आज हम बक्सर के युद्ध (Battle of Buxar) के बारे में चर्चा करेंगे. मैं आज ही अपना पोस्ट देख रहा था तो मैंने पाया कि मैंने मध्यकालीन इतिहास के कई छोटे-छोटे युद्ध के विषय में लिख डाला है पर बक्सर का युद्ध भूल ही गया. इसलिए आज आपके सामने बक्सर के युद्ध के बारे में लिखने का फैसला किया है. यह युद्ध क्यों हुआ, क्या कारण (causes) थे, किसके-किसके बीच हुआ और इसके क्या परिणाम (results) सामने आये, ये सब की चर्चा करूँगा.
भूमिका और कारण
1757 के प्लासी युद्ध में मीरकासिम (Mir Qasim) की हार हुई और अंग्रेज़ों ने उसके स्थान पर मीरजाफर को बिठा दिया. मीरजाफर से अंग्रेज़ पैसा और सुविधाएँ इच्छानुसार प्राप्त करने लगे. उधर मीरकासिम पुनः बंगाल के बागडोर अपने हाथ में लेना चाहता था. इसने अवध के नवाब शुजाउद्दौला (Shuja-ud-Daula), जो कि मुग़ल शासक शाहआलम का प्रधानमंत्री भी था, को अंग्रेजों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए तैयार किया. इसके लिए शुजाउद्दौला ने शाहआलम की ओर से एक धमकी भरी चिट्ठी अंग्रेजों को भेजी. इस चिट्ठी में आरोप लगाया गया था कि अंग्रेज़ उनको दी गई सुविधाओं का अतिक्रमण कर रहे हैं और बंगाल का आर्थिक दोहन कर रहे हैं. अंग्रेजों की ओर से इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. अंततः शुजाउद्दौला और मीरकासिम ने धैर्य खो दिया और अप्रैल 1764 में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी.
मीरकासिम, शुजाउद्दौला और शाहआलम
मीरकासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला और सम्राट शाहआलम (Shah Alam) से संधि कर बंगाल पर अधिकार के लिए पटना पहुँचा. सम्मिलित सेना के आगमन की सूचना पाकर अंग्रेजी सेना का प्रधान घबरा गया. शुजाउद्दौला के सैनिकों की संख्या 1,50,000 थी जिसमें 40,000 लड़ाई के योग्य थे. शेष संख्या भीड़ मात्र ही थी. सम्राट शाहआलम और मीरकासिम के पास अपनी कोई सेना नहीं थी. सेना के प्रधान ने बक्सर के बदले पटना लौटने का सन्देश अंग्रेज-सेना को दिया. फलतः पटना की घेराबंदी की गई. परन्तु शुजाउद्दौला की सेना में भी अनेक विश्वाघाती व्यक्ति थे. उदाहरण के लिए, सिताबराय का पुत्र महाराजा कल्याण सिंह अवध की सेना में एक ऊँचे पद पर था. सिताबराय अंग्रेजों का मित्र था और उसका मुंशी साधोराम शुजाउद्दौला की सैनिक गतिविधियों की जानकारी पाकर अंग्रेजों को भेजता था. पटने की की घेराबंदी कारगर नहीं हुई. बरसात का मौसम था. इसलिए पटना के बदले शुजाउद्दौला ने बक्सर में ही बरसात बिताने का निश्चय किया.
इस बीच अंग्रेजी सेना के प्रधान के बदले मेजर हेक्टर मुनरो (Hector Munro) को अंग्रेजों ने सेनापति नियुक्त कर पटना भेजा. मुनरो जुलाई, 1764 ई. में पटना पहुँचा. उसे भय था कि देर होने पर मराठों और अफगानों का सहयोग पाकर शुजाउद्दौला अंग्रेजों को पराजित कर सकता है. इसलिए मुनरो ने जल्द युद्ध का निर्णय लिया. मुनरो के आगमन के बाद कुछ भारतीय सैनिकों ने विद्रोह किया जिसे मुनरो ने शांत कर दिया और सभी विद्रोहियों को तोप से उड़ा दिया. मुनरो ने रोहतास के किलेदार साहूमल को प्रलोभन देकर अपने पक्ष में मिला लिया और रोहतास पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया.
बक्सर का युद्ध
मुनरो सोन नदी पार कर बक्सर पहुँचा. 23 अक्टूबर, 1764 ई. को अँगरेज़ और तथाकथित तीन शक्तियों की सम्मिलित सेना के बीच युद्ध प्रारम्भ हुआ. शुजाउद्दौला ने प्रतिदिन सैनिक खर्च के नाम पर मीरकासिम से 11 लाख रुपये की माँग की, परन्तु उतनी रकम पूरी नहीं करने पर वह मीरकासिम से असंतुष्ट हो गया. शुजाउद्दौला ने मीरकासिम की सारी संपत्ति छीन ली. वह खुद बिहार पर अधिकार चाहता था. दूसरी तरफ सम्राट शाहआलम के पास अपनी कोई सेना नहीं थी. वह स्वयं दिल्ली की गद्दी पाने के लिए सहायता का इच्छुक था और अंग्रेजों का आश्वासन पाकर युद्ध के प्रति उदासीन हो चुका था. ऐसी परिस्थिति में बक्सर का युद्ध (Battle of Buxar) प्रातः 9 बजे से आरम्भ हुआ और दोपहर 12 बजे के पहले ही समाप्त हो गया था. युद्ध में भयंकर गोलाबारी हुई. शुजाउद्दौला की सेना मात्र भीड़ के सामान थी. अंग्रेजी तोपों के सामने अवध की घुड़सवार फ़ौज कोई काम न आ सकी. विजय अंग्रेजों की हुई. दोनों पक्षों की ओर से काफी सेना हताहत हुई पर नवाब की सेना में मरनेवालों की संख्या काफी अधिक थी. शुजाउद्दौला को अपनी सेना पीछे हटा लेनी पड़ी.
