Sansar डेली करंट अफेयर्स, 29 January 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 29 January 2019


GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : Curative petition

संदर्भ

भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक उपचारात्मक याचिका (curative petition) दायर की है जिसमें माँग की गई है कि यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन के वर्तमान स्वामी कम्पनी Dow Chemicals से 1984 के भोपाल गैस कांड के शिकार लोगों को क्षतिपूर्ति देने के लिए 7,844 करोड़ रू. अतिरिक्त राशि दिलाई जाए.

भोपाल गैस कांड क्या है?

दिसम्बर 2 और 3, 1984 की रात में भोपाल में स्थित कीटनाशक संयंत्र से विषैला गैस रिसने लगा था जिससे तत्काल 3,500 लोग प्राणों से हाथ धो बैठे. आगे चलकर, हजारों लोग इस गैस से दुष्प्रभावित होकर मरते रहे. हजारों का अंग-भंग हो गया और गैस के प्रभाव से गंभीर बीमारियाँ भी हुईं. गैस का रिसाव जल के एक पाइप से हुआ था जिसके चलते पानी मिथाइल आइसो-साइनाइड (MIC) के टैंक में चला गया. उस संयोग से रेफ्रीजरेशन प्रणाली काम नहीं कर रही थी, इस कारण पानी में आया रसायन जल में प्रतिक्रिया करने लगा. इससे उत्पन्न प्रतिक्रिया के कारण गर्मी उत्पन्न हुई जिससे गैस की मात्रा बढ़ गयी और फोसजीन, कार्बन मोनोऑक्साइड और MIC के बादल निकलने लगे. यह सब इतनी तेजी से हुआ कि पूरे शहर में यह बादल फ़ैल गया और भोपाल के पाँच लाख निवासियों पर संकट आ गया.

उपचारात्मक याचिका क्या है?

उपचारात्मक याचिका दायर करना वह अंतिम न्यायिक उपाय है जिसका कोई व्यक्ति सहारा ले सकता है. यह उपाय तब लगाया जाता है तब किसी व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय भी वास्तविक न्याय नहीं मिला हो और उस व्यक्ति को यह लगता हो कि सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय में न्यायालय से कोई चूक हुई है. यह उपचार अति विरल मामलों में ही उपलब्ध होता है. इसमें जज द्वारा चैम्बर के अंदर बैठकर परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लिया जाता है. यदि यह याचिका भी खारिज कर दी जाती है तब दोषी के पास राष्ट्रपति के पास क्षमादान याचिका दायर करने का अंतिम विकल्प बचता है.

समीक्षा की शक्ति

संविधान के अनुच्छेद 137 में यह प्रावधान है कि संसद‌ द्वारा बनाई गई किसी विधि के या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सर्वोच्च न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन करने की शक्ति होती है.


GS Paper 2 Source: PIB

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Topic : India to participate in PISA 2021

संदर्भ

भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (Organization for Economic Cooperation and Development – OECD) के साथ एक समझौता किया है जिसके अनुसार भारत अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम – 2021 (Programme for International Student Assessment – PISA) में प्रतिभागिता करेगा.

PISA के लिए छात्रों का चयन

PISA कार्यक्रम के लिए केन्द्रीय विद्यालय संगठन (KVS) और नवोदय विद्यालय समिति (NVS) द्वारा संचालित पाठशालाओं और चंडीगढ़ संघीय क्षेत्र की पाठशालाओं के कुछ छात्रों को बिना किसी योजना के हठात् चुना जाएगा.

कार्यक्रम की महत्ता

PISA 2021 में भारत की प्रतिभागिता होने से यहाँ के छात्रों को मान्यता और स्वीकार्यता मिलने लगेगी और वे 21वीं शताब्दी की वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए तैयार हो सकेंगे.

पृष्ठभूमि

भारत ने PISA 2009 ई. में भाग लिया था परन्तु इसमें भागीदारी करने वाले 74 देशों में इसका स्थान 72वाँ आया था. तत्कालीन भारत सरकार का विचार था कि इसमें संदर्भ से हटकर प्रश्न पूछे गये थे जिसके कारण भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. इसलिए सरकार ने PISA का बहिष्कार कर दिया था.

2016 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने बहिष्कार के निर्णय पर पुनर्विचार किया और इसके लिए एक समिति गठित की. समिति ने सुझाव दिया कि 2018 में होने वाले PISA में भारत को सम्मिलित होना चाहिए परन्तु तब तक इसके निमित्त आवेदन देने की तिथि पार हो चुकी थी, इसलिए 2018 के PISA में भारत नहीं जा पाया.

