[Sansar Editorial] बैंकों की पूँजी बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा ₹41,000 करोड़ देने का प्रस्ताव

Sansar LochanSansar Editorial 2018

The Hindu Editorial : DECEMBER 21 (Original Article Link)

भारत सरकार ने बीमार चल रहे सरकारी बैंकों को चालू वित्त वर्ष में नई पूँजी के रूप में ₹41,000 करोड़ रुपयों के अनुपूरक अनुदान देने के लिए संसद में एक प्रस्ताव रखा है.

निहितार्थ

  • इस अतिरिक्त पूँजी से पाँच सरकारी बैंकों को PCA ढाँचे (PCA Framework) अर्थात् ससमय सुधारात्मक कार्रवाई ढाँचे से बाहर निकलने में सहायता मिलेगी.
  • ज्ञातव्य है कि सरकार ने वर्तमान वित्त वर्ष में बजट में पुन: पूँजीकरण (recapitalisation) बॉन्डों के द्वारा सरकारी क्षेत्र के बैंकों में ₹65,000 करोड़ डालने का प्रावधान किया था. इस राशि में से ₹42,000 करोड़ आवंटित करना रह गया है. इसके अतिरिक्त सरकार उन बैंकों को ₹41,000 करोड़ और देना चाहती है. यदि सरकार का यह प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो 31 मार्च, 2019 तक सरकारी बैंकों को कुल मिलाकर ₹83,000 करोड़ मिलेंगे.
  • इतनी राशि उपलब्ध कराने का उद्देश्य है कि जो बैंक PCA ढाँचे के अन्दर अच्छा काम कर रहे हैं वे अपने नियामक पूँजी मानदंडों को पूरा कर सकें और जो बैंक PCA के बाहर हैं वे PCA की दहलीज को पार न करें.

pca framework

बैंकों के पुन: पूँजीकरण से सम्बंधित चिंताएँ

  • सरकार बैंकों की मुख्य स्वामी होती है. अतः वह पुनः पूँजीकरण के लिए स्वतंत्र है. किन्तु प्रश्न यह है कि यह पूँजीकरण किस कीमत पर होगा, कब तक चलेगा और क्या मात्र पुनः पूँजीकरण से ही काम चल जाएगा?
  • बजट घाटे के कठोर मानदंडों का पालन करने को बाध्य होने के कारण सरकार को बैंकों का पुनः पूंजीकरण करने में समस्या होती है. यह समस्या बढ़ती ही जाती है.
  • सरकार द्वारा पूँजी देने से बैंककर्मी ऋण वसूली के मामले में ढीले पड़ जाते हैं.
  • पुनः पूँजीकरण से यह होता है कि घाटे पर चलने वाले बैंकों के कर्मी उत्साह से काम नहीं करते हैं. दूसरी ओर, जो बैंक लाभ कमा रहे हैं पर जिन्हें पूँजी नहीं मिल रही है, उनके कर्मियों में अच्छा काम करने का उत्साह समाप्त हो जाता है.
  • पुनः पूँजीकरण मूलभूत रूप से एक प्रकार की सब्सिडी है जो लाभ में चलने वाले बैंक घाटे पर चलने वाले बैंकों को देंगे. इस प्रकार अंततोगत्वा कुशलता ही दुष्प्रभावित होती है.

त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सरकारी बैंकों पर सितम्बर 2016 में पहली बार इसलिए लागू किया गया कि उनके NPA असहनीय हो गये थे. PCA के अन्दर आने वाले बैंकों पर यह प्रभाव पड़ा कि निगम ऋणों (coorporate loans) और असुरक्षित व्यक्तिगत ऋणों के मामले में ये बैंक निजी क्षेत्र के बैंकों से पिछड़ गये. इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए अब इन बैंकों को कड़ी मुशक्कत करनी पड़ेगी.

PCA ढाँचा (PCA Framework) कमजोर बैंकों पर कई प्रतिबंध लगा देता है. इस फ्रेमवर्क के दायरे में आने के बाद —->

  • ये बैंक शाखा विस्तार नहीं कर सकते.
  • RBI इनको लाभांश भुगतान (dividend payment) करने से रोक सकता है.
  • इन बैंकों द्वारा लोन देने पर भी RBI के द्वारा कई शर्तें लगाई जा सकती हैं.
  • RBI इन बैंकों के एकीकरण, पुनर्गठन और बंद करने की कार्रवाई कर सकता है.
  • RBI इन बैंकों के प्रबंधन के मुआवजे और निदेशकों के फीस पर प्रतिबंध लगा सकता है.

त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई फ्रेमवर्क (PCA Framework) के उपबंध 1 अप्रैल, 2017 को लागू किये गये थे. लागू होने के तीन वर्ष बाद इस फ्रेमवर्क की समीक्षा होनी है.

PCA Framework क्या है?

PCA का फुल फॉर्म है – Prompt Corrective Action. बैंकों के 2017-18 के वित्तीय नतीजे आने के बाद इन बैंकों की परिसंपत्तियों के पुनर्गठन के लिए सरकार ने एक समिति का गठन किया था. इसके अलावा बढ़ते घाटे और डूबते कर्ज की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र के 21 में से 11 बैंक PCA के दायरे में है. ये बैंक हैं – इलाहाबाद बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, कॉर्पोरेशन बैंक, आईडीबीआई बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, देना बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र. ये बैंक क्रेडिट बाजार के 20 प्रतिशत पर नियंत्रण करते हैं.

PCA कब लागू की जाती है?

किसी भी बैंक पर त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई की व्यवस्था तब लागू की जाती है जब उसका डूबा हुआ कुल ऋण 12% से अधिक हो जाता है और उसके चार लगातार वर्षों की परिसंपत्तियों (assets) पर नकारात्मक प्रतिलाभ (return) मिलने लगता है.

निष्कर्ष

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर यह खतरा मंडरा रहा है कि वे न केवल अपना बाजार शेयर अपितु अपनी पहचान भी खो देंगे. इसके लिए आवश्यक है कि सरकार अत्यंत सटीकता एवं मुस्तैदी से हस्तक्षेप करे. अतः नीति निर्माताओं और बैंकरों को चाहिए कि वे मिल-जुल कर एक ऐसा कारगर विकल्प खोजें जिससे समस्या का समाधान हो और उसकी उपेक्षा न हो.

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