शुजाउद्दौला और अंग्रेजों की संधि
बक्सर के युद्ध (Battle of Buxar) में मिली पराजय के बाद सम्राट शाहआलम ने अंग्रेजी सेना के साथ डेरा डाला. अंग्रेजों ने बादशाह का स्वागत किया और शुजाउद्दौला के दीवान राजा बेनीबहादुर के जरिये शुजाउद्दौला से संधि करनी चाही. पर शुजाउद्दौला ने संधि की बात अस्वीकार कर दी. इसलिए नवाब शुजाउद्दौला और अंग्रेजों के बीच चुनार और कड़ा (इलाहाबाद) के पास लड़ाइयाँ हुईं. युद्ध में हार मिलने पर शुजाउद्दौला को अंग्रेजों के साथ संधि करनी पड़ी. अंग्रेजों और शुजाउद्दौला के बीच संधि करने में राजा सिताबराय की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थी. शुजाउद्दौला को 60 लाख रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में अंग्रेजों को देने पड़े. इलाहबाद का किला और कड़ा का क्षेत्र मुगम बादशाह शाहआलम के लिए छोड़ देने पड़े. गाजीपुर और पड़ोस का क्षेत्र अंग्रेजों को देना पड़ा. एक अंग्रेज़ वकील को अवध के दरबार में रहने की आज्ञा दी गई और दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के शत्रु को अपना शत्रु समझने का आश्वासन दिया.
मीरकासिम का सपना चकनाचूर हो गया. सम्पत्ति छीन लिए जाने के साथ-साथ शुजाउद्दौला ने उसे अपमानित भी किया. मीरकासिम दिल्ली चला गया जहाँ शरणार्थी के रूप में अपना शेष जीवन अत्यंत कठनाई में व्यतीत किया.
परिणाम (Results)
भारत के निर्णायक युद्धों में बक्सर के युद्ध का परिणाम अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है. बक्सर का युद्ध बंगाल में तीसरी क्रांति का प्रतीक था. पहली क्रान्ति प्लासी के युद्ध से शुरू हुई और 1760 ई. में मीरजाफर को हटाकार मीरकासिम को नवाब बनाने के साथ दूसरी क्रान्ति पूरी हुई. अंग्रेजों द्वारा बंगाल में जो नाटक खेला जा रहा था उसके तीसरे और अंतिम दृश्य का पटाक्षेप बक्सर के युद्ध (Battle of Buxar) के रूप में हुआ.
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- बंगाल पर अंग्रेजों का वास्तविक रूप से अधिकार हो गया और उत्तर भारत का राजनीति पर उनका प्रभाव बढ़ गया.
- बक्सर के युद्ध में अवध के नवाब शुजाउद्दौला की पराजय से उत्तर भारत में कोई दूसरी शक्ति नहीं रही जो अंग्रेजों का विरोध कर सकती थी.
- शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों के साथ मित्रता कर ली और दिल्ली का सम्राट शाहआलाम बंगाल के नवाब की तरह अंग्रेजों की सैनिक सहायता पर निर्भर रहने लगा.
- शाहआलम अंग्रेजों का वास्तविक अधिकार बंगाल और बिहार में स्वीकार करने को तैयार था. मुग़ल सम्राट नाममात्र का अपना अधिकार सुरक्षित रखकर अंग्रेजों से किसी प्रकार समझौता करना चाहता था.
- बंगाल के नवाब के अधिकार को ख़त्म कर दिया गया. बंगाल के नवाब को सीमित संख्या में सेना रखने की इजाजत दी गई ताकि भविष्य में वह मीरकासिम की तरह अंग्रेजों का विरोध न कर सके.
- बंगाल के नवाब के यहाँ एक अंग्रेज़ प्रतिनिधि रहने लगा ताकि अंग्रेजों के खिलाफ कोई षड्यंत्र न रचा जाए.
- बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों को जितनी हानि उठानी पड़ी उसकी क्षतिपूर्ति मीरजाफर को करनी पड़ी.
- इस प्रकार बंगाल का नवाब मीरजाफर, अवध का नवाब शुजाउद्दौला और दिल्ली सम्राट शाहआलम तीनों अंग्रेजों की दया पर निर्भर थे.
स्वाभविक रूप से बक्सर के युद्ध (Battle of Buxar) के बाद भारतीय राजनीति में अंग्रेजों के प्रभुत्व और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई. बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिल जाने से अंग्रेजों की माली हालत अच्छी हो गई. उत्तर भारत में सत्ता-विस्तार का द्वार खुल गया. मराठों के साथ संघर्ष करने के लिए अंग्रेज़ तत्पर हो गए और अंत में भारत-विजय करने में वे सफल रहे.
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9 Comments on “बक्सर का युद्ध – Battle of Buxar 1764 in Hindi”
sir aap bahut hi acha likhte hain
Bhut knowledgeable article hai aage bhi isi tarah ke topics layen Thank you
Hello sir i am mukesh very good over write you are brilliant man thanks sir
Sir plz add European history and send me the link of this one
Sir your explanation is fantastic & plz
Use the simple Hindi words
Sir aapna bhut acha likha Hai muja bhut help hui aapsa thanx Sir
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