PISA क्या है?

  • PISA छात्रों का एक मूल्यांकन कार्यक्रम है जिसमें 15 वर्ष के बच्चों की पढ़ने, गणित हल करने और विज्ञान की जानकारी परीक्षा हर तीसरे वर्ष ली जाती है.
  • सबसे पहली बार PISA 2000 ई. में आयोजित हुई थी.
  • मूल्यांकन परीक्षा में अलग-अलग चक्रों में कभी पढ़ने की क्षमता, कभी गणित हल करने की क्षमता तो कभी विज्ञान की समझ की क्षमता पर मुख्य बल दिया जाता है.
  • PISA में मिल-जुलकर समस्या के हल की क्षमता को भी शामिल किया जाता है.
  • PISA की रूपरेखा ऐसी बनाई गई है कि उन छात्रों की क्षमता की जाँच हो सके जो स्कूल की पढ़ाई लगभग पूरी करने के कगार पर हैं.
  • पीसा का समन्वयन औद्योगिकृत देशों के एक अंतर-सरकारी संगठन – Organization for Economic Cooperation and Development (OECD)– द्वारा किया जाता है और इसका संचालन अमेरिका में NCES द्वारा किया जाता है.
  • 2012 के PISA परीक्षा में चीन के शंघाई नगर के स्कूल शीर्ष पर रहे और उसके ठीक पीछे सिंगापुर का स्थान था.
  • 2015 की परीक्षा में शीर्ष पर सिंगापुर, जापान और एस्टोनिया के शहर रहे.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : Non-communicable diseases

संदर्भ

दक्षिण-पूर्व एशिया में हृदय रोग, जीर्ण स्वास-रोग, मधुमेह और कैंसर जैसे असंक्रमणीय रोग (Non-communicable diseases – NCDs)  मृत्यु के शीर्षस्थ कारक के रूप में बने हुए हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार इन रोगों से प्रत्येक वर्ष 8.5 मिलियन जन कालकवलित हो रहे हैं.

पृष्ठभूमि

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने असंक्रमणीय रोगों की रोकथाम को इस वर्ष का अपना स्वास्थ्यगत लक्ष्य बनाया है. जो अन्य ऐसा लक्ष्य निर्धारित हुआ है, वह है वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक इन्फ्लूएंजा आदि से होने वाली मृत्यु को कम करना.

NCD के बारे में कुछ ज्ञातव्य तथ्य

  • इन रोगों के कारण विश्व-भर में 70-71% मृत्यु होती है अर्थात् 41 मिलियन लोग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं.
  • मरने वाले लोगों में से 15 मिलियन लोग 30 वर्ष से लेकर 69 वर्ष की आयु के होते हैं. 85% मृत्यु असामयिक कहलाती है जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती है. ज्ञातव्य है कि इस आयु वर्ग के व्यक्ति आर्थिक रूप से उत्पादक होते हैं.
  • असंक्रामक रोगों से होने वाली मृत्यु हृदय रोग (17.9 मिलियन), कैंसर (9 मिलियन), श्वास रोग (3.9 मिलियन) और मधुमेह (1.6 मिलियन) से होती है.
  • मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर और जीर्ण स्वास रोग चार कारणों से होते हैं – तम्बाकू सेवन, अस्वास्थ्यकर भोजन, अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि और शराब का सेवन. चाहे तो कोई व्यक्ति अपने व्यवहार में सुधार लाकर इन रोगों से बच सकता है.
  • ये रोग बहुत करके ग़रीबों में होते हैं और इनके कारण स्वास्थ्य देख-भाल की प्रणालियों बोझ बढ़ता जा रहा है.

क्या किया जाए?

  • असंक्रमणीय रोगों के खतरों को कम करने के लिए रेशेदार और अपरिष्कृत अनाज खाना चाहिए. ऐसा करने से हृदय रोग, स्ट्रोक, टाइप 2 मधुमेह और आन्त्रिक कैंसर को 16% से लेकर 24% तक कम किया जा सकता है.
  • अधिक रेशेदार भोजन लेने से शरीर का भार और उच्च रक्तचाप के साथ कुल कोलेस्ट्रोल में भी कमी आती है.
  • चिकित्सकजन यह भी कहते हैं कि कम खाइए, धीरे-धीरे चबाकर भोजन का आनंद लीजिए, अपनी आधी थाली में फल और तरकारियाँ रखिये, अधिक मात्रा में भोजन लेने से बचिए जिससे शरीर का भार न बढ़े, आप जितना अनाज लेते हैं उनमें आधा अपरिस्कृत अनाज होने चाहिएँ, ट्रांस-फैट वाले भोजन लेना कम करें.

