वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट 2022 के प्रमुख बिंदु

Sansar LochanEconomics Current AffairsLeave a Comment

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में इस वर्ष की दूसरी “वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक” रिपोर्ट 2022 जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था 2.7 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी, जिसके परिणामस्वरूप कुछ देशों में मंदी की स्थिति रहेगी।

वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट 2022 के अन्य प्रमुख बिंदु

वर्ष 2023 में संयुक्त राज्य अमेरिका (1%) और चीन (4.4%) जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बेहद धीमी वृद्धि दिखने की आशा है, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था के 6.1% की वृद्धि दर से बढ़ने की उम्मीद है।

करीब एक तिहाई देशों में उच्च मुद्रास्फीति एवं निम्न जीडीपी वृद्धि दर की स्थिति बनी रहेगी. विदित हो कि ऐसी स्थिति को ही “स्टैगफ्लेशन” कहा जाता है।

नीति निर्माताओं के लिए यह एक बड़ी चुनौती होती है क्योंकि मुद्रास्फीति को कम करने के उपायों से वृद्धि दर और नीचे चली जाती है तो दूसरी ओर वृद्धि दर बढ़ाने के उपायों से मुद्रास्फीति दर भी बढ़ती है।

रिपोर्ट के अनुमानों के अनुसार 2022-23 में वैश्विक मुद्रास्फीति दर 9.5% रहेगी एवं यह वर्ष 2024 तक 4.1% पर आ जाएगी.

वैश्विक कोर मुद्रास्फीति दर (खाद्य एवं ईंधन के अतिरिक्त) 6.6% रहने का अनुमान लगाया गया है। ज्ञातव्य है कि कोर मुद्रास्फीति दर खाद्य एवं ईंधन मुद्रास्फीति की तुलना में शनैः शनैः परिवर्तित होती है। 

रिपोर्ट में वैश्विक अर्थव्यवस्था के सम्मुख तीन प्रमुख चिंताएँ व्यक्त की गई हैं- पहली, कई देशों की राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों में विरोधाभास का होना है। दूसरी चिंता वित्तीय स्थिरता एवं मजबूत अमरीकी डॉलर के इस पर प्रभाव को लेकर जताई गई है जबकि तीसरी, भूराजनीतिक संकट है, जो रूस-यूक्रेन युद्ध से सम्बद्ध है।

भारत की स्थिति

  1. प्रथम दृष्टया भारत की जीडीपी वृद्धि दर (6.1%) एवं मुद्रास्फीति दर अन्य देशों की तुलना में बेहतर दिखाई देती है। लेकिन वास्तविक तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी महामारी के झटके से पूरी तरह नही उबर पाई है, जिसकी वजह से वर्ष 2020 में 5.6 करोड़ भारतीय गरीबी में धकेल दिए गये थे एवं करोड़ों बेरोजगार हो गए थे।
  2. भारत के समक्ष विद्यमान प्रमुख खतरे इस प्रकार हैं- > कच्चे तेल एवं उर्वरकों की उच्च कीमतें घरेलू मुद्रास्फीति को लगातार बढ़ा रही है।
  3. आने वाले समय में वैश्विक मंदी के कारण मांग में कमी होगी, जिससे भारत के निर्यात में कमी आएगी, जिससे व्यापार घाटे में वृद्धि होगी।
  4. मजबूत अमरीकी डॉलर की स्थिति रूपये की परिवर्तनीयता पर दबाव डालेगी, इसका परिणाम विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के रूप में परिलक्षित होगा।
  5. अधिकांश भारतीयों की निम्न क्रय क्षमता के चलते सरकार को सब्सिडी पर खर्च में बढ़ोतरी करनी होगी, जिससे राजकोष पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।

IMF के बारे में

  • अमेरिका के राज्य न्यू हेम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान में 1944 में एक सम्मलेन हुआ था जिसमें विश्व बैंक के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की भी संकल्पना की गई थी.
  • इस कोष का उद्देश्य विश्व में आर्थिक स्थिरता लाना और वित्तीय संकट को टालना तथा संभालना दोनों है.
  • कालांतर में IMF का मुख्य ध्यान विकासशील देशों की ओर केन्द्रित हो गया है.
  • IMF के लिए निधि सदस्य देशों द्वारा दिए गये कोटे से आती है जो कि उस देश की सम्पदा के अनुरूप होता है.
  • IMF ऋण देने का भी काम करता है पर यह काम वह एक अंतिम उपाय के रूप में ही करता है. यदि कोई देश कठिनाई से गुजर रहा है तो उसको छोटी अवधि के लिए अपने कोष से IMF विदेशी मुद्रा उपलब्ध कराता है.

अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली में स्थायित्व सुनिश्चित करता है। इसके लिए यह वैश्विक एवं सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर निगरानी रखता है। IMF, वित्तीय संकट, बैलेंस ऑफ पेमेंट संकट से जूझ रहे देशों को ऋण, वित्तीय सहायता प्रदान करता है। वर्ष 1991 में IMF ने भारत को BoP संकट दूर करने में मदद की थी। हालाँकि वित्तीयन की शर्तें बहुत सख्त होती है अत: ये गरीब और विकासशील देशों के लिए अधिक लाभदायक नहीं होती।

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