[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Polity GS Paper 2/Part 11

Sansar LochanGS Paper 2, Sansar Manthan

[no_toc] सामान्य अध्ययन पेपर – 2

भारत में सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण बताएँ. मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक को पारित करने से क्या सड़क दुर्घटना पूरी तरह बंद हो जाएगी? (250 शब्द)

  • अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है  = Green
  • आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 2 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप ….”

उत्तर :-

यदि भारत में सड़क सुरक्षा की राज्यवार स्थिति देखी जाए तो क्रमशः मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र सड़क दुर्घटनाओं के शीर्ष पर हैं. भारत में सड़कों की बदतर हालत, गड्ढ़े, सड़कों के रखरखाव का ठीक से न होना, ख़राब सिग्नल व्यवस्था और सड़क सुरक्षा दिशा-निर्देशों का पालन न होना सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण हैं.

सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारण –

  1. भारत में सड़कें अच्छी नहीं हैं और बहुत संकरी हैं. सड़क के निर्माण में मानकों का उल्लंघन किया जाता है और भ्रष्टाचार के कारण गुणवत्तापूर्ण सामग्री के उपयोग को नजरअंदाज़ किया जाता है.
  2. वर्तमान के मोटर वाहन अधिनियम में सड़कों की ख़राब डिजाईन, सड़क-निर्माण में प्रयुक्त खराब सामग्री व लचर रख-रखाव के लिए दंड का प्रावधान नहीं है.
  3. भ्रष्टाचार के चलते ही कई बार ड्राइविंग लाइसेंस ऐसे लोगों को दे दिया जाता है जिन्हें ड्राइविंग करना आता ही नहीं और न ही उन्हें सड़क परिवहन के नियमों के बारे में पता होता है.
  4. भारत में वाहनों के रख-रखाव व उनकी गुणवत्ता निम्न होती है.
  5. भारत में राजमार्गों का कुल विस्तार 97,000 km. है जिसे अगले पाँच वर्षों में 200000 km. तक बढ़ाने का सरकार का लक्ष्य है. देश में सड़कों की कुल लम्बाई 52 लाख किमी. है. पर यहाँ जानने लायक बात यह है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर 40% ट्रैफिक दौड़ रही है जबकि वे देश की कुल सड़कों का केवल 2% है.

मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक को पारित करने मात्र से सड़क दुर्घटना बिल्कुल बंद हो जायेगी, ऐसा सोचना उचित नहीं होगा. सड़क दुर्घटनाओं की एक बड़ी वजह सड़कों का संकरा होना है. भारत में अधिकांश सड़कें गलियाँ बन चुकी हैं. नगर निकायों का भ्रष्टाचार अधिकांश जमीन को विद्यालयों, धर्मस्थलों और व्यापारियों के हवाले कर चुका है. एक ही सड़क पर ट्रक भी दौड़ रहे हैं और अन्य वाहन भी दौड़ रहे हैं. कई शहरों में तो टू-वे यातायात की अवधारणा ही नहीं है और न ही ट्रैफिक पुलिस को यायातात की मूल नियमों का पता है. ई-रिक्शे बेधड़क, बसों व ऑटो के साथ रेस लगा रहे हैं. फुटपाथ की सुविधा तो शायद ही किसी शहर में हो. इसलिए यह समझना जरुरी है कि यह विधेयक सभी समस्याओं का हल नहीं है. कुछ चीजें आम नागरिकों के हाथों में भी हैं, जैसे – हेलमेट पहनना, सीट-बेल्ट पहनना, यातायात नियमों का पालन करना आदि.

भारत में क़ानून तो बन जाते हैं पर उनका कार्यान्वयन धरातल पर सही ढंग से हो, ऐसा कम ही हो पाता है. ऐसे में काफी आशंका है कि नए विधेयक के कड़े प्रावधान व उच्च जुर्माना दरें जमीनी स्तर पर लागू हो पाएँ.


राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) को पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार ने बनाया है पर वर्तमान में यह कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. NGT किन चुनौतियों का सामना कर रहा है और इन चुनौतियों से निटपने के लिए क्या कदम उठाये जाने चाहिएँ? (250 शब्द)

  • अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है  = Green
  • आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 2 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ ….”

उत्तर :-

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) की स्वतंत्रता को लेकर आजकल बहस छिड़ी हुई है. सैद्धांतिक रूप से यह एक स्वतंत्र निकाय है लेकिन दिन प्रतिदिन इसके अधिकारों में कटौती की जा रही है. सरकार और NGT के बीच में टकराव देखा जा रहा है. NGT ने पर्यावरण को लेकर कुछ ऐसे सवाल उठाये हैं और ऐसे फैसले सुनाये हैं जो सरकार के विरुद्ध हैं.

NGT के समक्ष चुनौतियाँ –

मूलभूत सुविधाओं का अभाव – जजों की कम नियुक्ति, सदस्यों का अभाव, कार्यालय आदि जैसी मूल सुविधाओं की कमी NGT के कार्य को प्रभावित कर रही है.

कम बजट – बजट की कमी भी NGT की एक प्रमुख समस्या है. NGT की हमेशा सरकार से शिकायत रहती है कि सरकार पर्याप्त धन मुहैया नहीं कराती जिससे NGT का कार्य सुचारू रूप से नहीं चल पाता है.

राजनैतिक दबाव – इसके अतिरिक्त कई बार NGT को राजनैतिक दबाव का सामना भी करना पड़ता है. कई बार निरीक्षण के दौरान NGT को ऐसे लोगों का सामना करना पड़ता है जिन पर सरकार का हाथ होता है. ऐसी परिस्थिति में NGT को खुलकर कार्य नहीं करने दिया जाता है जिसका असर उसके निर्णयों पर पड़ता है.

उपाय

  1. NGT या कोई भी ऐसी संस्था जो पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य कर रही हो तो उसे पूर्ण स्वतंत्रता देनी चाहिए जिससे कि वह बिना किसी बाहरी दबाव के काम कर सके और उचित निर्णय ले सके.
  2. पर्यावरण संरक्षण का कार्य मात्र किसी निकाय, संस्था या NGO का नहीं है. आम नागरिकों को भी पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए इन निकायों का हाथ बंटाना  चाहिए.
  3. सरकार और NGT के बीच जो भी समस्याएँ या गतिरोध हैं, उन पर त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए ताकि यह संस्था अपने उद्देश्यों को पाने में सफल हो सके.
  4. NGT का क्षेत्रीय विस्तार सम्पूर्ण भारत में होना चाहिए जिससे कि लोगों को उनके जिले में ही न्याय मिल सके.
  5. NGT द्वारा जो निर्णय दिए जाते हैं, उनका पालन किया जाना चाहिए. दिल्ली के यमुना नदी का मामला, ऑड-इवन परिवहन का मामला, पुणे की बिल्डिंग निर्माण की घटना में NGT के आदेशों का पालन नहीं किया गया. सरकार और आम आदमी दोनों द्वारा इसके निर्णयों की अनदेखी की गई जो नहीं होना चाहिए.

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“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan

Tags : Sadak durghatna, Road incidents data of India in Hindi, NGT (National Green Tribunal) vs Govt of India issue. Challenges of NGT.

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