असंक्रामक रोग (NCD) क्या हैं?

  • असंक्रामक रोग लम्बे चलने वाले रोग हैं जो आनुवांशिक, शारीरिक, पर्यावरणगत, व्यवहारगत कारणों से होते हैं.
  • यह प्रमुख असंक्रामक रोग हैं – हृदयरोग (जैसे – हार्ट अटैक और स्ट्रोक), कैंसर, दमा और श्वास रोग एवं मधुमेह.

NCD का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

  • 2030 के सतत विकास लक्ष्य में एक लक्ष्य NCD से होने वाले असामयिक मृत्यु की संख्या घटाना भी है.
  • NCD और गरीबी में सीधा सम्बन्ध देखने में आता है. यदि ये रोग तेजी से बढ़ते जाएँ तो निम्न आय वाले देशों में गरीबी घटाने के लिए किये गये प्रयासों को धक्का लगेगा.
  • ऐसा देखने में आता है कि गरीब लोग अधिक शीघ्र बीमार पड़ते हैं और सामाजिक दृष्टि से उच्च लोगों की तुलना में जल्दी मरते भी हैं. ऐसा इसलिए होता है कि गरीब लोग तम्बाकू जैसी हानिकारक वस्तुओं का सेवन करते हैं और उनका खानपान स्वास्थ्यकर नहीं होता. इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य की सुविधाओं तक उनकी पहुँच भी सीमित होती है.
  • NCD का उपचार महँगा होता है और लम्बा चलता है. बहुधा इसके शिकार गरीब लोग मर जाते हैं और हर वर्ष रोटी कमाने वालों की मृत्यु के कारण लाखों परिवार उजड़ जाते हैं.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : New Delhi superbug gene reaches the Arctic

संदर्भ

दस-एक वर्ष पहले दिल्ली के पानी में खोजा गया सुपर बग जीन, जिसे नई दिल्ली मैटलो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (New Delhi Metallo-beta-lactamase-1) भी कहते हैं,  अब वैज्ञानिकों को स्वालबार्ड द्वीपसमूह में मिला है जो नॉर्वे की मुख्य भूमि और उत्तरी ध्रुव के बीच में स्थित है. यह चिंताजनक बात है कि कई दवाओं के प्रति रोधकता रखने वाला सुपर बग बैक्टीरिया अब पृथ्वी के ऐसे क्षेत्र में पहुँच गया है जिसे “प्रिस्टीन क्षेत्र” माना जाता है.

यह बैक्टीरिया आर्कटिक मिट्टी में पाया गया जहाँ यह पशुओं और मनुष्यों की आँत के माध्यम से पहुँचा होगा. यहाँ बैक्टीरिया लाने वाले मनुष्य वे यात्री होंगे जो यहाँ आये अथवा चिड़ियाँ या वन्य जीव होंगे जिनकी विष्ठा के कारण यह बैक्टीरिया यहाँ की मिट्टी तक पहुँच गया होगा.

सुपर बग क्या होता है?

सुपर बग एक ऐसा बैक्टीरिया है जो कई औषधियों के प्रति रोधकता रखता है और जिसमें कई प्रतिरोधी जीन होते हैं. एक या एक से अधिक एंटी-बायोटिक के प्रयोग के बाद भी सुपर बग जीवित रह जाता है.

ANTIMICROBIAL_RESISTANCEचिकित्सक लोग चिंतित क्यों हैं?

सुपर बग बैक्टीरिया पहले से अधिक शक्तिशाली और व्यापक हो गये हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि वह दिन शीघ्र आने वाला है जब ऐसे संक्रमणों का हमें सामना करना पड़ेगा जो जानलेवा और असाध्य होंगे. एंटी-बायोटिक के  प्रति रोधकता ऐसी वस्तु है जो अपेक्षाकृत आसानी से एक बैक्टीरिया से दूसरे बैक्टेरिया में पहुँच जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन को आशंका है कि भविष्य में कई ऐसे सुपर बग पैदा हो सकते हैं. रोधकता के चलते पहले ही यक्ष्मा, सुजाक और निमोनिया जैसे संक्रमणों को साधारण एंटी-बायोटिक से उपचार करना दिन-प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है.

निदान

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि स्थिति को सुधारने के लिए हमें एंटी-बायोटिक का प्रयोग घटना होगा. यदि कोई रोगी एंटी-बायोटिक लेता है तो उसे चाहिए कि वह उसका पूरा कोर्स ले जिससे संक्रमण करने वाला एक-एक बैक्टीरिया मर जाए. यदि एक भी बैक्टीरिया जिन्दा रह जाए तो वह अपने आप में रूपांतरण करके अनेक बैक्टीरिया पैदा करेगा. यही नियम पशुओं के उपचार में भी लागू करना चाहिए.


GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic : Tackling climate change from a security perspective

संदर्भ

हाल ही में विश्व-भर के वैज्ञानिकों, राजनीतिक प्रतिनिधियों, सिविल सोसाइटी संगठनों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने एक खुले विमर्श का आयोजन किया जिसमें जलवायु परिवर्तन के शान्ति और सुरक्षा पर प्रभाव  की चर्चा की गई और वैश्विक तापमान की वृद्धि पर होने वाले प्रभावों को कम करने वाले ठोस उपायों पर बल दिया गया.

जलवायु परिवर्तन राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा कैसे?

  • जलवायु परिवर्तन कई दृष्टि से सुरक्षा पर प्रभाव डालता है.
  • कुछ लोगों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन किसी भी सुरक्षा खतरे से बड़ा खतरा है क्योंकि इसके कारण मालदीव जैसे देशों के अस्तित्व पर ही आँच आ जाती है.
  • जलवायु परिवर्तन के विषय में गठित अंतर-सरकारी पैनल ने पिछले अक्टूबर को यह भविष्यवाणी की थी कि पहले से अधिक लू चलेगी, अति-वृष्टि होगी, समुद्र का स्तर ऊँचा उठेगा और खेती को भीषण क्षति पहुँचेगी. ये सभी निश्चित रूप से सुरक्षा से जुड़े हुए खतरे हैं.
  • वैश्विक तापमान को बढ़ाने वाले कार्बन डाइऑक्साइड जैसे ग्रीन हाउस गैस का जमाव पूरे विश्व में 2018-19 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया. कार्बन डाइऑक्साइड का ऐसा जमाव इसके पहले 3 से 5 मिलियन वर्ष पहले हुआ था जब तापमान 2 से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो गया था और समुद्र का जल स्तर आज से 10-20 मीटर ऊँचा हो गया था.

समस्या के समाधान के लिए क्या करना होगा?

  • अधिक सुदृढ़ विश्लेषणात्मक क्षमता विकसित करनी होगी और खतरों के मूल्यांकन के कार्य से जुड़े फ्रेमवर्कों को एक जगह लाना होगा.
  • साक्ष्यों के संग्रहण की पद्धति सुदृढ़ करनी होगी जिससे जलवायु के खतरे को रोकने के लिए और उसके प्रबंधन के लिए अपनाई जा रही उत्कृष्ट प्रथाओं का प्रत्येक जगह अनुकरण किया जा सके.
  • संयुक्त राष्ट्र के अन्दर और बाहर स्थित वर्तमान क्षमताओं के अलावा नई भागीदारियाँ बनानी होंगी और उनको सुदृढ़ करना होगा.

Prelims Vishesh

‘India can’t handle more big cats’ :-

  • बाघों के निवास के योग्य भूभाग सिकुड़ते जा रहे हैं, इसलिए विशेषज्ञों का विचार है कि बाघों का प्रबंधन करने के मामले में भारत अपनी सम्पूर्ण क्षमता तक लगभग पहुँच चुका है.
  • अभी भारत के पास यह क्षमता है कि वह 2,500 से लेकर 3,000 बाघों का प्रबंध कर सकता है.
  • भारत के 25-35% बाघ आजकल सुरक्षित आश्रयणियों के बाहर रहते हैं.
  • हाल ही में प्रयास किया गया कि बाहर रह रहे बाघों को ऐसे आश्रयणियों में प्रवेश करा दिया जाए जहाँ बाघ कम हैं. ऐसा एक प्रयास ओडिशा के सतकोसिया में हुआ था, पर वह सफल नहीं हुआ और इस चक्कर में एक बाघ मर भी गया.

India replaces Japan to be world’s second largest steel producer :-

  • भारत जापान के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात का निर्यातक बन गया है.
  • इस मामले में वह अब केवल चीन के ही पीछे है.

Environment, Social and Governance (ESG) Fund :

  • टाटा ग्रुप के तीन भूतपूर्व अधिकारियों ने क्वान्टम एडवाइजर्स के साथ भागीदारी में एक बिलियन डॉलर का पर्यावरण, सामाजिक एवं प्रशासन कोष का अनावरण हुआ है.
  • इस कोष से उन भारतीय कंपनियों में पैसा लगाया जाएगा जो पर्यावरण, समाज और कॉर्पोरेट प्रशासन के क्षेत्र में काम करती हैं.

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