.
Revision Notes Here>>
भारत में मुगल सत्ता की स्थापना : बाबर के युद्ध
5 Comments on “हुमायूँ का प्रारंभिक जीवन और राज्यारोहण”
hUMAYU ke jeevan se related Gjb Notes hai, thanks
Sir please upload one post about pavanar Ashram please
Sir please Acharya Vinoba Bhave ka jeevan parichay Batayen
Thank you sir
Thank you sir!!