विश्व सामाजिक संरक्षण रिपोर्ट
हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए विशिष्ट रिपोर्ट निर्गत किया है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की “विश्व सामाजिक संरक्षण रिपोर्ट 2020-22″ के अनुसार विश्व में 53% लोगों को किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है।
UPSC Syllabus : यह टॉपिक GS Paper 3 का है और “भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय” के अंतर्गत आएगा.
सामाजिक सुरक्षा क्या है?
सामाजिक सुरक्षा, उन उपायों को कहा जाता है जो कि व्यक्तियों के लिए वृद्धावस्था, बेरोज़गारी, बीमारी, विकलांगता, कार्य के दौरान चोट, मातृत्व अवकाश, स्वास्थ्य देखभाल और आय सुरक्षा के प्रावधानों को सुनिश्चित करते हैं।
विश्व सामाजिक संरक्षण रिपोर्ट 2022 के मुख्य तथ्य
- कोविड 19 महामारी ने विश्व में व्याप्त असमानता, सामाजिक सुरक्षा के कवरेज में अंतराल को उजागर किया है। इस प्रकार महामारी ने सरकारों को सामाजिक सुरक्षा के लिए नीतियों के निर्माण के लिए बाध्य किया है।
- विश्व सामाजिक संरक्षण रिपोर्ट के अनुसार, संसार भर में विभिन्न देश अपने जीडीपी का औसतन 12.9% सामाजिक सुरक्षा (स्वास्थ्य को छोड़कर) पर खर्च करते हैं। इनमें उच्च आय वाले देश औसतन 16.4%, उच्च-मध्यम्त आय वाले देश 8%, निम्न-मध्यम आय वाले देश 2.5% और निम्न-आय वाले देश 1.1% सामाजिक सुरक्षा पर खर्च करते हैं।
- भारत में सामाजिक सुरक्षा पर खर्च GDP का मात्र 8.6% है।
- वैश्विक स्तर पर नवजात शिशुओं वाली सिर्फ 45% महिलाओं को नकद मातृत्व लाभ प्राप्त होता है।
- वर्तमान में वैश्विक स्तर पर चार बच्चों में से केवल एक (26.4%) को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त होता है।
- विश्व भर में केवल 18.6% बेरोज़गार व्यक्ति, बेरोज़गारी लाभों के कवरेज के तहत आते हैं।
भारत सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में उठाये गये कदम
भारत सरकार ने नागरिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों के सम्बन्ध कई योजनाओं/कार्यक्रमों को लागू किया है, जैसे- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, सुगम्य भारत अभियान, आयुष्मान भारत योजना, मनरेगा, सामाजिक सुरक्षा कोड, 2020, मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, वय वंदना योजना आदि।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के बारे में
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की स्थापना प्रथम विश्व युद्ध के बाद ‘लीग ऑफ़ नेशन’ की एक एजेंसी के रूप में की गयी थी.
- इसे वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा स्थापित किया गया था.
- वर्ष 1946 में ILO, संयुक्त राष्ट्र (United Nations– UN) की पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया.
- वर्ष 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया.
- यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय एजेंसी है जो सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाती है. यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानवाधिकारों एवं श्रमिक अधिकारों को बढ़ावा देता है.
- वर्ष 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को इसके कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया.
- मुख्यालय : जिनेवा, स्विट्जरलैंड.
भारतीय श्रम कानून क्या है?
“श्रम” समवर्ती सूची में आता है. इसलिए केंद्र और राज्य दोनों अपने-अपने श्रम कानून बनाते हैं. अनुमान है कि वर्तमान में 200 से अधिक राज्य श्रम कानून और लगभग 50 केन्द्रीय श्रम कानून हैं. फिर भी देश में श्रम कानूनों की अभी तक कोई निश्चित परिभाषा नहीं है.
मोटे तौर पर उनको चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है –
- कार्यस्थल की दशा
- मजदूरी और वेतन
- सामाजिक सुरक्षा
- नौकरी की सुरक्षा और औद्योगिक सम्बन्ध
भारतीय श्रम कानूनों की आलोचना क्यों होती है?
कहा जाता है कि भारतीय श्रम कानून लचीले नहीं होते हैं. 100 से अधिक कामगारों को रखने वाले प्रतिष्ठानों को ढेर सारी कानूनी अपेक्षाएँ पूरी करनी पड़ती हैं. किसी को नौकरी से निकालने के लिए सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है जिस कारण ये प्रतिष्ठान किसी को नौकरी पर रखने से बचते हैं. इससे एक ओर जहाँ इन प्रतिष्ठानों की वृद्धि कुंठित रहती है, वहीं दूसरी ओर, मजदूरों को कोई लाभ नहीं मिलता.
कई कानून आवश्यकता से अधिक जटिल हैं और उनका सही ढंग से कार्यान्वयन नहीं होता है. इस कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है.
भारतीय श्रम कानून के बारे में विस्तार से पढ़ें – भारतीय श्रम कानून