प्रतिवर्ष 16 सितम्बर को विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है. इसे “ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस” भी कहा जाता है. यह दिन ओजोन परत को रोकने के लिए लाये गये मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के उपलक्ष्य में वर्ष 1995 से मनाया जा रहा है. विश्व ओजोन दिवस 2022 का विषय (theme) “मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल @35 : ग्लोबल कोऔरेशन प्रोटेक्टिंग लाइफ ऑन अर्थ (पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करने के लिए वैश्विक सहयोग) है.
ओजोन परत (OZONE LAYER)
ओजोन गैस पूरे पृथ्वी के ऊपर एक परत के रूप में छाया रहता है और क्षतिकारक UV किरणों के विकिरण को धरातल पर रहने वाले प्राणियों तक पहुँचने से रोकता है. इस परत को ओजोन परत कहते हैं. यह परत मुख्य रूप से समताप मंडल में होती है.
इसे जीवन सहायक इसलिए माना जाता है कि इसमें कम तरंग दैर्ध्य (wave length) का प्रकाश, जो कि 300 नैनोमीटर से कम हो, को अपने में अवशोषित करने की विलक्षण क्षमता है. जहाँ पर वातावरण में ओजोन उपस्थित नहीं होगी, वहाँ सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें (UV rays) पृथ्वी पर पहुँचने लगेंगी. ये किरणें मनुष्य के साथ-साथ जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों के लिए भी बहुत खतरनाक है. ओजोन पृथ्वी से 60 किलोमीटर की ऊँचाई पर पाई जाती है. वायुमंडल का यह क्षेत्र स्ट्रेटोस्फीयर (stratosphere) कहलाता है. ध्रुवों के ऊपर इसकी परत की मोटाई 8 km है और विषुवत् रेखा (equator line) के ऊपर इसकी मोटाई 17 km है.
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मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
वर्ष 1985 में वियना कन्वेंशन हुआ, इसमें लिए गए निर्णयों के फलस्वरूप वर्ष 1987 में ओजोन परत का ह्रास करने वाले पदार्थों के बारे में एक समझौता हुआ, जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कहते हैं।
इस प्रोटोकॉल के अंतर्गत ओजोन ह्रासक पदार्थो- CFCs, ब्रोमोफ्लोरोकार्बन (हेलोंस) तथा अन्य क्लोरीन यौगिकों के उपयोग को पूरी तरह समाप्त करने के लिए एक समय सारणी तय की गई थी।
विकासशील देशों (अनुच्छेद 5 देश) को इस समयावधि में 10 वर्ष की छूट प्रदान की गई वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) के माध्यम से विकासशील देशों में परियोजनाओं का वित्तीयन किया गया। भारत इन देशों में सम्मिलित है. भारत ने 17 सिंतबर 1992 को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को स्वीकार किया था.
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन में भारत की उपलब्धियाँ
भारत, वर्ष 1992 से मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकार के रूप में, प्रोटोकॉल के चरणबद्ध कार्यक्रम के अनुरूप ओजोन की परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों को धीरे-धीरे समाप्त करने के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, परियोजनाओं और कार्यों को सफलतापूर्वक कार्यान्वित कर रहा है।
भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल अनुसूची के अनुरूप 1 जनवरी 2010 को नियंत्रित उपयोग के लिए क्लोरोफ्लोरोकार्बन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म का उत्पादन बंद कर दिया। वर्तमान में, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के त्वरित कार्यक्रम के अनुसार हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन को समाप्त किया जा रहा है।
हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन का प्रयोग चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की प्रबंध योजना (एचपीएमपी) चरण – I को 2012 से 2016 तक सफलतापूर्वक लागू किया गया है और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन को धीरे-धीरे समाप्त करने की प्रबंध योजना (एचपीएमपी) चरण-II 2017 से कार्यान्वयन के अधीन है और 2023 तक पूरी हो जाएगी. शेष एचसीऍफ़सी को धीरे-धीरे समाप्त करने के लिए एचपीएमपी का अंतिम चरण III 2023-2030 से लागू किया जायेगा.
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